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संसद टीवी संवाद

भारतीय अर्थव्यवस्था

प्रत्यक्ष कर संहिता

  • 02 Jan 2020
  • 13 min read

हाल ही में एक कार्य-बल (Task Force) द्वारा नई प्रत्यक्ष कर संहिता (Direct Tax Code) पर एक ड्राफ्ट वित्त मंत्री को प्रस्तुत किया गया। अखिलेश रंजन के नेतृत्व वाले इस कार्य-बल का गठन नवंबर 2017 में मौजूदा आयकर अधिनियम, 1961 की समीक्षा के लिये किया गया था।

प्रस्तुत ड्राफ्ट में दूरगामी परिवर्तनों और करदाताओं के लिये व्यापक राहत प्रस्तावित है। इसमें स्टार्ट-अप कंपनियों को प्रोत्साहन देने और कर दाता एवं कर संग्राहक के बीच मध्यस्थता के माध्यम से विवादों को निपटाने के लिये एक नई अवधारणा का प्रस्ताव भी किया गया है।

नई कर संहिता क्यों?

आयकर अधिनियम, 1961 (Income Tax Act, 1961) को तत्कालीन अर्थव्यवस्था की आवश्यकता के अनुसार अधिनियमित किया गया था। इसमें आय पर करारोपण के तरीके के संबंध में लोगों की मानसिकता और विचार प्रक्रिया का ध्यान रखा गया था।

पिछले 58 वर्षों में अर्थव्यवस्था का वैश्वीकरण व उदारीकरण हुआ है, साथ ही अर्थव्यवस्था अधिक एकीकृत हुई है और व्यापार के नए मॉडल विकसित हुए आए हैं। अत: वर्तमान समय की आवश्यकताओं को देखते हुए अधिनियम का पुनः प्रारूपण करना ज़रूरी है तथा साथ ही इसे अगले कुछ दशकों के लिये इसे अनुकूल बनाया जाना चाहिये।

प्रत्यक्ष कर प्रणाली की चुनौतियाँ

  • कर की दर (Tax Rate): भारत में कर की दर व्यक्तियों और कॉर्पोरेट दोनों के लिये अत्यधिक उच्च है।
    • अमेरिका में ट्रंप प्रशासन द्वारा कॉर्पोरेट कर की दर को कम किये जाने के कारण विश्व के अन्य भू-भागों से अमेरिका की ओर निवेश का स्थानांतरण हुआ।
    • यद्यपि भारत सरकार ने कॉर्पोरेट कर की दर में 25% तक की कमी की लेकिन घरेलू और विदेशी कंपनियों को एक समान स्तर पर रखना एक ऐसा विषय है जिसे सुलझाने की आवश्यकता है।
    • कर आधार (Tax Base) में वृद्धि के लिये व्यक्तिगत कर दरों को भी युक्तिसंगत बनाया जाना चाहिये।
  • कर मूल्यांकन (Tax Assessment): भारत में कर मूल्यांकन की प्रक्रिया भौतिक है जो कर अधिकारियों द्वारा उत्पीड़न के अवसर उत्पन्न करती है जिसे व्यंग्य में ‘कर आतंकवाद’ (Tax Terrorism) भी कहा जाता है। यह कर अनुपालन और कर आधार में वृद्धि किये जाने के मार्ग में एक प्रमुख अवरोध है।
  • कर विवाद (Tax Dispute): भारतीय कराधान प्रणाली में बड़ी संख्या में कर अभियोजन (Tax Litigations) की स्थिति रही है जो समग्र कर विवाद समाधान तंत्र को अव्यवहार्य बना देता है।
    • कारोबार की सुगमता (Ease of Doing Business) और अनुबंधों के प्रवर्तन के विषय में यह चिंता का एक प्रमुख कारण है।
  • छूट (Exemptions): प्रत्यक्ष कर संहिता में बहुतायत में कई प्रकार की छूट प्रदान की गई है जो आयकर दाखिल करने की प्रक्रिया को और जटिल बनाता है तथा प्रभावी कर दर को कम करता है।

