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भारतीय अर्थव्यवस्था

भारतीय रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण

  • 25 Jul 2023
  • 16 min read

यह एडिटोरियल 23/07/2023 को ‘हिंदू बिज़नेसलाइन’ में प्रकाशित ‘‘Will rupee trade gain currency globally?’’ लेख पर आधारित है। इसमें डी-डॉलराइज़ेशन और भारतीय रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण के बारे में चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

डी-डॉलराइज़ेशन, मुद्रा विनिमय समझौते, पूंजी खाता परिवर्तनीयता, SWIFT, अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र, एकीकृत भुगतान इंटरफेस, विशेष वोस्ट्रो रुपया खाते, भारतीय रिज़र्व बैंक

मेन्स के लिये:

डी-डॉलराइज़ेशन से संबंधित लाभ और चुनौतियाँ

वैश्विक व्यापार में अमेरिकी डॉलर ने लंबे समय से प्रभुत्व बना रखा है और विदेशी मुद्रा लेनदेन, व्यापार एवं आरक्षित होल्डिंग्स के लिये प्रमुख मुद्रा के रूप में कार्य करता रहा है। 

अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में रुपए के उपयोग को बढ़ावा देने के भारत के जारी रहे प्रयास डी-डॉलराइज़ेशन (de-dollarisation) और मुद्रा विविधीकरण (currency diversification) की दिशा में कदम का प्रतिनिधित्व करते हैं। हालाँकि इसमें चुनौतियाँ बनी हुई हैं लेकिन निर्यात वृद्धि, पूंजी खाता परिवर्तनीयता (capital account convertibility) और निरंतर आर्थिक विकास का संयोजन रुपए के लिये वैश्विक स्तर पर अपनी स्थिति हासिल करने का मार्ग प्रशस्त कर सकता है। 

डॉलर के प्रभुत्व को कम करने की यात्रा में कुछ ठोस प्रयासों की आवश्यकता होगी और इसकी सफलता तेज़ी से उभरते वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में भारत के लचीलेपन और अनुकूलन क्षमता पर निर्भर करेगी। 

उन देशों की संख्या बढ़ती जा रही है जो डॉलर पर अत्यधिक निर्भरता से संबद्ध अंतर्निहित जोखिमों की पहचान कर रहे रहे हैं। इन जोखिमों में अमेरिकी राजनीति के प्रभाव में आना, प्रतिबंध और विनिमय दर अस्थिरता जैसे जोखिम शामिल हैं। इन चिंताओं पर एक प्रतिक्रिया के रूप में कई उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएँ सक्रिय रूप से अपने व्यापार के डी-डॉलराइज़ेशन और अपनी मुद्रा के उपयोग में विविधता लाने के प्रयास कर रही हैं। 

मुद्रा के उपयोग के वर्तमान रुझान:  

  • अंतर्राष्ट्रीय भुगतान में स्थानीय मुद्राओं का उपयोग: 
    • SWIFT डेटा संकेत देता है कि वर्ष 2013 से 2019 के बीच अंतर्राष्ट्रीय लेनदेन में स्थानीय मुद्राओं के उपयोग में वृद्धि हुई। 
  • नॉन-डॉलर-डीनॉमिनेटेड व्यापार में वृद्धि: 
    • वर्ष 2022 का त्रिवार्षिक बैंक सर्वेक्षण दैनिक कारोबार में डॉलर की हिस्सेदारी में मामूली वृद्धि को दर्शाता है लेकिन उभरती अर्थव्यवस्थाएँ तेज़ी से डॉलर के अतिरिक्त किसी अन्य मुद्रा मूल्य में व्यापार या नॉन-डॉलर-डीनॉमिनेटेड व्यापार (Non-Dollar-Denominated Trade) में संलग्न हो रही हैं। 
  • चीन के रॅन्मिन्बी का उदय: 
    • वर्ष 2022 में चीन की मुद्रा रॅन्मिन्बी (Renminbi) विश्व स्तर पर पाँचवीं सबसे अधिक कारोबार वाली मुद्रा बन गई, जहाँ 70% से अधिक चीन-रूस व्यापार युआन और रूबल में संपन्न हुआ। 
  • स्थानीय मुद्रा बॉण्ड बाज़ारों का विकास: 
    • उभरते स्थानीय मुद्रा बॉण्ड बाज़ारों का वर्ष 2015 से 2021 के बीच व्यापक विस्तार हुआ, जो डॉलर-मूल्य वाले परिसंपत्तियों (dollar-denominated assets) के लिये एक विकल्प पेश करते हैं। 

रुपए को मज़बूत करने के लिये भारत के प्रमुख प्रयास:  

  • अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र (International Financial Services Centre- IFSC) की स्थापना: 
    • गिफ्ट सिटी (GIFT City), गुजरात में भारत का पहला IFSC स्थापित किया गया है, जिसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय लेनदेन में रुपए के उपयोग को बढ़ावा देना है। 
  • पूंजी बाज़ार का उदारीकरण: 
    • भारत ने रुपए की अपील को बढ़ाने के लिये रुपए-मूल्य वाले वित्तीय साधनों, जैसे बॉण्ड और डेरिवेटिव्स, की उपलब्धता में वृद्धि की है। 
  • डिजिटल भुगतान प्रणाली को बढ़ावा: 
    • यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (UPI) जैसी पहल ने रुपए में डिजिटल लेनदेन की सुविधा प्रदान की है। 
    • हाल ही में फ्राँस और सिंगापुर ने UPI का सीमित उपयोग शुरू किया है। 
  • स्पेशल वोस्ट्रो रुपी अकाउंट (SVRAs) की शुरुआत: 
    • भारत ने 18 देशों के अधिकृत बैंकों को बाज़ार-निर्धारित विनिमय दरों पर रुपए में भुगतान के निपटान के लिये SVRAs खोलने की अनुमति दी है। 
    • इस तंत्र का उद्देश्य कम लेन-देन लागत, अधिक मूल्य पारदर्शिता, तेज़ निपटान समय और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को समग्र रूप से बढ़ावा देना है। 

रुपए के अंतर्राष्ट्रीयकरण हेतु उपलब्ध अवसर:

  • उत्प्रेरक के रूप में निर्यात वृद्धि: 
    • वर्ष 2030 तक भारत का 2 ट्रिलियन डॉलर का महत्त्वाकांक्षी निर्यात लक्ष्य रुपए की अंतर्राष्ट्रीय स्थिति में सुधार लाने में योगदान कर सकता है। 
  • पूर्ण पूंजी खाता परिवर्तनीयता: 
    • रुपए की पूर्ण परिवर्तनीयता हासिल करने से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और निवेश के लिये इसका आकर्षण बढ़ेगा। 
  • सतत् आर्थिक विकास: 
    • उच्च और निरंतर आर्थिक विकास से वैश्विक व्यापार बाज़ार में भारत की स्थिति मज़बूत होगी। 
  • अमेरिकी मौद्रिक नीति प्रभाव को कम करना: 
    • अमेरिकी डॉलर के उपयोग को कम करके विश्व के विभिन्न देश अपनी अर्थव्यवस्थाओं पर अमेरिकी मौद्रिक नीति के प्रभाव को कम कर सकते हैं। 
  • बेहतर मौद्रिक नीति प्रभावशीलता: 
    • रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण भारत की मौद्रिक नीति की प्रभावशीलता को बढ़ा सकता है। 
    • रुपए की व्यापक अंतर्राष्ट्रीय पहुँच के साथ भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) मुद्रास्फीति को प्रबंधित करने और आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिये विनिमय दर को एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल कर सकता है। 
    • यह मौद्रिक स्थितियों के प्रबंधन और आर्थिक चुनौतियों  सामना करने में अधिक लचीलापन प्रदान करेगा। 

रुपए में व्यापार से संबद्ध चुनौतियाँ और सीमाएँ:  

  • डॉलर पर उच्च निर्भरता: 
    • वृहत प्रयासों के बावजूद भारतीय आयात का एक बड़ा हिस्सा (80%) अभी भी डॉलर में होता है, जिससे डी-डॉलराइज़ेशन का प्रभाव सीमित हो जाता है। 
  • गैर-परिवर्तनीय मुद्रा संबंधी चिंताएँ: 
    • रुपए की परिवर्तनीयता की कमी के कारण भागीदार देश स्थानीय मुद्रा व्यापार में संलग्न होने में संकोच कर सकते हैं, जिससे संभावित व्यापार चुनौतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं। 
  • बढ़ता रुपया भंडार: 
    • उपयोग के लिये पर्याप्त अवसर के बिना भागीदार देशों के भंडार में रुपए का संचय समस्याएँ उत्पन्न कर सकता है। 
  • विनिमय दर अस्थिरता: 
    • रुपए का अंतर्राष्ट्रीयकरण इसे विनिमय दर में वृहत अस्थिरता के जोखिम में लाएगा। 
    • रुपए के मूल्य में उतार-चढ़ाव व्यापार प्रतिस्पर्द्धात्मकता, विदेशी निवेश प्रवाह और वित्तीय बाज़ार स्थिरता को प्रभावित कर सकता है। 
    • संभावित प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के लिये विनिमय दर जोखिमों का प्रबंधन महत्त्वपूर्ण हो जाता है। 
  • पूंजी पलायन और वित्तीय स्थिरता: 
    • रूपए को अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में ले जाने से पूंजी पलायन की स्थिति भी बन सकती है, यदि निवेशक रुपये में भरोसा खो दें या प्रतिकूल आर्थिक स्थितियों को लेकर आशंकित हों। 
    • इससे देश के विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव पड़ सकता है, वित्तीय स्थिरता प्रभावित हो सकती है और मौद्रिक नीति प्रबंधन के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं। 
  • पूंजी नियंत्रण: 
    • भारत में अभी भी पूंजी नियंत्रण लागू है जो विदेशियों की भारतीय बाज़ारों में निवेश और व्यापार करने की क्षमता को सीमित करता है। 
    • इन प्रतिबंधों के कारण रुपए का अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा के रूप में व्यापक रूप से उपयोग करना कठिन हो जाता है। 
  • प्रतिस्पर्द्धी मुद्राएँ: 
    • रुपए को अमेरिकी डॉलर, यूरो और येन जैसी स्थापित अंतर्राष्ट्रीय मुद्राओं से प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ता है, जिन्हें पहले से व्यापक स्वीकृति और तरलता प्राप्त है। 
    • बाज़ार हिस्सेदारी हासिल करना और इन प्रमुख मुद्राओं को विस्थापित करना एक महत्त्वपूर्ण चुनौती सिद्ध हो सकती है। 

