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भारतीय साक्ष्य अधिनियम का प्रवर्तन

  • 02 Mar 2024
  • 24 min read

यह एडिटोरियल 01/03/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “E-evidence, new criminal law, its implementation” लेख पर आधारित है। इसमें भारतीय साक्ष्य अधिनियम (IEA) 1872 को प्रतिस्थापित करने के उद्देश्य से प्रस्तावित भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA)—जहाँ इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य पर बल दिया गया है—के संदर्भ में भारत में आपराधिक कानूनों से संबंधित प्रावधानों में किये गए विभिन्न परिवर्तनों के बारे चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय न्याय संहिता, 2023, IPC (भारतीय दंड संहिता), दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC), भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872, व्यभिचार, राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड, राजद्रोह, संसदीय स्थायी समिति, संगठित अपराध, महिलाओं के खिलाफ यौन अपराध

मेन्स के लिये:

भारत में आपराधिक न्याय प्रणाली का विकास, भारत में आपराधिक न्याय प्रणाली से संबंधित वर्तमान मुद्दे।

तीन नए अधिनियमित आपराधिक कानून—भारतीय न्याय संहिता (भारतीय दंड संहिता-IPC को प्रतिस्थापित करने के लिये), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (दंड प्रक्रिया संहिता-CrPC को प्रतिस्थापित करने के लिये ) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (भारतीय साक्ष्य अधिनियम-IEA 1872 को प्रतिस्थापित करने के लिये) 1 जुलाई 2024 से लागू होंगे।

जहाँ तक नए भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) का प्रश्न है, भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 में मामूली बदलाव किया गया है। हालाँकि, BSA में द्वितीयक साक्ष्य का दायरा थोड़ा विस्तृत किया गया है और इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य से संबंधित प्रावधानों में कुछ बदलाव किये गए हैं।

नोट

आपराधिक न्याय प्रणाली का विकास:

  • भारत के पूरे इतिहास में अलग-अलग शासकों के अधीन अलग-अलग क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न आपराधिक न्याय प्रणालियाँ विकसित हुईं और देशकाल में उनका प्रभुत्व रहा।
    • ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में आपराधिक कानूनों को संहिताबद्ध किया गया जो अभी हाल तक प्रायः अपरिवर्तित बना रहा था।
  • भारतीय दंड संहिता (IPC) भारत की आधिकारिक दंड संहिता है जिसे चार्टर अधिनियम, 1833 के तहत वर्ष 1834 में स्थापित पहले विधि आयोग की अनुशंसा के अनुरूप वर्ष 1860 में तैयार किया गया था और यह 1 जनवरी 1862 से लागू हुआ।
  • IEA, जिसे मूल रूप से ब्रिटिश राज के दौरान वर्ष 1872 में इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल द्वारा भारत में पारित किया गया था, भारतीय न्यायालयों में साक्ष्य की स्वीकार्यता को नियंत्रित करने वाले नियमों और संबद्ध मुद्दों का एक समुच्चय प्रदान करता है।
    • इसी क्रम में, CrPC भारत में आपराधिक कानून के प्रशासन के लिये प्रक्रियाएँ प्रदान करता है। यह वर्ष 1973 में अधिनियमित हुआ और 1 अप्रैल 1974 से लागू हुआ।
  • भारतीय संसद ने दिसंबर 2023 में भारतीय न्याय प्रणाली में आमूलचूल परिवर्तन लाने के लिये भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा (द्वितीय) संहिता 2023 और भारतीय साक्ष्य (द्वितीय) विधेयक 2023 के रूप में तीन महत्त्वपूर्ण विधेयक पारित किये।

भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) 2023 के विभिन्न प्रावधान क्या हैं?

