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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

वैश्विक समस्या बनने की ओर बढ़ रहा वेनेज़ुएला का संकट

  • 01 Feb 2019
  • 16 min read

संदर्भ


दक्षिण अमेरिकी देश वेनेज़ुएला इस समय अभूतपूर्व राजनीतिक संकट के दौर से गुज़र रहा है और यह वहाँ लंबे समय से जारी आर्थिक संकट की देन है। वेनेज़ुएला में राष्ट्रपति निकोलस मादुरो के इस्तीफे की मांग को लेकर हो रहे विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गए हैं। प्रमुख विपक्षी नेता जुआन गाइदो ने स्वयं को अंतरिम राष्ट्रपति घोषित कर दिया है। वेनेज़ुएला के इस संकट ने विश्व को भी दो हिस्सों में बाँट दिया है और धीरे-धीरे यह संकट वैश्विक रूप लेने की ओर अग्रसर है। अमेरिका और यूरोपीय देश वेनेज़ुएला के विपक्षी नेता के समर्थन में हैं तो रूस और चीन जैसे देश खुलकर मौजूदा राष्ट्रपति निकोलस मादुरो के पक्ष में हैं।

वेनेज़ुएला का वर्तमान संकट और दो खेमों में बंटा विश्व

  • वेनेज़ुएला में राष्ट्रपति निकोलस मादुरो के इस्तीफे की मांग को लेकर हो रहे विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गए हैं।
  • प्रमुख विपक्षी नेता गाइदो ने स्वयं को अंतरिम राष्ट्रपति घोषित कर दिया और उन्हें अमेरिका, कनाडा तथा ब्राज़ील, कोलंबिया एवं अर्जेंटीना जैसे ताकतवर पड़ोसी देशों का समर्थन मिल गया है।
  • यूरोपीय संघ ने भी वेनेज़ुएला में फिर से चुनाव कराए जाने की मांग की है और गाइदो के नेतृत्व वाली नेशनल असेंबली का समर्थन किया है।
  • रूस, चीन और कुछ अन्य देशों ने निकोलस मादुरो के समर्थन का एलान किया है। रूस ने चेतावनी दी है कि गाइदो की घोषणा से ‘अराजकता और रक्तपात’ का सीधा रास्ता खुल गया है।
  • चीन भी वेनेज़ुएला में किसी विदेशी मध्यस्थता का विरोधी है। चीन का कहना है कि वह वेनेज़ुएला की राष्ट्रीय संप्रभुता, स्वतंत्रता और स्थायित्व बचाए रखने के प्रयासों का समर्थन करता है।
  • तुर्की, ईरान, मेक्सिको, क्यूबा और कुछ अन्य देशों ने भी निकोलस मादुरो को समर्थन देने का एलान किया है। बोलीविया, अल-सल्वाडोर और निकारागुआ जैसे देशों से भी उन्हें समर्थन मिला है।
  • एक नवीनतम घटनाक्रम में रूस ने एक बार फिर संकट सुलझाने के लिये मध्यस्थता की पेशकश की है...और वेनेज़ुएला के सुप्रीम कोर्ट ने स्वघोषित राष्ट्रपति जुआन गाइदो के देश छोड़ने पर रोक लगा दी है।

भारत पर क्या असर पड़ेगा?

  • वेनेज़ुएला में राजनीतिक और आर्थिक संकट गहरा गया है, जिससे भारत की चिंता बढ़ गई है।
  • अमेरिका के अलावा केवल भारत ही ऐसा देश है जो वेनेज़ुएला को नकदी देकर तेल खरीदता है।
  • वेनेज़ुएला से तेल खरीदने के मामले में भारत शीर्ष देशों में से एक है।
  • भारत जिन देशों से तेल आयात करता है वेनेज़ुएला उनमें चौथा बड़ा देश है।
  • ईरान पर प्रतिबंधों के कारण पहले ही भारत को तेल आयात में मुश्किलों से गुज़रना पड़ रहा है।
  • अमेरिका द्वारा वेनेज़ुएला की तेल कंपनियों पर प्रतिबंध भारत की मुश्किलें बढ़ा सकता है।
  • भारत ने वेनेज़ुएला के साथ हाइड्रोकार्बन सेक्टर में सहयोग के लिये द्विपक्षीय समझौता भी किया है तथा वेनेज़ुएला के तेल क्षेत्र में निवेश भी किया है।
  • भारत में तेल उद्योग और फार्मास्यूटिकल इंडस्ट्री वेनेज़ुएला पर नज़र रखे हुए है, क्योंकि देर से भुगतान होने की वज़ह से उन्हें नुकसान होने के बावजूद भारत के दवा उद्योग के लिये वेनेज़ुएला महत्त्वपूर्ण बाज़ार है।
  • भारत को तेल की बिक्री से होने वाली आमदनी भी निकोलस मादुरो की सरकार के लिये विदेशी मुद्रा का बड़ा ज़रिया है। हालाँकि अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कच्चे तेल की गिरती कीमतों की वज़ह से यह कमाई अब गिरकर आधी रह गई है।

