रैपिड फायर
वर्ष 2025 में ला नीना
- 09 Sep 2025
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स्रोत: WTO
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) के अनुसार ला नीना मौसम की घटना सितंबर और नवंबर 2025 के बीच वापस आ सकती है।
- ला नीना: ला नीना एक प्राकृतिक जलवायु घटना है जो तब होती है जब मध्य और पूर्वी प्रशांत महासागर का सतही जल असामान्य रूप से ठंडा हो जाता है, क्योंकि सामान्य से अधिक तेज़ व्यापारिक हवाएँ गर्म जल को पश्चिमी प्रशांत (एशिया और ऑस्ट्रेलिया के पास) की ओर धकेलती हैं।
- यह अल नीनो के विपरीत है, जो उसी क्षेत्र में असामान्य रूप से गर्म समुद्री सतह के तापमान की विशेषता है।
- भारत के मानसून पर ला नीना का प्रभाव: ला नीना दक्षिण-पश्चिम मानसून की वर्षा को बढ़ाता है, जिससे खरीफ फसलों को लाभ होता है और नदियों, झीलों और भूजल का स्तर बढ़ता है।
- हालाँकि अत्यधिक या असमान वर्षा असम और बिहार जैसे निचले इलाकों में बाढ़ और जलभराव का कारण बन सकती है।
- यह अक्सर जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश जैसे उत्तरी राज्यों में सामान्य से अधिक ठंडी सर्दियाँ लाता है।
अल नीनो एवं ला नीना
विशेषता |
अल नीनो (El Niño) |
ला नीना (La Niña) |
महासागरीय स्थिति |
मध्य एवं पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में समुद्र सतह का तापमान बढ़ जाता है। |
मध्य एवं पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में समुद्र सतह का तापमान घट जाता है। |
व्यापारिक पवनें (Trade Winds) |
कमज़ोर हो जाती हैं या विपरीत चलने लगती हैं, जिससे गर्म जल पूर्व की ओर बढ़ जाता है। |
पवनें मज़बूत हो जाती हैं, जिससे गर्म जल एशिया की ओर पश्चिम दिशा में प्रवाहित होता है। |
वैश्विक मौसम प्रभाव |
पश्चिमी दक्षिण अमेरिका और उत्तरी अमेरिका के दक्षिणी भाग में बाढ़। ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण-पूर्व एशिया और भारत के कुछ हिस्सों में सूखा। |
भारत, दक्षिण-पूर्व एशिया और ऑस्ट्रेलिया में बाढ़।पश्चिमी दक्षिण अमेरिका और अमेरिका के दक्षिणी भाग में सूखा। |
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO): WMO मौसम, जलवायु, जल विज्ञान और संबंधित भू-भौतिकीय विज्ञान के लिये संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है।
- इसकी उत्पत्ति अंतर्राष्ट्रीय मौसम विज्ञान संगठन (IMO) से हुई, जिसकी स्थापना वर्ष 1873 में वैश्विक मौसम अवलोकनों को मानकीकृत करने के लिये की गई थी।
- वर्ष 1950 में IMO का नाम WMO हो गया और वर्ष 1951 में इसे संयुक्त राष्ट्र की विशेष एजेंसी घोषित कर दिया गया।
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