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स्यूडोमोनास एरुगिनोसा

  • 25 Aug 2025
  • 15 min read

स्रोत: द हिंदू

हाल ही में किये गये एक अध्ययन में पाया गया कि स्यूडोमोनास एरुगिनोसा बैक्टीरिया में समान कोशिकाओं के भीतर भी दो अलग-अलग जीन (द्विस्थिर जीन) हो सकती हैं, जहाँ कुछ कोशिकाओं में कुछ जीन "सक्रिय (on)" रहते हैं जबकि अन्य कोशिकाओं में वही जीन "निष्क्रिय (off)" रहते हैं।

  • glpD जीन, जो बैक्टीरिया को ग्लिसरॉल का उपयोग करने में सहायता करता है, उसका अभिव्यक्ति स्तर परिवर्तनीय होता है—कुछ कोशिकाओं में यह सक्रिय (on) रहता है, जिससे संक्रमण क्षमता बढ़ती है, जबकि अन्य में यह निष्क्रिय (off) हो जाता है।
  • यह परिवर्तनशीलता एपिजेनेटिक वंशानुक्रम का एक रूप है, जिसका अर्थ है कि जीन की अभिव्यक्ति बिना DNA में किसी परिवर्तन के भी आगे स्थानांतरित हो सकती है।

स्यूडोमोनास एरुगिनोसा

  • परिचय: यह एक ग्राम-नेगेटिव, एरोबिक, गैर-बीजाणु-निर्माण, छड़ के आकार का जीवाणु है, जो पर्यावरण में व्यापक रूप से पाया जाता है, जैसे मृदा और जल में, विशेष रूप से स्वच्छ जल में।
  • संक्रमण की संभावना: स्वस्थ (प्रतिरक्षा-सक्षम) और कमज़ोर (प्रतिरक्षा-विहीन) दोनों प्रकार के मेज़बानों को संक्रमित कर सकता है।
    • यह समुदाय-उपार्जित संक्रमणों का कारण बन सकता है, जैसे कि फॉलिकुलाइटिस, पंक्चर-घाव ऑस्टियोमायलाइटिस, न्यूमोनिया और ओटाइटिस एक्सटर्ना
    • भारत में यह लगभग 30% अस्पताल-जनित संक्रमणों (HAIs) के लिये उत्तरदायी है, जैसे वेंटिलेटर-संबंधित न्यूमोनिया, कैथेटर-संबंधित मूत्रमार्ग संक्रमण और रक्तप्रवाह संक्रमण
    • यह प्लास्टिक सतहों पर जीवित रहता है, और केराटाइटिस (नेत्र संक्रमण) तथा घातक जलन संक्रमणों का मुख्य कारण है, विशेषकर ICU रोगियों में पनपता है।
  • एंटीबायोटिक प्रतिरोध: यह अपने अंतर्निहित प्रतिरोध (जैसे कठोर बाह्य झिल्ली और उत्प्रवाह पंप) और अर्जित प्रतिरोध (उत्परिवर्तन, प्लास्मिड, ट्रांसपोसोन, इंटेग्रॉन) के कारण अत्यधिक प्रतिरोधी है।
    • केवल कुछ एंटीबायोटिक्स ही प्रभावी रहते हैं जैसे टोब्रामाइसिन, एमिकासिन आदि।

और पढ़ें: रोगाणुरोधी प्रतिरोध: कार्रवाई का तत्काल आह्वान

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