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उद्योग-अकादमिक सहयोग को मज़बूत करना

  • 02 Dec 2023
  • 17 min read

यह एडिटोरियल 30/11/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “How universities and industry can collaborate” लेख पर आधारित है। इसमें उद्योग एवं शिक्षा जगत सहयोग के लाभों एवं इसमें व्याप्त बाधाओं के बारे में चर्चा की गई है और इन पहलुओं को कुशलतापूर्वक संबोधित करने के लिये एक समग्र दृष्टिकोण का सुझाव दिया गया है।

प्रिलिम्स के लिये:

उच्च शिक्षा संस्थान (HEIs), शैक्षणिक और अनुसंधान सहयोग को बढ़ावा देने हेतु योजना, अनुसंधान नवाचार और प्रौद्योगिकी को प्रभावित करना, उच्चतर अविष्कार योजना, राष्ट्रीय सहकारी प्रशिक्षण परिषद, भारत नवाचार विकास कार्यक्रम, रिसर्च पार्क, भारतीय विश्वविद्यालयों के लिये सतत् और जीवंत विश्वविद्यालय-उद्योग लिंकेज प्रणाली  

मेन्स के लिये:

उद्योग-अकादमिक सहयोग की आवश्यकता, उद्योग-अकादमिक सहयोग की बाधाएं, उद्योग-अकादमिक सहयोग के लिए सरकारी योजनाएँ, उद्योग-अकादमिक सहयोग के लिए आगे के कदम।

उद्योग-शिक्षा जगत सहयोग (Industry-Academia Collaboration) को उनके पारस्परिक लाभ के लिये चिह्नित किया जाता है, कई भारतीय उच्च शिक्षा संस्थान (Higher Education Institutions- HEIs) उद्योग साझेदारी और बौद्धिक संपदा (Intellectual Property- IP) एवं प्रौद्योगिकी हस्तांतरण (Technology Transfers) की संभावनाओं की उपेक्षा करते हैं, जिससे सक्रिय रूप से बुनियादी अनुसंधान के संचालन के बावजूद पेटेंट, लाइसेंसिंग और स्टार्ट-अप से प्राप्त लाभ के अवसर से चूक जाते हैं। 

उद्योग-शिक्षा जगत सहयोग में व्याप्त चुनौतियों पर प्रभावी ढंग से काबू पाने के लिये एक संपूर्ण एवं बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है।

उद्योग-शिक्षा जगत सहयोग क्यों महत्त्वपूर्ण है?

  • व्यावहारिक विशेषज्ञता और शैक्षणिक कठोरता:
    • उद्योग-शिक्षा जगत सहयोग विभिन्न संगठनों को व्यावहारिक विशेषज्ञता एवं शैक्षणिक कठोरता (Practical Expertise and Academic Rigor) का एक मिश्रण प्रदान करता है।
    • उद्योग के पेशेवर अनुबंध प्रशासन संबंधी चुनौतियों का प्रत्यक्ष ज्ञान प्रदान करते हैं, जबकि विश्वविद्यालय अनुसंधान-आधारित कार्रवाई योग्य अंतर्दृष्टि एवं अत्याधुनिक सिद्धांत प्रदान करते हैं।
  • अनुसंधान व्यावसायीकरण:
    • ऐसा सहयोग विश्वविद्यालयों को पेटेंट, लाइसेंसिंग समझौतों और स्टार्ट-अप कंपनियों की स्थापना के माध्यम से अपने शोध का व्यावसायीकरण करने के अवसर प्रदान करता है।
  • आर्थिक विकास:
    • ये सहयोग नवाचार, रोज़गार सृजन और उन्नत प्रौद्योगिकियों के विकास को बढ़ावा देकर आर्थिक विकास में योगदान करते हैं।
    • सहयोगात्मक प्रयासों से प्रायः अभिनव समाधान, सर्वोत्तम अभ्यासों की साझेदारी और उद्योग-विश्वविद्यालय सहयोग के लिये नए अवसरों की प्राप्ति होती है।
  • उत्कृष्टता की संस्कृति (Culture of Excellence):
    • ज्ञान के आदान-प्रदान से आगे उद्योग-विश्वविद्यालय सहयोग प्रतिभा विकास को भी बढ़ावा देता है। यह अंतःक्रिया एक प्रतिभा पाइपलाइन स्थापित करती है, उत्कृष्टता की संस्कृति को बढ़ावा देती है और उद्योग की चुनौतियों से निपटने के लिये पेशेवरों की अगली पीढ़ी को तैयार करती है।
  • वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता:

