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भारतीय अर्थव्यवस्था

प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र के ऋण का पुनर्गठन

  • 02 Jun 2021
  • 9 min read

यह एडिटोरियल दिनांक 30/05/2021 को 'द हिंदुस्तान टाइम्स' में प्रकाशित लेख "The priority sector lending India needs" पर आधारित है। इसमें सामाजिक क्षेत्र को प्राप्त होने वाले ऋण की संरचना को पुनर्गठित करने की जरूरत है।

संदर्भ

कोविड -19 ने हमें अलग अलग क्षेत्रों से जुड़ी कई पुरानी नीतियों की फिर से जाॅंच करने के लिये मजबूर किया है। साथ ही, स्वास्थ्य और शिक्षा के बुनियादी ढाॅंचे के महत्त्व पर तेज़ी से प्रकाश डाला है। इन्हीं में से एक क्षेत्र प्रायोरिटी सेक्टर लेंडिंग (Priority Sector Lending- PSL) अर्थात् 'प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को उधार'।  

  • PSL की अवधारणा बैंकों को अर्थव्यवस्था में कुछ विशिष्ट क्षेत्रों और गतिविधियों हेतु उधार प्रदान से संबंधित है।
  • भारत में बैंक अपने समायोजित शुद्ध बैंक ऋण (Adjusted Net Bank Credit- ANBC) का लगभग 40% यानि ₹ 39,50,205 की राशि प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को ऋण स्वरूप देते हैं। वर्तमान में आर्थिक विकास और सामाजिक विकास के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता है। 
  • अतः एक अवधारणा एवं अभ्यास के रूप में सार्वजनिक क्षेत्र के ऋण को पुनः 'प्राथमिकता' दी जा सकती है।

भारत में प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को उधार: इतिहास और पृष्ठभूमि

  • अंतर्निहित दर्शन: भारतीय संविधान ने स्वाभाविक रूप से 'राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों' के माध्यम से समावेशी विकास, विकास के लक्ष्य एवं दिशानिर्देश प्रदान किये हैं।
    • इसके अलावा भारत में शासन का 'समाजवादी सिद्धांतों' और 'समाजवाद' की ओर झुकाव स्वतंत्रता के बाद के युग में काफी स्पष्ट था।
    • यह प्राथमिक क्षेत्र को उधार देने की आवश्यकता के अंतर्निहित दर्शन को स्पष्ट करता है।
  • तात्कालिक कारण: उस समय अर्थव्यवस्था का प्रमुख प्राथमिक क्षेत्र यानी कृषि को धन की आवश्यकता थी, लेकिन यह वाणिज्यिक बैंकों के लिये इच्छित मार्ग नहीं था। वो इस क्षेत्र को ऋण प्रदान करना नहीं चाहते थे।
  • उत्पत्ति: जुलाई 1966 में अखिल भारतीय ग्रामीण ऋण समीक्षा समिति ने सिफारिश की कि वाणिज्यिक बैंकों को ग्रामीण ऋण के विस्तार में एक पूरक भूमिका निभानी चाहिये। इसे ही भारत में PSL की उत्पत्ति के रूप में देखा जा सकता है।
    • हालाँकि PSL की परिभाषा को वर्ष 1972 में नेशनल क्रेडिट काउंसिल में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank Of India- RBI) की रिपोर्ट के आधार पर औपचारिक रूप दिया गया था।
  • उद्देश्य: PSL वाणिज्यिक बैंकों को मुनाफे के साथ-साथ उच्च सामाजिक रिटर्न उत्पन्न करने की भी अनुमति देता है और यह रणनीतिक क्षेत्रों में निवेश बढ़ाकर आर्थिक विकास में भी योगदान देता है।
  • नियामकीय नियंत्रण: भारतीय रिज़र्व बैंक, जो भारत में बैंकिंग क्षेत्र का पर्यवेक्षी निकाय है, जिसे देश का शीर्ष बैंक भी कहा जाता है, समय-समय पर भारत में बैंकों को PSL के संबंध में निर्देश/दिशा-निर्देश जारी करता है।
  • संघटक: वर्तमान में, पीएसएल में आठ क्षेत्र शामिल हैं। जिसमे से कृषि कुल समायोजित नेट बैंक क्रेडिट का 18% प्राप्त करने वाला सबसे बड़ा क्षेत्र है। दूसरी महत्त्वपूर्ण क्षेत्र सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग मंत्रालय' है।
    • इसके अलावा पाॅंच क्षेत्रों को PSL के रूप में वर्गीकृत किया गया है - आवास, निर्यात ऋण, शिक्षा, सामाजिक बुनियादी ढाॅंचा एवं नवीकरणीय ऊर्जा। इसके अतिरिक्त सी 'कमज़ोर क्षेत्र' एवं 'अन्य' नमक दो केटेगरी है

