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Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 24 अगस्त, 2021

  • 24 Aug 2021
  • 8 min read

सेना में कर्नल पद पर महिलाओं की पदोन्नति

हाल ही में ‘सेना चयन बोर्ड’ ने 26 वर्ष की सेवा पूरी करने वाली पाँच महिला अधिकारियों को कर्नल रैंक पर पदोन्नत करने की मंज़ूरी दे दी है। यह पहली बार है कि ‘कोर ऑफ सिग्नल’, ‘कोर ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स एंड मैकेनिकल इंजीनियर्स’ (EME) और ‘कोर ऑफ इंजीनियर्स’ में सेवारत महिला अधिकारियों को कर्नल के पद पर पदोन्नत करने की मंज़ूरी दी गई है। इससे पूर्व महिलाओं के लिये कर्नल के पद पर पदोन्नति की व्यवस्था केवल आर्मी मेडिकल कोर (AMC), जज एडवोकेट जनरल (JAG) और सेना शिक्षा कोर (AEC) में लागू थी। पाँच महिला अधिकारियों को कर्नल रैंक पर पदोन्नत करने का निर्णय सर्वोच्च न्यायालय के उस निर्णय के बाद आया है, जिसमें महिला उम्मीदवारों को भी ‘राष्ट्रीय रक्षा अकादमी’ (NDA) की प्रवेश परीक्षा में बैठने की अनुमति दी गई थी।  भारतीय सेना की अन्य शाखाओं में पदोन्नति मिलने से महिला अधिकारियों के लिये कॅरियर के अधिक अवसर उपलब्ध होंगे। गौरतलब है कि सेना, वायु सेना और नौसेना ने वर्ष 1992 में महिलाओं को शॉर्ट-सर्विस कमीशन (SSC) अधिकारियों के रूप में शामिल करना शुरू किया था। यह पहली बार था जब महिलाओं को मेडिकल स्ट्रीम के बाहर सेना में शामिल होने की अनुमति दी गई थी। सेना में महिलाओं के लिये एक महत्त्वपूर्ण मोड़ वर्ष 2015 में आया जब भारतीय वायु सेना ने महिलाओं को लड़ाकू स्ट्रीम में शामिल करने का फैसला किया। 

‘2016 AJ193’ क्षुद्रग्रह 

दुनिया की सबसे ऊँची इमारत ‘बुर्ज खलीफा’ से भी विशाल क्षुद्रग्रह हाल ही में पृथ्वी के करीब से गुज़रा है। अपने विशाल आकार और पृथ्वी के करीब इसकी कक्षा के कारण वैज्ञानिकों द्वारा इस क्षुद्रग्रह को ‘संभावित खतरनाक क्षुद्रग्रह’ (PHAs) के रूप में वर्णित किया गया था। पृथ्वी से इस क्षुद्रग्रह की दूरी बीते 65 वर्षों में पृथ्वी के पास से गुज़रने वाले किसी भी क्षुद्रग्रह की तुलना में सबसे करीब थी। इस क्षुद्रग्रह को अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ‘नेशनल एरोनॉटिकल स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन’ (NASA) द्वारा आधिकारिक तौर पर ‘2016 AJ193’ नाम दिया गया था। नासा के मुताबिक, यह खगोलीय निकाय 94,208 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से यात्रा कर रहा था, जो कि इस प्रकार के किसी अन्य खगोलीय निकाय की तुलना में काफी अधिक है। नासा सहित दुनिया भर की विभिन्न अंतरिक्ष एजेंसियों के वैज्ञानिक लगातार क्षुद्रग्रह की गति पर नजर रख रहे हैं। क्षुद्रग्रह सूर्य की परिक्रमा करने वाले छोटे चट्टानी पदार्थ होते हैं। क्षुद्रग्रह द्वारा सूर्य की परिक्रमा ग्रहों के समान ही की जाती है लेकिन इनका आकार ग्रहों की तुलना में बहुत छोटा होता है। ‘संभावित खतरनाक क्षुद्रग्रह’ (PHAs) किसी एक क्षुद्रग्रह के पृथ्वी के करीब आने की संभावना को इंगित करता है।

‘एसिटाबुलरिया जलकन्याका’ शैवाल 

केंद्रीय पंजाब विश्वविद्यालय के समुद्री जीव वैज्ञानिकों ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह से समुद्री हरी शैवाल की एक नई प्रजाति की खोज की है। इस समुद्री शैवाल प्रजाति का नाम महासागरों की देवी के नाम पर ‘एसिटाबुलरिया जलकन्याका’ रखा गया है। इस नए खोजे गए शैवाल में जटिल डिज़ाइन वाली छतरी जैसी टोपियाँ मौजूद हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक, यह पूरा पौधा सिर्फ एक विशाल कोशिका के रूप में है, जिसमें एक अकेला केंद्रक मौजूद है। वनस्पति विज्ञान में इस स्थिति को ‘कोएनोसाइटिक’ कहा जाता है। वर्ष 1940 के दशक में ‘एसिटाबुलरिया’ पर जर्मन वनस्पतिशास्त्री ‘जोआचिम हैमरलिंग’ द्वारा किये गए अग्रणी काम ने ‘प्लांट न्यूक्लियस या केंद्रक’ के सेलुलर नियंत्रण कार्यों की खोज में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। ज्ञात हो कि अंडमान में दुनिया के सबसे स्वस्थ ‘कोरल रीफ’ मौजूद हैं, जो शैवाल सहित कई अन्य जीवों का समर्थन करती हैं। इस क्षेत्र में सबसे अधिक शैवाल विविधता पाई जाती है, लेकिन बढ़ते समुद्री जल तापमान और समुद्र के अम्लीकरण के कारण इन पर जलवायु परिवर्तन का तनाव सबसे अधिक है। 

सिम्हाद्री में भारत की सबसे बड़ी फ्लोटिंग सोलर परियोजना

राज्य संचालित बिजली उत्पादक एनटीपीसी लिमिटेड ने हाल ही में आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम में अपने ‘सिम्हाद्री थर्मल स्टेशन’ पर भारत की सबसे बड़ी ‘फ्लोटिंग सोलर पीवी परियोजना’ में वाणिज्यिक परिचालन शुरू कर दिया है। 15 मेगावाट की फ्लोटिंग सौर परियोजना को चालू करने के बाद इस सुविधा में कुल स्थापित क्षमता 25 मेगावाट हो गई है। इसी के साथ एनटीपीसी की कुल स्थापित क्षमता अब 53,475 मेगावाट हो गई है, जबकि इसकी वाणिज्यिक क्षमता अब 52,425 मेगावाट तक पहुँच गई है। इस फ्लोटिंग सोलर परियोजना में 1 लाख से अधिक सोलर पीवी मॉड्यूल के माध्यम से बिजली पैदा करने की क्षमता है। यह न केवल लगभग 7,000 घरों को रोशन करने में मदद करेगा, बल्कि यह भी सुनिश्चित करेगा कि इस परियोजना के जीवनकाल के दौरान प्रतिवर्ष कार्बन उत्सर्जन में 46,000 टन की कमी आए। साथ ही इस परियोजना के माध्यम से प्रतिवर्ष 1,364 मिलियन लीटर पानी की बचत की जा सकेगी। यह 6,700 परिवारों की वार्षिक जल आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये पर्याप्त होगा।

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