उद्योग-शिक्षा जगत सहयोग में कौन-सी बाधाएँ मौजूद हैं?

  • विपरीत प्रयोजन संघर्ष (Cross-Purpose Conflict):
    • शिक्षाविद आम तौर पर नई अवधारणाओं को स्थापित करने के लिये मौलिक अनुसंधान को प्राथमिकता देते हैं, जबकि उद्योग प्रक्रिया में सुधार और अल्पकालिक मुनाफे के लिये व्यावहारिक अनुसंधान पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जिससे एक उल्लेखनीय विपरीत प्रयोजन संघर्ष पैदा होता है।
  • सांस्कृतिक मतभेद (Cultural Differences):
    • HEIs शोधकर्ता कंपनी द्वारा उपलब्ध कराए गए डेटा की जाँच करते समय शैक्षणिक कठोरता एवं सैद्धांतिक गहराई में वृद्धि की आवश्यकता की पहचान कर सकते हैं। इसके विपरीत, व्यावहारिक परिणामों को प्राथमिकता देने वाली कंपनी के पास प्रायः व्यापक सैद्धांतिक चर्चाओं के लिये समय या विशेषज्ञता का अभाव होता है और वह वास्तविक समाधानों, प्रक्रिया में सुधार या उत्पाद नवाचार पर ध्यान केंद्रित करती है।
  • बौद्धिक गुणों का संघर्ष (Conflict of Intellectual Properties):
    • विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशन के अधिकार (right to publish) की रक्षा पर बल देने और पेटेंट एवं स्वामित्व संबंधी सूचना की सुरक्षा के लिये उद्योग की आवश्यकता के बीच का संघर्ष चिंता का सबसे महत्त्वपूर्ण विषय है।
  • कौशल अंतराल (Skill Gap):
    • उद्योग की आवश्यकताओं के साथ तालमेल की कथित कमी के लिये भारत की शिक्षा प्रणाली की आलोचना की जाती है, क्योंकि इसके परिणामस्वरूप स्नातकों के पास मौजूद कौशल एवं रोज़गार बाज़ार द्वारा मांग किये जाते कौशल के बीच असंगतता उत्पन्न हुई।
  • असंरचित सहयोग ढाँचे:
    • स्पष्ट रूप से परिभाषित और संरचित सहयोग ढाँचे की कमी के परिणामस्वरूप भ्रम, स्पष्टता की कमी और पारस्परिक रूप से लाभप्रद साझेदारी स्थापित करने में चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।
  • संसाधन की असमानताएँ:
    • विकसित देशों के विपरीत, जहाँ उद्योग प्रायः विश्वविद्यालयों में अनुसंधान एवं विकास (R&D) में पर्याप्त निवेश करते हैं, भारतीय उद्योग आमतौर पर अपने बजट का एक छोटा भाग ही शिक्षा जगत के साथ अनुसंधान एवं विकास साझेदारी के लिये आवंटित करते हैं।
      • भारत में R&D व्यय के लगभग 60% का वहन सरकार करती है।

भारत में उद्योग-शिक्षा जगत सहयोग के लिये प्रमुख सरकारी योजनाएँ:

