रैपिड फायर
जल्लीकट्टू
- 22 Dec 2025
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तमिलनाडु सरकार ने सार्वजनिक सुरक्षा, पशु कल्याण और कड़े कानूनी अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिये जल्लीकट्टू 2026 हेतु मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) जारी की है।
- परिचय: जल्लीकट्टू, जिसे एरुथाझुवुथल भी कहा जाता है, तमिलनाडु का एक पारंपरिक साँड को वश में करने का खेल है। यह पोंगल फसल उत्सव के दौरान, विशेष रूप से मट्टू पोंगल के दिन आयोजित किया जाता है।
- जल्लीकट्टू जल्ली (Coins) और कट्टू (Tie) दो शब्दों से मिलकर बना है, जो साँड के सींगों पर सिक्कों के बंडल को जोड़ने की प्रथा को इंगित करता है, जिन्हें पुरस्कार के रूप में रखा जाता था।
- सांस्कृतिक महत्त्व: जल्लीकट्टू लगभग 2,000 वर्ष पुरानी परंपरा है, जो आयर (Ayar) समुदाय से जुड़ी हुई है। यह प्रकृति, पशुधन पूजा और ग्रामीण कृषि जीवन का उत्सव है। ऐतिहासिक रूप से इसका उपयोग योग्य वरों के चयन के लिये भी किया जाता था।
- इसे मदुरै के पास 1,500 वर्ष पुराने एक गुफा चित्रकला में तथा नई दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में संरक्षित सिंधु घाटी सभ्यता की एक मुहर में भी दर्शाया गया है।
- क्षेत्र: जल्लीकट्टू मुख्य रूप से तमिलनाडु के मदुरै, तिरुचिरापल्ली, थेनी, पुडुकोट्टई और डिंडीगुल ज़िलों में आयोजित किया जाता है। इन क्षेत्रों को सामूहिक रूप से ‘जल्लीकट्टू बेल्ट’ के नाम से जाना जाता है।
- खेल का स्वरूप: यह एक प्रतिस्पर्द्धात्मक तथा शारीरिक रूप से अत्यंत चुनौतीपूर्ण खेल है, जिसमें प्रतिभागी साँड को वश में करने का प्रयास करते हैं। अगर वे इसमें सफल नहीं होते तो साँड का मालिक ही पुरस्कार का विजेता होता है।
- इस खेल में पुलिकुलम या कंगायम नस्ल के बैलों का उपयोग किया जाता है, जो प्रजनन और बाज़ार में बिक्री के लिये अत्यधिक मूल्यवान हैं।
- जल्लीकट्टू लंबे समय से पशु क्रूरता और मानव सुरक्षा को लेकर विवादों में रहा है। इसके चलते अदालतों तथा पशु अधिकार समूहों की निगरानी एवं आलोचना का सामना करना पड़ा है।
- कानूनी स्थिति: वर्ष 2023 में सर्वोच्च न्यायालय की पाँच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने तमिलनाडु, महाराष्ट्र और कर्नाटक राज्य विधानसभाओं द्वारा पशु क्रूरता निवारण (Prevention of Cruelty to Animals- PCA) अधिनियम, 1960 में किये गए संशोधनों उचित करार दिया; इस प्रकार जल्लीकट्टू, कंबाला (Kambala) और बैलगाड़ी दौड़ जैसे खेलों को अनुमति प्रदान की।
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