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इंटरव्यू का नज़रिया

इंटरव्यू

सही नज़रिया

  • 13 Sep 2018
  • 67 min read

परिचय

  • साक्षात्कार (Interview) किसी भी परीक्षा का अंतिम एवं महत्त्वपूर्ण चरण होता है।
  • इसमें न तो प्रारंभिक परीक्षा की तरह सही उत्तर के लिये विकल्प दिये जाते हैं और न ही मुख्य परीक्षा के प्रश्नपत्रों की तरह अपनी सुविधा से प्रश्नों के चयन की सुविधा होती है। साक्षात्कार में आपको हर प्रश्न का उत्तर देना अनिवार्य होता है, साथ ही आपके द्वारा किसी भी प्रश्न के लिये दिये गए उत्तर पर प्रति-प्रश्न (Counter-question) भी पूछे जाने की संभावना रहती है। आपके द्वारा दिये गए किसी भी गलत या हल्के उत्तर का ‘नैगेटिव मार्किंग’ जैसा ही प्रभाव पड़ने की संभावना रहती है। किसी भी उम्मीदवार के लिये साक्षात्कार के चरण की सबसे मुश्किल बात यह होती है कि प्रारंभिक एवं मुख्य परीक्षा के विपरीत इसके लिये कोई निश्चित पाठ्यक्रम निर्धारित नहीं है। यही वजह है कि साक्षात्कार के दौरान पूछे जाने वाले प्रश्नों का दायरा बहुत व्यापक होता है।
  • सिविल सेवा परीक्षा में इंटरव्यू के लिये कुल 275 अंक निर्धारित हैं। सामान्य रूप से देखें तो मुख्य परीक्षा के अंकों (1750 अंक) की तुलना में इस चरण के लिये निर्धारित अंक कम अवश्य हैं लेकिन अंतिम चयन एवं पद निर्धारण में इंटरव्यू के अंकों की विशेष भूमिका रहती है। 
  • मुख्य परीक्षा में चयनित उम्मीदवारों को सामान्यत: एक महीने के बाद इंटरव्यू के लिये बुलाया जाता है। 
  • वस्तुतः सामान्य मान्यता यह है कि इंटरव्यू के दौरान अभ्यर्थियों के व्यक्तित्व का परीक्षण किया जाता है, जिसमें आयोग द्वारा चयनित इंटरव्यू बोर्ड के सदस्यों द्वारा उम्मीदवारों से मौखिक प्रश्न पूछे जाते हैं, जिनका उत्तर भी उम्मीदवार को मौखिक रूप में ही देना होता है। हालाँकि, कई बार ऐसा भी हुआ है कि कुछ राज्य लोक सेवा आयोगों में इंटरव्यू बोर्ड के सदस्यों ने उम्मीदवार से कुछ लिखने की भी अपेक्षा की। इंटरव्यू की  प्रक्रिया अभ्यर्थियों की संख्या के अनुसार एक से अधिक दिनों तक चलती है।
  • मुख्य परीक्षा एवं इंटरव्यू में प्राप्त अंकों के योग के आधार पर अंतिम रूप से मेधा सूची (Merit list) तैयार की जाती है।
  • इस चरण में शामिल किये गए सभी अभ्यर्थियों का इंटरव्यू समाप्त होने के सामान्यत: एक सप्ताह पश्चात् अंतिम रूप से चयनित उम्मीदवारों की सूची जारी की जाती है।

इंटरव्यू की तैयारी क्यों करें?

  • मुख्य परीक्षा देने के बाद परीक्षार्थियों को यह उम्मीद रहती है कि उन्हें इंटरव्यू देने का अवसर मिलेगा। उनमें से कुछ मुख्य परीक्षा के तुरंत बाद इंटरव्यू की तैयारी शुरू कर देते हैं जबकि कुछ मुख्य परीक्षा के परिणाम का इंतज़ार करते हैं और परीक्षा में सफल होने पर ही इंटरव्यू के बारे में सोचना शुरू करते हैं। 
  • हालाँकि, यह कहना तो ठीक नहीं होगा कि मुख्य परीक्षा परिणाम आने से पहले ही तैयारी शुरू करने वाले अभ्यर्थियों को इंटरव्यू में अनिवार्यतः ज़्यादा अंक मिलते हैं, लेकिन इस बात की संभावना ज़रूर रहती है क्योंकि इंटरव्यू के अंक कई कारकों पर निर्भर होते हैं जिनमें तैयारी एक महत्त्वपूर्ण कारक है।
  • ऐसा हो सकता है कि बहुत कम तैयारी के बावजूद कोई उम्मीदवार काफी अच्छे अंक हासिल कर ले जबकि 3-4 महीने तैयारी में जुटे रहने के बावजूद कोई उम्मीदवार अच्छे अंक हासिल न कर पाए। 
  • इस अंतराल की वज़ह यह है कि इंटरव्यू की तैयारी वस्तुतः जीवन के शुरुआती चरण से ही निरंतर चलती रहती है। जिन उम्मीदवारों को घर, स्कूल और कॉलेज में विविध अनुभव और अवसर हासिल हुए होते हैं, उनका व्यक्तित्व प्रायः ज़्यादा विकसित हो जाता है। ऐसे उम्मीदवार अगर बिना किसी तैयारी के भी इंटरव्यू देने चले जाएँ तो इस बात की पर्याप्त संभावना बनती है कि वे अच्छे अंक हासिल कर लेंगे। 
  • इंटरव्यू की तैयारी करने से यह निष्कर्ष नहीं निकलता कि उम्मीदवार को अच्छे अंक मिल ही जाएंगे और तैयारी नहीं करने से यह निष्कर्ष नहीं निकलता कि उसे खराब अंक ही मिलेंगे। फिर भी एक बात तय है कि उम्मीदवार के व्यक्तित्व का विकास जिस भी स्तर पर हुआ है, अगर वह व्यवस्थित तैयारी करेगा तो अपने स्तर पर सामान्यतः मिलने वाले अंकों में कुछ अंकों का इज़ाफा तो कर ही लेगा। 
  • हमारा उद्देश्य उम्मीदवारों को यह समझाना है कि उन्हें बिल्कुल भी समय व्यर्थ नहीं करना चाहिये। हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं के माध्यम से परीक्षा देने वाले उम्मीदवारों को तो वैसे भी इंटरव्यू में औसतन कम अंक प्राप्त होते हैं क्योंकि उन्हें बचपन से वैसा माहौल ही नहीं मिला होता है जिसमें इंटरव्यू बोर्ड के सदस्यों को पसंद आने वाला व्यक्तित्व अपने आप उभरता है। उनके लिये तो यह और भी ज़रूरी हो जाता है कि मुख्य परीक्षा के तुरंत बाद इंटरव्यू की तैयारी में जुट जाएँ। 
  • ध्यान रहे कि अंतिम परिणाम में सिर्फ 1 अंक के अंतर से भी कई बार 10 रैंक तक का फर्क पड़ जाता है। इसलिये अगर अभी की मेहनत से 20-25 या अधिक अंकों का इज़ाफा किया जा सकता है तो इस अवसर को छोड़ना मूर्खता ही होगी।
  • अतः श्रेयस्कर यही होगा कि आप अनुकूल समय प्रंबंधन द्वारा सही दिशा में तैयारी आरंभ कर दें। 

इंटरव्यू की तैयारी कैसे करें?

