इंदौर शाखा: IAS और MPPSC फाउंडेशन बैच-शुरुआत क्रमशः 6 मई और 13 मई   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


शासन व्यवस्था

आवश्यक है हाथ से मैला ढोने (मैनुअल स्कैवेंजिंग) की प्रथा का उन्मूलन

  • 22 Nov 2017
  • 11 min read

 संदर्भ:

कई महत्त्वपूर्ण प्रावधानों की मौजूदगी और अनेक पहलों के बावज़ूद भारत में हाथ से मैला ढोने की प्रथा आज भी जारी है। दरअसल, यह प्रथा एक जाति विशेष से जुड़ी हुई है, जबकि संविधान का अनुच्छेद 46 कहता है कि राज्य समाज के कमज़ोर वर्गों मुख्य रूप से  अनुसूचित जाति और जनजाति की सामाजिक अन्याय से रक्षा करेगा और उन्हें हर तरह के शोषण का शिकार होने से बचाएगा।

क्या है मैनुअल स्कैवेंजिंग? (What is manual scavenging?)

  • किसी व्यक्ति द्वारा स्वयं के हाथों से मानवीय अपशिष्टों (human excreta) की सफाई करने या सर पर ढोने की प्रथा को हाथ से मैला ढोने की प्रथा या मैनुअल स्कैवेंजिंग (Manual scavenging) कहते हैं।
  • मैनुअल स्कैवेंजिंग की यह प्रथा प्राचीन काल से चली आ रही भारत की जाति व्यवस्था से संबंधित है, जिसमें यह माना जाता है कि यह तथाकथित निचली जातियों का कार्य है।
  • महत्त्वपूर्ण प्रावधानों की मौजूदगी और अनेक पहलों के बावजूद यह प्रथा क्यों कायम है यह जानने से पहले इस संबंध में किये गए उपायों के बारे में जानना आवश्यक है।

मैनुअल स्कैवेंजिंग के विरुद्ध नियम, कानून और पहल (Laws, regulations and schemes against manual scavenging)

  • मैनुअल स्कैवेंजर्स का रोज़गार और सूखे शौचालय निर्माण (निषेध) अधिनियम, 1993 (Employment of Manual Scavengers and Construction of Dry Latrines (Prohibition) Act, 1993)

► इस अधिनियम के तहत लोगों के मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोज़गार पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
►अर्थात् यह अधिनियम हाथ से मैला ढोने को रोज़गार के तौर पर प्रतिबंधित करता है।
► इस अधिनियम में हाथ से मैला साफ कराने को संज्ञेय अपराध मानते हुए आर्थिक दंड और कारवास दोनों ही आरोपित करने का प्रावधान है।
► यह अधिनियम सूखे शौचालयों के निर्माण को भी प्रतिबंधित करता है।

  • मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोज़गार का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 (Prohibition of Employment as Manual Scavengers and their Rehabilitation Act, 2013)

► यह अधनियम मैनुअल स्कैवेंजर्स के तौर पर किये जा रहे किसी भी कार्य या रोज़गार का निषेध करता है।
► यह हाथ से मैला साफ करने वाले और उनके परिवार के पुनर्वास की व्यवस्था भी करता है और यह ज़िम्मेदारी राज्यों पर आरोपित करता है।
► इस अधिनियम के तहत मैनुअल स्कैवेंजर्स को प्रशिक्षण प्रदान करने, ऋण देने और आवास प्रदान करने की भी व्यवस्था की गई है।

  • मैनुअल स्कैवेंजर्स के पुनर्वास के लिये स्व-रोज़गार योजना (Self-Employment Scheme for the Rehabilitation of Manual Scavengers

► इस योजना के तहत मैनुअल स्केवेंजर्स के लिये 40,000 रुपए की एकल नकद सहायता प्रदान की जाती है।
► इसमें आजीविका परियोजनाएँ आरंभ करने के लिये रियायती दरों पर 15 लाख रुपए तक के ऋण की व्यवस्था की गई है।
► इस योजना में 3,25,000 रुपए तक की क्रेडिट से जुड़ी पूंजी सब्सिडी (Credit linked capital subsidy) की भी व्यवस्था की गई है।

निषेध प्रावधानों के बावजूद अभी भी क्यों जारी है यह प्रथा?

  • शौचालयों का विसंगतियुक्त निर्माण (Flawed structure of toilets)

► देश में बड़ी संख्या में शौचालय ऐसे हैं, जहाँ हाथ से अपशिष्ट हटाने की ज़रूरत है।
► यहाँ तक कि स्वच्छ भारत अभियान के तहत बनाए जा रहे शौचालयों के गड्ढे इतने छोटे हैं कि ये जल्दी ही मानवीय अपशिष्टों से भर जाएंगे।
► ऐसे में शौचालयों का विसंगतियुक्त निर्माण इस प्रथा के जारी रहने का एक बड़ा कारण है।

  • राज्य सरकारों की उदासीनता (Disinterest of state governments) 

► कानूनी दायित्वों के बावजूद, राज्य सरकारें उन शौचालयों को तोड़ने और पुनर्निर्माण करने के लिये उत्सुक नहीं हैं, जहाँ हाथ से मैला साफ करने की ज़रूरत पड़ती है।
► राज्य सरकारें "सफाई कर्मचारी" के तौर पर नियुक्त कर्मियों से यह काम कराती हैं। दरअसल, मैनुअल स्कैवेंजर्स को परिभाषित करने को लेकर भी स्पष्टता का अभाव है।
► मानवीय अपशिष्टों से भरे नाले की सफाई करने वाला एक सफाई कर्मचारी मैनुअल स्कैवेंजर ही है, लेकिन सरकारें ऐसा नहीं मानती हैं।

