जयपुर शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 7 अक्तूबर से शुरू   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

संसद टीवी संवाद


भारतीय समाज

जनगणना 2021

  • 18 Jan 2020
  • 15 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री ने जनगणना 2021 का शुभंकर जारी किया है। ज्ञातव्य है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 24 दिसंबर, 2019 को भारत की जनगणना 2021 की प्रक्रिया शुरू करने एवं राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (National Population Register- NPR) को अपडेट करने की मंज़ूरी दे दी थी। इसके तहत पूरे देश में जनगणना का कार्य दो चरणों में संपन्न किया जाएगा। सरकारी अनुमान के अनुसार, जनगणना 2021 की प्रक्रिया पूरी करने में 8,754 करोड़ 23 लाख रूपए का खर्च आएगा। इस प्रक्रिया में देश के विभिन्न राज्यों के अलग-अलग विभागों के 30 लाख कर्मचारी भाग लेंगे, जबकि NPR के लिये 3941 करोड़ 35 लाख रूपए का खर्च आएगा। ज्ञातव्य है कि वर्ष 2011 की जनगणना में देश भर से लगभग 27 लाख कर्मचारियों ने अपना योगदान दिया था।

किसी भी देश के विकास एवं उसके भविष्य की नीतियों के निर्धारण के लिये देश के नागरिकों की सही संख्या का पता होना बहुत ज़रूरी होता है। नागरिकों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति के प्रमाणिक आँकड़े सरकार की मदद करते हैं, अत: भारत में प्रत्येक 10 साल पर जनगणना की जाती है। समय के साथ-साथ जनगणना की प्रक्रिया में भी बदलाव देखने में आया है। पेन-पेपर से शुरू हुई यह प्रक्रिया वर्तमान में पूरी तरह से डिज़िटल हो चुकी है। देश की 16वीं जनगणना (स्वतंत्रता के पश्चात् 8वीं) के रूप में जनगणना 2021 की प्रक्रिया अप्रैल 2020 से शुरू हो जाएगी एवं इसके अंतर्गत सरकार द्वारा नियुक्त कार्यकर्त्ता घर-घर जाकर नागरिकों की आर्थिक तथा सामाजिक स्थिति से संबंधित आँकड़ों को एकत्र करेंगे।

16वीं जनगणना

जनगणना देश में नागरिकों के लिये योजना बनाने हेतु आधार प्रदान करती है। वर्ष 2021 की जनगणना देश की 16वीं और स्वतंत्र भारत की 8वीं जनगणना होगी। भारत की जनगणना प्रकिया विश्व में अपनी तरह की सबसे बड़ी परियोजना है।

  • जनगणना 2021 का विषय (थीम) “जन भागीदारी से जनकल्याण” है।
  • जनगणना 2021 के पहले चरण में वर्ष 2020 में अप्रैल से सितंबर तक प्रगणक (जनगणनाकर्मी) घरों की सूची (House Listing) और उसमें रहने वाले व्यक्ति/व्यक्तियों के (Housing Census) आँकड़े एकत्रित करेंगे।
  • इसके साथ ही असम को छोड़ कर देश के अन्य सभी राज्यों में राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) को अपडेट करने का काम भी किया जाएगा।
  • जबकि दूसरे चरण 9-28 फरवरी, 2021 तक पूरे देश में जनगणना का कार्य संपन्न किया जाएगा।
  • देश के विभिन्न राज्यों (असम को छोड़कर) के सरकारी कर्मचारी जैसे- निगमों के कर्मचारी, शिक्षक एवं अन्य विभागों के पदाधिकारीगण जनगणना प्रक्रिया में योगदान देंगे।
  • 16वीं जनगणना में प्रत्येक परिवार से 31 प्रश्नों के आधार पर नागरिकों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति से संबंधित आँकड़ों को एकत्रित किया जाएगा।
  • जनगणना के दौरान पूछे जाने वाले सवालों में-
    • घर के मुखिया का नाम, मकान नंबर एवं घर की स्थिति, घर की दीवार और छत में मुख्य रूप से इस्तेमाल हुआ मैटेरियल।
    • घर में रहने वाले लोगों की संख्या, लिंग, घर में रहने वाले विवाहित लोगों की संख्या।
    • पीने के पानी की उपलब्धता और पानी का स्रोत, शौचालय, वाशरूम और ड्रेनेज सिस्टम।
    • रसोई घर और एलपीजी/पीएनजी कनेक्शन की स्थिति।
    • रेडियो/ट्रांज़िस्टर, टेलीविज़न और इंटरनेट कनेक्शन एवं यातायात के साधन जैसे- साइकिल, मोटर साइकिल या कार/जीप आदि से संबंधित प्रश्न शामिल हैं।
  • जनगणना 2021 की विशेषताएँ:
    वर्ष 1872 में शुरू हुई जनगणना प्रक्रिया में समय के अनुरूप कई परिवर्तन हुए हैं, जनगणना 2021 पूरी तरह से कागज़ रहित होगी और जनसंख्या के आँकड़ों के संग्रहण तथा वर्गीकरण की प्रक्रिया पूर्णतया डिज़िटल होगी।
    • जनगणना की प्रक्रिया में सरकार द्वारा जारी एक मोबाइल एप का प्रयोग किया जाएगा।
    • इस एप द्वारा 16 भाषाओं में जानकारी दी जा सकती है, इस जानकारी का वरिष्ठ पदाधिकारियों द्वारा सत्यापन किया जाएगा।
    • जनगणना की प्रक्रिया को सुगम बनाने एवं इसकी गुणवत्ता को सुनिश्चित करने के लिये जनगणना निगरानी और प्रबंधन पोर्टल की व्यवस्था की जाएगी।
    • इस पोर्टल के माध्यम से जनगणना में लगे कर्मचारियों और पदाधिकारियों को कम समय तथा अलग-अलग भाषाओं में जानकारी उपलब्ध कराई जा सकेगी।
    • जनगणना हेतु कार्यरत कर्मचारियों के प्रशिक्षण के लिये राज्य एवं राष्ट्र स्तरीय प्रशिक्षण संस्थाओं की सहायता ली जाएगी।
    • लोगों द्वारा स्वेच्छा से जनसांख्यिकी आँकड़े उपलब्ध कराने के लिये ऑनलाइन सुविधा दी जाएगी।
    • जनगणना से प्राप्त आँकड़ों को कूटबद्ध कर उनके प्रसंस्करण में समय की बचत करने के लिये कोड डायरेक्टरी की व्यवस्था की जाएगी।
    • मंत्रालयों के अनुरोध पर जनसंख्या से जुड़ी जानकारियाँ सही, मशीन में पढ़े जाने लायक और कार्रवाई योग्य प्रारूप में उपलब्ध कराई जाएंगी।
    • इसके साथ ही जनगणना हेतु कार्यरत कर्मचारियों को मानदेय के रूप में दी जाने वाली राशि को सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन प्रणाली और प्रत्यक्ष लाभ अंतरण के माध्यम से सीधे उनके बैंक खातों में जमा कराए जाने की व्यवस्था की गई है।