  • BSA 2023 भारतीय साक्ष्य अधिनियम (IEA) 1872 के अधिकांश प्रावधानों को बरकरार रखता है। इसमे शामिल हैं:
    • स्वीकार्य या ग्राह्य साक्ष्य (Admissible Evidence): कानूनी कार्यवाही में शामिल पक्षकार केवल ग्राह्य साक्ष्य ही प्रस्तुत कर सकते हैं। ग्राह्य साक्ष्य को या तो ‘विवाद्यक तथ्य’ (facts in issue) या ‘सुसंगत तथ्य’ (relevant facts) के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।
      • विवाद्यक तथ्य ऐसे किसी तथ्य को संदर्भित करते हैं जो कानूनी कार्यवाही में दावा किये गए या अस्वीकार किये गए किसी भी अधिकार, दायित्व या अशक्तता के अस्तित्व, प्रकृति या सीमा को निर्धारित करते हैं।
      • सुसंगत तथ्य वे तथ्य हैं जो किसी दिए गए मामले में प्रासंगिक हैं। IEA दो प्रकार के साक्ष्य प्रदान करता है- दस्तावेज़ी साक्ष्य और मौखिक साक्ष्य (documentary and oral evidence)।
    • सिद्ध तथ्य (Proven Fact): एक तथ्य को तब ‘सिद्ध’ माना जाता है, जब प्रस्तुत किये गए साक्ष्यों के आधार पर न्यायालय यह मानता है कि यह या तो: (i) अस्तित्व में है, या (ii) इसके अस्तित्व की इतनी संभावना है कि एक विवेकशील व्यक्ति को ऐसे कार्य करना चाहिये जैसे कि यह मामले के परिदृश्यों में अस्तित्व में है।
    • पुलिस संस्वीकृति या इकबालिया बयान (Police Confessions): किसी पुलिस अधिकारी के सामने की गई कोई भी संस्वीकृति/इकबालिया बयान/कबूलनामा अग्राह्य या अस्वीकार्य है। पुलिस हिरासत या अभिरक्षा (custody) में की गई संस्वीकृति भी अस्वीकार्य है, जब तक कि उसे मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज नहीं किया जाए।
      • हालाँकि, यदि अभिरक्षा में किसी आरोपी से प्राप्त जानकारी के परिणामस्वरूप किसी सूचना का पता चलता है तो उस सूचना को स्वीकार किया जा सकता है यदि वह स्पष्ट रूप से पता चले तथ्य से संबंधित हो।
  • BSA 2023 में लाये गए प्रमुख बदलाव:
    • दस्तावेज़ी साक्ष्य: IEA के तहत दस्तावेज़ में लेख, मानचित्र और कैरिकेचर शामिल होते हैं। BSA में इलेक्ट्रॉनिक रिकार्ड को भी दस्तावेज़ के रूप में शामिल किया गया है। दस्तावेज़ी साक्ष्य में प्राथमिक और द्वितीयक साक्ष्य शामिल हैं।
      • प्राथमिक साक्ष्य में मूल दस्तावेज़ और उसके अंग, जैसे इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड एवं वीडियो रिकॉर्डिंग शामिल हैं।
      • द्वितीयक साक्ष्य में ऐसे दस्तावेज़ और मौखिक विवरण शामिल होते हैं जो मूल दस्तावेज़ की सामग्री को साबित कर सकते हैं।
      • BSA निम्नलिखित को शामिल करने के लिये द्वितीयक साक्ष्य का विस्तार करता है: (i) मौखिक और लिखित स्वीकृति/स्वीकारोक्ति; और (ii) उस व्यक्ति की गवाही जिसने दस्तावेज़ की जाँच की है और दस्तावेज़ों की जाँच करने में कुशल है।
    • मौखिक साक्ष्य: IEA के तहत मौखिक साक्ष्य में जाँच के अधीन किसी तथ्य के संबंध में साक्षियों द्वारा अदालतों के समक्ष दिये गए बयान शामिल हैं। BSA मौखिक साक्ष्य को इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रस्तुत करने की भी अनुमति देता है।
      • इससे साक्षियों, आरोपी व्यक्तियों और पीड़ितों को इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से गवाही देने की अनुमति मिल जाएगी।
    • साक्ष्य के रूप में इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रिकॉर्ड की ग्राह्यता: दस्तावेज़ी साक्ष्य में इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की जानकारी शामिल होती है जो कंप्यूटर द्वारा उत्पादित ऑप्टिकल या मैग्नेटिक मीडिया में मुद्रित या संग्रहित की गई है।
      • ऐसी जानकारी कंप्यूटर या विभिन्न कंप्यूटरों के संयोजन द्वारा संग्रहीत या संसाधित की जा सकती है।
    • संयुक्त विचारण (Joint Trials): संयुक्त विचारण से तात्पर्य एक ही अपराध के लिये एक से अधिक व्यक्तियों के विचारण या ट्रायल से है। IEA के अनुसार, संयुक्त विचारण में किसी एक आरोपी द्वारा की गई संस्वीकृति जो अन्य आरोपियों को भी प्रभावित करती है, साबित हो जाती है तो इसे दोनों के विरुद्ध संस्वीकृति माना जाएगा।
      • BSA इस प्रावधान में एक स्पष्टीकरण शामिल करता है जिसमें कहा गया है कि कई व्यक्तियों के विचारण में, किसी एक आरोपी के फरार रहने या गिरफ़्तारी वारंट का जवाब नहीं देने की स्थिति में भी इसे संयुक्त विचारण ही माना जाएगा।

BSA 2023 द्वारा लाये गए विभिन्न महत्त्वपूर्ण बदलाव कौन-से हैं?