नई प्रत्यक्ष कर संहिता की प्रासंगिकता

  • जटिलताएँ (Complexities): छह दशक पुरानी कर संहिता में लगभग 700 धाराएँ (Sections) हैं जो अत्यंत जटिल प्रकृति की हैं। इसमें समय के साथ कई संशोधन हुए हैं। वर्तमान में संपूर्ण कर संहिता अत्यंत अव्यवस्थित रूप में है। इसलिये कर अधिनियमों के सरलीकरण से अधिकाधिक लोग प्रत्यक्ष कर व्यवस्था का हिस्सा बन सकेंगे।
  • जनसांख्यिकी (Demographics): 1.2 बिलियन से अधिक की आबादी वाले देश में केवल 74 मिलियन प्रभावी करदाता मौजूद हैं जो कि मामूली संख्या है। भारतीय जनसंख्या और जनसांख्यिकी के आकार पर विचार करते हुए कर प्रशासन को कराधान के दायरे में अधिकाधिक लोगों को लाने के लिये सक्रिय कदम उठाने की आवश्यकता है।
  • कर प्रशासन (Tax Administration): वर्तमान कर प्रशासन का विकास पिछले 6 दशकों में इसे प्राप्त अनुभवों के साथ हुआ है।
    • इसलिये नई कर संहिता प्रक्रियात्मक दोषों को दूर करने और वर्तमान में उत्पीड़न के लिये बदनाम कर प्रशासन को उपयोगकर्त्ता के अनुकूल बनाने का अवसर प्रदान करती है।
  • प्रौद्योगिकी का उपयोग (Use of Technology): वर्ष 1961 में कराधान की प्रक्रिया पूरी तरह से भौतिक थी। वर्तमान में नई प्रौद्योगिकी, सोशल मीडिया, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के उपयोग को समायोजित करना होगा ताकि प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी बनाया जा सके।
    • हाल ही में आयकर विभाग ने प्रायोगिक आधार पर फेसलेस मूल्यांकन योजना (Faceless Assessment scheme) शुरू की है।
  • व्यवसाय का रूपांतरण (Changing Form of Business): पिछले 6 दशकों में व्यवसायों की प्रकृति में बहुत परिवर्तन आया है। सोशल मीडिया और इंटरनेट मार्केटिंग का एक नए कमोडिटी (Commodity) के रूप में उभार हुआ है जिस पर उपयुक्त करारोपण की आवश्यकता है।
    • इसलिये नई कर संहिता में भौगोलिक सीमाओं से परे जाकर हितधारकों पर करारोपण के प्रावधान शामिल होने चाहिये।

फेसलेस मूल्यांकन (Faceless Assessment): यह एक यादृच्छिक और बेनामी मूल्यांकन (Randomized and Anonymized Assessment) है जिसका उद्देश्य करदाता और कर निर्धारकों के बीच के भौतिक संपर्क या इंटरफेस को समाप्त करना है।

  • इस प्रणाली में कर अधिकारी के समक्ष उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं होगी और न ही कागज़ात या व्यक्ति को भौतिक रूप से गमन करने की आवश्कता होगी।
  • यह मूल्यांकन के दौरान कर प्रशासन द्वारा सामना किये जाने वाले दबाव को व्यापक रूप से कम करेगा और कई समस्याओं को संबोधित करेगा।

आवश्यकता है कि फेसलेस या ई-मूल्यांकन की प्रक्रिया को व्यापक रूप से व्यवहृत और अनिवार्य बनाया जाए।

नई कर संहिता से अपेक्षाएँ

  • लाभांश वितरण कर (Abolition of Dividend Distribution Tax- DDT) और न्यूनतम वैकल्पिक कर (Minimum Alternate Tax- MAT) का उन्मूलन।
  • उपकर (Cess) और अधिभारों (Surcharges) का उन्मूलन।
  • छूटों (Exemptions) को न्यूनतम करना।
  • कर अधिनियमों का सरलीकरण।
  • कर-दाता अनुकूल प्रशासन।

हितधारकों के लिये नई प्रत्यक्ष कर संहिता का क्या अर्थ है?

