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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत के लिये विचारों का सर्वेक्षण

  • 04 Feb 2017
  • 12 min read

पृष्ठभूमि

गौरतलब है कि 31 जनवरी को ब्रेक्ज़िट तथा विश्व की अन्य अर्थव्यवस्थाओं में हुए सत्ता परिवर्तन (अमेरिका तथा ब्रिटेन में हुआ सत्ता परिवर्तन) एवं देश के आर्थिक ढाँचे (जीएसटी एवं विमुद्रीकरण के कारण) में हुए बुनियादी परिवर्तन के परिणामस्वरूप मची उथल-पुथल के मध्य देश का एक और नया आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 पेश किया गया|  ज़ाहिर है कि ऐसी स्थिति में आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 से उम्मीद की जाती है कि वह देश-विदेश के आर्थिक परिदृश्य में घटे सभी अल्पकालिक विकासक्रमों के संबंध में एक न्यायसंगत ब्यौरा प्रस्तुत करे| अन्यथा यह सर्वेक्षण ऐसा प्रतीत होगा, जैसे शेक्सपियर की बहुप्रचलित कृति हेमलेट को डेनमार्क के राजकुमार के बिना ही तैयार किया गया हो| दूसरे शब्दों में कहा जाए तो पूर्णतया निरर्थक| 