  • तकनीकी उन्नयन की कमी (Lack of technical upgradation)

► चूँकि मानवीय अपशिष्टों के निपटान की कोई उचित व्यवस्था नहीं है, इसलिये भारतीय रेल ‘मैनुअल स्कैवेंजर्स’ का सबसे बड़ा नियोक्ता है।
► कुछ ट्रेनों की छोड़ दें तो रेलवे अपने 80,000 शौचालयों और 1.15 लाख किलोमीटर लम्बे रेलवे ट्रैक को साफ रखने के लिये किसी भी तकनीक का इस्तेमाल नहीं करती है।

  • आजीविका का संकट (Reluctant to leave present occupation)

► यह एक कड़वा सच है कि यह अमानवीय प्रथा हज़ारों लोगों की आजीविका का साधन भी है।
► बहुत से मैनुअल स्कैवेंजर्स इस डर से यह काम नहीं छोड़ना चाहते कि कहीं उनकी आजीविका ही संकट में न पड़ जाए।
►पुनर्वास कार्यक्रमों के ज़रिये उनकी इन चिंताओं का समाधान किया जा सकता है, लेकिन योजनाओं के वास्तविक धरातल पर अमल न हो पाने की वज़ह से ऐसा नहीं हो पा रहा है।

  • प्रशासनिक जवाबदेही  का अभाव: (Lack of administrative accountability)

► यदि कोई प्रशासन इस प्रथा पर अंकुश नहीं लगा पाता तो उसके लिये क्या दंडात्मक प्रावधान हों, इस संबंध में वर्ष 2013 का अधिनियम कुछ नहीं कहता है।
► एक ड्राफ्ट बिल के ज़रिये यह व्यवस्था की गई है कि ऐसे मैनुअल स्कैवेंजर्स जो मास्क, दस्ताने और विशेष सूट का इस्तेमाल करते हैं उन्हें मैनुअल स्कैवेंजर्स न माना जाए।
► लेकिन प्रशासन की उदासीनता की वज़ह से उन्हें ये सामग्रियाँ प्राप्त नहीं हो पाती हैं।

आगे की राह

  • सामाजिक जागरूकता (Social awareness):

► सामुदायिक भागीदारी और जागरूकता के अभाव में इस अमानवीय प्रथा को समाप्त नहीं किया जा सकता है। अतः सामाजिक जागरूकता के ज़रिये सरकार को अनुकूल माहौल बनाने की कोशिश करनी चाहिये।
► दरअसल, भारत में स्वच्छता से जुड़े मसलों पर बातचीत बेहद कम हुई है, जबकि शौचालयों का निर्माण बहुत बड़े स्तर पर किया जा रहा है।
► अनेक सामाजिक शोधों के उपरांत यह निष्कर्ष निकाला गया है कि सामाजिक विज्ञान और व्यवहार परिवर्तन में गहरा संबंध है, खासतौर पर शौचालय उपयोग के मामले में।

  • उचित निर्माण (Appropriate construction)

► शौचालयों की संख्या से अधिक, उसके डिज़ाइन का सामाजिक और भूवैज्ञानिक लिहाज़ से सभी वर्गों के अनुकूल होना आवश्यक है।
► शौचालयों के निर्माण में निर्माण की गुणवत्ता, उन्नत रख-रखाव, सीवेज प्रबन्धन प्रणाली और पानी की उपलब्धता का ध्यान रखना अत्यंत ही आवश्यक है।
► शौचालयों के निर्माण के दौरान दो गड्ढों का निर्माण कराना चाहिये। यदि एक गड्ढा भर गया तो दूसरे गड्ढे की सहायता से शौचालय बंद नहीं होगा।
► जबकि पहले गड्ढे में अपशिष्ट आसानी से अपघटित हो जाएगा, जिसे आसानी से साफ किया जा सकता है। ग्रामीण इलाकों में यह युक्ति कारगर साबित हो सकती है।

  • मैनुअल स्कैवेंजर्स का पुनर्वास एवं वैकल्पिक रोज़गार (Rehabilitation and employment)

► इस प्रथा पर तभी लगाम लगाई जा सकती है जब मैनुअल स्कैवेंजर्स यानी हाथ से अपशिष्ट उठाने वालों के लिये पुनर्वास एवं वैकल्पिक रोज़गार की व्यवस्था की जाए।
► दरअसल, केवल योजनाएँ बनाना ही पर्याप्त नहीं है। जाति आधारित पेशा जैसे विचारों को खत्म करना होगा और एक ऐसे वातावरण का निर्माण करना होगा जिसमें कि इनका पुनर्वास हो सके और प्रशिक्षण प्राप्त करने के उपरांत इन्हें रोज़गार मिल सके।

  • महिलाओं की सामाजिक स्थिति में सुधार (Improving women’s social status)

► आँकड़ों से पता चलता है कि लगभग 98 प्रतिशत मैनुअल स्कैवेंजर्स महिलाएँ हैं।
► हालाँकि इस समस्या का सामाजिक पक्ष लैंगिक भेदभाव कम जबकि जातिगत भेदभाव अधिक है।
► फिर भी महिलाओं की सामाजिक स्थिति यदि सुधरती है तो कुछ सुधार तो अवश्य आएगा।

निष्कर्ष

गौरतलब है कि महात्मा गाँधी और डॉ. अम्बेडकर दोनों ने ही हाथ से मैला ढोने की प्रथा का पुरजोर विरोध किया था। यह प्रथा संविधान के अनुच्छेद 15, 21, 38 और 42 के प्रावधानों के भी खिलाफ है। आज़ादी के 7 दशकों बाद भी इस प्रथा का जारी रहना देश के लिये शर्मनाक है और जल्द से जल्द इसका अंत होना चाहिये।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2