आगे की राह: 

  • मुद्रा परिवर्तनीयता को सुदृढ़ करना: 
    • भारत को रुपए के लिये पूर्ण पूंजी खाता परिवर्तनीयता प्राप्त करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये। 
    • इससे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और निवेश के लिये एक व्यवहार्य मुद्रा के रूप में इसका आकर्षण बढ़ेगा। 
    • इस संबंध में पूंजी प्रवाह को उदार बनाने और विदेशी मुद्रा नियंत्रण को सरल करने के प्रयास महत्त्वपूर्ण सिद्ध होंगे। 
  • द्विपक्षीय मुद्रा व्यवस्था को प्रोत्साहित करना: 
    • व्यापार निपटान में रुपए के उपयोग को बढ़ावा देने के लिये भागीदार देशों के साथ द्विपक्षीय मुद्रा विनिमय समझौतों (currency swap agreements) को किया जा सकता है। 
    • इस तरह की व्यवस्था से डॉलर पर निर्भरता कम हो सकती है और अन्य देशों के साथ मज़बूत आर्थिक संबंधों को बढ़ावा मिल सकता है। 
  • क्षेत्रीय पहलों का लाभ उठाना: 
    • भारत स्थानीय मुद्राओं में क्षेत्रीय व्यापार निपटान को बढ़ावा देने के लिये क्षेत्र के अन्य देशों के साथ सहयोग कर सकता है। 
    • चिआंग माई पहल बहुपक्षीयकरण (Chiang Mai Initiative Multilateralization- CMIM) जैसी पहलों में भाग लेने से व्यापार में एशियाई मुद्राओं के उपयोग को सशक्त किया जा सकता है और डॉलर पर निर्भरता कम हो सकती है। 
  • व्यापार साझेदारी में विविधता लाना: 
    • भारत को विशिष्ट देशों के साथ आयात और निर्यात की सघनता को उचित करने के लिये अपनी व्यापार साझेदारियों में विविधता लानी चाहिये। 
    • व्यापक व्यापारिक साझेदारों के साथ जुड़ने से वैश्विक व्यापार में रुपए के उपयोग में वृद्धि के अवसर पैदा होंगे। 
  • मुद्रा स्थिरता में विश्वास का निर्माण: 
    • विवेकपूर्ण राजकोषीय एवं मौद्रिक नीतियों का प्रदर्शन करने और मुद्रा स्थिरता बनाए रखने से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिये एक विश्वसनीय एवं स्थिर मुद्रा के रूप में रुपए में विश्वास पैदा करने में मदद मिलेगी। 

अभ्यास प्रश्न: भारत, वैश्विक व्यापार में रुपए की भूमिका को बढ़ाने के साथ अमेरिकी डॉलर पर अपनी निर्भरता को किस प्रकार कम कर सकता है? 

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. हाल ही में निम्नलिखित में से किस मुद्रा को IMF के SDR बास्केट में शामिल करने का प्रस्ताव रखा गया है? (2016)

(a) रूबल
(b) रैंड
(c) भारतीय रुपया 
(d) रॅन्मिन्बी 

उत्तर : (d)


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:(2019)

1- क्रय शक्ति समता [परचेजिंग पावर पैरिटि (PPP)] विनिमय दरों की गणना विभिन्न देशों में एक समान वस्तुओं और सेवाओं के मूल्यों की तुलना कर की जाती है।
2- PPP डॉलर के संदर्भ में भारत, विश्व की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।

उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर : (a)

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