जनगणना में तकनीक के प्रयोग से लाभ:

  • समय की बचत: मोबाइल एप और इंटरनेट के माध्यम से जनगणना के आँकड़ों को बहुत ही कम समय में केंद्रीय कार्यालय से साझा किया जा सकेगा।
  • मानवीय त्रुटियों में कमी: इस व्यवस्था में जनगणना प्रगणकों द्वारा अंकित सूचनाओं को सीधे केंद्रीय सर्वर में भेजा जा सकेगा, जिससे सूचनाओं के हस्तानांतरण में होने वाली मानवीय त्रुटियों (Human Errors) की संभावनाओं को कम किया जा सकेगा।

भारत में जनगणना का इतिहास:

भारत में वर्ष 1872 में ब्रिटिश शासन के अंतर्गत लाॅर्ड मेयो के कार्यकाल में पहली बार देशव्यापी जनगणना कराई गई।

  • वर्ष 1881 में पहली बार जनगणना के लिये अलग विभाग बनाया गया।
  • इसकी ज़िम्मेदारी सेंसस कमिश्नर को सौंपी गई, भारत में यह पद 1941 तक रहा।
  • वर्ष 1949 में इस पद का नाम बदलकर रजिस्ट्रार जनरल एंड सेंसस कमिश्नर कर दिया गया।
  • मई 1949 में भारत सरकार ने इस विभाग को केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन कर दिया तब से यह विभाग प्रत्येक 10 साल पर जनगणना करवाता है।
  • वर्ष 1872 की जनगणना सहित अब तक 15 जनगणनाएँ हो चुकी हैं।

जातिगत जनगणना का मुद्दा:

वर्ष 1872 के बाद प्रत्येक जनगणना में धर्म और जाति से संबंधित सवाल पूछे जाते थे परंतु स्वतंत्रता के पश्चात् जनगणना में जातिगत सवालों को पूछना बंद कर दिया गया। ऐसा इसलिये क्योंकि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सरकार का मानना था कि भारत एक आधुनिक लोकतंत्र बन चुका है और जाति जैसी आदिम पहचान के आधार पर लोगों की गिनती करना उचित नहीं है। सरकार का यह भी मानना था कि जाति की गिनती नहीं होने से जाति एवं जातिवाद समाप्त हो जाएगा।

  • वर्ष 1941 में जाति से जुड़े प्रश्न पूछे गए परंतु द्वितीय विश्व युद्ध के कारण आँकड़े संकलित नहीं हो पाए थे।
  • स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद वर्ष 1951 से लेकर वर्ष 2011 तक जाति की गिनती नहीं की गई। वर्ष 2011 की जनगणना से पहले जाति आधारित गणना न होने के बावजूद प्रत्येक जनगणना में जाति से संबंधित कुछ प्रश्न शामिल थे, जैसे- अनुसूचित जाति से संबंधित लोगों की जनसंख्या की जानकारी।
  • संविधान में अनुसूचित जाति को आबादी के अनुपात में राजनीतिक आरक्षण देने का प्रावधान है, अतः उनकी आबादी जानना एक संवैधानिक ज़रूरत है।
  • अन्य पिछड़ा वर्ग (Other Backward Caste- OBC) को कितना आरक्षण देना है इस प्रश्न पर भी जनगणना के ज़रिये आँकड़े जुटाने की सिफारिश हुई।
  • देश में जाति आधारित विश्वस्त जनगणना आँकड़ों के अभाव में मंडल कमीशन (1979) ने विवश होकर वर्ष 1931 की जनगणना के आँकड़ों से काम चलाया और देश में जनगणना के दौरान जातिगत आँकड़ों को भी इकट्ठा करने का सुझाव दिया।
  • मंडल कमीशन की रिपोर्ट वर्ष 1991 में लागू हो गई थी परंतु कमीशन के सुझाओं के अनुरूप वर्ष 2001 की जनगणना में जातिगत आँकड़ों को नहीं जोड़ा गया।

