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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

सिंथेटिक मानव भ्रूण: सफलता या दुविधा

  • 13 Sep 2023
  • 19 min read

यह एडिटोरियल 08/09/2023 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Without sperm or egg, how scientists grew whole model of human embryo” लेख पर आधारित है। इसमें सिंथेटिक मानव भ्रूण के विकास और इससे संबद्ध नैतिक मुद्दों के बारे में चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

सिंथेटिक मानव भ्रूण, या SHEEFs (भ्रूण जैसी विशेषताओं वाली सिंथेटिक मानव इकाइयाँ, अंडा या शुक्राणु कोशिकाएँ, आनुवंशिक विकार, त्रि-आयामी संरचनाएँ, प्लेसेंटा जैसे ऊतक, गैस्ट्रुलेशन, एक्टोडर्म, मेसोडर्म, एंडोडर्म, अंतर्राष्ट्रीय स्टेम सेल रिसर्च सोसायटी, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR), बायोएथिक्स और मानवाधिकार पर सार्वभौमिक घोषणा, यूनेस्को, मानवाधिकार पर यूनेस्को की सार्वभौमिक घोषणा, IVF भ्रूण

मेन्स के लिये:

जेनेटिक इंजीनियरिंग और जैव प्रौद्योगिकी से संबंधित मुद्दे, मानव क्लोनिंग से संबंधित मुद्दे और अन्य

स्टेम कोशिकाओं (stem cells) का उपयोग कर सिंथेटिक मानव भ्रूण (Synthetic Human Embryos- SHE) का सृजन करने की हाल की घोषणा ने वैज्ञानिक और नैतिकतावादी समुदायों के बीच में अत्यंत रुचि उत्पन्न की है और एक बहस छेड़ दी है। 

सिंथेटिक मानव भ्रूण या ‘SHEEFs’ (Synthetic Human Entities with Embryo-like Features) ऐसी संरचनाएँ हैं जो आरंभिक मानव भ्रूण के सदृश होती हैं, लेकिन इनका सृजन अंडाणु या शुक्राणु कोशिकाओं (egg or sperm cells) के प्रत्यक्ष योगदान के बिना स्टेम कोशिकाओं से किया जाता है। 

इन संरचनाओं में मानव विकास, आनुवंशिक विकारों (genetic disorders) और गर्भावस्था हानि (pregnancy loss) के विषय में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करने की क्षमता है, लेकिन इसके साथ ही उनकी स्थिति, उपयोग और विनियमन के बारे में गंभीर नैतिक एवं विधिक प्रश्न भी खड़े होते हैं। 

सिंथेटिक मानव भ्रूण (SHE) क्या हैं और उनका निर्माण कैसे किया जाता है? 

  • परिचय: ये अंडाणु और शुक्राणु के संयोग से नहीं बनते हैं, बल्कि प्लुरिपोटेंट स्टेम कोशिकाओं (pluripotent stem cells) से बनाये जाते हैं। स्टेम कोशिकाएँ ऐसी कोशिकाएँ हैं जो शरीर में लगभग किसी भी प्रकार की कोशिका में विकसित हो सकती हैं। 
    • ये स्टेम कोशिकाएँ भ्रूण से प्राप्त की जा सकती हैं या त्वचा कोशिका या रक्त कोशिकाओं जैसी वयस्क कोशिकाओं से ‘रि-प्रोग्राम’ की जा सकती हैं। 
  • SHE का निर्माण: शोधकर्ता ‘कल्चर’ की दशाओं और कोशिका विभेदन (cell differentiation) का मार्गदर्शन करने वाले संकेतों में हेरफेर कर स्टेम कोशिकाओं को त्रि-आयामी संरचनाओं (three-dimensional structures) में स्व-व्यवस्थित होने के लिये प्रेरित कर सकते हैं जो आरंभिक भ्रूण विकास के कुछ पहलुओं की नकल करते हैं। 
    • उदाहरण के लिये, ये संरचनाएँ एक ब्लास्टोसिस्ट सदृश गुहा (blastocyst-like cavity), एक प्लेसेंटा सदृश ऊतक (placenta-like tissue) और एक आदिम स्ट्रीक सदृश संरचना (streak-like structure) का निर्माण कर सकती हैं, जो गैस्ट्रुलेशन (gastrulation) की शुरुआत को चिह्नित करती है। गैस्ट्रुलेशवह प्रक्रिया जिसके द्वारा तीन जर्म लेयर्स (एक्टोडर्म, मेज़ोडर्म और एंडोडर्म) का निर्माण होता है।  
  • विश्व का पहला SHE: विश्व का पहला सिंथेटिक मानव भ्रूण कथित तौर पर कैंब्रिज विश्वविद्यालय और कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी की एक टीम द्वारा बनाया गया तथा उनके इस शोध को जून 2023 में ‘इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर स्टेम सेल रिसर्च’ के समक्ष प्रस्तुत किया गया। 
    • रिपोर्ट के अनुसार, इन सिंथेटिक मानव भ्रूणों को उस चरण तक विकसित किया गया जो लगभग 14 दिनों की अवधि के बराबर था, जो कि कई देशों में प्राकृतिक मानव भ्रूणों के अध्ययन के लिये आरोपित कानूनी सीमा है। 