  • ‘दस्तावेज़’ की सटीक परिभाषा: ‘दस्तावेज़’ (जिसमें इलेक्ट्रॉनिक एवं डिजिटल रिकॉर्ड शामिल हैं) की परिभाषा में दृष्टांत से स्पष्ट किया गया है कि ईमेल पर इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड, सर्वर लॉग, कंप्यूटर या लैपटॉप या स्मार्टफोन पर मौजूद दस्तावेज़, संदेश, वेबसाइट, लोकेशन संबंधी साक्ष्य  और डिजिटल उपकरणों पर संग्रहित वॉइस मेल मैसेज दस्तावेज़ हैं।
  • प्राथमिक (इलेक्ट्रॉनिक) साक्ष्य के संबंध में स्पष्टता: इसमें कहा गया है कि जहाँ किसी वीडियो रिकॉर्डिंग को एक ही समय इलेक्ट्रॉनिक रूप में संग्रहित किया जाता है और दूसरे को प्रेषित या प्रसारित या स्थानांतरित किया जाता है, वहाँ प्रत्येक संग्रहित रिकॉर्डिंग प्राथमिक साक्ष्य होगी।
    • इससे जाँच एजेंसियों को किसी साइबर अपराधी की अभियोज्यता (culpability) तय करने में मदद मिल सकती है, भले ही वह आरोपों से इनकार करने के लिये अपने मूल इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को नष्ट कर दे, क्योंकि साक्ष्य को इसके महत्त्व में किसी कमी के बिना अन्य स्रोतों से संग्रहित किया जा सकता है।
  • IT एक्ट, 2000 से तादात्म्य: इसकी धारा 63, जो इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की ग्राह्यता से संबंधित है, में बेहतर दृश्यता के लिये ‘सेमीकंडक्टर मेमोरी’ और ‘कोई भी संचार उपकरण’ जैसे शब्द शामिल हैं।
    • हालाँकि, इससे प्रावधान का प्रभाव नहीं बदलता है क्योंकि IT अधिनियम, 2000 में दी गई ‘इलेक्ट्रॉनिक फॉर्म’ की परिभाषा में ‘कंप्यूटर मेमोरी’ में उत्पन्न, प्रेषित, प्राप्त या संग्रहित जानकारी शामिल है।

BSA 2023 के प्रावधानों के संबंध में विभिन्न चिंताएँ क्या हैं?

  • इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड से संबंधित मुद्दे:
    • इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड से छेड़छाड़:
      • वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने यह माना कि इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड छेड़छाड़ और हेरफेर के प्रति संवेदनशील हैं। उसने कहा है कि पर्याप्त सुरक्षा उपायों के बिना, यदि पूरा विचारण इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड के साक्ष्य पर आधारित हो, तो इससे न्याय हास्यास्पद बन सकता है।
    • ई-रिकॉर्ड की ग्राह्यता में अस्पष्टता:
      • BSA इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की ग्राह्यता का उपबंध करता है और न्यायालय को ऐसे साक्ष्यों पर विचार करने के लिये इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य परीक्षक (Examiner of Electronic Evidence) से परामर्श करने की विवेक शक्ति सौंपता है।
      • BSA दस्तावेज़ की परिभाषा में इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को शामिल करता है। यह IEA के इस प्रावधान को बरकरार रखता है कि सभी दस्तावेज़ प्राथमिक साक्ष्य के रूप में ग्राह्य होने चाहिये, जब तक कि वे द्वितीयक साक्ष्य के रूप में योग्य न हों (यदि मूल साक्ष्य नष्ट हो गया हो या उस व्यक्ति के पास हो जिसके विरुद्ध दस्तावेज़ सिद्ध किया जाना है।
  • पुलिस अभिरक्षा में प्राप्त जानकारी सिद्धि-योग्य हो सकती है: IEA में  प्रावधान है कि यदि पुलिस अभिरक्षा में किसी आरोपी से प्राप्त जानकारी के परिणामस्वरूप किसी तथ्य का पता लगाया जाता है तो उस जानकारी को स्वीकार किया जा सकता है यदि वह स्पष्ट रूप से पता लगाये गए तथ्य से संबंधित हो। BSA में इस प्रावधान को बनाये रखा गया है।
    • सर्वोच्च न्यायालय और विभिन्न विधि आयोग की रिपोर्टों ने इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि संभव है कि अभिरक्षा में तथ्यों का पता लगाने के लिये अभियुक्तों पर दबाव बनाया गया हो या उन्हें यातना दी गई हो।
  • पुलिस अभिरक्षा के अंदर और बाहर अभियुक्त के बीच भेदभाव: IEA के तहत, पुलिस अभिरक्षा में किसी अभियुक्त से प्राप्त जानकारी ग्राह्य या स्वीकार्य है यदि यह पता लगाये गए तथ्य से संबंधित है, जबकि समान जानकारी ग्राह्य नहीं है यदि यह पुलिस अभिरक्षा के बाहर किसी अभियुक्त से प्राप्त हुई हो। BSA ने भी यह अंतर बरकरार रखा है।