15वीं जनगणना (2011):

सामाजिक, आर्थिक एवं अन्य सामयिक परिप्रेक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए जनगणना में नए आयाम जोड़े जाते हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् पहली बार वर्ष 2011 में जातिगत जनगणना हुई।

  • 15वीं जनगणना का कार्य 1 मई, 2010 को शुरू हुआ, इस जनगणना को दो चरणों में पूरा करने के लिये 27 लाख अधिकारियों की नियुक्ति कर उन्हें प्रशिक्षित किया गया था।
  • इन अधिकारियों ने 7000 नगरों, कस्बों और 6 लाख से अधिक गाँवों में घर-घर जाकर जनगणना के कार्य को पूरा किया।
  • वर्ष 2011 की जनगणना में मकान सूचीकरण, राष्ट्रीय जनसंख्या और परिवार इकाइयाँ जैसे तीन हिस्से थे।
  • 30 अप्रैल, 2013 को पंद्रहवीं जनगणना के अंतिम आँकड़े जारी किये गए थे।
  • वर्ष 2001 से 2011 के बीच भारत की जनसंख्या में 17.65% की वृद्धि दर्ज की गई, ज्ञातव्य है कि भारत की जनसंख्या में सबसे अधिक वृद्धि वर्ष 1961 से 1971 के बीच 24.8% हुई थी।
  • वर्ष 2011 की जनगणना के आँकड़ों के अनुसार, भारत की कुल जनसंख्या 1,210,854,977 थी।
  • पिछली जनगणना के अनुसार, सबसे बड़ी आबादी वाला राज्य उत्तर प्रदेश, जबकि सिक्किम को सबसे कम जनसंख्या वाले राज्य के रूप में दर्ज किया गया।

जनगणना के लाभ:

  • जनता के हित में नीतियों के निर्माण के लिये ये आँकड़े मंत्रालयों, विभागों, राज्य सरकारों तथा अन्य हितधारकों को उपलब्ध कराए जाएंगे।
  • ब्लाॅक स्तर के जनसंख्या से जुड़े आँकड़ों के आधार पर ही लोकसभा एवं विधानसभाओं के निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन किया जाता है।
  • जनजातियों से जुड़ी योजनाओं हेतु जनसंख्या के आँकड़े एक सशक्त आधार बनते हैं।
  • जनगणना का उद्देश्य देश में प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से रोज़गार का सृजन करना है।
  • जनगणना शहरों, गाँव या वाॅर्डों आदि के स्तर पर नागरिकों की जनसंख्या बताने के साथ कई अन्य महत्त्वपूर्ण आँकड़े उपलब्ध करने का सबसे बड़ा स्रोत है।

जनगणना से प्राप्त आँकड़े सरकार के अलावा समाजशास्त्रियों, विचारकों, इतिहासकारों और राजनीतिशास्त्रियों के लिये महत्त्वपूर्ण होते हैं।

निष्कर्ष :

पिछले एक दशक में भारत दक्षिण एशिया ही नहीं बल्कि विश्व में भी एक महत्त्वपूर्ण शक्ति बन कर उभरा है। भारत की इस उपलब्धि में सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान मानव पूंजी (Human Capital) के रूप में देश के नागरिकों और जनता तथा सरकार के बीच परस्पर समन्वय पर आधारित योजनाओं का रहा है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत की आबादी में युवाओं (18-35 वर्ष आयु वर्ग) की हिस्सेदारी लगभग 34% है। आगामी दशक में बदलते वैश्विक समीकरणों के बीच विश्व मानचित्र पर अपनी सशक्त पहचान स्थापित करने हेतु भारत के लिये यह ज़रूरी होगा कि वह नागरिकों के प्रत्येक वर्ग को उनकी आवश्यकताओं के अनुरूप सुविधाएँ और विकास के नए अवसरों को उपलब्ध कराए। ऐसे में जनगणना 2021 से प्राप्त होने वाले आँकड़े सरकार को गत दशक में किये गए कार्यों का मूल्यांकन करने के साथ ही भविष्य की योजनाओं के निर्माण के लिये एक महत्त्वपूर्ण आधार प्रदान करेंगे।

अभ्यास प्रश्न: भारत जैसे विशाल एवं विविधताओं से भरे देश में जनगणना की प्रासंगिकता पर चर्चा कीजिये।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2