इस क्षेत्र से जुड़े मुद्दे

  • एनपीए का बढ़ता बोझ: बदलाव के बावजूद आज तक कृषि और लघु उद्योगों (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों या एमएसएमई के रूप में परिभाषित) क्षेत्र पर अधिक ध्यान केंद्रित किया गया है।
    • PSL में शामिल क्षेत्रों को ऋण देने वाले बैंकों के पास उनके ऋण पोर्टफोलियो में दो अंकों की गैर-निष्पादित परिसंपत्तियाॅं (एनपीए) हैं। इस कारण यह क्षेत्र उनके लिये आर्थिक रूप से कम व्यवहारिक हो गया है।
    • इसके अलावा बैंकों को एनपीए के कारण प्रावधान पूंजी के लिये अलग से प्रावधान करना पड़ता है। इससे बैंकों की लाभप्रदता कम होती है।
  • नैतिक जोखिम की समस्या: एनपीए की उच्च संभावना वाले इस उधारकर्ता वर्ग को ऋण देने से बैंक प्रबंधकों के लिये भ्रष्टाचार के अवसर पैदा होते हैं अतः ऋण लेने वाले ग्राहकों/ लाभार्थियों के लिये नैतिक दायित्व उत्पन्न हो जाता हैं।
  • बैंकों का आर्थिक बोझ: PSL उत्पादक क्षेत्रों से धन को दूसरे अनुत्पादक क्षेत्रों में निवेश करने पर मजबूर करता है। ऋण हानियों और भुगतान चूक के रूप में अलग से पूंजी का प्रावधान करने के कारण बैंकों पर आर्थिक बोझ डालता है।
  • कैपिंग मुद्दे: शैक्षिक बुनियादी ढाॅंचे की बेहद कम क्रेडिट सीमा, ₹5 करोड़, है। इसके अलावा स्वास्थ्य, जो सामाजिक बुनियादी ढाॅंचे की एक उप-श्रेणी है, में अस्पतालों के निर्माण के लिये सीमा ₹10 करोड़ है।

आगे की राह

  • PSL से अनुदान: PSL के कुछ हिस्से को सीधे सरकार द्वारा भुगतान किये गए अनुदान में परिवर्तित करने से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के मूल्यांकन में वृद्धि हो सकती है एवं दक्षता में भी बढ़ोतरी होगी।
  • सामाजिक विकास के लिये JAM का लाभ उठाना: JAM के पूर्ण उपयोग (जन धन खातों तक पूर्ण पहुॅंच, सार्वभौमिक आधार संख्या एवं मोबाइल तक पहुॅंच) से उन मुद्दों का समाधान कर सकती हैं जिन मुद्दों का समाधान PSL वाले क्षेत्र नहीं कर सकते हैं। उदाहरण के लिये JAM प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) के कामकाज को संस्थागत रूप दे सकता है।
  • सामाजिक बुनियादी ढाॅंचा का बढ़ता कोटा: कोविड-19 ने हमें अतीत की कई चीजों की फिर से जाॅंच करने पर मजबूर कर दिया है। अत: सामाजिक बुनियादी ढाॅंचे के गठन को प्राथमिकता देने के लिये PSL का पुनर्गठन किया जाना चाहिये।

निष्कर्ष

'प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को उधार प्रदान करने की योजना (लक्ष्यों और उप-लक्ष्यों का निर्धारण कर) को कई पहलुओं (जैसे-  बैंक के प्रकार, अलग-अलग क्षेत्रों में उनके शाखाओं की उपलब्धता और किसी विशेष क्षेत्र को उधार देने के लिये बैंक की इच्छा) को ध्यान में रखते हुए संयोजित करना चाहिये।

अभ्यास प्रश्न: क्या आर्थिक विकास और सामाजिक विकास के बीच संतुलन हेतु 'प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र को ऋण' फिर से 'प्राथमिकता' सूची में शामिल की जा सकती है?

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