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जम्मू-कश्मीर में ‘दरबार मूव’ की वापसी

  • 21 Oct 2025
  • 14 min read

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चार वर्ष के अंतराल के बाद, दरबार मूव, जम्मू-कश्मीर के सिविल सचिवालय और सरकारी कार्यालयों का 150 वर्ष पुराना द्विवार्षिक स्थानांतरण, जो श्रीनगर (ग्रीष्मकालीन राजधानी) और जम्मू (शीतकालीन राजधानी) के बीच होता है, इस शीतकाल पुन: शुरू होने जा रहा है।

  • ऐतिहासिक और प्रशासनिक महत्त्व: इसे वर्ष 1872 में महाराजा गुलाब सिंह (तत्कालीन जम्मू-कश्मीर राज्य के प्रथम डोगरा शासक) ने शुरू किया था, ताकि प्रशासन लोगों के करीब लाया जा सके और क्षेत्रों के बीच खराब सड़क संपर्क की चुनौतियों का समाधान किया जा सके।
    • स्वतंत्रता के बाद भी यह जारी रहा और जम्मू-कश्मीर के बीच क्षेत्रीय एकीकरण का प्रतीक बन गया।
  • व्यवहार में अवरोध: वर्ष 2020 के जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय के निर्णय में कहा गया कि दरबार मूव के लिये  कोई ‘कानूनी औचित्य या संवैधानिक आधार’ नहीं था।
    • वर्ष 2021 में, LG प्रशासन ने दरबार मूव की प्रथा को समाप्त करने का निर्णय लिया और अनुमान लगाया कि इससे सरकार को प्रतिवर्ष 200 करोड़ रुपए की बचत होगी।
  • प्रभाव: पारंपरिक ‘दरबार मूव’ को पुनर्जीवित करने से अनुच्छेद 370 के बाद के शासन में क्षेत्रीय समानता को मज़बूत किया जा सकता है और प्रत्येक स्थानांतरण के दौरान मेज़बान शहरों में स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिल सकता है।
    • हालाँकि, लॉजिस्टिक दबाव, प्रशासनिक निरंतरता में विघटन और पर्यावरण व सुरक्षा संबंधी चिंताएँ जैसी चुनौतियाँ बनी रहती हैं।
  • महाराजा गुलाब सिंह: उन्होंने वर्ष 1846 में जम्मू और कश्मीर का रियासी राज्य स्थापित किया। वह जम्मू शाही परिवार के प्रत्यक्ष वंशज थे और अपने भाइयों ध्यान सिंह और सुचेत सिंह के साथ प्रसिद्ध डोगरा त्रिमूर्ति के हिस्से थे।
    • उन्होंने महाराजा रणजीत सिंह के दरबार में लाहौर में शामिल होकर एक प्रमुख सैन्य कमांडर के रूप में नाम कमाया।

और पढ़ें: भारत का संघीय ढाँचा और जम्मू-कश्मीर राज्य

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