  • व्यक्तियों के लिये: कर परिहार (Tax Evasion) और कर अनुपालन (Tax Compliance) की लागत के बीच का अंतर बहुत अधिक नहीं है। लोग रिश्वत के रूप में भी अवैध भुगतान करते हैं लेकिन उत्पीड़न के भय से प्रणाली में शामिल नहीं होते। कर अधिनियमों को सरल बनाकर और कर प्रशासन को करदाताओं के अनुकूल बनाकर ऐसे लोगों को आसानी से कर अनुपालन की ओर अग्रसर किया जा सकता है
  • कॉर्पोरेट क्षेत्र के लिये: स्थानीय और विदेशी कंपनियों दोनों के लिये एक-समान कर की दर भारत में कारोबार की सुगमता का अवसर अवसर प्रदान करती है और इस प्रकार देश में व्यावसायिक गतिविधियों में वृद्धि होती है। अत: नई प्रत्यक्ष कर संहिता देश के समग्र निवेश परिदृश्य को रूपांतरित करने का अवसर प्रदान करती है।
  • अर्थव्यवस्था के लिये: पिछले कुछ दशकों में हमारी अर्थव्यवस्था को व्यापार और निवेश के मामले में विश्व के अन्य भागों के साथ एकीकृत किया गया है। भौगोलिक सीमाओं के पार पूंजी की गतिशीलता में अत्यधिक वृद्धि हुई है और देशों के बीच कर प्रतिस्पर्द्धा (Tax Competition) भी तीव्र हुई है। हमारी कर नीति का एक अंतर्राष्ट्रीय संदर्भ भी है। इस प्रकार प्रत्यक्ष कर संहिता में कर आधार और कर संग्रहण को प्रोत्साहित कर अर्थव्यवस्था में संपूर्ण समष्टि आर्थिक चक्र (Macro-Cycle) को बढ़ावा देने की क्षमता है, जिससे कर एवं सकल घरेलू उत्पाद अनुपात (Tax-to-GDP Ratio) में वृद्धि होती है।

आगे की राह

  • प्रशासनिक सुविधा के लिये हमने भुगतान करने की क्षमता पर अधिक ध्यान केंद्रित किया है, जबकि कर अधिनियम शायद ही कभी उच्च जोखिम आय व कम जोखिम आय, वैध आय व अवैध आय, आवर्ती आय व गैर-आवर्ती आय के बीच अंतर करने का प्रयास करता है। इन सूक्ष्म अंतरों को नियंत्रित करना कठिन है लेकिन इससे कर प्रणाली में अधिक निष्पक्षता आएगी।
    • उदाहरण के लिये: सरकारी प्रतिभूतियों और सरकारी नौकरी से प्राप्त आय अत्यधिक सुरक्षित होती है, जबकि व्यापार से प्राप्त आय अत्यंत जोखिमपूर्ण है, इसलिये उन पर भिन्न तरीकों से करारोपण किया जाना चाहिये।
  • योजनाकारों का मूल प्रयास आय बढ़ाने पर होना चाहिये, अर्थात आय सृजन वाले धन के आधार को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये, जिन पर करारोपण हो सके। इस प्रकार धन के सृजनकर्त्ताओं पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये।
  • नई कर संहिता एक अनुमानित कर शासन के निर्माण का अवसर प्रदान करती है जो दीर्घकालिक निवेश को आकर्षित करेगी और रोज़गार सृजन को बढ़ावा देगी।
  • भारतीय कराधान प्रणाली को लेकर न्यायालयों में बड़ी संख्या में मुकदमे दर्ज हैं, इसलिये नई कर संहिता को मध्यस्थता या निपटान की एक प्रणाली के माध्यम से विवाद समाधान तंत्र में सुधार लाने पर लक्षित होना चाहिये।

यह माना जाता है कि जब भी कोई देश एक नई कर संहिता की ओर बढ़ता है तो इसका मूल अर्थ कर की दरों और छूटों को तर्कसंगत बनाना होता है। इसलिये अल्पावधि में कर परित्याग (Tax Forgone) का जोखिम अत्यधिक होता है। नई कर संहिता को लागू करने से पहले देश को जीएसटी व्यवस्था को सुस्थिर करने और यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि अर्थव्यवस्था अल्पकालिक व्यवधानों को सहन करने के लिये मज़बूत स्थिति में है।

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