सिंथेटिक मानव भ्रूण के विकास से संबंधित नियम: 

  • सिंथेटिक मानव भ्रूण के विकास से संबंधित कानून और नियम दुनिया के विभिन्न देशों एवं भूभागों में व्यापक रूप से भिन्न हैं। 
    • पूर्ण निषेध: कुछ देशों में सख़्त विनियमन लागू  हैं जो किसी भी प्रकार के मानव भ्रूण अनुसंधान को प्रतिबंधित या निषिद्ध करते हैं, जैसे जर्मनी, इटली, आयरलैंड, पोलैंड और स्लोवाकिया। 
    • अनुसंधान की अनुमति: कुछ अन्य देशों में अधिक अनुमेय विनियमन मौजूद हैं जो कुछ शर्तों और निरीक्षण के अधीन मानव भ्रूण अनुसंधान के कुछ रूपों की अनुमति प्रदान करते हैं, जैसे ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, फ्राँस, जापान, सिंगापुर, दक्षिण कोरिया, स्वीडन, यूके, यूएस। 
      • हालाँकि, इनमें से अधिकांश विनियमन स्पष्ट रूप से सिंथेटिक मानव भ्रूण या अन्य प्रकार के स्टेम सेल-आधारित भ्रूण मॉडल को संबोधित नहीं करते हैं। 
  • भारतीय संदर्भ: भारत में सिंथेटिक मानव भ्रूण अनुसंधान को नियंत्रित करने वाला कोई विशिष्ट विधान मौजूद नहीं है। हालाँकि, कुछ दिशानिर्देश मौजूद हैं जो सामान्य रूप से स्टेम सेल अनुसंधान पर लागू होते हैं। 
    • भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने वर्ष 2017 में स्टेम सेल अनुसंधान के लिये राष्ट्रीय दिशानिर्देश जारी किये, जो मनुष्यों या पशुओं से जुड़े स्टेम सेल अनुसंधान के संचालन के लिये नैतिक सिद्धांत एवं मानदंड प्रदान करते हैं। 

SHE के विकास से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय समझौते:  

  • अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ऐसी कोई बाध्यकारी संधि या कन्वेंशन मौजूद नहीं है जो सिंथेटिक मानव भ्रूण अनुसंधान को नियंत्रित करते हों। हालाँकि, कुछ गैर-बाध्यकारी घोषणाएँ और अनुशंसाएँ मौजूद हैं जो इस क्षेत्र के लिये कुछ मार्गदर्शन एवं मानक प्रदान करती हैं। उदाहरण के लिये: 
    • यूनेस्को (UNESCO) की मानव जीनोम और मानव अधिकारों पर सार्वभौमिक घोषणा (Universal Declaration on the Human Genome and Human Rights), 1997: 
      • इसमें कहा गया है कि ‘‘ऐसे अभ्यास जो मानवीय गरिमा के विपरीत हैं, जैसे कि मानवों की प्रजनन क्लोनिंग, की अनुमति नहीं दी जाएगी’’ और यह कि ‘‘मानव जीनोम पर हस्तक्षेप केवल निवारक, नैदानिक या चिकित्सीय उद्देश्यों के लिये और संबद्ध व्यक्ति की सूचित सहमति से किया जाना चाहिये’’। 
    • यूनेस्को की जैवनैतिकता और मानवाधिकार पर सार्वभौमिक घोषणा (Universal Declaration on Bioethics and Human Rights), 2005: 
      • इसमें कहा गया है कि मानव से जुड़े किसी भी वैज्ञानिक अनुसंधान में ‘‘मानव गरिमा, मानवाधिकार और मूल स्वतंत्रता का पूरी तरह से सम्मान किया जाना चाहिये’’ और यह भी कि ‘‘व्यक्ति के हितों और कल्याण को विज्ञान या समाज के एकमात्र हित के ऊपर प्राथमिकता दी जानी चाहिये’’। 
    • ‘इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर स्टेम सेल रिसर्च’ द्वारा जारी दिशानिर्देश: 
      • इसे वर्ष 2021 में स्टेम सेल रिसर्च और क्लिनिकल ट्रांसलेशन के लिये जारी किया गया जो मानव भ्रूण, स्टेम सेल, ऑर्गनॉइड और अन्य मॉडलों से जुड़े नैतिक एवं उत्तरदायी स्टेम सेल रिसर्च के संचालन के लिये विस्तृत अनुशंसाएँ प्रदान करता है। 