  • उम्मीदवारों को यह सवाल बार-बार परेशान करता है कि इतनी कठिन परीक्षा की तैयारी कैसे की जाए- क्या पढ़ा जाए और क्या नहीं? सिर्फ़ पढ़ा जाए या किताबों से बाहर भी झाँका जाए? आत्मविश्वास कैसे लाया और बढ़ाया जाए? ऐसा व्यक्तित्व कैसे गढ़ा जाए कि उस आधे घंटे के भीतर हम इंटरव्यू पैनल के सदस्यों को सम्मोहित कर पाने में सफल हो जाएँ। 
  • इसके लिये सर्वप्रथम यह जानना आवश्यक है कि इंटरव्यू बोर्ड के सदस्य आखिर किस आधार पर उम्मीदवारों का मूल्यांकन करते हैं? कुछ लोग सोचते हैं कि हम जितने प्रश्नों के सही जवाब दे पाते हैं, उसी के अनुपात में हमें अंक मिलते हैं; यह इंटरव्यू को लेकर व्याप्त सबसे बड़ा भ्रम है।
  • सच यह है कि कुछ लोग लगभग सभी सवालों के सही जवाब देने के बावजूद 25-30% अंकों पर अटक जाते हैं जबकि कुछ उम्मीदवार दस से अधिक प्रश्नों के उत्तर में ‘सॉरी’ बोलने के बाद भी 65-70% तक अंक अर्जित कर लेते हैं। 
  • फिर प्रश्न उठता है कि आखिर किन कसौटियों के आधार पर इंटरव्यू में अंक मिलते हैं? क्या यह चेहरे की सुंदरता और ड्रेसिंग सेंस से तय होता है? क्या सदस्य हमारी भाषा-शैली और हाव-भाव से हमारा मूल्यांकन करते हैं? क्या अंकों का सीधा संबंध हमारे उत्तरों की गुणवत्ता से होता है? क्या जीवन और विभिन्न मुद्दों के प्रति हमारा नज़रिया इसमें केंद्रीय भूमिका निभाता है?
  • सच बात यह है कि ये सभी चीज़ें संयुक्त रूप से इंटरव्यू बोर्ड पर असर डालती हैं। हालाँकि यह दावा करना कठिन है कि इनका अनुपात क्या होगा? हर उम्मीदवार के मामले में इन तत्त्वों का अनुपात अलग-अलग हो सकता है। 
  • संभव है कि कोई उम्मीदवार तथ्यों में कमज़ोर हो, दिखने में कम आकर्षक हो पर अपने सुलझे हुए दृष्टिकोण की बदौलत बोर्ड पर ठीक-ठाक प्रभाव कायम करने में सफल हो जाए। इसी तरह, यह भी संभव है कि कोई उम्मीदवार अपने आकर्षक चेहरे, प्रभावी ड्रेसिंग कौशल तथा जादुई अभिव्यक्ति सामर्थ्य के सहारे अपनी ज्ञान संबंधी कमियों को एक हद तक ढकने में कामयाब हो जाए। 
  • इसके लिये आवश्यक है कि उम्मीदवार सर्वप्रथम अपने बेहतर व कमज़ोर पक्षों की पहचान कर लें, कमज़ोर पक्षों को सुधारने का निरंतर प्रयास करें और इंटरव्यू के समय कोशिश करें कि बेहतर पक्ष ज़्यादा से ज़्यादा सामने आएँ जबकि कमज़ोर पक्ष यथासंभव छिपे रहें।
  • सामान्यत: जिस कसौटी पर इंटरव्यू में अंक तय होते हैं, वह सिर्फ यह है कि उम्मीदवार की उपस्थिति में बोर्ड के सदस्यों ने कैसा महसूस किया? उन्हें इंटरव्यू का समय पूरा करने के लिये संघर्ष करना पड़ा या उन्हें पता ही नहीं चला कि समय कब गुज़र गया। उन्हें सिर्फ बताने का मौका मिला या कुछ नया सीखने का भी? उन्हें रोचकता का अनुभव हुआ या नीरसता का? उन्हें उम्मीदवार के उत्तरों में घिसी-पिटी बातें मिलीं या कुछ नया और मौलिक भी मिला? उन्हें उम्मीदवार डींगें हाँकने वाला और झूठा लगा या ईमानदारी से अपनी कमियाँ स्वीकार लेने वाला विनम्र और सच्चा व्यक्ति लगा? ये सब चीज़ें मिलकर उस अनुभूति या ‘मूड’ का निर्माण करती हैं जो उम्मीदवार का परिणाम तय करता है।
  • फिर भी, अगर इन तत्त्वों का अनुपात तय करना ही है तो मैं कहूंगा कि आकर्षक चेहरा और ड्रेसिंग सेंस शायद 5-10% से अधिक फायदा नहीं पहुँचाते होंगे। हाँ, अगर ड्रेसिंग सेंस बहुत ख़राब हो तो यह ज़्यादा नुकसान कर सकता है। 
  • अभिव्यक्ति कौशल की भूमिका इससे ज़्यादा होती है। बहुत अच्छी अभिव्यक्तिगत क्षमता आपको 20-25% तक का फायदा पहुँचा सकती है तो इसका अभाव इतना या इससे अधिक नुकसान पहुँचा सकता है। अगर बोर्ड के सदस्य परिपक्व हों तो उम्मीदवार की तथ्यात्मक जानकारी भी 10-15% से ज़्यादा असर नहीं डालतीं। हाँ, अगर उम्मीदवार अपने क्षेत्र से संबंधित या एकदम सरल प्रश्नों के उत्तर न दे पाए तो नुकसान ज़्यादा अवश्य हो जाता है। 
  • सबसे अधिक महत्त्व होता है उम्मीदवार के नज़रिये का, अर्थात् किसी मुद्दे पर वह कितने व्यापक और संतुलित तरीके से सोच पाता है, किसी नई और तात्कालिक समस्या को सुलझाने के लिये सही और त्वरित निर्णय कर पाता है या नहीं, मुद्दे के व्यावहारिक और सैद्धांतिक पक्षों और उनके अंतर्संबंधों को कितनी गहराई से समझ पाता है इत्यादि। 
  • उम्मीदवारों को हमारा यह सुझाव है कि आप जब भी किसी विवादास्पद मुद्दे पर विचार करें तो तटस्थ होकर उसके दोनों पक्षों की गहराई में जाएँ। विचार करते समय अपने हितों और नुकसानों को चेतना पर हावी न होने दें। कागज़ पर वह विषय लिखकर दो हिस्सों में पक्ष और विपक्ष के तर्क व तथ्य नोट करें। ज़्यादा तर्क न सूझें तो इंटरनेट का सहारा लें। दोस्तों से उस मुद्दे पर वाद-विवाद या विमर्श करें। अंत में दो तीन वाक्यों में अपनी राय लिख लें। 
  • जब आप यह प्रक्रिया 15-20 बार दोहरा लेंगे तो खुद पाएंगे कि आपका नज़रिया संतुलित तथा परिपक्व होने लगा है और आपके अंदर अदभुत आत्मविश्वास का विकास हुआ है। 

इंटरव्यू की तैयारी के विविध पक्ष

  • इंटरव्यू की तैयारी को कुल 4 भागों में बाँटकर देखा जा सकता है-
    1. ज्ञान पक्ष
    2. दृष्टिकोण पक्ष
    3. अभिव्यक्ति पक्ष
    4. वेशभूषा आदि की तैयारी

ज्ञान पक्ष:

  • यह इंटरव्यू की तैयारी के दौरान सबसे अधिक तनाव पैदा करने वाला पक्ष है। कारण यह है कि लगभग हर उम्मीदवार के बायोडाटा में इतने सारे पक्ष लिखे होते हैं कि अगर वह उन सभी क्षेत्रों से जुड़ी जानकारियाँ याद करना चाहे तो यह प्रायः असंभव हो जाता है। 
  • इस कठिनाई के कारण कुछ पक्षों की तैयारी छूट ही जाती है किंतु इंटरव्यू तक लगातार यह भय बना रहता है कि कहीं उसी हिस्से से प्रश्न न पूछ लिये जाएँ जिसकी तैयारी कम हुई है। यहाँ सवाल है कि इस भय से मुक्ति कैसे मिल सकती है?
  • सबसे पहले यह मान लेना चाहिये कि ज्ञान या जानकारियों के स्तर पर उम्मीदवार की तैयारी चाहे जितनी भी हो, अगर इंटरव्यू बोर्ड के सदस्य ठान लेंगे तो उसे किसी न किसी क्षेत्र में उलझा ही देंगे। उनके लिये यह अनुमान करना बहुत मुश्किल नहीं होता कि उम्मीदवार किस क्षेत्र में कमज़ोर है। 
  • अगर वो उम्मीदवार को परेशान करना चाहें तो कमज़ोर क्षेत्र का अनुमान करके लगातार उसी से प्रश्न पूछते रहेंगे ताकि उम्मीदवार पूरी तरह पराजय स्वीकार कर ले। इसलिये, तैयारी के स्तर पर हमें अपना उद्देश्य यह नहीं रखना चाहिये कि एक भी प्रश्न हमारी परिधि से बाहर का न हो। उद्देश्य सिर्फ इतना होना चाहिये कि सामान्यतः हम सभी प्रश्नों के उत्तर दे सकें, और अगर हमसे कोई प्रश्न छूटे तो वह केवल वही होना चाहिये जो अपनी प्रकृति में बेहद जटिल हो। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इंटरव्यू बोर्ड के सदस्य भी यह समझते हैं कि कोई उम्मीदवार सभी प्रश्नों के उत्तर नहीं दे सकता। 
  • इंटरव्यू के दौरान कई बार ऐसी भी स्थिति बन जाती है कि बोर्ड के किसी सदस्य द्वारा पूछे जाने वाले प्रश्नों के उत्तर बाकी सदस्यों को भी नहीं पता होते। ऐसी स्थिति में वे सहज रूप से यह समझते हैं कि अगर उम्मीदवार बहुत कठिन और अप्रचलित प्रश्न का उत्तर नहीं दे पा रहा है तो यह उसके प्रति नकारात्मक राय बनाने का पर्याप्त कारण नहीं है।
  • बहुत कठिन प्रश्नों पर तो बोर्ड की संवेदना अपने आप उम्मीदवार के पक्ष में मुड़ जाती है। हाँ, अगर प्रश्न आसान है या उम्मीदवार की पृष्ठभूमि से सीधे तौर पर जुड़ा हुआ है तो उसका जवाब न देना अपराध जैसा मामला बनता है और उम्मीदवार को उसकी सज़ा भुगतनी पड़ सकती है।
  • चूँकि ज्ञान या जानकारियों का पक्ष अनंत है, इसलिये सबसे पहले यही समझना चाहिये कि किसी क्षेत्र विशेष पर उम्मीदवार को कितना पढ़ना चाहिये और कितना हिस्सा छोड़ देना चाहिये? अगर इस विवेकशीलता का प्रयोग न किया जाए तो एक विशेष समस्या सामने आती है। 
  • उम्मीदवार सबसे पहले जिस विषय को उठाता है, अपना अधिकांश समय उसी में गँवा देता है क्योंकि उसे यह संतोष ही नहीं मिलता कि उस क्षेत्र में उसकी तैयारी पूरी हो गई है। इस तरीके से पढ़ते-पढ़ते वह 10-12 प्रमुख क्षेत्रों में से 2-3 को ही ठीक से तैयार कर पाता है और बाकी क्षेत्र छूट जाते हैं।
  • आपके साथ यह दुर्घटना न हो, इसके लिये ज़रूरी है कि ‘क्या पढ़ना है’ से ज़्यादा स्पष्ट समझ इस विषय पर हो कि ‘क्या नहीं पढ़ना है’।
  • सबसे पहले उन विषयों की सूची बना लीजिये जो आपके बायोडाटा में दिखाई पड़ते हैं। इन विषयों में आपका वैकल्पिक विषय तो है ही, साथ ही सामान्य अध्ययन के प्रमुख खंड, आपकी अकादमिक पृष्ठभूमि के विषय, आपकी रुचियाँ, आपका गृह राज्य, गृह जनपद आदि सभी शामिल हैं। 
  • अपने बायोडाटा को बोर्ड सदस्य की निगाह से कई बार पढ़िये और सोचिये कि उसकी नज़र किस-किस शब्द पर टिक सकती है? ऐसे सभी शब्दों को रेखांकित कर लीजिये और मानकर चलिये कि आपको उन सभी पर किसी न किसी मात्रा में तैयारी करने की ज़रूरत है।
  • इसके बाद एक-एक करके विभिन्न विषयों को उठाइये और संभावित प्रश्नों की सूची बनाइये। इस सूची को तीन भागों में बाँटकर तैयार कीजिये-
    1. अत्यधिक संभावित प्रश्न
    2. सामान्य संभावित प्रश्न
    3. कम संभावित प्रश्न
  • कौन सा प्रश्न इंटरव्यू के लिये कितना संभावित है, इसका निर्धारण करते हुए सभी विषयों को बोर्ड सदस्यों की निगाह से देखने की आदत विकसित कीजिये। 
  • बेहतर होगा कि आप इन प्रश्नों की सूची बनाने में सिर्फ अपने विवेक से काम लेने की बजाय अपने कुछ साथियों को भी शामिल कर लें- खासतौर पर उन्हें जो आपके साथ इंटरव्यू की तैयारी कर रहे हैं और वह विषय या क्षेत्र उनके बायोडाटा में भी शामिल है। 
  • ये सूचियाँ इस तरह से बनाई जानी चाहियें कि बाद में भी नए प्रश्नों को शामिल करने की संभावना बनी रहे। 
  • अगर आप अपने बायोडाटा के हर क्षेत्र पर ऐसी सूची बना लेंगे तो संभवतः आपके पास 500-700 प्रश्न इकट्ठे हो जाएंगे जिनमें से 100-150 प्रश्न ‘अत्यधिक संभावित’ वर्ग के होंगे। बेहतर होगा कि सबसे पहले आप इन्हीं 100-150 प्रश्नों की तैयारी करें क्योंकि पूरी संभावना है कि आपके इंटरव्यू का 50-70 प्रतिशत हिस्सा इन्हीं प्रश्नों के इर्द-गिर्द घूमेगा। 
  • अगर आपने इन प्रश्नों पर महारत हासिल कर ली तो आप बोर्ड को यह महसूस कराने में सफल हो जाएंगे कि आप अत्यंत गंभीर तथा योग्य उम्मीदवार हैं।
  • अब सवाल यह उठता है कि इन प्रश्नों की तैयारी कैसे करें? इसका सही तरीका है कि प्रश्नों से जुड़ी जानकारियों को 2-3 बिंदुओं के रूप में नोट करते जाएँ। कुछ उम्मीदवार तो पूरे-पूरे उत्तर लिखकर तैयार करते हैं जो दरअसल एक व्यर्थ प्रक्रिया है। वे भूल जाते हैं कि इंटरव्यू के तनाव भरे माहौल में रटे हुए उत्तर देना संभव नहीं होता। वहाँ आपको सिर्फ कुछ बिंदु याद आते हैं जो आपकी अपनी सहज भाषा में ही व्यक्त होते हैं। इसलिये, अपने नोट्स केवल बिंदुओं के रूप में ही बनाएँ ताकि आपका समय व्यर्थ न हो और आप बेझिझक उत्तर दे सकें। 
  • यदि 2-4 प्रश्न ऐसे हों जो आपको निरंतर बेचैन करते हों तो उनके उत्तर लिखकर रख लेना गलत नहीं होगा क्योंकि उन उत्तरों से आपका आत्मविश्वास बना रहेगा। वैसे भी, 2-4 याद किये हुए उत्तरों का प्रयोग तो इंटरव्यू के तनावपूर्ण माहौल में भी किया ही जा सकता है।
  • प्रश्नों की सूची बनाने के बारे में दो बातों पर विशेष ध्यान दें। एक तो उस विषय पर यह ज़रूर देख लें कि उसमें आज के समय में क्या नया हो रहा है? उदाहरण के लिये, अगर आपका विषय हिंदी साहित्य है तो आपको हल्का-फुल्का यह भी पता होना चाहिये कि पिछले 5-10 वर्षों में कौन सी प्रसिद्ध रचनाएँ लिखी गई हैं? दूसरे, इस बात पर विशेष ध्यान दें कि किसी विषय का प्रशासन में क्या योगदान हो सकता है? आपका विषय चाहे दर्शनशास्त्र ही क्यों न हो, पूरी संभावना है कि आपसे यह पूछा जाएगा कि दर्शन आपको प्रशासन के क्षेत्र में क्या मदद पहुँचाएगा?

दृष्टिकोण पक्ष:

  • इंटरव्यू की तैयारी में सबसे अधिक समय भले ही ज्ञान या जानकारियों के संग्रहण व स्मरण में खर्च होता हो, पर सच यह है कि जो चीज़ इंटरव्यू में सफलता की दृष्टि से सबसे अधिक असर रखती है, वह है- विभिन्न मुद्दों के प्रति उम्मीदवार का दृष्टिकोण। एक अच्छा इंटरव्यू बोर्ड उम्मीदवार के दृष्टिकोण से ही तय करता है कि वह सिविल सेवाओं में शामिल होने के लिये उपयुक्त है या नहीं?
  • संघ लोक सेवा आयोग सिविल सेवा के उम्मीदवारों से अपेक्षा रखता है कि उनका दृष्टिकोण एकतरफा न होकर संतुलित तथा प्रगतिशील हो। इसलिये, आपको दिन-प्रतिदिन की चर्चाओं में उठने वाले विवादास्पद मुद्दों के दोनों पक्षों को गहराई से देखने का अभ्यास तत्काल शुरू कर देना चाहिये। 
  • आपके उत्तरों से यह भाव स्पष्ट होना चाहिये कि आप किसी भी विषय पर निर्णय करने से पहले अपनी तर्क बुद्धि का सही उपयोग करते हैं, किसी के बहकावे या उकसावे में नहीं आते।
  • इसके लिये ज़्यादा से ज़्यादा विवादास्पद मुद्दों पर आपको अभ्यास करते रहने की ज़रूरत है। उदाहरण के लिये- समलैंगिकता उचित है या नहीं, वेश्यावृत्ति को वैधता प्रदान की जानी चाहिये या नहीं, शराबबंदी की नीति उचित है या नहीं आदि। इस तरह के हर उस सवाल के पक्ष-विपक्ष में अपने तर्क सोचकर रखिये जो अख़बारों या सोशल मीडिया के माध्यम से आपके सामने आता है। कुछ अपवाद के मुद्दों को छोड़कर आपका दृष्टिकोण संतुलित और व्यावहारिक होना चाहिये। 
  • हो सके तो पक्ष-विपक्ष के सभी तर्कों को नोट कर लेने के बाद एक पैराग्राफ में अपना निष्कर्ष लिखने का अभ्यास भी करें। 
  • निष्कर्ष की भाषा सीधी सपाट या एकतरफा न होकर ऐसी होनी चाहिये कि उसमें समस्या की जटिलता, आपकी प्रगतिशीलता तथा संतुलन बनाने की क्षमता ठीक तरीके से अभिव्यक्त हो।

