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बंदरों का आतंक

  • 02 Jan 2024
  • 9 min read

एक शहर में बंदरों का बढ़ता आतंक स्थानीय निवासियों के लिये एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है। स्थानीय समुदायों ने बंदरों द्वारा बच्चों, बुजुर्गों और अन्य नागरिकों को नुकसान पहुँचाने की कई घटनाओं के बारे में सूचना दी है। आवासीय क्षेत्रों, स्कूलों एवं सार्वजनिक स्थानों पर इन बंदरों के आतंक के कारण लोगों की सुरक्षा एवं कल्याण के संदर्भ में प्रमुख खतरा पैदा हुआ है।

लोगों द्वारा बार-बार शिकायत करने के बावजूद इस शहर के ज़िला मजिस्ट्रेट (डीएम) द्वारा कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया न देने से नागरिकों में निराशा और भय का माहौल बना हुआ है। इससे सामुदायिक सुरक्षा को प्रभावित करने वाले मुद्दों के समाधान में लोक अधिकारियों की ज़िम्मेदारी के संबंध में नैतिक चिंताओं को बढ़ावा मिला है।

एक नए घटनाक्रम में, एक गैर-सरकारी संगठन (NGO) द्वारा ज़िला अधिकारी को चेतावनी दी गई कि यदि बंदरों को प्रताड़ित करने जैसे कोई क्रूर कदम उठाए गए तो विरोध प्रदर्शन सहित पशु क्रूरता निवारण अधिनियम के तहत न्यायालय में जनहित याचिका (PIL) दायर की जाएगी।

इस आलोक में ज़िलाधिकारी के समक्ष उत्पन्न नैतिक दुविधा (मानव सुरक्षा एवं जानवरों के नैतिक उपचार के बीच संतुलन को सुनिश्चित करना) के समाधान हेतु क्या उपाय हैं?

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