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भारतीय समाज

युवाओं की क्षमता का दोहन

  • 13 Jul 2021
  • 9 min read

यह एडिटोरियल दिनांक 12/07/2021 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित लेख “Tapping on the potential of the youth” पर आधारित है। यह भारत की जनसांख्यिकीय लाभांश का लाभ उठाने के लिये भारतीय युवाओं की क्षमता को साकार करने से संबंधित है।

भारत में 62% से अधिक जनसंख्या की आयु 15 से 59 वर्ष के बीच है तथा जनसंख्या की औसत आयु 30 वर्ष से कम है। इसका तात्पर्य यह है कि भारत जनसंख्या की आयु संरचना के आधार पर आर्थिक विकास की क्षमता का प्रतिनिधित्व करने वाले 'जनसांख्यिकीय लाभांश' के चरण से गुज़र रहा है।

हालाँकि इस क्षमता को वास्तविकता में बदलने के लिये किशोरों और युवाओं को स्वस्थ एवं सुशिक्षित होना आवश्यक है।

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) द्वारा भारत में जनसांख्यिकीय लाभांश पर एक अध्ययन में कहा गया है कि भारत में जनसांख्यिकीय लाभांश का अवसर वर्ष 2005-06 से वर्ष 2055-56 तक 5 दशकों के लिये उपलब्ध है।

इसलिये 'जनसंख्या विस्फोट' की आशंका से अधिक यह महत्त्वपूर्ण है कि भारत युवा जनसंख्या की स्वास्थ्य सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करे क्योंकि भारत का कल्याण इसी पर निर्भर है।

जनसांख्यिकीय लाभांश: परिभाषा

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) के अनुसार, जनसांख्यिकीय लाभांश का अर्थ है, "आर्थिक विकास क्षमता जो जनसंख्या की आयु संरचना में बदलाव के परिणामस्वरूप प्राप्त हो सकती है, मुख्यतः जब कार्यशील उम्र की आबादी (15 से 64 वर्ष ) का हिस्सा गैर-कार्यशील उम्र (14 और उससे कम, तथा 65 एवं उससे अधिक) की आबादी से बड़ा हो "।

युवा क्षमता को साकार करने की चुनौती 

  • शिक्षा और कौशल की कमी: भारत की अल्प-वित्तपोषित शिक्षा प्रणाली युवाओं को उभरते रोज़गार के अवसरों का लाभ उठाने हेतु आवश्यक कौशल प्रदान करने के लिये अपर्याप्त है।
    • विश्व बैंक के अनुसार, शिक्षा पर सार्वजनिक व्यय वर्ष 2020 में सकल घरेलू उत्पाद का केवल 3.4% था।
    • एक अन्य रिपोर्ट से पता चला है कि प्रति छात्र सार्वजनिक व्यय के मामले में भारत 62वें स्थान पर है और छात्र-शिक्षक अनुपात एवं शिक्षा उपायों की गुणवत्ता में इसका प्रदर्शन खराब रहा है।
  • महामारी का प्रभाव: विभिन्न अध्ययनों से पता चलता है कि स्कूल बंद होने से बच्चों की शिक्षा, जीवन और मानसिक कल्याण पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।
    • अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के एक सर्वेक्षण से पता चलता है कि दुनिया भर में महामारी के दौरान 65% किशोरों की शिक्षा में कमी आई है। 
  • युवा महिलाओं के मुद्दे: बाल विवाह, लिंग आधारित हिंसा, दुर्व्यवहार और तस्करी के प्रति उनकी संवेदनशीलता, खासकर यदि प्राथमिक देखभाल करने वाले बीमार पड़ जाते हैं या मर जाते हैं जैसे मुद्दे युवा महिलाओं को उनकी पूरी क्षमता हासिल करने से रोकते हैं।
  • रोज़गार विहीन विकास: भारत के सकल घरेलू उत्पाद में मुख्य योगदानकर्त्ता सेवा क्षेत्र है जो श्रम प्रधान नहीं है और इस प्रकार यह रोज़गार विहीन विकास को बढावा देता है।
    • इसके अलावा भारत की लगभग 50% आबादी अभी भी कृषि पर निर्भर है जो कि अल्प-रोज़गारऔर प्रच्छन्न बेरोज़गारी के लिये बदनाम है।
  • निम्न सामाजिक पूंजी: इसके अलावा उच्च स्तर की भुखमरी, कुपोषण, बच्चों में बौनापन, किशोरियों में रक्ताल्पता का उच्च स्तर, खराब स्वच्छता आदि ने भारत के युवाओं की क्षमता को साकार करने में बाधा पहुंँचाई है।