अभिव्यक्ति पक्ष:

  • इंटरव्यू की तैयारी का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष, जिसे अधिकांश उम्मीदवार गौण समझकर छोड़ देते हैं, अभिव्यक्ति क्षमता से जुड़ा है। सरल भाषा में इसका अर्थ है कि उम्मीदवार अपनी बातों को इंटरव्यू बोर्ड के सामने कितनी प्रभावशीलता के साथ प्रस्तुत करता है? उसकी शब्दावली, उच्चारण, उतार-चढ़ाव, शारीरिक अभिव्यक्तियाँ आदि वे पक्ष हैं जो समग्र रूप में उसकी अभिव्यक्ति शैली को परिभाषित करते हैं।
  • पहली बाधा यही है कि इंटरव्यू बोर्ड के सामने उम्मीदवार घबराहट के मारे मौन न हो जाए। अगर आपकी पृष्ठभूमि में ऐसे अनुभव नहीं रहे हैं तो मुख्य परीक्षा के बाद से ही 8-10 मित्रों का समूह बना लीजिये और दैनिक तौर पर उन सभी के सामने किसी अचानक मिले विषय पर 10-15 मिनट निरंतर बोलने की कोशिश कीजिये। एक महीना होते-होते आपके लिये अपनी बात रखना कठिन नहीं रह जाएगा।
  • अगर आप किसी ऐसे क्षेत्र का पर्याप्त अनुभव रखते हैं जिसमें अभिव्यक्ति शैली का विकास अपने आप हो जाता है तो आप प्रायः निश्चिंत रह सकते हैं। उदाहरण के लिये, अगर आपने स्कूल या कॉलेज स्तर पर वाद-विवाद या भाषण प्रतियोगिताओं में खूब भाग लिया है या आपको अध्यापन या वकालत जैसे कार्य का अनुभव है तो पहली बाधा दूर हो जाती है। 
  • अपनी बात को मंच पर रखना एक बात है और इंटरव्यू बोर्ड के समक्ष रखना दूसरी बात है। कई बार कुछ अध्यापक और वकील यहीं मार खा जाते हैं। वे अपने व्यवसाय में विद्यार्थी या मुवक्किल के सामने जिस वर्चस्वशाली मनःस्थिति में होते हैं, कई बार उसी मनःस्थिति से इंटरव्यू बोर्ड में पेश आते हैं जो अंततः उनके लिये घातक साबित होता है। 
  • इसलिये, बेहतर यही है कि अपनी अभिव्यक्ति को इंटरव्यू के अनुकूल ढाला जाए। इसके लिये उचित समय पर आप 4 मित्रों का समूह बनाएँ और उनमें से 3-3 मित्र मिलकर चौथे मित्र का इंटरव्यू लें। कोशिश यह होनी चाहिये कि आज से इंटरव्यू वाले दिन तक रोज़ कम-से-कम एक मॉक इंटरव्यू का अभ्यास होता रहे। 
  • यह ज़रूर ध्यान रखिये कि आप मित्रों द्वारा दी गई हर राय को महत्त्व न दें, केवल उन्हीं सलाहों को स्वीकार करें जिन्हें लेकर उनमें आम राय है और आप खुद भी उनसे सहमत हैं। 
  • ऐसे साक्षात्कारों का निरंतर अभ्यास होने के बाद कोई वज़ह नहीं रह जाती कि उम्मीदवार इंटरव्यू बोर्ड में नर्वस हो या खुद को ठीक से व्यक्त न कर पाए।
  • एक उपयोगी सुझाव यह भी है कि इंटरव्यू की तैयारी बंद कमरे में करने की बजाय गंभीर मित्रों के छोटे समूह के साथ करें और अधिक से अधिक मुद्दों पर सामूहिक परिचर्चा करें। इससे बहुत कम समय में किसी विषय के सभी आयाम खुल जाते हैं, साथ में अभिव्यक्ति क्षमता तो मज़बूत होती ही है।

वेशभूषा आदि की तैयारी:

  • इंटरव्यू की तैयारी में सबसे पहला प्रश्न यही आता है कि उम्मीदवार इंटरव्यू में क्या पहने और किस तरह की वेशभूषा से परहेज करे? इसका सामान्य सा नियम यही है कि एक औपचारिक बैठक के लिये व्यक्ति की जैसी वेशभूषा होनी चाहिये, वैसी ही वेशभूषा इंटरव्यू में अपेक्षित होती है।
  • इस पक्ष का अर्थ है कि उम्मीदवार इंटरव्यू में प्रभावशाली व्यक्तित्व का धनी दिखे। उसकी वेशभूषा, हेयर स्टाइल, बैठने और चलने का तरीका आदि इसमें शामिल हैं।  