सिंथेटिक मानव भ्रूण का महत्त्व:  

  • मानव विकास का अध्ययन करना: सिंथेटिक मानव भ्रूण (SHE) मानव विकास का अध्ययन करने के लिये (विशेष रूप से आरंभिक चरण का अध्ययन, जहाँ अभिगम्यता या प्राकृतिक भ्रूणों में अवलोकन कठिन होता है) एक प्रभावशाली उपस्कर प्रदान कर सकता है। 
    • इससे शोधकर्ताओं को यह समझने में मदद मिल सकती है कि विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं और ऊतकों का निर्माण कैसे होता है, जीन कैसे नियंत्रित होते हैं, बीमारियाँ कैसे होती हैं या उन्हें कैसे रोका जा सकता है और गर्भावस्था कैसे स्थापित होती है या किस तरह उसकी हानि होती है। 
  • अनुसंधान के लिये मानव भ्रूण का विकल्प: सिंथेटिक मानव भ्रूण अनुसंधान उद्देश्यों के लिये प्राकृतिक मानव भ्रूण का एक मूल्यवान विकल्प या पूरक प्रदान कर सकते हैं। 
    • ये IVF भ्रूणों पर निर्भरता को कम कर सकते हैं, जो प्रायः दुर्लभ या अनुपलब्ध होते हैं और यह उनके उपयोग या विनाश से जुड़ी कुछ नैतिक चिंताओं को टाल सकता है। 
  • पुनर्योजी चिकित्सा में अनुप्रयोग: सिंथेटिक मानव भ्रूण पुनर्योजी चिकित्सा (Regenerative Medicine) और जैव प्रौद्योगिकी के लिये नवीन अनुप्रयोगों को सक्षम कर सकते हैं। 
    • उदाहरण के लिये, सिंथेटिक मानव भ्रूण का उपयोग प्रत्यारोपण या थेरेपी के लिये विशिष्ट कोशिका प्रकार या ऊतकों के सृजन के लिये किया जा सकता है, जैसे कि रक्त कोशिकाएँ, तंत्रिका कोशिकाएँ, हृदय कोशिकाएँ, यकृत कोशिकाएँ आदि। 
    • सिंथेटिक मानव भ्रूण का उपयोग औषध टेस्टिंग या स्क्रीनिंग के लिये रोग या आघात के मॉडल निर्माण के लिये भी किया जा सकता है। 

सिंथेटिक मानव भ्रूण के विकास से संबद्ध प्रमुख मुद्दे:

  • अस्पष्ट विनियमन: सिंथेटिक मानव भ्रूण अपनी नैतिक स्थिति, उपयोग और विनियमन के संबंध में नैतिक चुनौतियाँ उत्पन्न कर सकते हैं। 
    • जैसा कि ऊपर चर्चा की गई है, सिंथेटिक मानव भ्रूण इस बारे में सवाल खड़े करते हैं कि क्या उनके कोई हित या अधिकार हैं जिनका सम्मान किया जाना चाहिये, उनका उपयोग एवं विनियमन कैसे किया जाना चाहिये, उन तक किन लोगों की पहुँच होनी चाहिये और उनके उपयोग की निगरानी किसे करनी होगी। 
  • अवास्तविक अपेक्षाओं/झूठी धारणाओं की स्थापना: सिंथेटिक मानव भ्रूण उनकी सार्वजनिक धारणा और स्वीकृति के संबंध में सामाजिक समस्याएँ उत्पन्न कर सकते हैं। 
    • वे समाज के कुछ वर्गों की ओर से नकारात्मक प्रतिक्रिया प्राप्त कर सकते हैं जो उन्हें अप्राकृतिक, अनैतिक या ख़तरनाक मान सकते हैं। 
    • सिंथेटिक मानव भ्रूण कुछ रोगियों या उपभोक्ताओं के बीच अवास्तविक अपेक्षाएँ या झूठी उम्मीदें भी पैदा कर सकते हैं जो अप्रमाणित या अनुचित उद्देश्यों के लिये उनकी मांग कर सकते हैं। 
  • क्लोनिंग और सिंथेटिक जीवन रूपों से संबंधित मुद्दे: सिंथेटिक भ्रूण कुछ सुरक्षा और सामाजिक चुनौतियाँ भी उत्पन्न कर सकते हैं। 
    • स्टेम कोशिकाओं में हेरफेर करने और सिंथेटिक जीवन रूप या क्लोनिंग निर्माण के दीर्घकालिक प्रभावों एवं परिणामों के बारे में अभी भी व्यापक अनिश्चितता व्याप्त है। 
    • इन प्रौद्योगिकियों को मानवों या पशुओं पर लागू करने से पहले वृहत एवं कठोर परीक्षण और निगरानी की आवश्यकता है। 