क्या है तात्कालिक संकट का कारण?

  • मार्च 2013 में राष्ट्रपति ह्यूगो शावेज़ की मृत्यु के बाद निकोलस मादुरो ने सत्ता संभाली।
  • अप्रैल 2013 में वेनेज़ुएला में हुए चुनाव में मादुरो ने विपक्ष को हराकर राष्ट्रपति पद पर कब्ज़ा किया।
  • दिसंबर 2015 में विपक्षी लोकतांत्रिक एकता गठबंधन ने वेनेज़ुएला की नेशनल असेंबली का नियंत्रण अपने हाथ में लिया।
  • मार्च 2016 में वहाँ के सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल असेंबली का कार्यभार अपने हाथों में लिया।
  • जुलाई 2017 में राष्ट्रपति मादुरो पर लोकतंत्र की हत्या करने का आरोप लगाया गया और वहाँ विधायी निकाय बनाने की मंज़ूरी देने के लिये जनमत संग्रह की बात कही गई।
  • मई 2018 में मादुरो दोबारा राष्ट्रपति बने। उनका यह दूसरा कार्यकाल है, जो 6 साल तक चलेगा।
  • विपक्ष ने चुनाव में धाँधली का आरोप लगाया। 14 लैटिन अमेरिकी देशों सहित अमेरिका और कनाडा ने चुनावों को मान्यता देने से इनकार कर दिया।
  • जनवरी 2019 में प्रमुख विपक्षी नेता जुआन गाइदो ने खुद को राष्ट्रपति घोषित किया। अमेरिका, कनाडा और यूरोपीय संघ ने मान्यता दी।

शावेज़ ने किये थे क्रांतिकारी बदलाव


दरअसल मादुरो के पूर्ववर्ती शावेज़ ने देश की बागडोर संभालने के बाद बहुसंख्यक जनता को मुख्यधारा में लाने के लिये सरकारी खज़ाने से ग़रीब वर्ग के स्वास्थ्य की सेहत, शिक्षा और बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने के लिये तेल कंपनियों के राजस्व में से बड़ी हिस्सेदारी मांगी और इन मदों पर खर्च किया। शावेज़ ने देश का राष्ट्रपति बनने के बाद कई कंपनियों का राष्ट्रीयकरण किया, टैक्स बढ़ाए और ग़रीबों के स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास के लिये सरकारी पैसे से खूब काम किया।सामाजिक क्षेत्र में किये गए उनके इन कामों ने शावेज़ को तेल के धनी देश का मसीहा जैसा बना दिया। अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में तेल की क़ीमतें जब तक चढ़ती रहीं तब तक तो सब ठीक रहा, लेकिन आज तेल की गिरती क़ीमतों ने वेनेज़ुएला के सामने मुसीबतों का पहाड़ खड़ा कर दिया है। वहाँ महँगाई आसमान पर है...रोज़मर्रा की ज़रूरी चीज़ों के लिये लोग परेशान हैं...और अर्थव्यवस्था की रीढ़ तेल का उत्पादन दिनों-दिन कम होता जा रहा है।