पुरुष उम्मीदवारों की वेशभूषा

  • यूपीएससी के इंटरव्यू में पुरुष उम्मीदवारों की वेशभूषा औपचारिक (Formal) होनी चाहिये। इसके लिये बेहतर होगा कि वे पूरी बाँहों की औपचारिक (Formal) सी दिखने वाली कमीज़ (Shirt) पहनें और वैसी ही औपचारिक (Formal) पैंट या ट्राउज़र्स को प्राथमिकता दें। 
  • ध्यान रखें कि वेशभूषा का औपचारिक होना अत्यंत आवश्यक है। उम्मीदवार को किसी भी स्थिति में जींस जैसी अनौपचारिक (Casual) वेशभूषा से बचना चाहिये। आधी बाँह की कमीज़ भी प्रायः अनौपचारिक मानी जाती है, इसलिये बेहतर होगा कि उम्मीदवार इस तरह के किसी भी परिधान को धारण करने से बचें।
  • कुछ उम्मीदवार इंटरव्यू में कोट-पैंट, ब्लेज़र या सूट पहनना पसंद करते हैं। ब्लेज़र का विकल्प काफी अच्छा है क्योंकि उसमें व्यक्ति एकदम अफसर जैसा दिखने लगता है। वहीं सूट में औपचारिकता थोड़ी ज़्यादा होती है। वस्तुतः सर्दी के मौसम में होने वाले साक्षात्कारों में ब्लेज़र, कोट या सूट पहना जा सकता है पर गर्मी के मौसम में ऐसी वेशभूषा को धारण करने से बचना ज़्यादा बेहतर विकल्प होगा।
  • अगर किसी उम्मीदवार को गर्मी के मौसम में ब्लेज़र या सूट पहनने की अधिक इच्छा हो तो उसे इस प्रश्न का उत्तर देने के लिये तैयार रहना चाहिये कि ‘आपने इतनी गर्मी में सूट क्यों पहना है?’ हालाँकि यह प्रश्न बहुत कठिन नहीं है और इसका आसान सा उत्तर यह हो सकता है कि "सर, यह एक समर कोट है। इसे पहनने से कोट वाली फॉर्मल फीलिंग तो आती है पर इसमें गर्मी की समस्या नहीं है।" 
  • जहाँ तक कपड़ों के रंगों का प्रश्न है, इस संबंध में पुरुष उम्मीदवारों के पास बहुत अधिक विकल्प नहीं होते है। वस्तुतः इंटरव्यू आदि की वेशभूषा का एक बुनियादी सिद्धांत यह है कि कमीज़ और पैंट (ट्राउज़र्स) के रंग कंट्रास्ट हो अर्थात् दोनों का रंग एक-दूसरे के विपरीत हो क्योंकि कंट्रास्ट रंगों को धारण करने से व्यक्तित्व का आकर्षण उभरता है। 
  • औपचारिक वेशभूषा के सन्दर्भ में प्रायः यह माना जाता है कि कमीज़ का रंग हल्का होना चाहिये और ट्राउज़र्स का रंग गहरा। हालाँकि इसके विपरीत भी पहनावा रखा जा सकता है, (अर्थात् गहरे रंग की कमीज़ के साथ हल्के रंग की ट्राउज़र्स) परंतु वह अधिक प्रचलित विकल्प नहीं है।
  • आमतौर पर आसमानी, हल्की सलेटी (ग्रे), बादामी (क्रीम) या सफेद रंग की कमीज़ इंटरव्यू के लिये पहनी जाती हैं। जहाँ तक पैंट का प्रश्न है, वह कमीज़ के रंग के कंट्रास्ट में होनी चाहिये। उदाहरण के लिये, अगर आसमानी रंग की कमीज़ है तो गहरे नीले रंग की ट्राउज़र्स बेहतर होगी। 
  • पुरुष उम्मीदवारों को चाहिये कि वे कमीज़ के साथ टाई भी पहनें। हिंदी माध्यम तथा ग्रामीण पृष्ठभूमि से परीक्षा देने वाले कई उम्मीदवारों की समस्या यह होती है कि आदत न होने के कारण वे टाई पहनने के नाम से ही असहज होने लगते हैं। पर इस संबंध में यह समझना ज़रूरी है कि इंटरव्यू बोर्ड उम्मीदवार से एक भावी अधिकारी वाले तेवर की उम्मीद करता है। टाई लगाते ही उम्मीदवार का व्यक्तित्व न सिर्फ औपचारिक (Formal) हो जाता है बल्कि उसमें आकर्षण भी बढ़ जाता है।
  • अगर कोई उम्मीदवार इस तर्क के आधार पर टाई नहीं लगाता है कि वह इसमें सहज नहीं है तो ध्यान रखें कि यह कोई प्रभावकारी तर्क नहीं है। क्योंकि इस संबंध में इंटरव्यू बोर्ड उम्मीदवार से यह प्रश्न कर सकता है कि अगर आप एक टाई के साथ भी सहज नहीं हो पा रहे हैं तो हम आपसे यह उम्मीद कैसे करें कि आईएएस बनने के बाद आप रोज़-रोज़ नई चुनौतियों का सामना सहजता से कर पाएंगे? 
  • जहाँ तक किसी राज्य लोक सेवा आयोग के इंटरव्यू का प्रश्न है, वहाँ टाई के बिना इंटरव्यू देना प्रायः गलत नहीं माना जाता है, हालाँकि वहाँ भी बेहतर यही रहेगा कि उम्मीदवार टाई लगाए। रही बात संघ लोक सेवा आयोग की- तो यहाँ टाई नहीं लगाने पर उम्मीदवार के बारे में बोर्ड की राय नकारात्मक हो जाने की पर्याप्त संभावना रहती है।
  • टाई चुनते समय कोशिश करनी चाहिये कि उसका रंग कमीज़ के रंग के कंट्रास्ट में हो किंतु वह ट्राउज़र्स के रंग से मिलती-जुलती भी न हो। उदाहरण के लिये, अगर उम्मीदवार आसमानी रंग की कमीज़ और गहरे नीले रंग की ट्राउज़र्स पहनता है तो टाई का रंग गाढ़ा मैरून, जिस पर गहरे नीले रंग की तिरछी रेखाएँ हों, बेहतर रहेगा। अगर सफेद रंग की कमीज़ और डार्क ग्रे रंग की ट्राउज़र्स हैं तो गहरे नीले या गहरे मैरून रंग की टाई जँचेगी। सिर्फ एक रंग की यानी प्लेन टाई बुरी तो नहीं लगती, पर उसका प्रभाव बहुत अच्छा नहीं पड़ता। बेहतर होगा कि टाई में एक बेस रंग हो तथा एक अन्य रंग का डिज़ाइन अवश्य हो।
  • किसी गहरे रंग के बेस पर किसी दूसरे रंग की तिरछी रेखाओं वाली टाई इंटरव्यू जैसी औपचारिक स्थिति के लिए बेहतर मानी जाती है। तिरछी रेखाओं का डिज़ाइन पसंद न आए तो कोई दूसरा डिज़ाइन (जैसे छोटे आकार का चैक प्रिंट) भी लिया जा सकता है, किंतु यह ज़रूरी है कि वह डिज़ाइन व्यवस्थित प्रकार का हो, न कि बिखरा हुआ और अव्यवस्थित।
  • पुरुष उम्मीदवारों की वेशभूषा में तीसरा पक्ष जूतों का होता है। इस संबंध में ज़्यादा विकल्प नहीं हैं। यह लगभग अनिवार्य माना जाता है कि उम्मीदवार काले रंग के चमड़े के जूते पहने। यहाँ इस बात पर विशेष गौर करने की आवश्कता है कि जूते फैंसी किस्म के नहीं होने चाहिये बल्कि साधारण होने चाहिये। फीते बांधने वाले परंपरागत किस्म के जूतों को ही औपचारिक वेशभूषा का हिस्सा माना जाता है।
  • जूतों को अच्छे तरीके से पॉलिश करना न भूलें। उनके साथ किसी एक ही रंग के मोजे पहनें, रंग-बिरंगे नहीं। आमतौर पर सफेद, काले या ग्रे रंग के मोजे इंटरव्यू जैसे औपचारिक मौकों के लिये उचित माने जाते हैं।
  • जूतों को वेशभूषा का गौण पक्ष न समझें। यह सही है कि आमतौर पर इंटरव्यू देते समय बोर्ड के सदस्यों की निगाह उम्मीदवार के जूतों पर नहीं जाती, किंतु यह भी उतना ही सही है कि कुछ इंटरव्यू विशेषज्ञ जूतों पर बहुत अधिक ध्यान देते हैं। ऐसे लोगों की राय में व्यक्ति के व्यक्तित्व की काफी हद तक पहचान इसी बात से हो जाती है कि वह अपने जूतों के रख-रखाव को लेकर कितना सचेत है।

महिला उम्मीदवारों की वेशभूषा

  • महिला उम्मीदवारों को सबसे पहले तय कर लेना चाहिये कि वे साड़ी पहनने को वरीयता देंगी या सूट को? हालाँकि बेहतर यही रहेगा कि वे साड़ी पहनने का विकल्प चुनें। यह तर्क देना एकदम गलत होगा कि मुझे साड़ी पहनने का अभ्यास नहीं है। ऐसी सफाई पर इंटरव्यू बोर्ड की वही प्रतिक्रिया होगी जो किसी पुरुष उम्मीदवार के यह कहने पर होती है कि उसे टाई पहनने का अभ्यास नहीं है।
  • अगर कोई महिला उम्मीदवार किसी राज्य लोक सेवा आयोग का इंटरव्यू दे रही है तो वह एक बार सूट के विकल्प पर विचार कर सकती है, हालाँकि वहाँ भी बेहतर यही रहेगा कि वह साड़ी पहने। 
  • संघ लोक सेवा आयोग के इंटरव्यू में तो यह अपेक्षा की ही जाती है कि महिला उम्मीदवार साड़ी जैसी औपचारिक वेशभूषा में ही उपस्थित हों। इसके बाद भी अगर कोई महिला उम्मीदवार सूट के विकल्प को ही चुने तो उसे इतना ध्यान रखना चाहिये कि सूट का रंग और डिज़ाइन औपचारिक या फॉर्मल हो। फैंसी किस्म का सूट पहनकर किसी भी स्थिति में इंटरव्यू देने न जाएँ।
  • अगर कोई महिला उम्मीदवार कमीज़ और ट्राउज़र्स पहनकर इंटरव्यू देना चाहे तो यह विकल्प भी बुरा नहीं है। किसी प्रदेश लोक सेवा आयोग के इंटरव्यू में यह प्रयोग शायद अटपटा सा लगे, किंतु संघ लोक सेवा आयोग के इंटरव्यू में ऐसा प्रयोग किया जा सकता है। फिर भी, अगर साड़ी और अन्य विकल्पों की तुलना करनी हो तो इंटरव्यू बोर्ड के सदस्यों पर सकारात्मक प्रभाव डालने की दृष्टि से साड़ी का विकल्प अधिक बेहतर रहेगा।
  • जहाँ तक साड़ी के रंग और डिज़ाइन का प्रश्न है, तो इस संबंध में सामान्य नियम सिर्फ इतना है कि वेशभूषा औपचारिक बनी रहे। साड़ी का रंग चटकीला न हो, उसमें ज़्यादा रंगों की उपस्थिति न हो। 
  • आमतौर पर, साड़ी का रंग गहरा नीला, गहरा हरा, हल्का गुलाबी, बादामी, मैरुन या काला होना चाहिये और उसमें कंट्रास्ट करता हुआ एक पतला सा बोर्डर होना चाहिये। इसके अलावा, साड़ी के बीच-बीच में कोई व्यवस्थित सा डिज़ाइन (जैसे कहीं-कहीं कुछ रेखाएँ, चैक या कोई प्रतीकात्मक आकृति) रहे तो बेहतर दिखेगा, पर यह डिज़ाइन बहुत भारी या लाउड किस्म का नहीं होना चाहिये।
  • अगर उम्मीदवार का शारीरिक गठन कमज़ोर है तो उसे सूती यानी कॉटन की साड़ी पहननी चाहिये और अगर शारीरिक गठन कुछ भारी है तो रेशम यानी सिल्क की साड़ी बेहतर होगी। इसका कारण यह है कि जहाँ कॉटन के कपड़े कुछ फूले हुए से नज़र आते हैं, वहीं सिल्क के कपड़े अतिरिक्त स्थान नहीं घेरते। जिन उम्मीदवारों का दैहिक गठन सामान्य है, वे अपनी रुचि से कोई भी विकल्प चुन सकती हैं।
  • अगर इंटरव्यू ठंडे मौसम में हो रहा है तो बेहतर होगा कि महिला उम्मीदवार साड़ी पर ब्लेज़र भी पहनें। ब्लेज़र पहनने से व्यक्तित्व एकदम अफसरों जैसा लगने लगता है। ब्लेज़र साड़ी के रंग से कंट्रास्ट में होना चाहिये। आमतौर पर काला या नेवी ब्लू ब्लेज़र ही उपयुक्त रहता है।
  • सामान्यतः महिला उम्मीदवारों से अपेक्षा की जाती है कि वे फॉर्मल से नज़र आने वाले सैंडल पहनें जिनमें कोई फैंसी टच न हो। बेहतर होगा कि सैंडल काले, भूरे या क्रीम रंग के हों। अगर वे चाहें तो साड़ी या शर्ट-पैंट के साथ फॉर्मल जूते भी पहन सकती हैं, पर उनके जूते फीते वाले नहीं, खुले हों तो अच्छा रहेगा।
  • इंटरव्यू में किसी भी तरह का पर्स लेकर नहीं जाना चाहिये। अगर रुमाल जैसी एकाध चीज़ साथ ले जाना ज़रूरी लगे तो उसे हाथ में ही ले जाएँ। बेहतर यही होगा कि उससे भी परहेज़ करें।