BSA को अधिक प्रभावशील बनाने के लिये कौन-से कदम उठाये जाने की आवश्यकता है?

  • गृह मामलों की स्थायी समिति की रिपोर्ट: गृह मामलों की स्थायी समिति (2023) ने इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल रिकॉर्ड की प्रामाणिकता एवं अखंडता की सुरक्षा के महत्त्व पर ध्यान दिया क्योंकि उनमें छेड़छाड़ की संभावना होती है।
    • इसने अनुशंसा की कि जाँच के दौरान साक्ष्य के रूप में संग्रहित सभी इलेक्ट्रॉनिक एवं डिजिटल रिकॉर्ड को अभिरक्षा की उचित शृंखला के माध्यम से सुरक्षित रूप से प्रबंधित एवं संसाधित किया जाए।
  • कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा तैयार किये गए दिशानिर्देश: वर्ष 2021 में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की खोज और जब्ती के दौरान न्यूनतम सुरक्षा उपायों के लिये दिशानिर्देश पेश किये। इनमें शामिल हैं:
    • यह सुनिश्चित करना कि एक योग्य फोरेंसिक परीक्षक खोज दल के साथ रहे,
    • जाँच अधिकारी को इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की खोज और जब्ती के दौरान जब्त किये गए इलेक्ट्रॉनिक उपकरण के उपयोग से निषिद्ध करना,
    • किसी भी इलेक्ट्रॉनिक स्टोरेज डिवाइस (जैसे पेन ड्राइव या हार्ड ड्राइव) को जब्त करना और उन्हें ‘फैराडे बैग’ में पैक करना।
      • फैराडे बैग विद्युत-चुंबकीय संकेतों के संचरण को अवरुद्ध करते हैं, जो डिवाइस में संग्रहित डेटा को अवरुद्ध या नष्ट कर सकते हैं।
  • यूरोपीय संघ (EU) के निर्देशात्मक प्रस्ताव को शामिल करना: यूरोपीय संघ में आपराधिक कार्यवाही में साक्ष्य एवं इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य की पारस्परिक ग्राह्यता के लिये निर्देशात्मक प्रस्ताव के मसौदे (Draft Directive Proposal for a Mutual Admissibility of Evidence and Electronic Evidence) का उद्देश्य इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य के उपयोग के लिये समान न्यूनतम मानक स्थापित करना है। इसके प्रमुख सिद्धांतों में शामिल हैं:
    • इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य के उपयोग को केवल तभी अनिवार्य करना जब इस बात के पर्याप्त साक्ष्य हों कि इसमें हेरफेर या जालसाजी नहीं की गई है,
    • यह सुनिश्चित करना कि प्रस्तुत करने के समय से लेकर अभिरक्षा की शृंखला तक साक्ष्य किसी हेरफेर के विरुद्ध पर्याप्त रूप से सुरक्षित हैं, और
    • आरोपी के अनुरोध पर आईटी विशेषज्ञों की भागीदारी की आवश्यकता।
  • विधि आयोग 2003 की अनुशंसाएँ:
    • पुलिस अभिरक्षा में किसी भी धमकी, बलप्रयोग, हिंसा या यातना का उपयोग कर अभियुक्त से के पाए गए तथ्य सिद्धि-योग्य नहीं होने चाहिये।
    • तथ्य सुसंगत होने चाहिये, चाहे वे पुलिस अभिरक्षा में पाए गए हों या अभिरक्षा से बाहर।
    • एक नया प्रावधान शामिल किया जाए जिसमें उपबंध हो कि यदि पुलिस अभिरक्षा में कोई व्यक्ति घायल हो जाता है तो यह माना जाएगा कि पुलिस ने उसे घायल किया है। यहाँ साक्ष्य का भार प्राधिकारी पर होगा।
    • पुलिस अभिरक्षा में किसी व्यक्ति को शारीरिक आघात पहुँचाने के लिये पुलिस अधिकारी पर मुक़दमा चलाने से संबंधित एक नया प्रावधान शामिल किया जाए। न्यायालय यह मानते हुए सुनवाई करेगा कि आघात अधिकारी द्वारा पहुँचाया गया है। न्यायालय यह मानने से पहले निम्नलिखित परिदृश्यों पर विचार करेगा:
      • अभिरक्षा की अवधि
      • आघात के बारे में पीड़ित द्वारा दिये गए बयान
      • किसी चिकित्सक द्वारा जाँच
      • मजिस्ट्रेट द्वारा दर्ज किया गया कोई भी बयान।
  • मलिमथ समिति 2003 की अनुशंसाएँ: समिति ने आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार के लिये इसके विभिन्न पहलुओं को शामिल करते हुए अनुशंसाएँ कीं। कुछ प्रमुख अनुशंसाएँ इस प्रकार थीं:
    • छोटे-मोटे अपराधों के लिये ‘सामाजिक कल्याण अपराध’ (social welfare offences) नामक अपराधों की एक नई श्रेणी शुरू की जाए, जिनसे जुर्माना लगाकर या सामुदायिक सेवा कराने के रूप में निपटा जा सकता है।
    • वाद-विवाद या एडवर्सियल प्रणाली (adversarial system) को एक ‘मिश्रित प्रणाली’ से प्रतिस्थापित किया जाए जिसमें जाँच-पड़ताल या इन्क्वीसीटोरियल प्रणाली (inquisitorial system) के कुछ तत्व शामिल हों, जैसे कि न्यायाधीशों को साक्ष्य एकत्र करने और साक्षियों की जाँच करने में सक्रिय भूमिका निभाने की अनुमति देना।
    • दोषसिद्धि के लिये आवश्यक साक्ष्य के मानक को ‘उचित संदेह से परे’ (‘beyond reasonable doubt) से घटाकर ‘स्पष्ट एवं ठोस साक्ष्य’ (clear and convincing evidence) की ओर ले जाना।
    • वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के समक्ष की गई संस्वीकृति को साक्ष्य के रूप में ग्राह्य बनाना।

