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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

आसियान से क्या सीख सकता है सार्क?

  • 25 Nov 2017
  • 9 min read

संदर्भ

  • दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संगठन (The Association of Southeast Asian Nations- ASEAN) जिसे हम आसियान के नाम से भी जानते हैं, दुनिया के बड़े क्षेत्रीय अंतर-सरकारी संगठनों में से एक है।
  • वर्ष 1967 में आसियान ने अपने सफर की शुरुआत की और उस समय से ही यह दक्षिण-पूर्व एशिया में अंतरराज्यीय व्यापार और कनेक्टिविटी (intraregional trade and connectivity) को बढ़ावा देता आया है।
  • दरअसल, हम जब भी इस क्षेत्र में व्यापार और कनेक्टिविटी की बात करते हैं तो एक और क्षेत्रीय संगठन ‘सार्क’ (South Asian Association for Regional Cooperation-SAARC) का जिक्र अवश्यंभावी हो जाता है, जिसकी यात्रा 1985 में आरंभ हुई।
  • एक ओर आसियान जहाँ अपने उदेश्यों को प्राप्त करने में सफल रहा है वहीं सार्क क्षेत्रीय राजनीति, सदस्य देशों की आपसी प्रतिद्वंद्विता और उनके बीच व्याप्त अविश्वास के कारण अस्थिर रहा है।

सार्क की अस्थिरता के कारण 

  • भारत पाकिस्तान संबंधों का बेहतर न हो पाना

► भारत और पाकिस्तान के बीच कूटनीतिक सहमति के अभाव और सैन्य संघर्ष के कारण दक्षिण-पूर्व क्षेत्रीय सहयोग कमज़ोर हुआ है।
► विदित हो कि उरी आतंकवादी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान में होने वाले 19वें सार्क शिखर सम्मेलन का बहिष्कार किया था।
► बांग्लादेश, अफगानिस्तान और भूटान ने भी भारत के पक्ष में अपनी सहमति जताई और अंततः सम्मलेन ही निरस्त हो गया था।

  • क्षेत्रीय व्यापार की चिंताजनक स्थिति

► सार्क देशों के बीच क्षेत्रीय व्यापार में न के बराबर प्रगति हुई है। विदित हो कि सदस्य देशों के बीच आपसी व्यापार उनके कुल व्यापार का 3.5% ही रहा है।
► दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार संघ (South Asian Free Trade Association) के तहत की गई पहलें अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में असफल रही हैं।

  • बेहतर कनेक्टिविटी का अभाव

► इस क्षेत्र में व्यापार के मोर्चे पर यदि प्रगति नहीं हुई है तो इसका एक बड़ा कारण कनेक्टिविटी का बेहतर न हो पाना है।
► बीबीआईएन मोटर वाहन समझौता (BBIN Motor Vehicle Agreement) जैसी उप-क्षेत्रीय पहलें रुकी पड़ी हुई हैं।
► सार्क की वीज़ा प्राप्ति में राहत योजना (SAARC Visa Exemption Scheme) का लाभ केवल कुछ गणमान्य व्यक्तियों को ही प्राप्त है।
► सार्क देशों में बुनियादी ढाँचे की खस्ता हालत के कारण भी बेहतर कनेक्टिविटी सुनिश्चित नहीं हो पाई है।
इन चुनौतियों का सामना करने के लिये आसियान से सार्क क्या सीख सकता है; यह जानने से पहले ‘बीबीआईएन मोटर वाहन समझौता क्या है’ यह देख लेते हैं:

बीबीआईएन मोटर वाहन समझौता क्या है?

  • बीबीआईएन मोटर वाहन समझौते का अर्थ है भूटान, बांग्लादेश, इंडिया और नेपाल मोटर वाहन समझौता।
  • यदि यह समझौता अमल में आता है तो इसमें शामिल देश ट्रकों तथा अन्य कॉमर्शियल वाहनों को एक-दूसरे के राजमार्गों पर चलने की इज़ाज़त देंगे। 
  • यह एक क्षेत्रीय उप-समूह है जिससे ये चार देश एक-दूसरे के यहाँ अपनी पहुँच को सुगम (ease of access among the four countries) बनाएंगे।

क्यों आगे नहीं बढ़ पाई है यह पहल?

