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सामाजिक न्याय

प्रतिबंधों का अनावरण: भारत में यौन शिक्षा का परिदृश्य

  • 04 Dec 2023
  • 18 min read

यह एडिटोरियल 30/11/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Social justice, sexual education, the need of our times” लेख पर आधारित है। इसमें चर्चा की गई है कि भारत को एक व्यापक एवं समावेशी यौन शिक्षा पाठ्यक्रम की आवश्यकता है जो लैंगिकता, यौनिकता, सहमति, हिंसा और यौन विविधता जैसे विभिन्न मुद्दों को संबोधित करे।

प्रिलिम्स के लिये:

NFHS-5 रिपोर्ट, HIV, किशोर प्रजनन और यौन स्वास्थ्य रणनीति (ARSH)राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम (RKSK) 

मेन्स के लिये:

यौन शिक्षा: इसका महत्त्व, जाति एवं लिंग का प्रभाव और चुनौतियाँ तथा आगे की राह।

भारतीय यौन शिक्षा में जाति और लिंग (जेंडर) युवा व्यक्तियों के अनुभवों को उल्लेखनीय रूप से प्रभावित करते हैं। मीडिया प्रायः युवा लोगों के बीच जातिगत अंतरों से उत्पन्न होने वाले संघर्षों और जातिगत सीमाओं को पार करने वाले रिश्तों से संबंधित कानूनी मुद्दों को उजागर करता रहता है। प्रासंगिक शिक्षा की आवश्यकता पर बल देते हुए, सामाजिक परिवर्तन और यौनिकता (sexuality) के बीच संबंध को समझना महत्त्वपूर्ण है। आलोचनात्मक सोच और सामाजिक न्याय के प्रति प्रतिबद्धता के साथ युवाओं को सशक्त बनाने से इन चुनौतियों को संबोधित करने में मदद मिल सकती है और एक अधिक एकजुट एवं समावेशी समाज को बढ़ावा दिया जा सकता है।

यौन शिक्षा का क्या महत्त्व है?

  • सामाजिक न्याय (Social Justice): यौन शिक्षा सामाजिक न्याय शिक्षा का अभिन्न अंग है। यह प्रजनन के जैविक पहलुओं तक सीमित नहीं है और इसमें लिंग पहचान (gender identities) का सम्मान करने तथा स्वस्थ पारस्परिक संबंधों को बढ़ावा देने के बारे में शिक्षण प्रदान करना भी शामिल है।
    • यौन शिक्षा सहमति (consent), व्यक्तिगत सीमाओं (personal boundaries) और यौन शोषण को रोकने के तरीकों के बारे में ज्ञान प्रदान कर एक अधिक समतामूलक एवं न्यायपूर्ण समाज के निर्माण में योगदान देती है।
  • विधिक मान्यता और शिक्षा का अधिकार: हाल के निर्णयों, जैसे कि कलकत्ता उच्च न्यायालय के एक निर्णय में पुष्टि की गई है कि बच्चों को यौन शिक्षा और यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच का अधिकार है।
    • जब शिक्षा को मूल अधिकार माना जाता है तो यौन शिक्षा स्वाभाविक रूप से इसका एक अनिवार्य घटक बन जाती है, जहाँ सुनिश्चित होता है कि युवा अपनी भलाई के लिये आवश्यक ज्ञान से संपन्न हैं।
  • व्यवहार पर सकारात्मक प्रभाव: अध्ययन दर्शाते हैं कि यौन शिक्षा यौन संसर्ग की शुरुआत में संयम को बढ़ावा देने, इसकी आवृत्ति कम करने और जोखिम भरे यौन व्यवहार का शमन करने में योगदान करती है।
    • यौन शिक्षा व्यापक सूचना प्रदान कर व्यक्तियों को अपने यौन स्वास्थ्य के संबंध में सूचित विकल्प चुनने के लिये सशक्त बना सकती है।
  • लैंगिक संरचनाओं को समझना (Understanding Gender Constructs): यौन शिक्षा छात्रों को LGBTQ+ स्पेक्ट्रम में शामिल लोगों के बारे में समझ विकसित करने में मदद करती है; इस प्रकार एक अधिक समावेशी एवं स्वीकरणकारी समाज के निर्माण में योगदान देती है। इस समझ से विभिन्न लिंगों के व्यक्तियों के बीच बेहतर संबंध एवं अंतःक्रिया की स्थिति बन सकती है।
  • लैंगिक संबंधों का रूपांतरण (Transformation of Gender Relationships): स्कूलों में यौन शिक्षा को लागू करने से घर और समाज दोनों में लैंगिक संबंधों को रूपांतरित करने की क्षमता है। यह सम्मान, समझ और खुले संवाद को बढ़ावा देकर रूढ़िवादिता को तोड़ने और लैंगिक भूमिकाओं (gender roles) के प्रति स्वस्थ दृष्टिकोण को बढ़ावा देने में योगदान कर सकती है।
  • स्वास्थ्य और कल्याण: भारत में विश्व में HIV से पीड़ित लोगों की तीसरी सबसे बड़ी संख्या मौजूद है। असुरक्षित यौन संबंध के खतरों और यौन संचारित संक्रमणों (STIs) एवं HIV/AIDS से बचने के तरीकों के बारे में ज्ञान प्राप्त कर लोग स्वयं का और अपने यौन साथियों का बचाव कर सकते हैं।
    • NFHS-5 रिपोर्ट में पाया गया कि 15-49 आयु वर्ग की महज 22% महिलाओं और 31% पुरुषों को HIV/AIDS के बारे में व्यापक जानकारी प्राप्त था।

