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दुर्लभ-मृदा तत्त्वों पर भारत-म्याँमार समझौता

  • 13 Sep 2025
  • 51 min read

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

भारत दुर्लभ-मृदा तत्त्व के नमूने प्राप्त करने के लिये म्याँमार में काचिन इंडिपेंडेंस आर्मी (Kachin Independence Army- KIA) के साथ सहयोग कर रहा है, जिसका उद्देश्य चीन से दूर अपनी आपूर्ति शृंखला में विविधता लाना है। 

  • वर्ष 1961 में स्थापित KIA, म्याँमार के सबसे प्रभावशाली सशस्त्र समूहों में से एक है। उन्होंने काचिन राज्य में चिपवे-पंगवा (Chipwe-Pangwa) खनन क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया, जो डिस्प्रोसियम और टेरबियम सहित विश्व के अधिकांश भारी दुर्लभ मृदा खनिजों की आपूर्ति करता है। 

दुर्लभ मृदा खनिज क्या हैं? 

  • परिचय: दुर्लभ मृदाएँ 17 तत्त्वों का एक समूह है, जिसमें 15 चाँदी-सफेद धातुएँ शामिल हैं, जिन्हें लैंथेनाइड्स या लैंथेनॉइड्स कहा जाता है, साथ ही स्कैंडियम और यिट्रियम भी शामिल हैं। 
    • आवर्त सारणी में क्रम के अनुसार ये तत्त्व हैं:  स्कैंडियम, येट्रियम, लैंथेनम, सेरियम, प्रेजोडायमियम, नियोडिमियम, प्रोमेथियम, समैरियम, यूरोपियम, गैडोलीनियम, टेरबियम, डिस्प्रोसियम, होल्मियम, एर्बियम, थ्यूलियम, येटरबियम और ल्यूटेटियम। 
    • ये तत्त्व "दुर्लभ" इस अर्थ में नहीं हैं कि ये बहुत कम पाए जाते हैं। बल्कि ये पृथ्वी की पर्पटी में कम मात्रा में फैले हुए हैं और अक्सर आपस में या अन्य खनिजों के साथ मिश्रित रहते हैं। इस कारण इनके बड़े भंडार खोजना कठिन होता है और इन्हें निकालना महॅंगा और जटिल होता है। 
  • पर्यावरणीय प्रभाव: 
    • दुर्लभ मृदाओं के प्रसंस्करण में प्रायः विलायकों का उपयोग होता है, जिससे विषाक्त अपशिष्ट उत्पन्न हो सकता है, जो मृदा, जल और वातावरण को प्रदूषित करता है।  
      • अधिक पर्यावरण अनुकूल प्रौद्योगिकियाँ विकसित की जा रही हैं, लेकिन उनका अभी तक व्यापक रूप से उपयोग नहीं किया जा रहा है। 
    • कुछ प्रकार के दुर्लभ मृदा अयस्कों में रेडियोधर्मी थोरियम या यूरेनियम भी होता है, जिसे अक्सर अम्ल का उपयोग करके हटाया जाता है। 
      • इस कारण से, इस क्षेत्र को स्वास्थ्य और पर्यावरण नियामक बाधाओं का सामना करना पड़ता है। 
  • उपयोग: इनका उपयोग उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी), विमान इंजन, चिकित्सा उपकरण, तेल शोधन और मिसाइलों तथा रडार प्रणालियों, जैसे सैन्य अनुप्रयोगों सहित उत्पादों की एक विस्तृत शृंखला में किया जाता है। 
  • सबसे बड़ा उत्पादक: चीन वैश्विक खनन उत्पादन में चीन की हिस्सेदारी लगभग 60% और प्रसंस्कृत एवं स्थायी चुंबक उत्पादन में 90% है। 

हल्के दुर्लभ मृदा तत्त्व

भारी दुर्लभ मृदा तत्त्व

नियोडिमियम (Nd) और प्रसीओडिमियम (Pr): शक्तिशाली स्थायी चुंबक बनाने में महत्त्वपूर्ण, जिनका उपयोग विद्युत वाहनों के घटकों, पवन टर्बाइन, हार्ड डिस्क ड्राइव और विभिन्न ऑटोमोटिव उपप्रणालियों में किया जाता है। नियोडिमियम का उपयोग इस्पात निर्माण में अशुद्धियों को हटाने तथा विशेष मिश्र धातुओं को बनाने में किया जाता है।

डिस्प्रोसियम (Dy) और टर्बियम (Tb): नियोडिमियम चुंबकों के प्रदर्शन को उच्च तापमान पर बेहतर बनाने के लिये आवश्यक योजक, विद्युत वाहन मोटरों और पवन टर्बाइन जनरेटर के लिये महत्त्वपूर्ण।

लैंथेनम (La): निकेल-धातु हाइड्राइड बैटरियों, कैमरा लेंस (स्मार्टफोन में भी), पेट्रोलियम परिशोधन में उत्प्रेरक के रूप में, काँच की पॉलिशिंग एजेंट और इस्पात निर्माण में अशुद्धियाँ हटाने के लिये प्रयुक्त।