  • अकादमिक और अनुसंधान सहयोग को बढ़ावा देने हेतु योजना (Scheme for Promotion of Academic and Research Collaboration- SPARC)
  • इम्पैक्टिंग रिसर्च इनोवेशन एंड टेक्नोलॉजी (IMPRINT)
  • उच्चतर आविष्कार योजना (UAY)
  • अनुसंधान पार्क (Research Park)
  • राष्ट्रीय सहकारी प्रशिक्षण परिषद(National Council for Cooperative Training- NCCT): सहकारिता मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त सोसाइटी NCCT द्वारा संचालित विभिन्न प्रशिक्षण, जागरूकता और अन्य शैक्षणिक कार्यक्रमों में क्षेत्र के विशेषज्ञों एवं पेशेवरों की निरंतर भागीदारी के माध्यम से सहकारी समितियों के लिये उद्योग-शिक्षा जगत संबंध सुनिश्चित किये जाते हैं। 
  • भारत नवाचार विकास कार्यक्रम (India Innovation Growth Programme- IIGP): इसका उद्देश्य भविष्य के लिये प्रौद्योगिकी-आधारित समाधान विकसित करने हेतु विचार निर्माण (ideation), नवाचार (innovation) एवं त्वरण (acceleration) के चरणों के माध्यम से नवप्रवर्तकों और उद्यमियों को सक्षम बनाकर भारतीय नवाचार पारितंत्र को उन्नत बनाना है। इस कार्यक्रम का लक्ष्य सामाजिक और औद्योगिक नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र पर केंद्रित एक उच्च प्रभावपूर्ण कार्यक्रम के माध्यम से भारत में एक नवाचार पाइपलाइन का निर्माण करना है।
  • UGC का मसौदा दिशानिर्देश: भारतीय विश्वविद्यालयों के लिये सतत और जीवंत विश्वविद्यालय-उद्योग लिंकेज प्रणाली (Sustainable and Vibrant University-Industry Linkage System for Indian Universities) पर हाल ही में UGC के मसौदा दिशानिर्देशों में परस्पर सहयोग को बढ़ावा देने के लिये विश्वविद्यालयों में एक उद्योग संबंध सेल (Industry Relation Cell- IRC) और कंपनियों में एक विश्वविद्यालय संबंध सेल (University Relation Cell- URC) के गठन का सुझाव दिया गया है। 

भारत में विश्वविद्यालय और उद्योग किस प्रकार सहयोग कर सकते हैं?