भारत में जाति और लिंग यौन शिक्षा को कैसे प्रभावित करते हैं?

  • जाति (Caste): जाति सामाजिक स्तरीकरण की एक प्रणाली है जो लोगों को उनके जन्म और आनुष्ठानिक शुद्धता (ritual purity) के आधार पर पदानुक्रमित समूहों में विभाजित करती है।
    • जाति विभिन्न समूहों के लिये यौन शिक्षा की पहुँच, गुणवत्ता और सामग्री में बाधाएँ उत्पन्न कर यौन शिक्षा को प्रभावित कर सकती है, विशेष रूप से उन लोगों के लिये जो हाशिये पर हैं और प्रभुत्वशाली जातियों द्वारा उत्पीड़ित हैं।
      • उदाहरण के लिये, कुछ अध्ययनों में पाया गया है कि निचली जाति के छात्रों को स्कूलों में भेदभाव, उत्पीड़न और हिंसा का सामना करना पड़ता है, जिससे उनके लिये यौनिकता एवं प्रजनन स्वास्थ्य के बारे में सीखने के अवसर सीमित हो सकते हैं।
    • जाति उन मानदंडों और मूल्यों को भी आकार प्रदान कर सकती है जो विभिन्न समूहों के यौन व्यवहार, दृष्टिकोण एवं विकल्पों को प्रभावित करते हैं।
      • उदाहरण के लिये, कुछ जातियों में यौनिकता, लैंगिक भूमिका और विवाह के संबंध में अधिक रूढ़िवादी या पितृसत्तात्मक विचार मौजूद हो सकते हैं, जबकि अन्य में अधिक उदार या समतावादी विचार पाए जा सकते हैं।
  • लिंग (Gender): यह समाज विशेष में पुरुषों और महिलाओं की भूमिकाओं, अपेक्षाओं एवं व्यवहार को परिभाषित करता है।
    • लिंग, लैंगिक असमानता और रूढ़िवादिता उत्पन्न कर यौन शिक्षा को प्रभावित कर सकता है जो विभिन्न लिंगों के लिये यौन शिक्षा की आवश्यकताओं, अनुभवों और परिणामों को प्रभावित करता है।
      • उदाहरण के लिये, कुछ अध्ययनों में पाया गया है कि भारत में बालिकाओं को यौन शिक्षा तक पहुँच में बालकों की तुलना में अधिक बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जैसे कि निजता/गोपनीयता, सुरक्षा एवं गतिशीलता की कमी या इनके साथ ही सामाजिक कलंक, शर्म और भय।
    • लिंग यौन शिक्षा की सामग्री और वितरण को भी प्रभावित कर सकता है, जो पक्षपातपूर्ण या अपूर्ण हो सकता है और ट्रांसजेंडर एवं नॉन-बाइनरी लोगों जैसे लैंगिक पहचान एवं अभिव्यक्तियों की विविधता एवं जटिलता को संबोधित करने में विफल सिद्ध हो सकता है।

भारत में यौन शिक्षा को अन्य किन बाधाओं का सामना करना पड़ता है?