निष्कर्ष:

भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की परिभाषा एवं ग्राह्यता में स्पष्टता लेकर आता है, जहाँ विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों के सुरक्षित उपयोग के लिये विशेषज्ञ प्रमाणीकरण एवं ‘हैश एल्गोरिदम’ के महत्त्व पर बल दिया गया है। हालाँकि, इससे साइबर प्रयोगशालाओं के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं, क्योंकि उनके कार्यभार में व्यापक वृद्धि होगी।

प्रवर्तन एजेंसियों के लिये एन्क्रिप्शन विधियों के बारे में जागरूकता बढ़ाना और कानूनों के प्रभावी होने से पहले आवश्यक बुनियादी ढाँचे को सुनिश्चित करना भी महत्त्वपूर्ण है। कुल मिलाकर, ये बदलाव डिजिटल युग में उभरती चुनौतियों से निपटने के लिये भारत में आपराधिक कानूनों को आधुनिक बनाने की प्रतिबद्धता को परिलक्षित करते हैं।

अभ्यास प्रश्न: भारत में आपराधिक न्याय प्रणाली, न्याय प्रदान करने में किस प्रकार निष्पक्षता एवं प्रभावशीलता सुनिश्चित करती है? हाल के सुधारों एवं चुनौतियों के संदर्भ में चर्चा कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न    

प्रश्न. हम देश में महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा के मामलों में वृद्धि देख रहे हैं। इसके खिलाफ मौजूदा कानूनी प्रावधानों के बावजूद ऐसी घटनाओं की संख्या बढ़ रही है। इस खतरे से निपटने के लिये कुछ अभिनव उपाय सुझाइये। (2014)

प्रश्न. भीड़ हिंसा भारत में एक गंभीर समस्या के रूप में उभर रही है। उपयुक्त उदाहरण देते हुए, ऐसी हिंसा के कारणों और परिणामों का विश्लेषण कीजिये। (2015)

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