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Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 10 जून, 2022

  • 10 Jun 2022
  • 6 min read

राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार पोर्टल  

केंद्र सरकार ने 9 जून, 2022 को विभिन्न मंत्रालयों, विभागों और एजेंसियों के विभिन्न पुरस्कारों की नामांकन प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने एवं जन-भागीदारी सुनिश्चित करने के लिये राष्ट्रीय पुरस्कार पोर्टल की शुूरुआत की है। इसे सभी पुरस्कारों को एक डिजिटल प्लेटफॉर्म के अंतर्गत एक साथ लाने के लिये विकसित किया गया है। पोर्टल का उद्देश्य सरकार द्वारा स्थापित विभिन्न पुरस्कारों के लिये व्यक्तियों और संगठनों को नामांकित करने की सुविधा प्रदान करना है। गृह मंत्रालय ने एक वक्‍तव्‍य में कहा कि पद्म पुरस्कारों के नामांकन और संस्‍तुति के लिये पोर्टल इस वर्ष 15 सितंबर तक खुला रहेगा। सरदार पटेल राष्ट्रीय एकता पुरस्कारों के लिये अगले महीने की 31 तारीख तक नामांकन किया जा सकता है। भारत सरकार ने देश की एकता और अखंडता के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिये सरदार वल्‍लभभाई पटेल के नाम पर इस सर्वोच्‍च नागरिक पुरस्‍कार का गठन किया है। यह पुरस्कार राष्‍ट्रीय एकता और अखंडता को प्रोत्‍साहन देने तथा मज़बूत एवं अखंड भारत के मूल्‍यों को स्‍थापित करने के संबंध में प्रदान किया जाता है। तेनजिंग नोर्गे राष्ट्रीय साहसिक कार्य पुरस्कार और पंडित दीनदयाल उपाध्याय टेलीकॉम स्किल एक्सीलेंस अवार्ड के लिये 16 जून तक नामांकन किया जा सकता है। 

बिरसा मुंडा 

बिरसा मुंडा के निर्वाण दिवस (9 जून, 2022) पर केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री ने उलीहातू (उनकी जन्मभूमि) में उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। केंद्रीय मंत्री ने बिरसा मुंडा की कर्मभूमि डोम्बारी बुरु में भी उनकी प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित की | यह स्थल बिरसा मुंडा के बलिदान की कर्मभूमि है | डोम्बारी बुरु यानी डोम्बारी पहाड़ पर ही उन्होंने अपनी सेना एकत्र की और अपने विशिष्ट युद्ध कौशल से अंग्रेज़ों के विरुद्ध क्रांति का आगाज़ किया | बिरसा मुंडा का जन्म वर्ष 1875 में हुआ था। वे मुंडा जनजाति के थे। बिरसा का मानना था कि उन्हें भगवान ने लोगों की भलाई और उनके दुःख दूर करने के लिये भेजा है, इसलिये वे स्वयं को भगवान मानते थे। उन्हें अक्सर 'धरती आबा' (Dharti Abba) या ‘जगत पिता’ के रूप में जाना जाता है। वर्ष 1899-1900 में बिरसा मुंडा के नेतृत्व में हुआ मुंडा विद्रोह छोटा नागपुर (झारखंड) के क्षेत्र में सर्वाधिक चर्चित विद्रोह था। इसे ‘मुंडा उलगुलान’ (विद्रोह) भी कहा जाता है। इस विद्रोह की शुरुआत मुंडा जनजाति की पारंपरिक व्यवस्था खूंटकटी की ज़मींदारी व्यवस्था में परिवर्तन के कारण हुई। इस विद्रोह में महिलाओं की भूमिका भी उल्लेखनीय रही। उन्होंने जनता को जागृत किया और ज़मींदारों एवं अंग्रेज़ों के खिलाफ विद्रोह किया। 

सूफी उत्सव 

केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में 9 जून, 2022 को श्रीनगर के शेर-ए-कश्मीर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन केंद्र में सूफी उत्सव का आयोजन किया गया। पर्यटन विभाग द्वारा आयोजित इस उत्सव का उद्देश्य कश्मीर घाटी के सूफी-संत और ऋषियों के संदेशों का प्रचार-प्रसार करना है। संस्कृति विभाग, वक्फ बोर्ड, खादी और ग्रामोद्योग बोर्ड, संग्रहालय एवं अभिलेखागार तथा उच्च शिक्षा विभाग के समन्वय से आयोजित इस उत्सव का उद्घाटन उपराज्यपाल के सलाहकार आर.आर. भटनागर ने किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि सूफीवाद अपने अंतरात्मा को जानने-समझने का एक माध्यम है। धार्मिक उदारता के संदर्भ में सूफी आंदोलन की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है, जिससे शासक वर्ग के दृष्टिकोण में भी परिवर्तन आया। सूफी आंदोलन ने भक्ति आंदोलन की तरह मुस्लिम समाज में सुधार का कार्य किया तथा नैतिक आचरण पर बल दिया और अपने समाज में व्याप्त मद्यपान, वेश्यावृत्ति जैसी बुराइयों के प्रति जागरूक करने का कार्य किया। भारत में प्रमुख सूफी संत कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी, निज़ामुद्दीन औलिया और अमीर खुसरो आदि रहे हैं। 

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