महिला तथा पुरुष दोनों उम्मीदवारों की वेशभूषा से जुड़े कुछ अन्य सुझाव:

  • अगर उम्मीदवार ने अपने हाथों में कोई अंगूठी इत्यादि पहन रखी है तो इस पर कुछ गंभीर प्रश्न पूछे जा सकते हैं। अगर अंगूठी का संबंध सगाई या शादी से है तो कोई समस्या नहीं है, किंतु अगर उसके पीछे ज्योतिष या नक्षत्र विज्ञान जैसा कोई आधार है तो समस्या हो सकती है।
  • इस समस्या से बचने के लिये उम्मीदवार के पास दो ही विकल्प हैं- या तो वह ऐसी चीज़ें पहनकर न जाए, या फिर उनसे संबंधित प्रश्नों के उत्तर देने के लिये तैयार रहे। 
  • इंटरव्यू में उम्मीदवार का हेयर स्टाइल भी मायने रखता है। जहाँ तक पुरुष उम्मीदवारों का सवाल है, उनसे इतनी ही अपेक्षा है कि उनके बाल छोटे व व्यवस्थित हों। बहुत लंबे बाल रखने वाले व्यक्तियों को प्रायः प्रशासनिक सेवाओं के संदर्भ में सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता। 
  • महिला उम्मीदवारों के पास दोनों विकल्प हैं। वे लंबे बाल भी रख सकती हैं और छोटे भी, पर दोनों ही स्थितियों में हेयर स्टाइल व्यवस्थित तथा औपचारिक होना चाहिये। अगर लंबे बाल हों तो खुले बालों के साथ इंटरव्यू देना अच्छा नहीं माना जाता।  
  • कुछ उम्मीदवारों के लिये, जिनकी आयु अमूमन 30 वर्ष से ज़्यादा होती है, उनके लिये एक और सुझाव है। अगर उनके कुछ बाल सफेद हो गए हैं और वे नज़र आते हैं तो बेहतर होगा कि इंटरव्यू से पहले वे उन पर हेयर कलर या मेहंदी जैसा कुछ उपाय कर लें।
  • अगर उम्मीदवार बूढ़ा दिखता है तो स्वाभाविक तौर पर बोर्ड के सदस्यों के मन में उसके प्रति अच्छा भाव उत्पन्न नहीं होगा। जिसका कारण यह है कि किसी वृद्ध उम्मीदवार को चयनित करने की अपेक्षा बोर्ड द्वारा किसी नए उम्मीदवार को चयनित करने पर अधिक बल दिया जाता हैं।
  • अगर उम्मीदवार नज़र का चश्मा लगाते हैं, उन्हें इस बात पर ध्यान देना चाहिये कि चश्मा उनके चेहरे का सौंदर्य बढ़ाता हो, न कि उस पर हावी होता हो। आमतौर पर बहुत बड़े फ्रेम के चश्मे चेहरे को ढक देते हैं जिनसे बचना चाहिये। 
  • अगर आप चश्मा नहीं पहनते हैं और आपकी आँखें कुछ धँसी हुई सी हैं या उनके नीचे काले घेरे बने हुए हैं तो इंटरव्यू में उन्हें छिपाने के लिये ज़ीरो नंबर का रिमलैस फ्रेम पहन लेना उचित होगा। 
  • इस पक्ष को समझने तथा अपने व्यक्तित्व को इंटरव्यू के अनुकूल बनाने में बहुत अधिक समय और ऊर्जा व्यय करने की आवश्यकता नहीं होती, अतः इसे मुख्य परीक्षा के परिणाम के बाद के समय के लिये छोड़ देना बेहतर होता है।

इंटरव्यू से जुड़े अन्य पहलू 

इंटरव्यू बोर्ड की संरचना:

  • इंटरव्यू से पूर्व उम्मीदवार को यह जानना ज़रूरी है कि इंटरव्यू बोर्ड में कितने सदस्य होते हैं और उनकी क्या भूमिका होती है? 
  • संघ लोक सेवा आयोग की सामान्य नीति है कि इंटरव्यू बोर्ड में पाँच सदस्य होने चाहिये। अगर कोई उम्मीदवार किसी भारतीय भाषा (हिंदी या किसी अन्य भाषा) के माध्यम से इंटरव्यू देता है तो उसके बोर्ड में पाँच सदस्यों के अलावा एक व्यक्ति (दुभाषिया या इंटरप्रेटर) भी उपस्थित होता है जिसका कार्य अनुवाद संबंधी समस्याओं को सुलझाना होता है।
  • प्रत्येक बोर्ड में एक अध्यक्ष और चार सदस्य होते हैं । अध्यक्ष के तौर पर वही व्यक्ति हो सकता है जो संघ लोक सेवा आयोग का सदस्य हों। 
  • इंटरव्यू बोर्ड में अध्यक्ष के अलावा जो चार सदस्य होते हैं, उनमें से प्रायः दो से तीन नौकरशाही के ही ऊँचे स्तर के अधिकारी होते हैं। आमतौर पर संयुक्त सचिव या उससे वरिष्ठ स्तर के अधिकारियों को इस भूमिका के लिये  आमंत्रित किया जाता है। 
  • बोर्ड में कम से कम एक सदस्य अकादमिक जगत से संबंधित होता है। इस कार्य के लिये प्रायः किसी विश्वविद्यालय के उपकुलपति या प्रोफेसर स्तर के व्यक्ति को आमंत्रित किया जाता है।
  • आयोग की कोशिश रहती है कि इंटरव्यू लेने वाले पाँच सदस्यों में कम से कम एक महिला सदस्य अवश्य शामिल हो, हालाँकि यह कोई लौह-नियम नहीं है। तथापि उम्मीदवार को इस बात के लिये तैयार रहना चाहिये कि बोर्ड में कम से कम एक महिला सदस्य भी उपस्थित होगी।

इंटरव्यू कक्ष में प्रवेश कैसे करें?