SHE से संबंधित मुद्दों को संबोधित करने के लिये क्या किया जा सकता है? 

  • व्यापक विमर्श की आवश्यकता: SHE के विकास से संबंधित नैतिक प्रश्नों का कोई सरल या निश्चित उत्तर मौजूद नहीं है, क्योंकि उनसे जटिल और विविध दृष्टिकोण एवं हित संलग्न हैं। 
    • इस प्रकार, शोधकर्ताओं, नैतिकतावादियों, नीति-निर्माताओं, नियामकों, चिकित्सकों, रोगियों, दाताओं, पक्ष-समर्थकों, मीडिया और जनता जैसे विभिन्न अभिकर्ताओं और क्षेत्रों के बीच वृहत संवाद एवं विमर्श की आवश्यकता है। 
  • विभिन्न क्षेत्रों के बीच सहयोग की आवश्यकता: विभिन्न देशों और क्षेत्रों के बीच अधिक सहयोग एवं समन्वय की भी आवश्यकता है, क्योंकि इन प्रौद्योगिकियों से वैश्विक निहितार्थ और अनुप्रयोग संलग्न हैं। 
    • अधिक सामंजस्यपूर्ण और मानकीकृत कानूनों एवं दिशानिर्देशों की आवश्यकता है, साथ ही इस क्षेत्र में क्रियान्वित अभ्यासों और परिणामों के संबंध में अधिक पारदर्शिता एवं जवाबदेही सुनिश्चित करने की भी आवश्यकता है। 
  • जोखिमों को संतुलित करने की आवश्यकता: इस क्षेत्र में आगे बढ़ने के विषय में अधिक संतुलन और सतर्कता की आवश्यकता है, क्योंकि यहाँ अवसर और जोखिम दोनों ही मौजूद हैं। सृजित सिंथेटिक भ्रूणों के साथ-साथ इस क्षेत्र में उपयोग किये जाने वाले या इससे प्रभावित होने वाले प्राकृतिक भ्रूणों के प्रति अधिक सम्मान और दायित्व की आवश्यकता है। 
    • इस क्षेत्र का उपयोग करने में अधिक बुद्धिमत्ता और दूरदर्शिता की भी आवश्यकता है, क्योंकि इसमें मानवता के लिये लाभ और लागत दोनों निहित हैं। 

निष्कर्ष 

सिंथेटिक मानव भ्रूण विज्ञान का एक नया मोर्चा है जो अवसर और जोखिम दोनों प्रदान करता है। उनमें मानव विकास के बारे में हमारी समझ को बढ़ाने और हमारे स्वास्थ्य में सुधार करने की क्षमता है, लेकिन वे नैतिक दुविधाएँ और सामाजिक चुनौतियाँ भी रखते हैं। यह सुनिश्चित करने के लिये कि उनका उपयोग अच्छाई के लिये किया जाए न कि बुराई के लिये, उन पर सावधानीपूर्वक विचार और विनियमन की आवश्यकता है। समाज उन्हें स्वीकार करे और उनका सम्मान करे, इसके लिये उन पर वृहत संवाद एवं विमर्श किया जाना चाहिये। इसके साथ ही, वे मानव जीवन पर हमारे दृष्टिकोण और मूल्यों पर पुनर्विचार करने की चुनौती भी पेश करते हैं। 

अभ्यास प्रश्न: अनुसंधान और चिकित्सा के लिये सिंथेटिक मानव भ्रूण के सृजन एवं उपयोग से संबद्ध वैज्ञानिक, नैतिक और विधिक निहितार्थों की चर्चा कीजिये। 

  UPSC परीक्षा, विगत वर्षों  के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न:अनुप्रयुक्त जैव प्रौद्योगिकी में अनुसंधान और विकासात्मक उपलब्धियाँ क्या हैं? ये उपलब्धियाँ समाज के गरीब वर्गों के उत्थान में कैसे मदद करेंगी? (2021)

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