  • राज्यों का प्रतिरोध: कुछ राज्य सरकारों और वर्गों का मानना है कि यौन शिक्षा कथित सामाजिक मूल्यों (Societal values) का उल्लंघन है। वे यौन क्रिया और यौनिकता पर खुलकर चर्चा करने का विरोध कर सकते हैं, क्योंकि वे इसे अनैतिक और अनुचित मानते हैं। इससे यौन स्वास्थ्य के बारे में चुप्पी, गलत सूचना या आधे-अधूरे ज्ञान की स्थिति बन सकती है।
    • गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ राज्य ने संस्कृति के संरक्षण के नाम पर स्कूलों में यौन शिक्षा पर प्रतिबंध लगा दिया है या इसे लागू करने से इनकार कर दिया है।
  • रूढ़िवादी रवैया: भारत में यौन शिक्षा को कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जैसे रूढ़िवादी रवैया, सीमित उपलब्धता और संलग्नता की कमी। बहुत से लोग यौन शिक्षा को संकीर्णता और अनैतिकता को बढ़ावा देने के साधन के रूप में देखते हैं, जिससे व्यापक यौन शिक्षा कार्यक्रमों को लागू करना कठिन सिद्ध हो सकता है।
  • सीमित पाठ्यक्रम: भारत में कई स्कूल पर्याप्त या गुणवत्तापूर्ण यौन शिक्षा प्रदान नहीं करते हैं, जबकि शिक्षकों के पास इसके प्रभावी प्रसार के लिये आवश्यक प्रशिक्षण एवं सामग्री की कमी पाई जाती है। कुछ स्कूल ‘सेक्स’ के केवल जैविक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जबकि अन्य इस विषय की पूरी तरह से अनदेखी कर देते हैं या इसके बजाय स्वास्थ्य एवं स्वच्छता पर कार्यशालाएँ आयोजित करते हैं।
  • भाषा बाधा: सहमति जैसी अवधारणाओं पर चर्चा के लिये क्षेत्रीय भाषाओं में शब्दावली का अभाव पाया जाता है। भारत में एक विविध भाषाई परिदृश्य पाया जाता है और यौन स्वास्थ्य से संबंधित कई शब्दों के लिये स्थानीय भाषाओं में समान आशय के शब्दों का अभाव हो सकता है। इससे यौन स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों के बारे में प्रभावी ढंग से और संवेदनशील तरीके से संवाद करना जटिल सिद्ध हो सकता है।
  • राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी: राजनीतिक दल और नेता प्रायः रूढ़िवादी समूहों को तुष्ट करने तथा उनकी विचारधारा के साथ संरेखित बने रहने के लिये यौन शिक्षा को बढ़ावा देने में अनिच्छा प्रदर्शित करते हैं। उदाहरण के लिये, महिला जननांग कर्तन (female genital mutilation) जैसी प्रथाएँ अभी भी दुनिया के विभिन्न हिस्सों में प्रचलित हैं और भारत भी इससे अछूता नहीं है।

आगे की राह: 