  • उम्मीदवारों का इंटरव्यू आयोग के एक बंद कमरे में इंटरव्यू बोर्ड के सदस्यों के समक्ष होता हैं। कुछ कमरे ऐसे हैं जिनमें प्रवेश करते ही सामने आपको बोर्ड के सभी सदस्य बैठे हुए नज़र आते हैं जबकि कुछ कमरे काफी बड़े आकार के हैं जिनमें कुछ कदम चलने के बाद मुड़ने पर बोर्ड के सदस्य दिखाई पड़ते हैं।
  • जैसे ही आपको बुलाए जाने के लिये घंटी बजेगी, आयोग का कर्मचारी स्वयं ही आपके लिये दरवाज़ा खोल देगा। जैसे ही आपके लिये दरवाज़ा खोला जाएगा, वहीं से आपकी परीक्षा शुरू हो जाएगी।
  • इंटरव्यू की पहली चुनौती यह है कि बोर्ड के सदस्यों का अभिवादन कैसे किया जाए? अभिवादन ठीक उस बिंदु पर किया जाना चाहिये जहाँ से पहली बार बोर्ड सदस्यों के साथ आपकी नज़रें मिलती हैं। अगर दरवाज़ा खुलते ही वे लोग सामने बैठे हुए दिखें तो आपको प्रवेश करने के साथ ही अभिवादन करना चाहिये। यदि थोड़ा चलकर मुड़ने के बाद वे आपको नज़र आएँ तो मोड़ पर पहुँचकर (यानी उनके सामने पहुँचकर) आपको अभिवादन करना चाहिये।
  • अगर आपको लगे कि बोर्ड के अध्यक्ष का ध्यान आपकी ओर नहीं है या सभी सदस्य आपस में बातचीत में मशगूल हैं तो सबसे पहले आपको पूछना चाहिये कि "क्या मैं आ सकता हूँ, सर/मैडम" ? यह वाक्य हिंदी में ही बोला जाए, ऐसी कोई बाध्यता नहीं है। अगर आप अंग्रेज़ी में सहज हैं तो ‘मे आई कम इन, सर/मैडम’ भी कह सकते हैं। आमतौर पर बोर्ड के सदस्य बहुत सुलझे हुए होते हैं और ऐसी छोटी-मोटी बातों को तवज्जो नहीं देते।
  • जैसे ही आप भीतर आने की अनुमति मांगेंगे, वैसे ही अध्यक्ष या कोई न कोई सदस्य आपको अनुमति दे देंगे। अनुमति मिलते ही आपको अभिवादन करना चाहिये। अभिवादन के लिये ‘नमस्कार’, ‘गुड मॉर्निंग’, ‘गुड आफ्टरनून’ में से कुछ भी बोल सकते हैं, परन्तु यहाँ किसी भी प्रकार की नाटकीयता से बचना चाहिये। 
  • सभी सदस्यों को बारी-बारी नमस्कार करने की बजाए सिर्फ एक बार अध्यक्ष की तरफ हल्का सा सिर झुकाकर नमस्कार कर देना काफी होता है। नमस्कार के लिए हाथ न जोड़ें क्योंकि उससे अति औपचारिकता या चापलूसी का भाव नज़र आता है। अगर आपने ठाना हुआ है कि सभी सदस्यों को नमस्कार करना ही है तो ज़्यादा से ज़्यादा दो बार नमस्कार कह दें- एक बार बाईं ओर के सदस्यों को देखते हुए और एक बार दाईं ओर के सदस्यों को देखते हुए। 
  • कुछ लोगों द्वारा यह भी कहा जाता हैं कि अगर बोर्ड में कोई महिला सदस्य उपस्थित हो तो उन्हें अलग से अभिवादन किया जाना चाहिये। यह बात गलत नहीं है पर इसे बहुत ज़्यादा महत्त्व नहीं देना चाहिये। सहजता से ऐसा कर पाएँ तो ठीक है, पर भूल जाएँ तो तनाव न लें। इसका बोर्ड के सदस्यों पर कोई विशेष फर्क नहीं पड़ता।
  • ऐसा भी हो सकता है कि जैसे ही आप बोर्ड के समक्ष पहुँचें, आपके अनुमति मांगने से पहले ही वे आपसे भीतर आने के लिए कह दें। ऐसा हो तो घबराएँ नहीं। वे किसी साजिश के तहत ऐसा नहीं करते हैं, वरन् सामान्य भाव से करते हैं। ऐसी स्थिति में आपको बातचीत की शुरुआत अभिवादन से करनी चाहिये।
  • जैसे ही आप अभिवादन करेंगे, वे आपको जवाब देने के बाद बैठने के लिये कहेंगे। ऐसा होते ही आपको ‘धन्यवाद सर/मैडम’ कहकर बैठ जाना चाहिये। ‘सर’ और ‘मैडम’ में से किस संबोधन का प्रयोग करना है, इसका फैसला अध्यक्ष के अनुसार या उस सदस्य के अनुसार करना चाहिये जिसने आपसे बैठने के लिये कहा है।
  • कभी-कभी ऐसा होता है कि बोर्ड सदस्य आपके अभिवादन का जवाब देने के बाद भी आपको बैठने के लिये न कहें। अगर ऐसा हो तो भी आप घबराएँ नहीं। मानकर चलें कि यह भी किसी साजिश के तहत नहीं बल्कि भूलवश हुआ होगा। कुछ देर शांति से वहीं खड़े रहें। बोर्ड के सदस्य आपको खड़ा हुआ देखकर खुद ही बैठने को कह देंगे। अगर उनका ध्यान आपकी ओर न जाए तो आपको स्वयं उनसे पुनः निवेदन कर लेना चाहिये।

बैठने का सही तरीका:

  • इंटरव्यू कक्ष में प्रवेश करते ही बोर्ड के सदस्य उम्मीदवार से बैठने का निवेदन करते हैं। उनकी मेज़ के सामने उम्मीदवार के लिये एक कुर्सी रखी होती है। कई उम्मीदवार सोचते हैं कि उन्हें कुर्सी को आगे-पीछे नहीं करना चाहिये क्योंकि ऐसा करने पर अवांछनीय शोर होता है। इस भय के कारण वे कुर्सी पर बैठ तो जाते हैं किंतु सहज नहीं हो पाते।
  • इस संबंध में ध्यान रखने की बात यह है कि अगर उम्मीदवार सहज होकर बैठेगा ही नहीं तो वह अगले आधे घंटे तक ठीक से बात कैसे करेगा? उसके मन में कहीं न कहीं यह तनाव बना रहेगा कि वह सुविधाजनक तरीके से नहीं बैठा है। इसी तनाव में उसका निष्पादन कमज़ोर हो जाएगा और कुल मिलाकर एक छोटे से भय के कारण उसकी संभावित सफलता भी खतरे में पड़ जाएगी।
  • इसका समाधान यह है कि बैठते समय अपनी सहजता को सर्वाधिक महत्त्व दें। अगर आपकी कुर्सी सदस्यों की मेज़ से बहुत दूर या अत्यंत नज़दीक रखी है तो उसे आगे या पीछे करने में बिल्कुल भी संकोच न करें। कोशिश करनी चाहिये कि यह प्रक्रिया दो-तीन सेकण्ड से ज़्यादा लंबी न हो। 

इंटरव्यू की शुरुआत: 

  • इंटरव्यू की शुरुआत बोर्ड अध्यक्ष द्वारा की जाती है। सामान्य परंपरा यह है कि अध्यक्ष महोदय उम्मीदवार का परिचय शेष सदस्यों से करवाते हैं। वह उसके बायोडाटा की कुछ महत्त्वपूर्ण बातें पढ़कर सुनाते हैं ताकि शेष सदस्य यह तय कर सकें कि वे उम्मीदवार से किस संदर्भ में प्रश्न पूछेंगे। 
  • यहाँ यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि सभी सदस्यों के पास उम्मीदवार द्वारा मुख्य परीक्षा के फॉर्म में दी गई जानकारियों का संक्षिप्त रिकॉर्ड होता है और वे उसके आधार पर उससे कोई भी प्रश्न पूछ सकते हैं।
  • अध्यक्ष महोदय शुरुआत में आमतौर पर बायोडाटा से जुड़े बुनियादी प्रश्न पूछते हैं। उनका पहला दायित्व यही होता है कि वे उम्मीदवार का तनाव कम करके उसे सहज स्थिति में ले आएँ। उम्मीदवार को विशेष रूप से कोशिश करनी चाहिये कि वह बोर्ड अध्यक्ष के प्रश्नों का जवाब उत्कृष्टता के साथ दे।
  • अपनी बात पूरी कर लेने के बाद बोर्ड अध्यक्ष अपने निकट बैठे सदस्य से निवेदन करते हैं कि वे उम्मीदवार से प्रश्न पूछें।
  • आपका इंटरव्यू कितना देर चलेगा इसका संबंध इस बात से है कि आप माहौल को कितना रोचक बना पा रहे हैं? यह ज़रूरी तो नहीं है लेकिन आमतौर पर इंटरव्यू लंबा चलने और अधिक अंक आने में सहसंबंध देखा जाता है।

इंटरव्यू के दौरान होने वाली सामान्य बातें:

  • यहाँ हमें एक सवाल पर विचार करना चाहिये जिसे लेकर बहुत से उम्मीदवार संशय में रहते हैं। प्रश्न यह है कि जिस समय कोई सदस्य उम्मीदवार से बातचीत कर रहा होता है, उस समय उम्मीदवार को सिर्फ उसी से बातचीत करनी चाहिये या बोर्ड के बाकी सदस्यों को भी बातचीत में शामिल करना चाहिये?
  • कुछ लोगों के अनुसार, उम्मीदवार को सभी बोर्ड सदस्यों से बातचीत करनी चाहिये। इसके लिये उसे जवाब देते समय शेष सदस्यों को भी देखते रहना चाहिये ताकि वे उसके इंटरव्यू में इन्वॉल्व (Involve) हो सकें। कुछ विशेषज्ञ इस शैली को ‘साइमल्टेनियस आई कॉन्टेक्ट’ (Simultaneous Eye Contact) कहते हैं। उनका तर्क है कि अगर उम्मीदवार किसी एक सदस्य से ही बातचीत करता रहेगा तो बाकी सदस्य उसके इंटरव्यू में इन्वॉल्व नहीं होंगे और अंकों के स्तर पर उसे इसका नुकसान झेलना पड़ेगा।
  • सच कहें तो यह एक भ्रांति है। सही बात यह है कि उम्मीदवार को सिर्फ और सिर्फ उसी सदस्य से बात करनी चाहिये जिसने उससे प्रश्न पूछा है। इस सलाह के पीछे दो कारण हैं।
  • पहला यह कि जब उम्मीदवार किसी सदस्य से बातचीत करते हुए बीच-बीच में दाएँ-बाएँ देखता है तो उस सदस्य को अपना अपमान महसूस होता है। साथ ही उसे यह भी लग सकता है कि उम्मीदवार में आत्मविश्वास या सहजता की कमी है।
  • दूसरा यह है कि बाकी सदस्य भी उम्मीदवार के ऐसे प्रयासों से खुश होने की बजाय नाराज़ हो सकते हैं। जब उम्मीदवार किसी विशेष सदस्य से बात कर रहा होता है तो शेष सदस्य निश्चिंत होकर उसे देखते हैं और उसके जवाबों का मूल्यांकन करते हैं। कभी-कभी वे आपस में बातचीत भी करते हैं और ज़रूरत होने पर अपना कोई व्यक्तिगत कार्य भी (जैसे फोन पर मैसेज पढ़ना, चाय पीना इत्यादि) करते हैं। अगर इस समय उम्मीदवार उनकी ओर देखने लगता है तो वे दबाव में आ जाते हैं। उन्हें इंटरव्यू की गरिमा बनाए रखने के लिए सजग होकर उम्मीदवार की ओर देखते रहना पड़ता है और उनकी सहजता खत्म हो जाती है। सहजता खत्म होने से उनका तनाव बढ़ता है और उम्मीदवार के प्रति नाराज़गी का भाव पैदा होता है। इसलिये बेहतर यही है कि उम्मीदवार उनकी सहजता में दखल न दे और सिर्फ उसी सदस्य की ओर मुखातिब रहे जो उससे प्रश्न पूछ रहा है।
  • कभी-कभी ऐसा होता है कि जब उम्मीदवार किसी सदस्य के प्रश्न का उत्तर दे रहा होता है, तभी कोई दूसरा सदस्य या अध्यक्ष स्वयं उम्मीदवार को टोक देता है। यह भी हो सकता है कि एक सदस्य प्रश्न पूछे और दूसरा सदस्य उस प्रश्न से जुड़ी एक बात और पूछ ले। यहाँ प्रश्न यह है कि ऐसी स्थिति में उम्मीदवार को क्या करना चाहिये?
  • ऐसी स्थिति को संभालना चुनौतीपूर्ण होता है लेकिन कुछ सामान्य सिद्धांतों के आधार पर इसे सुलझाया जा सकता है। पहली बात यह है कि अगर बोर्ड का अध्यक्ष बीच में दखल दे तो उम्मीदवार की प्राथमिक ज़िम्मेदारी उसी के प्रति बनती है। उसे पहले बोर्ड अध्यक्ष के प्रश्न का उत्तर देना चाहिये और फिर वापस उस सदस्य की ओर लौटना चाहिये जिसने मूल प्रश्न पूछा था। 
  • वैसे, बोर्ड के अध्यक्ष आमतौर पर खुद ही इस बात का ध्यान रखते हैं। अगर उन्होंने किसी सदस्य के प्रश्न में कोई प्रश्न अपनी ओर से जोड़ा है या उम्मीदवार के उत्तर पर कोई प्रतिप्रश्न किया है तो उम्मीदवार द्वारा उत्तर शुरू करते ही वे खुद इशारा कर देते हैं कि आप इन सदस्य को ही जवाब दें। ऐसा निर्देश मिलने पर उक्त स्थिति उम्मीदवार के लिये अधिक सहज हो जाती है।
  • दूसरा सिद्धांत यह है कि अगर एक सदस्य से बात करते हुए किसी दूसरे सदस्य ने टोका है तो टोकने वाले सदस्य की बात को उसी की ओर देखते हुए ध्यान से सुना जाना चाहिये। किंतु, उत्तर देते समय उम्मीदवार को पहले उसी सदस्य को संतुष्ट करना चाहिये जिसने प्रश्न की शुरुआत की थी क्योंकि ऐसा न होने पर उस सदस्य को अपना अपमान महसूस हो सकता है। 
  • अगर टोकने वाले सदस्य का प्रश्न काफी लंबा हो या उसे देखकर ऐसा लगे कि वह उम्मीदवार से अपेक्षा कर रहा है कि वह उसे ही संबोधित करते हुए उत्तर दे तो उम्मीदवार को चाहिये कि उससे विनम्रतापूर्वक अनुमति मांगकर मूल प्रश्न पूछने वाले सदस्य की ओर मुखातिब हो जाए।

इंटरव्यू कक्ष से बाहर निकलना:

  • आमतौर पर, सभी सदस्यों द्वारा प्रश्न पूछे जाने के बाद बोर्ड अध्यक्ष पुनः 2-3 प्रश्न पूछते हैं और उसके बाद इंटरव्यू के समापन की घोषणा करते हैं। 
  • चूँकि यह इंटरव्यू बोर्ड के साथ संवाद की अंतिम कड़ी है, इसलिये कोशिश करनी चाहिये कि इस बिंदु पर कोई चूक न हो।
  • ध्यान रखें कि इंटरव्यू के शुरुआती मिनटों में हुई गलतियाँ विशेष नुकसान नहीं करतीं क्योंकि मूल्यांकन के समय तक सदस्य उन्हें भूल चुके होते हैं, किंतु इंटरव्यू के अंत में होने वाली गलतियाँ अक्षम्य मानी जाती हैं क्योंकि ठीक उसी समय इंटरव्यू का मूल्यांकन किया जाता है और वे गलतियाँ सदस्यों को याद रहती हैं।
  • जैसे ही बोर्ड अध्यक्ष जाने के लिये कहें, वैसे ही उम्मीदवार को सभी सदस्यों को धन्यवाद कहना चाहिये। 
  • सभी को अलग-अलग धन्यवाद कहना अत्यंत कृत्रिम होता है, इसलिये एक ही अभिव्यक्ति में सभी सदस्यों को धन्यवाद कहना चाहिये। इसके लिये "आप सभी का धन्यवाद सर" या "थैंक्स टू ऑल ऑफ यू सर" कहते हुए गर्दन विनम्रता के साथ थोड़ी बहुत झुका लें तो बेहतर होगा। 
  • इसके बाद कुर्सी से उठकर उसे वापस उसी स्थिति में रख देना चाहिये जैसी वह उम्मीदवार को मिली थी।
  • इसके बाद की प्रक्रिया पर अलग-अलग विशेषज्ञों के अपने-अपने मत हैं। कुछ का मानना है कि इसके बाद उम्मीदवार को सीधे इंटरव्यू कक्ष से बाहर निकल जाना चाहिये जबकि कुछ के अनुसार उसे इंटरव्यू कक्ष से बाहर निकलते समय पुनः एक बार बोर्ड के सदस्यों का अभिवादन करना चाहिये।
  • इस बिंदु पर किये जाने वाले अभिवादन की भाषा "गुड डे सर" या "धन्यवाद सर" हो सकती है। 
  • यह अभिवादन ठीक उस स्थान से किया जाना चाहिये जिसके बाद उम्मीदवार को बोर्ड के सदस्य दिखने बंद हो जाए। 
  • कोशिश करनी चाहिये कि उम्मीदवार कुर्सी से उठकर इंटरव्यू कक्ष के दरवाज़े तक इस तरह चले कि बोर्ड सदस्यों को उसकी पीठ नज़र न आए।
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