वेनेज़ुएला की आर्थिक बदहाली की कहानी

  • अथाह तेल से भरे वेनेज़ुएला में आज लोग महँगाई और ज़रूरी चीज़ों की कमी से त्रस्त हैं। वहाँ की अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है और बेरोज़गारी, अपराध तथा अराजकता का बोलबाला है।
  • अगस्त 2018 में वेनेज़ुएला सरकार ने आर्थिक संकट से बाहर आने के लिये अपनी मुद्रा बोलिवर का 96 प्रतिशत तक अवमूल्यन किया था।
  • तीन करोड़ की आबादी वाले वेनेज़ुएला का आर्थिक संकट 2014 में तब शुरू हुआ जब अंतर्राष्ट्रीय तेल बाज़ार में कच्चे तेल की कीमत दो तिहाई से भी कम हो गई।
  • इससे देश की आमदनी कम हो गई और बीते 3-4 साल से तेल बिक्री से होने वाली आमदनी में करीब 40 प्रतिशत की कमी देखने को मिली है।
  • इससे पहले 2016 के अंत में वेनेज़ुएला सरकार ने देश के सबसे अधिक मूल्य 100 बोलिवर के बैंक नोट को सिक्कों से बदलने का निर्णय लिया था।
  • वेनेज़ुएला सरकार ने यह फैसला लंबे समय से चली आ रही खाद्य और दूसरी बुनियादी चीज़ों की कमी और तस्करी की समस्या से निपटने के लिये लिया था।
  • इसका मकसद 'माफिया' पर रोक लगाना भी था ताकि वे काले धन को बाहर न भेज सकें।

वेनेज़ुएला के इस गंभीर आर्थिक और राजनीतिक संकट के दौर में यहाँ महँगाई की दर दुनिया में सबसे अधिक है। आज हालत कुछ ऐसी है कि वेनेज़ुएला में लोग थैलों में नोट भरकर बाज़ार जाते हैं और उन पैसों से ज़रूरत का मामूली सामान खरीद पा रहे हैं।

वेनेज़ुएला की वर्चुअल करेंसी ‘पेट्रो’


फरवरी 2018 में वेनेज़ुएला को आर्थिक बदहाली से बचाने के लिये राष्ट्रपति निकोलस मादुरो ने नई वर्चुअल करेंसी चलाई थी और वेनेज़ुएला के तेल, गैस, सोना तथा हीरा उद्योगों से इस नई मुद्रा का इस्तेमाल करने को कहा था। वेनेज़ुएला वर्चुअल करेंसी 'पेट्रो' की शुरुआत करने वाला दुनिया का पहला देश है। वेनेज़ुएला सरकार ने शुरुआती बिक्री के लिये ‘पेट्रो’ की 3.84 करोड़ इकाइयाँ पेश की थीं। 'पेट्रो' दुनिया की पहली सरकारी मान्यता प्राप्त क्रिप्टोकरेंसी है। तेल से होने वाली कमाई और मौजूदा मुद्रा बोलिवर की गिरती क़ीमतों के मद्देनज़र तब यह कहा गया था नई वर्चुअल करेंसी वेनेज़ुएला को पैसों के लेन-देन और रुकावटों से निपटने तथा आर्थिक तौर पर अपने पैरों पर खड़ा होने में मदद करेगी।

तेल पर आधारित है वेनेज़ुएला की अर्थव्यवस्था

  • लगभग दो दशक पहले ह्यूगो शावेज़ ने वेनेज़ुएला को तेल कंपनियों के फंदे से आज़ाद किया था, लेकिन अब वही वेनेज़ुएला बदहाली और मुश्किलों में घिरा है।
  • शावेज़ के उत्तराधिकारी मादुरो की नीतियों से देश आर्थिक मुश्किलों के साथ राजनीतिक परेशानी का दौर भी देख रहा है।
  • दरअसल, वेनेज़ुएला में तेल के अलावा और कोई घरेलू उद्योग नहीं है तथा सब चीज़ों के लिये आयात ही एकमात्र ज़रिया है।
  • तेल की कीमतें गिरने के बाद लोगों के पास पैसा नहीं है और उन्हें दवा तथा रोज़मर्रा की ज़रूरतों के लिये भी कठिनाई हो रही है।