  • अल्पकालिक सहयोग:
    • न्यूनतम अनुसंधान सुविधा रखने वाले कॉलेज या विश्वविद्यालय उन स्थानीय विनिर्माण कंपनियों के साथ अल्पकालिक सहयोग पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं जो अपनी उत्पादन लाइन में ऐसी तकनीकी समस्याओं का सामना कर रहे हैं जिनके त्वरित समाधान की आवश्यकता है।
  • दीर्घकालिक अनुसंधान सहयोग:
    • बेहतर अनुसंधान सुविधा और संकाय विशेषज्ञता रखने वाले कॉलेज या विश्वविद्यालय उद्योग के साथ ऐसे दीर्घकालिक अनुसंधान सहयोग के लिये साझेदारी कर सकते हैं जो अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों के विकास पर लक्षित हो (जैसा कि IMPRINT जैसी पहल के तहत लक्षित है)। 
    • ऐसे दीर्घकालिक सहयोग का अतिरिक्त लाभ यह है कि छात्र अनुसंधान परियोजनाओं पर प्रशिक्षु के रूप में कार्य कर सकते हैं। इससे वे समय-सीमा का प्रबंधन कर सकना, विफलताओं से निपटना और उद्योग में सहकर्मियों के साथ सहयोग करना सीख सकेंगे।
  • सहजीवी संबंध विकसित करना:
    • उच्च शिक्षा संस्थानों और उद्योगों को सहजीवी संबंध विकसित करने की दिशा में कार्य करना चाहिये।
    • विशिष्ट डोमेन के उद्योगों को स्वयं को नए अनुसंधान विकास से अवगत रखने के लिये उसी डोमेन के विभिन्न विश्वविद्यालयों के अनुसंधान समूहों के साथ सहयोग करना चाहिये।
  • खुले संवाद के माध्यम से विश्वास निर्माण:
    • संभावित संघर्षों को संबोधित करने और शिक्षा जगत एवं उद्योग दोनों की प्राथमिकताओं को समायोजित करते हुए दृष्टिकोण में लचीलेपन को बढ़ावा देने के लिये खुले संवाद में संलग्न रहें।
    • स्पष्ट संचार, बौद्धिक संपदा पर परस्पर समझौते और संवेदनशील सूचना की सुरक्षा के लिये गैर-प्रकटीकरण समझौतों के माध्यम से भरोसे का निर्माण करें।
  • एक सक्षमकारी वातावरण का सृजन करना:
    • अनुसंधान के लिये एक रोडमैप के साथ-साथ IPR अधिकारों, उत्तरदायित्वों और सहयोग के परिणामों के दायरे को रेखांकित करने वाले स्पष्ट समझौते संपन्न किये जाने चाहिये।
    • हितधारकों द्वारा वादा किये गए प्रदेय (deliverables) की जाँच करने के लिये फंडिंग एजेंसी द्वारा नियुक्त विशेषज्ञों के एक दल द्वारा अत्यंत आवश्यक वार्षिक समीक्षा भी की जानी चाहिये।
  • अनुसंधान एवं विकास और नवाचार पर व्यय की वृद्धि करना:
  • निजी क्षेत्र नवाचार:
    • निजी कंपनियों को भारत में उभरते उद्यमियों को वित्तपोषण, मेंटरशिप और संसाधन प्रदान कर नवाचार को बढ़ावा देते हुए स्टार्टअप पारितंत्र में सक्रिय रूप से सहयोग एवं निवेश करना चाहिये।

निष्कर्ष:

भारत के पास हितों के टकराव को हितों के अभिसरण में बदलकर आर्थिक क्षमताओं के केंद्रीय चालक के रूप में उद्योग-शिक्षा जगत संबंधों को ऊपर उठाने का अवसर है। गतिशील स्टार्टअप के साथ-साथ आत्मविश्वास से भरे अनुसंधानकर्ताओं और संकाय की उभरती पीढ़ी भारत को एक वैश्विक नवाचार केंद्र के रूप में स्थापित करने के लिये महत्त्वपूर्ण है, जहाँ युवा शिक्षाविद देश के विकास को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

अभ्यास प्रश्न: भारत में उद्योग-शिक्षा जगत सहयोग की आवश्यकता का परीक्षण कीजिये। इससे संलग्न चुनौतियों की चर्चा कीजिये और देश में उद्योग-शिक्षा जगत सहयोग के सफल कार्यान्वयन के लिये आवश्यक समाधानों के प्रस्ताव कीजिये।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs): 

प्रिलिम्स

प्रश्न. प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. यह श्रम और रोज़गार मंत्रालय की प्रमुख योजना है।
  2. यह अन्य बातों के अलावा सॉफ्ट स्किल्स, उद्यमिता, वित्तीय और डिजिटल साक्षरता में प्रशिक्षण भी प्रदान करेगा।
  3. इसका उद्देश्य देश के अनियमित कार्यबल की दक्षताओं को राष्ट्रीय कौशल योग्यता ढाँचे के अनुरूप बनाना है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न: "भारत में जनसांख्यिकी लाभांश केवल सैद्धांतिक रहेगा जब तक कि हमारी जनशक्ति अधिक शिक्षित, जागरूक, कुशल और रचनात्मक नहीं हो जाती।" हमारी जनसंख्या की क्षमता को अधिक उत्पादक एवं रोज़गार योग्य बनाने के लिये सरकार द्वारा क्या उपाय किये गए हैं? (मुख्य परीक्षा, 2016)

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