प्रमुख बिंदु

  • भारत सरकार द्वारा 8 नवम्बर को लिये गए विमुद्रीकरण के निर्णय के पश्चात् सभी की नज़र इस प्रश्न पर टिकी हुई है कि क्या सरकार द्वारा अपने इस निर्णय को एक सफल निर्णय करार देते हुए इसका स्पष्टीकरण प्रस्तुत किया गया है अथवा इसे एक असफल प्रयास मान लिया गया है|
  • हालाँकि, यहाँ यह स्पष्ट कर देना अत्यंत आवश्यक है कि सर्वेक्षण में न केवल विमुद्रीकरण के प्रभावों की चर्चा की गई है बल्कि विमुद्रीकरण के कारण उपजे असंतोष, आलोचना, विरोध के साथ-साथ इसकी जटिलताओं के विषय में भी स्पष्टीकरण देने का पूरा प्रयास किया गया है|
  • जैसा कि हम सभी जानते हैं कि विमुद्रीकरण के कारण देश के आर्थिक ढाँचे को अविश्वसनीय नुकसान पहुँचा है|
  • आर्थिक सर्वेक्षण में देश के आर्थिक विकास को बढ़ावा देने तथा विमुद्रीकरण के कारण अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभावों के अंतर्गत मध्यम अवधि के आर्थिक मुद्दों की अपेक्षा नहीं की जा सकती है| 
  • इसके अतिरिक्त, सर्वेक्षण के अंतर्गत बैंकों तथा कंपनियों के अत्यधिक ऋण से संबंधित ‘’जुड़वाँ बैलेंस शीट’’ के मुद्दे साथ-साथ अन्य आर्थिक मुद्दों से संबंधित चुनौतियों को भी विशेष रूप से शामिल किया गया है|
  • उक्त विवरण के आधार पर आर्थिक सर्वेक्षण को तीन भागों में विभक्त किया गया है| प्रथम, “परिपेक्ष्य” (The Perspective), दूसरा, “आसन्न” (The Proximate) तथा तीसरा, “ निरंतरता” (The Persistent)| इसके अतिरिक्त, सर्वेक्षण के निर्माण के तहत दर्ज किये गए आठ रोचक तथ्यों को भी इसमें शामिल किया गया है|
  • आर्थिक सर्वेक्षण के भाग एक में (परिप्रेक्ष्य ) हाल ही सभी बड़ी उपलब्धियों के साथ-साथ भविष्य की रणनीति का भी एक व्यापक सिंहावलोकन किया गया है|
  • इस भाग के अध्याय एक में देश की वर्तमान आर्थिक स्थिति की वास्तविक तस्वीर प्रस्तुत करते हुए आगामी चुनौतियों के मद्देनज़र सरकार की रणनीतियों एवं अन्य आवश्यक कार्यवाहियों में आपसी सामंजस्य का विवेचनात्मक वर्णन किया गया है|
  • जैसा की हम सभी जानते हैं कि आर्थिक सुधारों का अर्थ केवल आगामी आर्थिक हितों की पूर्ति करना भर नहीं होता है बल्कि देश की आर्थिक स्थिति से संबंधित सभी समस्याओं एवं उनके समाधानों का पूरा लेखा-जोखा प्रस्तुत करना होता है|
  • आर्थिक सर्वेक्षण खंड 2, में निकट अवधि के चार महत्त्वपूर्ण मुद्दों को प्रदर्शित किया गया है, इनमें विमुद्रीकरण (Demonetisation), जुड़वाँ बैलेंस शीट (Twin Balance Sheet) से उत्पन्न चुनौतियाँ तथा इनसे निपटने के उपाय, केंद्र एवं राज्यों की राजकोषीय नीति तथा श्रम-प्रधान रोज़गार सृजन (Labour-Intensive Employment Creation) को शामिल किया गया है| इसके अतिरिक्त, इसके अंतर्गत वित्तीय वर्ष 2015-16 की पहली छमाही के महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय घटनाक्रमों की समीक्षा को भी शामिल किया गया है| 
  • खंड 3 में बाकी के सभी मध्यमावधि के मुद्दों को शामिल किया गया है| संभवतः इसमें दो वृहद् विषयों (राज्यों तथा शहरों तथा देश के आर्थिक विकास से संबद्ध वृहद् डेटा) को भी शामिल किया गया है|
  • यहाँ यह स्पष्ट कर देना अत्यन्त आवश्यक है कि किसी भी देश के सर्वांगीण विकास के लिये “सहकारी तथा प्रतिस्पर्द्धी संघवाद” एक अपरिहार्य भविष्य के द्योतक होते हैं
  • वस्तुतः इसके लिये भारत तथा राज्यों का एक संघ के रूप में गठित होना अत्यंत आवश्यक है| सम्भवतः इसी रूप को और अधिक स्पष्ट करने के लिये सर्वेक्षण के अंतर्गत देश के सभी हिस्सों से प्राप्त होने वाली आय तथा स्वास्थ्य जैसे अनेक मुद्दे से संबंधित आँकड़ों के साथ-साथ वित्त एवं माल के अभिसरण के विषय में भी व्यापक चर्चा की गई है|
  • पहली बार आर्थिक सर्वेक्षण के अंतर्गत वृहद् आँकड़ों का प्रयोग किया गया है| हालाँकि, इसके विषय में यह कहना गलत नहीं होगा कि इन आँकड़ों के अंतर्गत पहली बार वस्तु एवं सेवा कर नेटवर्क (Goods and Services Tax Network - GSTN) द्वारा प्रस्तुत विश्लेषण के आधार देशभर में वस्तुओं के प्रवाह के संबंध में कोई तटस्थ आँकड़ा प्रस्तुत किया गया है|