  • सरकार की प्रतिबद्धता और कार्यान्वयन: सरकार को स्कूली पाठ्यक्रम के एक महत्त्वपूर्ण घटक के रूप में यौन शिक्षा को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिये। यौन शिक्षा कार्यक्रमों के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये पर्याप्त धन, नीति समर्थन और सतत पहल आवश्यक हैं।
    • सरकार को सभी राज्यों को साथ लाना चाहिये और उन्हें यौन शिक्षा को बढ़ावा देने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये।
  • स्कूली पाठ्यक्रम में एकीकरण: यौन शिक्षा को सामान्य स्कूल पाठ्यक्रम में निर्बाध रूप से एकीकृत किया जाना चाहिये, जहाँ लैंगिक संबंधों की अवधारणात्मक समझ को बढ़ावा देने, रूढ़िवादिता को चुनौती देने और सम्मानजनक एवं स्वस्थ यौन व्यवहार को बढ़ावा देने में इसके महत्त्व पर बल दिया जाना चाहिये।
    • यह एकीकरण शैक्षिक विशेषज्ञों, मनोवैज्ञानिकों और समाजशास्त्रियों के सहयोग से प्राप्त किया जा सकता है।
  • आरंभिक और आयु-उपयुक्त शिक्षा: बच्चों की स्वाभाविक जिज्ञासा को चिह्नित करते हुए, कम आयु से ही बच्चों के लिये यौन शिक्षा की शुरुआत कर देनी चाहिये।
  • यौन संबंधों में कानूनी साक्षरता: जब अदालतें किशोर आयु के लोगों के बीच ‘सहमति’ से यौन संबंधों के अपराधीकरण पर विमर्शरत हैं, शिक्षा क्षेत्र को ऐसे संबंधों के कानूनी पहलुओं पर स्पष्टता प्रदान करनी चाहिये।
    • इसमें छात्रों को यौन संबंधों के बारे में उनके अधिकारों, उत्तरदायित्वों और कानूनी ढाँचे के बारे में शिक्षित करना शामिल है।
  • शिक्षक प्रशिक्षण: यौन शिक्षा को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिये शिक्षकों को प्रशिक्षित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये। कार्यशालाएँ, सेमिनार और प्रशिक्षण कार्यक्रम शिक्षकों को कक्षा में यौन शिक्षा से संबंधित विविध मुद्दों को संबोधित करने के लिये आवश्यक ज्ञान, कौशल एवं संवेदनशीलता से लैस कर सकते हैं।
  • मौजूदा संसाधनों का उपयोग: विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय निकायों ने यौन शिक्षा के लिये पाठ्यक्रम, शिक्षण सहायता एवं सामग्री विकसित की है, जैसे कि व्यापक यौनिकता शिक्षा (Comprehensive Sexuality Education- CSE) के लिये IPPF फ्रेमवर्क। इन मौजूदा संसाधनों का लाभ उठाकर शैक्षिक सामग्रियों के विकास को सुव्यवस्थित किया जा सकता है और स्कूलों में यौन शिक्षा के लिये एक मानकीकृत दृष्टिकोण सुनिश्चित किया जा सकता है।
  • सामुदायिक संलग्नता और समर्थन: एक सहायक वातावरण के सृजन के लिये सामुदायिक संलग्नता अत्यंत आवश्यक है। यौन शिक्षा के महत्त्व पर जारी विमर्श में माता-पिता, अभिभावकों और सामुदायिक नेताओं को शामिल करने से आधे-अधूरे ज्ञान या भ्रांतियों को दूर करने और अधिक खुले एवं स्वीकार्य माहौल को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है।
  • नियमित अद्यतन और मूल्यांकन: यौन शिक्षा का परिदृश्य गतिशील है और बदलते सामाजिक मानदंडों, वैज्ञानिक समझ एवं कानूनी परिवर्तनों को प्रतिबिंबित करने के लिये पाठ्यक्रम को नियमित रूप से अद्यतन किया जाना चाहिये।
    • यौन शिक्षा कार्यक्रमों की प्रभावशीलता का निरंतर मूल्यांकन उनकी प्रासंगिकता और प्रभाव को सुनिश्चित कर सकेगा।

निष्कर्ष:

एक समग्र दृष्टिकोण जो सरकारी प्रतिबद्धता, शैक्षिक एकीकरण, कानूनी साक्षरता, शिक्षक प्रशिक्षण, संसाधन उपयोग, सामुदायिक संलग्नता और निरंतर मूल्यांकन को संयुक्त करे, भारत में यौन शिक्षा में आगे बढ़ने के लिये आवश्यक है। इन पहलुओं को सामूहिक रूप से संबोधित कर भारत एक ऐसी पीढ़ी को बढ़ावा देने की दिशा में प्रगति कर सकता है जो सूचना-संपन्न, सम्मान की भावना रखने वाली और स्वस्थ यौन संबंधों को विकसित करने में सक्षम होगी।

अभ्यास प्रश्न: जाति और लिंग के अंतर्संबंध पर ध्यान केंद्रित करते हुए भारत में यौन शिक्षा की बहुमुखी चुनौतियों एवं महत्त्व पर विचार कीजिये। भारतीय शिक्षा प्रणाली में यौन शिक्षा के प्रभावी एकीकरण के लिये नीतिगत उपायों के प्रस्ताव कीजिये।

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