वेनेज़ुएला में सऊदी अरब से ज़्यादा बड़ा तेल का भंडार मौजूद है, लेकिन यहाँ का तेल कुछ अलग किस्म का है, जिसे भारी पेट्रोलियम कहा जाता है। भारी पेट्रोलियम का शोधन करना अपेक्षाकृत कठिन है और इस पर लागत भी अधिक आती है। यही वज़ह है कि दूसरे देशों की तुलना में वेनेज़ुएला के कच्चे तेल की कीमत कम है। फिर भी वेनेज़ुएला के कुल निर्यात में 96 फीसदी हिस्सेदारी केवल तेल की है।


अमेरिका ने लगाए प्रतिबंध


वेनेज़ुएला के राष्ट्रपति निकोलस मादुरो पर विपक्ष को सत्ता सौंपने का दबाव बनाने के लिये एक अहम आर्थिक कदम उठाते हुए अमेरिका के ट्रंप प्रशासन ने वेनेज़ुएला की सरकारी तेल कंपनी PDVSA पर प्रतिबंध लगा दिया है। इस प्रतिबंध के तहत अमेरिकी अधिकार क्षेत्र में कंपनी की संपत्तियों को फ्रीज़ कर दिया जाएगा और कोई भी अमेरिकी इस कंपनी के साथ किसी भी तरह का कारोबार नहीं कर पाएगा।

अमेरिकी राजनयिकों को पहले दिया देश निकाला, फिर वापस लिया फैसला


वेनेज़ुएला ने अमेरिका के साथ संभावित टकराव को कम करने के लिये अमेरिकी राजनयिकों के देश छोड़ने के आदेश को फिलहाल स्थगित कर दिया है। दरअसल, अमेरिका ने वेनेज़ुएला में गहराते संकट में विरोधी नेता का पक्ष लेने का फैसला किया था। इसके बाद वेनेज़ुएला के राष्ट्रपति निकोलस मादुरो ने अमेरिका के साथ संबंध तोड़ने का फैसला किया था और ट्रंप प्रशासन के इस कदम को तख्तापलट की कोशिश करार दिया। बाद में उन्होंने राजनयिकों को 72 घंटे में देश छोड़कर जाने के अपने आदेश को वापस ले लिया।

सुरक्षा परिषद में गिरा अमेरिकी प्रस्ताव


वेनेज़ुएला के अंतरिम राष्ट्रपति के तौर पर जुआन गाइदो को संयुक्त राष्ट्र की मान्यता दिलाने का अमेरिकी प्रस्ताव सिरे नहीं चढ़ सका। सुरक्षा परिषद में रूस और चीन के वीटो के चलते यह प्रस्ताव आगे नहीं बढ़ सका। रूस और चीन के अतिरिक्त सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्य दक्षिण अफ्रीका और इक्वेटोरियल गिनी ने भी अमेरिकी प्रस्ताव का विरोध किया। 15 सदस्यीय सुरक्षा परिषद की बैठक अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोंपियो के अनुरोध पर बुलाई गई थी। अमेरिका ने यह कदम वेनेज़ुएला के विपक्ष के नेता को अंतरिम राष्ट्रपति के तौर पर मान्यता देने के बाद उठाया था।

बातचीत के लिये तैयार हैं मादुरो


राजनीतिक संकट के दौर से गुज़र रहे वेनेज़ुएला के राष्ट्रपति निकोलस मादुरो संकट के समाधान के लिये विपक्ष के साथ बातचीत के लिये तैयार हो गए हैं, परंतु आठ दिन के भीतर चुनाव चुनाव की घोषणा करने के अंतर्राष्ट्रीय अल्टीमेटम को उन्होंने खारिज कर दिया। मादुरो का कहना है कि वेनेज़ुएला की भलाई के लिये वह विपक्ष के साथ बातचीत करने को तैयार हैं और जल्द ही संसदीय चुनाव कराने के पक्ष में भी हैं, क्योंकि समस्याओं के राजनीतिक समाधान का यह सबसे बेहतर तरीका है। लेकिन उन्होंने समय से पहले राष्ट्रपति चुनाव कराने की संभावनाओं को खारिज करते हुए कहा कि इसके लिये तो 2025 तक इंतज़ार करना होगा। गौरतलब है कि मादुरो पिछले साल मई में राष्ट्रपति पद के लिये दोबारा चुने गए थे।

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