  • इसके अतिरिक्त, सर्वेक्षण में भारत के भीतर रह रहे प्रवासियों के संबंध में भी व्यापक आँकड़े प्रस्तुत किये गए हैं| इन सभी आँकड़ों को रेल मंत्रालय से प्राप्त सूचनाओं तथा जनगणना के आँकड़ों के विश्लेषण में प्रयुक्त की गई एक नई पद्धति के आधार पर तैयार किया गया है|
  • अंतत: यह कहा जा सकता है कि भारत का आंतरिक एकीकरण एक बहुत ही मज़बूत व्यवस्था पर निर्भर करता है जो कि काफी हद तक पारम्परिक ज्ञान से प्राप्त विश्वासों से भी मज़बूती ग्रहण किया हुआ है| उदहारण के लिये एक आकलन के अनुसार, प्रत्येक वर्ष रोज़गार के लिये तकरीबन आठ से नौ मिलियन भारतीय बाहरी देशों में प्रवास करते हैं (इसका वास्तविक आँकड़ा वर्तमान के आकलनों का दोगुना है)|
  • इसी तरह विश्व के अन्य बड़े देशों के समान ही भारत का आंतरिक व्यापार (Internal Trade) भी अत्यंत व्यापक है जो कि भारत में बाधा रहित व्यापार करने के विकल्प की इशारा करता है|
  • हालाँकि, ये सभी परिणाम एक केंद्रीय विरोधाभास की स्थिति भी उत्पन्न करते हैं| स्पष्ट है, भारत में  वस्तुओं, लोगों तथा पूंजी का स्वतंत्र प्रवाह होता है तथापि भारत में आय तथा स्वास्थ्य परिणामों का अभिसरण (convergence) आसान नहीं है|
  • इसके विपरीत, सीमा पार के क्षेत्रों में हम गरीबी, स्वास्थ्य के निम्न स्तर का सशक्त अभिसरण पाते हैं, जिसका परिणाम देश की अर्थव्यवस्था के क्षीण रूप में हमारे सामने है| 
  • इसके अतिरिक्त, सर्वेक्षण में एक ज़िले में गरीबों की संख्या के मध्य  तथा वर्तमान में संचालित बड़े-बड़े कार्यक्रमों को प्रभावी बनाने वाले कारकों के मध्य के अंतर को पाटने के लिये संभावित उपायों तथा आकलनों को भी समाहित किया गया है| सम्भवतः ये आकलन सार्वभौमिक बुनियादी आय (Universal Basic Income - UBI) के मद्दे को प्रबल आधार प्रदान करने का कार्य करते है|इसके विषय में सर्वेक्षण में व्यापक चर्चा की गई है|
  • हालाँकि, पिछले वर्ष के सर्वेक्षण में यह कहा गया था कि यह संकल्पना केवल भारत के उन्नत भविष्य के लिये विचार मात्र ही प्रतीत होती है न कि मूल स्रोत| 
  • इस वर्ष का सर्वेक्षण इसलिये भी भिन्न है क्योंकि इसे केवल एक ही भाग में संजोया गया है| वर्षभर की देयताएँ साथ के भाग में संजोया जाता था) अब बाद में इस वर्ष के ही स्टैंडअलोन दस्तावेज़ (Standalone Document) में दिखेंगी|
  • आर्थिक सर्वेक्षण की भूमिका तथा विषय के सम्बन्ध में हाल ही में काफी विचार-विमर्श किया गया था| सर्वेक्षण की आकांक्षा क्या होनी चाहिये? यकीनन सबसे बड़े अर्थशास्त्री जॉन मेनार्ड कीन्स (John Maynard Keynes) द्वारा दिया गया इसका उत्तर एकदम स्पष्ट है|
  • कीन्स के विचारों की संक्षिप्त व्याख्या इस प्रकार थी, “आर्थिक सर्वेक्षण को उपहारों के एक दुर्लभ संयोजन से युक्त होना चाहिये, इसे कुछ मात्रा में गणित, इतिहास, राजनीति और दर्शनशास्त्र पर भी ध्यान देना चाहिये”|


निष्कर्ष

अंतत: यह कहना गलत न होगा कि किसी भी आर्थिक सर्वेक्षण को जिन प्रतीकों के आधार पर निर्मित किया जाता है उन्हें शब्दों में वर्णित भी किया जाना चाहियेए| सामान्य रूप में इसके तहत न केवल देश की विशेष आर्थिक एवं विकासात्मक परिस्थितियों एवं उनसे निपटने के उपायों पर भी चिंतन किया जाना चाहिये बल्कि विचारों की समान उड़ान के सार एवं मूर्त रूप को भी स्पर्श करना चाहिये| सर्वेक्षण को भविष्य के उद्देश्यों की पूर्ति हेतु भूत काल के प्रकाश में वर्तमान का भी अध्ययन करना चाहिये| साथ ही, मानव के स्वभाव अथवा उसके संस्थानों को सम्पूर्ण रूप से इसके विचारों से बाहर रखा जाना चाहिये| सर्वेक्षण को उद्देश्यपूर्ण (Purposeful) तथा मनोदशा में उदासीन (Disinterested) होना चाहियेए|

स्रोत:  इंडियन एक्सप्रेस

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