रैपिड फायर
सर्वोच्च न्यायालय ने दांपत्य विशेषाधिकार को प्रभावहीन किया
- 18 Jul 2025
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स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि पति-पत्नी के बीच गुप्त रूप से रिकॉर्ड की गई बातचीत तलाक की कार्यवाही सहित वैवाहिक विवादों में साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य है।
- इस निर्णय ने भारतीय कानून में वैवाहिक विशेषाधिकार की व्याख्या को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया है तथा निजता के अधिकार (अनुच्छेद 21) और निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार के बीच संतुलन पर जोर दिया है।
दांपत्य विशेषाधिकार
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 122 के तहत संहिताबद्ध वैवाहिक विशेषाधिकार/दांपत्य विशेषाधिकार, विवाहित व्यक्तियों के बीच होने वाले संवादों की गोपनीयता की रक्षा करता है।
- कानून एक पति या पत्नी को दूसरे के खिलाफ गवाही देने या विवाह के दौरान किये गए किसी भी संवाद का खुलासा करने के लिये बाध्य नहीं करता, जब तक कि दूसरे पति या पत्नी की सहमति न हो।
- हालाँकि यह पूर्ण नहीं है और कुछ विशेष परिस्थितियों में छोड़ा जा सकता है, जैसे कि आपराधिक और तलाक के मामलों में, जहाँ दावों के समर्थन में साक्ष्य, जिनमें इलेक्ट्रॉनिक संप्रेषण भी शामिल हो, प्रस्तुत किये जाते हैं।
गोपनीयता और निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 122 की न्यायालय द्वारा की गई व्याख्या यह मान्यता देती है कि गोपनीयता कोई पूर्ण अधिकार नहीं हो सकती, विशेषकर तब जब वह वैवाहिक मामलों में न्याय प्राप्ति की प्रक्रिया में बाधा डालती है।
- न्यायालय ने निजता और निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार के बीच संतुलन को स्वीकार किया। उसने कहा कि गुप्त रिकॉर्डिंग निजता के अधिकारों का उल्लंघन करती है, लेकिन निष्पक्ष सुनवाई के लिये ऐसे साक्ष्यों को स्वीकार करना आवश्यक हो सकता है, खासकर जब तथ्यों का निर्धारण करना बेहद ज़रूरी हो।
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