  • वर्ष 2017 के आरंभ में भूटान द्वारा घोषणा की गई कि वह बीबीआईएन मोटर वाहन समझौते को आगे बढ़ाने को लेकर सहमत नहीं है।
  • दरअसल, भूटान ने यह कहते हुए आगे बढ़ने से इनकार कर दिया कि इस पहल से उसके राजमार्गों को अतिरिक्त वाहनों का बोझ सहना पड़ेगा, जिससे वायु प्रदूषण में वृद्धि होगी।
  • भूटान के इस निर्णय के बाद अब विकल्प यह है कि या तो भूटान की सहमति की प्रतीक्षा की जाए या फिर ‘बीबीआईएन’ से एक ‘बी’ यानी भूटान को निकालकर ‘बीआईएन’ (बांग्लादेश, इंडिया और नेपाल) के साथ आगे बढ़ा जाए।

आसियान से क्या सीखे सार्क?

  • सीमित मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना

► आसियान ने अपने संचालन के आरंभिक वर्षों के दौरान कुछ विशेष मुद्दों पर ही ध्यान केन्द्रित किया।
► एक बार तय लक्ष्यों की प्राप्ति के उपरांत ही उसने अन्य क्षेत्रों में कदम रखे। एक साथ सभी मोर्चों पर पहल कर रहे सार्क को इससे सीख लेनी चाहिये।

  •  परस्पर सहयोग को बढ़ावा देना

► आपसी विवादों का सौहार्द्रपूर्ण समाधान प्रस्तुत करना आसियान की सफलता का एक बड़ा कारण है।
► सार्क को भी चाहिये कि सदस्य देशों के  विवादों के निपटारे के लिये शांतिपूर्ण तरीके अपनाए।

  • व्यापार को बढ़ावा देना

► व्यापार को बढ़ावा देने के लिये आसियान ने आर्थिक विकास और आधुनिकीकरण को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित किया है।
► अंतरराज्यीय व्यापार को बढ़ावा देने के उद्देश्य से इसने ‘आसियान व्यापक निवेश समझौते’ (ASEAN Comprehensive Investment Agreement- ACIA) की व्यवस्था की है।
► सार्क को भी अपने नियमों को उदार बनाना होगा और सीमा-पार से होने वाले निवेश का सरंक्षण सुनिश्चित करना होगा।

  • बेहतर कनेक्टिविटी सुनिश्चित करना

► गौरतलब है कि आसियान के सदस्य देश अब अपने-अपने यहाँ प्रवेश के नियमों में ढील देने के लिये सहमत हो गए हैं।
► दक्षिण चीन में स्थित कुनमिंग को सिंगापुर से रेलमार्ग द्वारा जोड़ने की कवायद भी आरंभ हो गई है।
► सार्क को इनसे सबक लेते हुए बीबीआईएन मोटर वाहन समझौते को अमल में लाने के पुरज़ोर प्रयास करने होंगे।

आगे की राह

  • सार्क देशों में उप-क्षेत्रीय संगठन बनाने की आम प्रवृति देखी गई है। उन्हें चाहिये कि क्षेत्रीय एकता की उपेक्षा करने वाली इस प्रकार के पहलों से दूर रहें।
  • बिम्सटेक (Bay of Bengal Initiative for Multi-Sectoral Technical and Economic Cooperation- BIMSTEC) जैसी उप-क्षेत्रीय पहलों का गठन करके पाकिस्तान को अलग-थलग करने का भारत का प्रयास सफल भी होता है तो सार्क को उसकी कीमत चुकानी होगी।
  • हमें यह भी समझना होगा कि एक आर्थिक और राजनैतिक रूप से सशक्त पाकिस्तान भारत के ही हित में है। अतः  द्विपक्षीय शक्ति संघर्ष सार्क की प्रगति की राह में बाधक नहीं बनना चाहिये।
  • जहाँ तक भूटान के बीबीआईएन छोड़ने का प्रश्न है तो अन्य सदस्यों को चाहिये कि जलमार्गों एवं नदियों के ज़रिये वैकल्पिक मार्ग तलाशें, जिससे कि भूटान की पर्यावरण-संबंधी चिंताओं को खत्म किया जा सके।
  • बेहतर कनेक्टिविटी आज विकास और समृद्धि की पहली शर्त है। ऐसे में भारत को चाहिये कि वह अपनी भौगोलिक विशेषताओं का लाभ उठाते हुए बेहतर कनेक्टिविटी सुनिश्चित करे। 
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