रैपिड फायर
ढोल
- 30 May 2025
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स्रोत: डाउन टू अर्थ
28 मई को विश्व ढोल दिवस के रूप में मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य ढोल (लुप्तप्राय एशियाई जंगली कुत्तों) के संरक्षण को बढ़ावा देना है, यह लुप्तप्राय प्रजाति वन पारिस्थितिकी तंत्र में शीर्ष परिभक्षियों के रूप में संतुलन बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- ढोल: ढोल (क्यूऑन अल्पाइनस ) जंगली कुत्ते हैं जो दक्षिणी और पूर्वी एशिया में मूल रूप से पाए जाते हैं, जिनमें भारत के पश्चिमी घाट (जैसे वलपराई पठार) भी शामिल हैं।
- विशेषताएँ: ढोलों का फर भूरा, पूँछ काली, अंबर आईज़ (भूरी आँख) और कान सीधे व गोल होते हैं तथा ये 2 से 25 के समूह में रहते हैं।
- आवास: जंगलों, झाड़ियों और ऊँचे पर्वतीय मैदान में पाए जाते हैं।
- भारत में ढोल तीन मुख्य क्षेत्रों में पाए जाते हैं, अर्थात् पश्चिमी और पूर्वी घाट, मध्य भारतीय परिदृश्य एवं पूर्वोत्तर भारत।
- आहार और शिकार: ढोल मांसाहारी होते हैं जो 3-5 के समूह में मिलकर शिकार करते हैं तथा भौंकने, गुर्राने एवं विशिष्ट रूप से सीटी बजाकर संवाद करते हैं, जिसके कारण उन्हें "सीटी बजाने वाले कुत्ते (व्हिसलिंग डॉग्स)" भी कहा जाता है।
- ढोलों के जबड़े में इतनी ताकत नहीं होती कि वे अपने शिकार को आसानी से काट सकें, इसलिये ढोलों का झुंड शिकार को जीवित ही खा जाता है।
- प्रजनन: एक झुंड में आमतौर पर एक प्रमुख एकलपत्नी प्रजनन (मनागमस ब्रीडिंग) जोड़ा होता है, जबकि गैर-प्रजनन सदस्य भोजन लाकर और पिल्लों की देखभाल करके सहयोग करते हैं।
- संरक्षण की स्थिति:
- IUCN: लुप्तप्राय (Endangered)
- वन्यजीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES): परिशिष्ट II
- वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 [Wildlife (Protection) Act] के तहत अनुसूची II में सूचीबद्ध।
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