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कुरिंजी ब्लूम

  • 21 Oct 2025
  • 14 min read

स्रोत: द हिंदू

तमिलनाडु के नीलगिरी ज़िले में हाल ही में अधिसूचित गुडालुर रिज़र्व फॉरेस्ट में आठ वर्षों के बाद कुरिंजी के सामूहिक पुष्पन (Mass Flowering) का होना जैव विविधता की पुनर्प्राप्ति का संकेत देता है और यह समृद्ध घास के मैदान (Grasslands) तथा बदलती जलवायु परिस्थितियों का एक संकेतक भी है।

  • नीलकुरिंजी (स्ट्रोबिलांथेस कुंथियाना) सहित कुरिंजी की 60 से अधिक प्रजातियाँ, नीलगिरी में 33 किस्मों के साथ, पश्चिमी घाट की स्थानिक हैं।
    • गुडालुर में हाल ही में स्ट्रोबिलांथेस सेसिलिस नामक कुरिंजी किस्म का सामूहिक पुष्पन हुआ है, जो प्रत्येक आठ वर्ष में एक बार पुष्पित होता है।
    • कुरिंजी फूल बाँस की तरह अपने जीवनकाल में केवल एक बार खिलता है। पुष्पन के बाद यह मुरझा जाता है और अगली पीढ़ी के लिये बीज अंकुरण (Seed Germination) पर निर्भर करता है।
    • रंग विविधताओं में बैंगनी, नीला, सफेद और गुलाबी शामिल हैं, जिनमें से प्रत्येक के लिये कई शेड्स हैं।
  • नीलकुरिंजी: यह पश्चिमी घाट के शोला वनों की मूल निवासी झाड़ी है। यह तमिलनाडु के कोडईकनाल क्षेत्र में प्रचुर मात्रा में पाई जाती है।
    • यह पौधा प्रति 12 वर्ष में एक बार खिलता है और IUCN की रेड लिस्ट में इसे संवेदनशील श्रेणी में रखा गया है। नीलगिरि ("नीला पर्वत") को यह नाम इसके नीले फूलों से मिला है।
  • सांस्कृतिक महत्त्व: स्थानीय मिथकों में कुरिंजी फूल का संबंध भगवान मुरुगन से जोड़ा जाता है। मुथुवन और टोडा जनजातियों के बीच कुरिंजी प्रेम और भावनाओं का प्रतीक माना जाता है।
  • पारिस्थितिक महत्त्व: कुरिंजी का सामूहिक पुष्पन तितलियों, मधुमक्खियों और अन्य कीटों को आकर्षित करता है, जिससे परागण में सहायता मिलती है।
    • यह समृद्ध घास के मैदानों और हाथियों, बाघों और हॉर्नबिल सहित संपन्न वन्य जीवन का सूचक है।

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