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पृथ्वी के घूर्णन पर भू-जल निष्कर्षण का प्रभाव

  • 20 Jun 2023
  • 6 min read

जियोफिज़िकल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन में पृथ्वी के घूर्णन अक्ष पर भू-जल निष्कर्षण के प्रभाव और वैश्विक समुद्र स्तर में वृद्धि में इसके योगदान पर प्रकाश डाला गया है। 

  • शोधकर्त्ताओं ने शुरू में केवल बर्फ की परतों (Ice Sheets) और हिमनदों में हुए बदलाव के बाद भू-जल पुनर्वितरण परिदृश्यों में परिवर्तन के साथ-साथ पृथ्वी के घूर्णन अक्ष और जल के बहाव की गति में परिवर्तन पाया।

पृथ्वी के घूर्णन को प्रभावित करने वाले कारक: 

  • ध्रुवीय गति में योगदान देने वाले कारकों में मौसम, क्रोड का पिघलना और शक्तिशाली तूफान शामिल हैं।
    • पृथ्वी की भू-पर्पटी की तुलना में इसके घूर्णन अक्ष की गति को ध्रुवीय गति के रूप में जाना जाता है, जो अक्ष के घूर्णन पर ग्रह की प्रत्येक परत के बीच पदार्थ विनिमय और बड़े पैमाने पर पुनर्वितरण के प्रभाव को इंगित करता है।
    • आमतौर पर ध्रुवीय गति का कारण जलमंडल, वायुमंडल, महासागरों अथवा स्थलमंडल में परिवर्तन है।
  • पृथ्वी के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव वे हैं जहाँ इन दोनों ध्रुवों की धुरी सतह को प्रतिच्छेदित करती है। हालाँकि यह निश्चित नहीं हैं। इसलिये पृथ्वी के द्रव्यमान वितरण में भिन्नता के कारण धुरी और ध्रुवों में उतार-चढ़ाव होता रहता है।
  • भूतकाल में ध्रुवों का विस्थापन केवल समुद्र की धाराओं और पृथ्वी के नीचे गहरी गर्म चट्टान के संवहन जैसी प्राकृतिक शक्तियों के कारण होता था।
  • नए शोध में विस्थापन के लिये प्राथमिक कारक के रूप में भू-जल के पुनर्वितरण को उत्तरदायी माना गया है। 
    • वर्ष 2016 में पृथ्वी के घूर्णन में परिवर्तन में जल की भूमिका का पता चला और अब तक विस्थापन में भूजल के योगदान की खोज नहीं हो सकी है।

अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष:

  • पृथ्वी का झुकना: 
    • वर्ष 1993 से 2010 के बीच भू-जल निष्कर्षण ने पृथ्वी को लगभग 80 सेंटीमीटर पूर्व की ओर झुका दिया है।
    • पृथ्वी में जल का परिसंचरण यह निर्धारित करता है कि द्रव्यमान कैसे वितरित होता है।
      • वर्ष 1993 से 2010 के बीच लोगों ने 2,150 गीगाटन भू-जल का निष्कर्षण किया है या समुद्र के स्तर में 6 मिलीमीटर से अधिक की वृद्धि हुई है।
  • ध्रुवीय विस्थापन पर प्रभाव: 
    • अत्यधिक भू-जल पम्पिंग ने वर्ष 1993 और 2010 के बीच प्रतिवर्ष 4.36 सेंटीमीटर की दर से पृथ्वी के ध्रुवीय विस्थापन का कारण बना दिया है, जिससे यह ध्रुवीय गति पर सबसे अधिक प्रभाव डालने वाला जलवायु संबंधी कारक बन गया है।
    • मध्य अक्षांश से पानी का पुनर्वितरण ध्रुवीय विस्थापन को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है, इसलिये पुनर्वितरण का स्थान ध्रुवीय विस्थापन को निर्धारित करता है।
      • अध्ययन अवधि के दौरान अधिकांश पुनर्वितरण पश्चिमी-उत्तरी अमेरिका और उत्तर-पश्चिमी भारत में हुआ, दोनों मध्य अक्षांशों पर स्थित हैं।
  • समुद्र के स्तर में वृद्धि पर भू-जल पम्पिंग का प्रभाव:
    • उल्लिखित अवधि के दौरान भू-जल पम्पिंग ने समुद्र के स्तर में 6.24 मिमी. की वृद्धि में योगदान दिया।
    • उत्तर-पश्चिम भारत और पश्चिमी-उत्तरी अमेरिका जैसे मध्य अक्षांश क्षेत्रों से पम्पिंग का पृथ्वी के धुरी प्रवाह पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है।
  • ध्रुवीय विस्थापन का प्रभाव: 
    • रोटेशनल पोल सामान्य रूप से लगभग एक वर्ष के भीतर कई मीटर तक बदल जाता है, इसलिये भू-जल पम्पिंग के कारण होने वाले परिवर्तनों से मौसम बदलने का जोखिम नहीं होता है।
    • लेकिन भूगर्भीय समय के पैमाने पर ध्रुवीय विस्थापन का जलवायु पर प्रभाव पड़ सकता है।
  • अनुशंसाएँ:
    • विशेष रूप से उन संवेदनशील क्षेत्रों में भू-जल की कमी दर को कम करने के प्रयास, सैद्धांतिक रूप से विस्थापन की दिशा को प्रभावित कर सकते हैं, लेकिन यह केवल तभी संभव है जब ऐसे जल संरक्षण उपायों को दशकों तक बनाए रखा जाए।

अध्ययन का महत्त्व:

  • इस अध्ययन  के निष्कर्ष वैश्विक स्तर पर भू-जल की कमी और इसके परिणामों को उजागर करने की आवश्यकता पर ज़ोर देते हैं।
  • यह खोज पृथ्वी की घूर्णन गति और बढ़ते समुद्र के स्तर के विश्लेषण में एक महत्त्वपूर्ण कारक के रूप में भू-जल की कमी पर विचार करने के महत्त्व को रेखांकित करती है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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