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जनगणना 2021 | 18 Jan 2020 | भारतीय समाज

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री ने जनगणना 2021 का शुभंकर जारी किया है। ज्ञातव्य है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 24 दिसंबर, 2019 को भारत की जनगणना 2021 की प्रक्रिया शुरू करने एवं राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (National Population Register- NPR) को अपडेट करने की मंज़ूरी दे दी थी। इसके तहत पूरे देश में जनगणना का कार्य दो चरणों में संपन्न किया जाएगा। सरकारी अनुमान के अनुसार, जनगणना 2021 की प्रक्रिया पूरी करने में 8,754 करोड़ 23 लाख रूपए का खर्च आएगा। इस प्रक्रिया में देश के विभिन्न राज्यों के अलग-अलग विभागों के 30 लाख कर्मचारी भाग लेंगे, जबकि NPR के लिये 3941 करोड़ 35 लाख रूपए का खर्च आएगा। ज्ञातव्य है कि वर्ष 2011 की जनगणना में देश भर से लगभग 27 लाख कर्मचारियों ने अपना योगदान दिया था।

किसी भी देश के विकास एवं उसके भविष्य की नीतियों के निर्धारण के लिये देश के नागरिकों की सही संख्या का पता होना बहुत ज़रूरी होता है। नागरिकों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति के प्रमाणिक आँकड़े सरकार की मदद करते हैं, अत: भारत में प्रत्येक 10 साल पर जनगणना की जाती है। समय के साथ-साथ जनगणना की प्रक्रिया में भी बदलाव देखने में आया है। पेन-पेपर से शुरू हुई यह प्रक्रिया वर्तमान में पूरी तरह से डिज़िटल हो चुकी है। देश की 16वीं जनगणना (स्वतंत्रता के पश्चात् 8वीं) के रूप में जनगणना 2021 की प्रक्रिया अप्रैल 2020 से शुरू हो जाएगी एवं इसके अंतर्गत सरकार द्वारा नियुक्त कार्यकर्त्ता घर-घर जाकर नागरिकों की आर्थिक तथा सामाजिक स्थिति से संबंधित आँकड़ों को एकत्र करेंगे।

16वीं जनगणना

जनगणना देश में नागरिकों के लिये योजना बनाने हेतु आधार प्रदान करती है। वर्ष 2021 की जनगणना देश की 16वीं और स्वतंत्र भारत की 8वीं जनगणना होगी। भारत की जनगणना प्रकिया विश्व में अपनी तरह की सबसे बड़ी परियोजना है।

जनगणना में तकनीक के प्रयोग से लाभ:

भारत में जनगणना का इतिहास:

भारत में वर्ष 1872 में ब्रिटिश शासन के अंतर्गत लाॅर्ड मेयो के कार्यकाल में पहली बार देशव्यापी जनगणना कराई गई।

जातिगत जनगणना का मुद्दा:

वर्ष 1872 के बाद प्रत्येक जनगणना में धर्म और जाति से संबंधित सवाल पूछे जाते थे परंतु स्वतंत्रता के पश्चात् जनगणना में जातिगत सवालों को पूछना बंद कर दिया गया। ऐसा इसलिये क्योंकि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद सरकार का मानना था कि भारत एक आधुनिक लोकतंत्र बन चुका है और जाति जैसी आदिम पहचान के आधार पर लोगों की गिनती करना उचित नहीं है। सरकार का यह भी मानना था कि जाति की गिनती नहीं होने से जाति एवं जातिवाद समाप्त हो जाएगा।

15वीं जनगणना (2011):

सामाजिक, आर्थिक एवं अन्य सामयिक परिप्रेक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए जनगणना में नए आयाम जोड़े जाते हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् पहली बार वर्ष 2011 में जातिगत जनगणना हुई।

जनगणना के लाभ:

जनगणना से प्राप्त आँकड़े सरकार के अलावा समाजशास्त्रियों, विचारकों, इतिहासकारों और राजनीतिशास्त्रियों के लिये महत्त्वपूर्ण होते हैं।

निष्कर्ष :

पिछले एक दशक में भारत दक्षिण एशिया ही नहीं बल्कि विश्व में भी एक महत्त्वपूर्ण शक्ति बन कर उभरा है। भारत की इस उपलब्धि में सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान मानव पूंजी (Human Capital) के रूप में देश के नागरिकों और जनता तथा सरकार के बीच परस्पर समन्वय पर आधारित योजनाओं का रहा है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत की आबादी में युवाओं (18-35 वर्ष आयु वर्ग) की हिस्सेदारी लगभग 34% है। आगामी दशक में बदलते वैश्विक समीकरणों के बीच विश्व मानचित्र पर अपनी सशक्त पहचान स्थापित करने हेतु भारत के लिये यह ज़रूरी होगा कि वह नागरिकों के प्रत्येक वर्ग को उनकी आवश्यकताओं के अनुरूप सुविधाएँ और विकास के नए अवसरों को उपलब्ध कराए। ऐसे में जनगणना 2021 से प्राप्त होने वाले आँकड़े सरकार को गत दशक में किये गए कार्यों का मूल्यांकन करने के साथ ही भविष्य की योजनाओं के निर्माण के लिये एक महत्त्वपूर्ण आधार प्रदान करेंगे।

अभ्यास प्रश्न: भारत जैसे विशाल एवं विविधताओं से भरे देश में जनगणना की प्रासंगिकता पर चर्चा कीजिये।