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कित्तूर की रानी चेन्नम्मा

  • 27 Oct 2025
  • 31 min read

स्रोत: पी. आई. बी.

भारत सरकार ने कित्तूर में रानी चेन्नम्मा की ऐतिहासिक विजय (1824) के 200 वर्ष पूरे होने के अवसर पर उनके साहस और ब्रिटिश शासन के खिलाफ नेतृत्व को महत्त्वपूर्ण रूप से दर्शाने के लिये 200 रुपये का स्मारक सिक्का जारी किया।

रानी चेन्नम्मा कौन थीं?

  • परिचय: रानी चेन्नम्मा का जन्म 23 अक्तूबर, 1778 को कागती गाँव (बेलगावी ज़िला, कर्नाटक) में एक लिंगायत परिवार में हुआ था।
    • उन्हें बचपन से ही घुड़सवारी, तलवारबाजी और तीरंदाजी की ट्रेनिंग दी गई थी।
    • उन्होंने कित्तूर के राजा मल्लसर्जा से शादी की और वर्ष 1816 में उनकी मृत्यु के बाद रानी बन गईं।
  • कित्तूर का विद्रोह (1824): अपने पति और पुत्र की मृत्यु के बाद, उन्होंने शिवलिंगप्पा को कित्तूर के सिंहासन का वारिस बनाया।
    • हालाँकि ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने 'व्यपगत के सिद्धांत' के तहत शिवलिंगप्पा को राज्य के उत्तराधिकारी के रूप में मान्यता देने से इनकार कर दिया और कित्तूर को अपने कब्ज़े में लेने की कोशिश की। जो बाद में “व्यपगत के सिद्धांत” के रूप में प्रसिद्ध हुई घटना का प्रारंभिक उदाहरण था।
    • रानी चेनम्मा ने आत्मसमर्पण करने से इनकार कर दिया और ब्रिटिश अधिकारी जॉन थैकेरी के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह का नेतृत्व किया, जिसमें उन्होंने पहली लड़ाई में उसे पराजित किया।
    • हालाँकि ब्रिटिशों ने कर्नल डीकन के नेतृत्व में बड़ी सेना के साथ पलटवार किया, किले को कब्ज़ा लिया और उन्हें बैलहोंगल किले में कैद कर दिया, जहाँ उनकी मृत्यु 1829 में हुई।
  • विरासत: वह भारत की सबसे पहली स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थी, जिन्होंने वर्ष 1857 के विद्रोह से तीन दशक से पहले ही सक्रियता दिखाई।
    • रानी चेन्नम्मा को साहस, न्याय और औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध महिलाओं के नेतृत्व वाले प्रतिरोध के प्रतीक के रूप में कर्नाटक ही नहीं, बल्कि पूरे भारत में आदरपूर्वक याद किया जाता है।
    • उनकी कथा आज भी जनपद गीतों, लोकगाथाओं और रंगमंच के माध्यम से जीवित है, साथ ही वार्षिक कित्तूर रानी चेन्नम्मा उत्सव के रूप में उनका स्मरण किया जाता है।

व्यपगत का सिद्धांत 

  • व्यपगत के सिद्धांत (Doctrine of Lapse), गवर्नर-जनरल लॉर्ड डलहौज़ी द्वारा लागू की गई  एक नीति थी, जिसके अंतर्गत ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को यह अधिकार प्राप्त था कि वह अपने नियंत्रण में आने वाले किसी भी राज्य का विलय (Annexation) कर सकती थी, यदि उस राज्य का शासक अयोग्य समझा जाए या उसकी मृत्यु बिना किसी पुरुष उत्तराधिकारी के हो जाए।
    • इसके अनुसार, भारतीय शासक के किसी भी दत्तक पुत्र को राज्य का उत्तराधिकारी घोषित नहीं किया जा सकता था।
  • डलहौज़ी ने इस सिद्धांत को लागू करते हुए निम्नलिखित राज्यों का विलय किया — सतारा (1848 ई.), जैतपुर एवं संबलपुर (1849 ई.), बघाट (1850 ई.), उदयपुर (1852 ई.), झाँसी (1853 ई.) और नागपुर (1854 ई.)

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ):

1. रानी चेन्नम्मा कौन थीं?

रानी चेन्नम्मा वर्तमान कर्नाटक के कित्तूर राज्य की रानी थीं, जो वर्ष 1824 में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ कित्तूर विद्रोह का नेतृत्व करने के लिये जानी जाती हैं।

2. कित्तूर विद्रोह (1824) का कारण क्या था?

ब्रिटिशों द्वारा रानी चेन्नम्मा के दत्तक पुत्र शिवलिंगप्पा को कित्तूर के उत्तराधिकारी के रूप में मान्यता देने से इंकार किया गया, जिसके परिणामस्वरूप यह विद्रोह हुआ। यह ‘व्यपगत के सिद्धांत’ (Doctrine of Lapse) के विरोध का एक प्रारंभिक उदाहरण था।

3. ‘व्यपगत का सिद्धांत’ किसने और क्यों लागू किया था?

लॉर्ड डलहौज़ी ने ‘व्यपगत के सिद्धांत’ को लागू किया था ताकि ऐसे राज्यों का विलय किया जा सके, जिनके शासक की मृत्यु बिना किसी पुरुष उत्तराधिकारी के हो जाती थी और दत्तक पुत्रों को उत्तराधिकारी मानने के अधिकार से वंचित किया जाता था।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)

प्रिलिम्स 

प्रश्न. महारानी विक्टोरिया की उद्घोषणा (1858) का उद्देश्य क्या था? (2014)

  1. भारतीय राज्यों को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाने के किसी भी विचार का परित्याग करना
  2. भारतीय प्रशासन को ब्रिटिश क्राउन के अंतर्गत रखना 
  3. भारत के साथ ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापार का नियमन करना

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये।

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)

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