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जूजेंथेले कोरल की चार प्रजातियाँ

  • 23 Jun 2022
  • 5 min read

वैज्ञानिकों ने पहली बार भारतीय जल क्षेत्र से जीनस ट्रुनकाटोफ्लैबेलम (स्क्लेरैक्टिनियन: फ्लैबेलिडे) के तहत जूजेंथलाई कोरल की चार प्रजातियों को रिकॉर्ड किया है। 

Azooxanthellate-Corals

क्या पाया गया है? 

  • ट्रुनकाटोफ्लैबेलम क्रैसम , टी. इन्क्रुस्ताटम ,टी. एक्युलेटम, और टी.इर्रेगुलर कोरल की चार प्रजातियाँ पाई जाती हैं। 
    • प्रवाल के ये समूह पहले जापान से फिलीपींस और ऑस्ट्रेलियाई जलक्षेत्र में पाए गए थे, जबकि अदन की खाड़ी और फारस की खाड़ी सहित इंडो-वेस्ट पैसिफिक की सीमा के अंदर केवल टी. क्रैसम की पहचान की गई थी। 
  • ये अंडमान और निकोबार द्वीप समूह द्वीप समूह के जल में पाए जाते हैं। 
    • वे जूूजेंथलाईे कोरल, कोरल का एक समूह है जिसमें ज़ोक्सांथेला नहीं होता है तथा यह सूर्य से नहीं बल्कि प्लवक के विभिन्न रूपों को से पोषण प्राप्त करते हैं। 
    • जूूजेंथलाई एककोशिकीय, सुनहरे-भूरे रंग के शैवाल (डाइनोफ्लैगलेट्स) हैं जो या तो समुद्री जल स्तंभ में प्लवक के रूप में रहते हैं या अन्य जीवों के ऊतक के अंदर सहजीवी रूप से रहते हैं। 
  • जूूजेंथलाई प्रवाल उथले जल तक ही सीमित हैं। 
  • वे कठोर प्रवाल होते हैं और अत्यधिक संकुचित कंकाल संरचना होती है। 
    • भारत में कठोर प्रवाल की लगभग 570 प्रजातियाँ पाई जाती हैं और उनमें से लगभग 90% अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के आसपास के जल में पाई जाती हैं। प्रवाल का प्राचीन और सबसे पुराना पारिस्थितिकी तंत्र पृथ्वी की सतह का 1% से भी कम हिस्सा साझा करता है लेकिन वे लगभग 25% समुद्री जीवन के लिये आवास प्रदान करते हैं। 
  • वे गहरे समुद्र के प्रजातियांँ हैं, जिनमें अधिकांश प्रजातियांँ 200 मीटर से 1000 मीटर के बीच पाई जाती हैं। 
  • वे उथले तटीय जल में भी होते हैं। 

अध्ययन का महत्त्व: 

  • यह भारतीय जल क्षेत्र से फ्लेबेलिड्स की उपरोक्त चार नई दर्ज की गई प्रजातियों के भौगोलिक वितरण श्रेणियों के वैश्विक मानचित्रण के साथ रूपात्मक विशेषताओं को दर्शाता है। 
  • भारत में हार्ड कोरल (Hard Corals) का अधिकांश अध्ययन रीफ-बिल्डिंग कोरल पर केंद्रित है, जबकि नॉन-रीफ-बिल्डिंग कोरल के बारे में अधिक जानकारी नहीं है। ये नए रिकॉर्ड नॉन-रीफ-बिल्डिंग, सोलिटरी कोरल के बारे में जानकारी उपलब्ध करते हैं। 
  • वर्तमान में रिपोर्ट की गई सोलिटरी स्टोनी कोरल की चार प्रजातियांँ भारत के जैविक संसाधनों के राष्ट्रीय डेटाबेस को और अधिक संपन्न कर सकती हैं और इन अज्ञात और नॉन-रीफ़्स बिल्डिंग कोरल का पता लगाने के दायरे के विस्तार को  परिभाषित कर सकती हैं। 

प्रवाल: 

  • प्रवाल आनुवंशिक रूप से समान जीवों से बने होते हैं जिन्हें ‘पॉलीप्स’ कहा जाता है। इन पॉलीप्स में सूक्ष्म शैवाल होते हैं जिन्हें जूूजेंथलाई (Zooxanthellae) कहा जाता है जो उनके ऊतकों के भीतर रहते हैं। 
    • प्रवाल और शैवाल में परस्पर संबंध होता है। 
    • प्रवाल जूूजेंथलाई को प्रकाश संश्लेषण हेतु आवश्यक यौगिक प्रदान करता है। बदले में जूूजेंथलाई कार्बोहाइड्रेट की तरह प्रकाश संश्लेषण के जैविक उत्पादों की प्रवाल को आपूर्ति करता है, जो उनके कैल्शियम कार्बोनेट कंकाल के संश्लेषण हेतु प्रवाल पॉलीप्स द्वारा उपयोग किया जाता है। 
    • यह प्रवाल को आवश्यक पोषक तत्त्वों को प्रदान करने के अलावा इसे अद्वितीय और सुंदर रंग प्रदान करता है। 
  • उन्हें "समुद्र का वर्षावन" भी कहा जाता है। 
  • प्रवाल दो प्रकार के होते हैं: 
    • कठोर, उथले पानी के प्रवाल। 
    • ‘सॉफ्ट’ प्रवाल और गहरे पानी के प्रवाल जो गहरे ठंडे पानी में रहते हैं। 

स्रोत- द हिंदू 

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