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उष्णकटिबंधीय वर्षा का महासागरीय स्थिरता पर प्रभाव

  • 04 Aug 2025
  • 13 min read

स्रोत: द हिंदू

एक नया अध्ययन इस धारणा को चुनौती देता है कि उष्णकटिबंधीय वर्षा हमेशा महासागर की सतह को अधिक उत्प्लावन (फ्लोटिंग) बनाती है, भले ही स्वच्छ जल समुद्री जल की तुलना में कम सघन होता है। यह अध्ययन दर्शाता है कि वर्षा कभी-कभी मिश्रण को बढ़ावा देने के बजाय सतह की स्थिरता को बढ़ा सकती है।

  • भारी वर्षा और कोल्ड पूल की भूमिका: एक अध्ययन में पाया गया है कि भारी वर्षा के दौरान, समुद्र की सतह कोल्ड पूल (वर्षा बादलों के साथ आने वाली शीत, शुष्क पवन) के कारण भारी और अधिक स्थिर हो जाती है, जो सूर्य के प्रकाश को रोककर तथा समुद्र से वायुमंडल में उष्मा स्थानांतरित करके सतह को ठंडा कर देती है।
    • यह प्रक्रिया महासागर के जल के मिश्रण को रोकती है, जिससे अधिक स्थिर परिस्थितियाँ उत्पन्न होती हैं।
  • हल्की वर्षा से मिश्रण को बढ़ावा: हल्की वर्षा (0.2-4 मिमी/घंटा) के दौरान उत्प्लावन प्रवाह सकारात्मक होता है, जिससे महासागर की सतह कम स्थिर हो जाती है और महासागरीय जल का मिश्रण बढ़ता है।
  • रात्रि बनाम दिवस का प्रभाव: रात्रि के समय होने वाली वर्षा, दिन/दिवस की तुलना में महासागर में अस्थिरता पैदा करने की अधिक संभावना रखती है।
  • भौगोलिक विविधताएँ: शीत वर्षा वाले क्षेत्र (पश्चिमी प्रशांत महासागर और हिंद महासागर) में ऊष्मा हानि अधिक होती है और महासागर की स्थिरता भी अधिक होती है, जबकि उष्म वर्षा क्षेत्र (मध्य प्रशांत महासागर) में ऊष्मा हानि कम होती है।
  • जलवायु और मौसम पूर्वानुमान: यह समझना कि वर्षा महासागर की स्थिरता को कैसे प्रभावित करती है, सटीक मौसम और जलवायु पूर्वानुमानों के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि महासागर में जल का मिश्रण ताप, कार्बन तथा पोषक तत्त्वों को स्थानांतरित करके जलवायु को नियंत्रित करने में सहायता करता है।

और पढ़ें: महासागर परिसंचरण और जलवायु परिवर्तन

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