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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

किसान नीति-निर्माताओं से क्या चाहते हैं ?

  • 13 Feb 2017
  • 11 min read

पृष्ठभूमि

भारत में कृषि लाभ का व्यवसाय नहीं है| यही कारण है कि देश में किसान-आत्महत्याओं का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है| वर्ष 2012-13 में एनएसएसओ (National Sample Survey Organization) द्वारा प्रस्तुत किये गए “कृषि से संबद्ध परिवारों की स्थिति का आकलन करने संबंधी सर्वेक्षण” (Situation Assessment Survey of Agricultural Households) से प्राप्त आँकड़ों के अनुसार,  एक हेक्टेयर अथवा इससे कम ज़मीन वाले किसानों की मासिक आय औसतन 5,247 रुपए के करीब होती है, जिससे उनके घरेलू खर्चों की पूर्ति भी सही से नहीं हो पाती है| ऐसी स्थिति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आगामी पाँच सालों में किसानों की आय को बढ़ाकर दोगुनी करने की महत्त्वाकांक्षा एक चुनौतीपूर्ण कार्य है|

  • ध्यातव्य है कि इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु बजट में बहुत से विकल्प सुझाए गए हैं| जिनमें किसानों को सीधे बाज़ारों से संबद्ध करने, अनुबंध खेती के लिये किसानों को प्रोत्साहित करने तथा ई-मंडी के तहत अधिक से अधिक निवेश को बढ़ावा देने इत्यादि कार्य किये जा रहे हैं| हालाँकि इन सभी लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारों को भी बराबर का सहयोग करना होगा|
  • इस समस्या के समाधान हेतु जब किसानों से बातचीत की गई तो उक्त विषय से संबंधित बहुत से अन्य पहलू भी सामने आए| इन सभी पहलुओं का विश्लेषणात्मक अध्ययन इस लेख में दिया गया है|

लाभकारी मूल्य 

  • गौरतलब है कि राजस्थान के बूँदी ज़िले के लोहारपुर की रहने वाली सावित्रीबाई कुछ वर्ष पहले ही समृद्धि महिला निर्माता कंपनी (Samriddhi Mahila Producer Company) में शामिल हुई थीं| परन्तु वर्तमान में वह इस कंपनी की अध्यक्ष होने के साथ-साथ अपने क्षेत्र के कईं स्वयं सहायता समूहों को इस कंपनी से संबद्ध करने संबंधी कार्यों को करने तथा उनके उत्पादों के लिये एक बेहतर मूल्य उपलब्ध कराने संबंधी कार्य करती हैं|
  • “बिजनेस लाइन” समाचार पत्र से हुई बातचीत में सावित्रीबाई ने बताया कि वर्तमान समय में, किसान अपनी फसलों को एजेंट द्वारा तय किये गए मूल्यों पर बेचने के लिये मज़बूर है| यदि भारत सरकार किसानों की फसलों के लिये एक न्यूनतम मूल्य निर्धारित करती है तो इससे किसानों को बहुत अधिक मदद प्राप्त होगी|
  • इसके लिये बेहतर होगा कि सरकार द्वारा किसानों को उनकी फसल-लागत का दोगुना मूल्य उपलब्ध कराया जाना चाहिये ताकि कृषि को लाभ का व्यवसाय बनाया जा सके|
  • वर्ष 2006 में, किसानों के राष्ट्रीय आयोग (National Commission for Farmers -NCF) के अध्यक्ष एमएस स्वामीनाथन द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य के संबंध में प्रस्तुत सिफारिशों के अनुसार, सरकार को न्यूनतम समर्थन मूल्य के रूप में फसल के उत्पादन में लगने वाली कुल लागत के कम से कम 50 प्रतिशत अधिक मूल्य का भुगतान करना चाहिये|
  • ध्यातव्य है कि वर्ष 2014 के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख मुद्दों में इन सिफारिशों को भी शामिल किया गया था| हालाँकि इन सिफारिशों के अनुपालन के विषय में अभी तक कोई विशेष कदम नहीं उठाए गए हैं|
  • गौरतलब है कि वर्ष 2015 में, सीएफए (Consortium of Farmers Associatio-CFA) द्वारा दायर की गई एक पीआईएल (Public Interest Litigation) के तहत इन सभी सिफारिशों को लागू न किये जाने संबंधी प्रश्न  के उत्तर में सरकार द्वारा यह स्पष्ट किया गया था कि इस तरह का कोई भी निर्णय बाज़ार की मौजूदा व्यवस्था को असंतुलित कर सकता है|
  • उल्लेखनीय है कि नीति आयोग द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price-MSP) को 23 फसलों के लिये घोषित किया गया है हालाँकि व्यवहारिक रूप से यह केवल दो फसलों के संबंध में लागू है| इतना ही नहीं इन दो फसलों के संबंध में भी केवल कुछ ही राज्यों में इसका उचित लाभ प्राप्त होता है|

