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आदिचनल्लूर

  • 12 Dec 2025
  • 10 min read

स्रोत: टीएच

मद्रास उच्च न्यायालय ने भारत के सबसे महत्त्वपूर्ण लौहयुगीन पुरातात्त्विक स्थलों में से एक, आदिचनल्लूर में या उसके आसपास किसी भी प्रकार के रेत खनन पर सख्त रोक लगा दी है।

  • आदिचनल्लूर भारत के सबसे बड़े और सबसे महत्त्वपूर्ण लौहयुगीन-महापाषाणिक कलश शवाधन स्थलों में से एक है, जो तमिलनाडु के थूथुकुडी ज़िले में थामिरबरानी नदी के किनारे स्थित है।
  • भौतिक संस्कृति: इस संस्कृति को एफ. जगोर द्वारा वर्ष 1876 में सर्वप्रथम खोजा गया और बाद में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा किये गए उत्खनन के दौरान इस स्थल से मृद्भांड, लोहे के औजार, काँसे के पात्र, सोने के आभूषण/मुकुट, मनके और मानव कंकाल अवशेषों वाले शवाधन प्राप्त हुए हैं।
  • सांस्कृतिक महत्त्व: यह स्थल संगम साहित्य में वर्णित कलशों (ताली), शवाधान में दफनाई गई वस्तुओं और लौह युग की अंत्येष्टि प्रथाओं के विवरण से काफी हद तक मेल खाता है, जो प्रारंभिक तमिल सांस्कृतिक परंपराओं के मजबूत पुरातात्त्विक प्रमाण प्रदान करता है।
  • कलश शवाधान प्रणाली: इस प्रणाली में मृतकों को बड़े कलशों (अंत्येष्टि पात्रों) के अंदर रखा जाता है और उन्हें सावधानीपूर्वक खोदे गए गड्ढों में, अक्सर शवाधान में रखी अन्य वस्तुओं के साथ  दफनाया जाता है।

और पढ़ें: लौह युग और शहरीकरण

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