टर्बियम (Tb) और इट्रियम (Y): स्मार्टफोन, कंप्यूटर, टेलीविज़न और LED लाइटिंग की स्क्रीन में लाल, हरे और नीले फॉस्फर बनाने में उपयोग।

सेरियम (Ce): ऑटोमोबाइल्स में उत्प्रेरक कन्वर्टर्स में उत्सर्जन को कम करने, कांच पॉलिशिंग पाउडर में, और कुछ मिश्र धातुओं में योजक के रूप में प्रयुक्त।

अर्बियम (Er): फाइबर ऑप्टिक्स में प्रवर्धक और कुछ चिकित्सीय लेज़रों में उपयोग।

समेरियम (Sm): कुछ प्रकार के चुंबकों और नाभिकीय रिएक्टर नियंत्रण छड़ों में प्रयुक्त।

यूरोपियम (Eu): स्क्रीन और ऊर्जा-कुशल प्रकाश व्यवस्था में लाल फॉस्फर के रूप में प्रयुक्त।

गैडोलिनियम (Gd): MRI स्कैन में कंट्रास्ट एजेंट के रूप में और नाभिकीय रिएक्टर नियंत्रण छड़ों में प्रयुक्त।

स्कैंडियम (Sc): हल्के, उच्च-शक्ति मिश्र धातुओं में, विमान घटकों के लिये प्रयुक्त।

प्रसीओडिमियम (Pr): इस्पात निर्माण में अशुद्धियाँ हटाने और विशेष मिश्र धातु बनाने में प्रयुक्त।

दुर्लभ मृदा तत्त्वों के मामले में भारत की स्थिति क्या है? 

  • भारत में 6.9 मिलियन मीट्रिक टन दुर्लभ मृदा भंडार के साथ विश्व का पाँचवाँ सबसे बड़ा भंडार है, लेकिन यहाँ घरेलू स्तर पर चुंबक उत्पादन नहीं होता। भारत मुख्यतः चीन से आयातित चुंबकों पर निर्भर है। 
  • मार्च 2025 तक के वित्तीय वर्ष में भारत ने 53,748 मीट्रिक टन दुर्लभ मृदा चुंबकों का आयात किया। इनका उपयोग ऑटोमोबाइल, पवन टर्बाइन, चिकित्सा उपकरणों और अन्य विनिर्मित वस्तुओं में किया जाता है। 
  • दुर्लभ मृदा खनन IREL (एक मिनीरत्न कंपनी) तक सीमित है, जो भारत के परमाणु ऊर्जा विभाग को परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं और रक्षा-संबंधी अनुप्रयोगों के लिये सामग्री की आपूर्ति करती है। 
  • IREL का ओडिशा में एक दुर्लभ मृदा निष्कर्षण संयंत्र और केरल में एक शोधन इकाई है। 
  • भारत अपनी प्रसंस्करण क्षमता विकसित करने के लिये कार्य कर रहा है। IREL दुर्लभ मृदा चुंबकों के व्यावसायिक उत्पादन के लिये जापान और कोरिया की कंपनियों के साथ साझेदारी की कोशिश कर रहा है। 
    • IREL लिमिटेड को भारत में दुर्लभ मृदा खनिज मोनाज़ाइट से उच्च शुद्ध दुर्लभ मृदा ऑक्साइड के रूप में REE का उत्पादन करने का अधिदेश दिया गया है। 
  • भारत के दुर्लभ मृदा तत्त्वों (REE) पर आयात निर्भरता को कम करने के लिये परमाणु खनिज अन्वेषण एवं अनुसंधान निदेशालय (AMD) देश के तटीय, आंतरिक तथा नदीय प्लेसर बालू क्षेत्रों में संसाधनों की वृद्धि हेतु अन्वेषण कार्य कर रहा है। 
  • भारत ने वर्ष 2025 में राष्ट्रीय महत्त्वपूर्ण खनिज मिशन (NCMM) लॉन्च किया है। 
    • इस मिशन के अंतर्गत भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) को वित्तीय वर्ष 2025 से 2031 तक 1,200 अन्वेषण परियोजनाएँ संचालित करने का दायित्व सौंपा गया है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत में गौण खनिज के प्रबंधन के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019) 

  1. इस देश में विद्यमान विधि के अनुसार रेत एक ‘गौण खनिज’ है। 
  2. गौण खनिजों के खनन पट्टे प्रदान करने की शक्ति राज्य सरकारों के पास है, किंतु गौण खनिजों को प्रदान करने से संबंधित नियमों को बनाने के बारे में शक्तियाँ केंद्र सरकार के पास हैं। 
  3. गौण खनिजों के अवैध खनन को रोकने के लिये नियम बनाने की शक्ति राज्य सरकारों के पास है। 

उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? 

(a) केवल 1 और 3 
(b) केवल 2 और 3 
(c) केवल 3 
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (a)

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