स्वामीनाथन द्वारा प्रस्तुत सिफारिशें

  • ध्यातव्य है कि स्वामीनाथन द्वारा प्रस्तुत सिफारिशों के अंतर्गत इस बात पर विशेष बल दिया गया था कि एक छोटे किसान को प्राप्त होने वाले लाभ तथा उसकी उत्पादन क्षमता के आधार पर न्यूनतम समर्थन मूल्य की गणना की जानी चाहिये|
  • इसके अतिरिक्त किसानों को लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करने के लिये उन्हें अनुबंध कृषि की ओर प्रोत्साहित किया जाना चाहिये| इसका लाभ यह होगा कि किसानों को उनकी फसल के एक निश्चित मूल्य का भुगतान किये जाने के साथ-साथ कृषि-आदानों की गुणवत्ता को बढ़ावा देने पर भी बल दिया जा सकेगा|
  • हाल ही में 1 फरवरी को पेश किये गए बजट में अनुबंध कृषि से संबंधित एक मॉडल कानून तैयार करने तथा राज्यों द्वारा इसे स्वीकार किये जाने के विषय में भी चर्चा की गई है|
  • ध्यातव्य है कि भारत सरकार द्वारा किसानों की आय में वृद्धि करने हेतु कुछ आवश्यक पहलों को भी शुरू किया गया है|
  • उदाहरण के लिये, ई-नैम (electronic National Market- eNAM) के माध्यम से किसानों को सीधे मंडी से जोड़ने का प्रयास किया गया है ताकि किसानों को बिना किसी बिचौलिये के अपनी फसल बेचने में आसानी हो सके| हालाँकि अभी इस पहल के सटीक अनुपालन में कुछ समस्याएँ आ रही हैं|

जोखिम मूल्य को कवर करना

  • ध्यातव्य है कि फसलों के मूल्य जोखिम को कम करने के लिये कमोडिटी डेरिवेटिव्स बाज़ार (commodity derivatives market) का उपयोग एक उपकरण के रूप में किया जा सकता है| 
  • हालाँकि इसका एक कारण यह भी है कि किसानों में अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता का अभाव हैं, इसके लिये आवश्यक है कि किसानों को बैंकों से जुड़ी सभी बुनियादी जानकारियों के साथ-साथ प्रौद्योगिकी, तथा सूसुचना साधनों के प्रयोग संबंधी प्रारम्भिक जानकारी अवश्य  होनी चाहिये|
  • इसके अतिरिक्त मूल्यों के उतार-चढ़ाव के साथ-साथ किसानों के पास अपनी फसल को बड़ी मंडियों में बेचने के अवसरों के साथ-साथ अनुबंध कृषि के तहत सुरक्षा संबंधी प्रावधानों का भी प्रायः अभाव होता है|
  • हालाँकि यह एक ऐसी स्थिति होती है जब किसान उत्पादक कम्पनियाँ किसानों की मदद करने की राह में सबसे उपयोगी साधन बनकर उभरती है|
  • ऐसी ही एक कंपनी है एनसीडीईएक्स (NCDEX)| यह देश की सबसे बड़ी कृषि कमोडिटी एक्सचेंज कंपनी (Agri Commodity Exchange) है, यह कंपनी केवल कुछ कृषिगत वस्तुओं के अनुबंध लेती है, स्पष्ट है कि यह इसकी सीमा को व्यक्त करता है|
  • यहाँ यह स्पष्ट कर देना अत्यंत आवश्यक है कि कृषि से संबंधित सभी अनुबंधों के संबंध में अंतिम निर्णय करने का अधिकार सेबी (Securities and Exchange Board of India) के पास होता है|
  • ध्यातव्य है कि पिछले वर्ष सितंबर में, अधिसूचित वस्तुओं की सूची जारी की गई थी| इस सूची में 91 वस्तुओं को शामिल किया गया था| इन वस्तुओं में धान, बाजरा, ज्वार, अरहर, उरद, कॉफ़ी, चाय, के साथ-साथ अण्डों तथा आलू को भी सम्मिलित किया गया था|

प्रौद्योगिकी तथा बुनियादी ढाँचा

  • किसानों की आय में बढ़ोतरी करने हेतु आवश्यक है कि छोटे किसानों की उपज को भी भंडार ग्रहों तथा कोल्ड स्टोरों में सुरक्षित जाने हेतु विशेष प्रबंध किये जाने चाहिये| ताकि उनकी फसल को खराब होने से बचाया जा सके|
  • वर्तमान समय में, फलों तथा सब्जियों की खेती में किसानों की रुचि में कमी आई है| इसका कारण संभवतः इनके भंडारण हेतु पर्याप्त सुविधाओं की कमी होना है, जिसके कारण फल तथा सब्जी उत्पादकों की आय में निरंतर कमी आती जा रही है| हालाँकि, यह ऐसा क्षेत्र है जिसमें यदि थोड़ा सा भी सकारात्मक प्रयास किया जाए तो किसानों की आय में आसानी से वृद्धि की जा सकती है|
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