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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

आय असमानता पर विमुद्रीकरण के प्रभाव

  • 20 Jun 2017
  • 4 min read

संदर्भ
अपरंपरागत मौद्रिक नीति के प्रभाव तथा लोगों की आय असमानता के बीच संबंधों को समझना  थोड़ा मुश्किल है। उदाहरणस्वरूप अध्ययनों से पता चला है कि अपरंपरागत विस्तारवादी मौद्रिक नीतियों, जैसे अमेरिका की “क्वांटिटेटिव इजिंग” (Quantitative Easing) ने आय असमानता को कम करने में एक सकारात्मक भूमिका निभाई है। वहीं जापान की मौद्रिक नीति व आय असमानताओं के बीच असंगत संबंध पाया गया। नवंबर 2016 के विमुद्रीकरण जो अपरंपरागत मौद्रिक नीति का ही एक रूप था, का उद्देश्य काला धन और भ्रष्टाचार को कम करना तथा आतंकवाद जैसी समस्याओं से मुकाबला करना था। अत: यह देखना होगा कि विमुद्रीकरण ने आय असमानता पर क्या प्रभाव डाला है।

महत्वपूर्ण बिंदु

  • विमुद्रीकरण के कारण अर्थव्यवस्था में तरलता की कमी होने से खपत में भी कमी आ गई, फलस्वरूप इसने विकास गति को प्रभावित किया।
  • भारत में असंगठित क्षेत्र कुल रोज़गार में 82.4% तथा सकल मूल्य वर्धन (GVA) में 45% का योगदान करता है। यह अत्यधिक नकदी गहन क्षेत्र है। इस क्षेत्र मे काफी कम श्रमिक संगठन होने के कारण श्रमिक बाज़ारों में लोचशीलता की भी कमी पाई जाती है। यही कारण है कि संगठित और असंगठित क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों के बीच आय में  असमानता पाई जाती है।
  • विमुद्रीकरण ने रोज़गार सृजन पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाला है, विशेषकर अनेक सूक्ष्म, मध्यम और छोटे उद्यमों (MSMEs) पर।
  • विमुद्रीकरण ने गरीबों की परिसंपत्ति जिसमें नकदी का काफी उच्च अनुपात होता है, पर ज़्यादा प्रभाव नहीं डाला है, क्योंकि 97% नकदी 30 दिसंबर, 2016 तक बैंकिंग प्रणाली में वापस आ गई थी।
  • भारत में बचत पुनर्वितरण पर विमुद्रीकरण के प्रभाव को घरेलू ऋण के मिश्रण एवं प्रवृत्तियों के विश्लेषण के बाद समझा जा सकता है।
  • हाल के आँकड़े दिखाते हैं कि विमुद्रीकरण के कारण समग्र विकास और निजी निवेश में गिरावट आई है, लेकिन सरकारी क्षेत्र के 35.6% योगदान ने विकास गति को सँभाले रखा है।
  • हालाँकि एक आशा की किरण यह है कि हाल ही में प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय 1,16,888  रुपए से बढ़कर 1,18,395 रुपए  हो गई है।
  • आने वाले समय में ‘राष्ट्रीय आर्थिक प्रायोगिक अनुसंधान परिषद’ (National Council of Applied Economic Researc) द्वारा जब घरेलू आय और व्यय संबंधी आँकड़े प्रकाशित किये जाएंगे, तब विमुद्रीकरण के प्रभाओं का ज़्यादा अच्छे से आकलन हो सकेगा।
  • अत: सरकार ही केवल ‘आय रचना चैनल’ (income composition channel) के माध्यम से गरीबों की आय पर विमुद्रीकरण के संभावित प्रभावों को कम कर सकती है।

निष्कर्ष
इस असमानता के चक्रीय प्रभावों को कम करने के लिए एक विस्तारवादी राजकोषीय नीति के साथ-साथ श्रम बाज़ारों में सुधार करने की आवश्यकता है।

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