आगे की राह 

  • अंतर-क्षेत्रीय सहयोग: युवा पीढ़ी के भविष्य की सुरक्षा के लिये बेहतर अंतर-क्षेत्रीय सहयोग के लिये एक तंत्र का होना अनिवार्य है। विभागों के बीच समन्वय किसी भी संकट से निपटने के लिये  बेहतर समाधान और अधिक क्षमता को सक्षम कर सकता है।
    • उदाहरणतः मध्याह्न भोजन योजना न केवल माता-पिता को अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिये प्रोत्साहन प्रदान करती है बल्कि कक्षा में सतर्क रहने के लिये आवश्यक कैलोरी की मात्रा भी प्रदान करती है।
  • युवा आबादी की रोज़गार क्षमता बढ़ाने के लिये कौशल विकास: भारत की श्रम शक्ति को आधुनिक अर्थव्यवस्था के लिये सही कौशल के साथ सशक्त बनाने की आवश्यकता है।
    • सरकार ने वर्ष 2022 तक भारत में 500 मिलियन लोगों को कौशल युक्त करने के  समग्र लक्ष्य के साथ राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (एनएसडीसी) की स्थापना की है।
  • सामाजिक बुनियादी ढाँचे में सुधार: यदि भारत अपने युवा उभार की आर्थिक क्षमता का लाभ उठाना चाहता है तो उसे सामाजिक बुनियादी ढाँचे जैसे- अच्छा स्वास्थ्य, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा  में सुधार करने के लिये निवेश करना चाहिये और पूरी आबादी को अच्छा रोज़गार प्रदान करने का प्रयास करना चाहिये।
  • बुनियादी स्वच्छता को बनाए रखना: चूँकि स्कूल बंद होने से मासिक धर्म संबंधी स्वच्छता उत्पादों की किशोरों तक पहुँच जैसी योजनाएँ प्रभावित हुई हैं। बालिकाओं को सैनिटरी नैपकिन वितरित करने के लिये फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं को सहयोग करने हेतु शिक्षक स्वयंसेवकों के रूप में काम कर सकते हैं।
  • युवाओं के लिये हेल्पलाइन: किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य को संबोधित करने के लिये स्वास्थ्य और शिक्षा मंत्रालयों को मौजूदा हेल्पलाइन के माध्यम से तथा उनके प्रजनन एवं यौन स्वास्थ्य के संबंध में महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर बातचीत कर उन्हें सक्षम बनाया जाना चाहिये।
  • महामारी के बाद तत्काल कदम: लंबे समय तक स्कूल बंद रहने के नुकसान के साथ बच्चों के माध्यम से महामारी के संचरण के जोखिम को संतुलित करना नीति निर्माताओं हेतु महत्त्वपूर्ण है।
  • शिक्षकों और स्कूल के सहायक कर्मचारियों के टीकाकरण को प्राथमिकता देकर तथा एक विकेंद्रीकृत दृष्टिकोण के साथ स्कूलों को सुरक्षित और चरणबद्ध तरीके से खोला जा सकता है।

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निष्कर्ष

मिशन मोड में युवाओं के जीवन में सुधार करने से उनका जीवन उन्नत होगा, साथ ही स्वस्थ और शिक्षित युवा वयस्कों के चलते भारत के भविष्य को सुरक्षित करने में योगदान भी प्राप्त होगा।

युवाओं के सशक्तीकरण की नीतियाँ और उनके प्रभावी कार्यान्वयन से जनसांख्यिकीय लाभांश, जो कि एक समय-सीमित अवसर है, भारत के लिये एक वरदान बन सके।

 प्रश्न: युवाओं के कल्याण की रक्षा करना आवश्यक है क्योंकि भारत का कल्याण उन्हीं पर टिका है। विश्लेषण कीजिये।

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