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हितों का टकराव

  • 14 Nov 2023
  • 3 min read

एक केंद्रीय विश्वविद्यालय के शासी निकाय ने हाल ही में विश्वविद्यालय के कुलपति पद के लिये उम्मीदवारों को शॉर्टलिस्ट करने के उद्देश्य से एक बैठक की। निवर्तमान कुलपति भी इस पैनल का हिस्सा थे। संयोगवश, कुलपति की पत्नी, जो शासी निकाय की सदस्य भी हैं, कुलपति पद के लिये विचार किये जा रहे उम्मीदवारों के समूह का हिस्सा थीं।

दी गई परिस्थिति में, शासी निकाय के सात सदस्यों ने कार्यवाहक कुलपति की नैतिकता पर सवाल उठाते हुए एक असहमति पत्र प्रस्तुत किया। असंतुष्ट सदस्यों ने कार्यवाहक कुलपति की उस बैठक की अध्यक्षता करने की नैतिकता पर चिंता व्यक्त की जिसमें उनकी पत्नी को कुलपति पद के लिये शॉर्टलिस्ट किया गया था। असहमति पत्र में यह तर्क दिया गया है कि यह स्थिति "Nemo judex in causa sua" (अर्थात् किसी को भी अपने ही मामले में न्यायाधीश नहीं होना चाहिये) के सिद्धांत का उल्लंघन करती है जिससे हितों के टकराव की स्थिति उत्पन्न होती है।

कार्यवाहक कुलपति ने परिषद के दो सदस्यों की आपत्तियों को नजरअंदाज़ करते हुए अपने पक्ष में निर्णय लिया। उन्होंने तर्क दिया कि इस मामले में कटों के संघर्ष जैसी कोई स्थिति नहीं थी क्योंकि वह प्रतिस्पर्द्धा नहीं कर रहे थे, और वह तथा उनकी पत्नी अलग-अलग कानूनी संस्थाएँ हैं। असहमति पत्र में कुलपति की चयन प्रक्रिया में निष्पक्षता के सिद्धांत का पालन करने के महत्त्व पर ज़ोर दिया गया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि निर्णय बिना किसी पूर्वाग्रह के लिये जाएँ, चाहे वे वास्तविक हों या कथित।

क्या एक कार्यवाहक कुलपति के लिये उस बैठक की अध्यक्षता करना नैतिक रूप से स्वीकार्य है जिसमें उसका जीवनसाथी एक प्रमुख पद के लिये उम्मीदवार है और संस्थानों को निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में निष्पक्षता एवं पारदर्शिता बनाए रखने के लिये हितों के संभावित टकराव को कैसे संबोधित किया जाना चाहिये?

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