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भारत में कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व की पुनर्कल्पना

  • 24 Dec 2025
  • 142 min read

यह एडिटोरियल 23/12/2025 को द हिंदू में प्रकाशित “Step up: On corporate environmental responsibility” शीर्षक वाले लेख पर आधारित है। लेख में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि किस प्रकार कॉरपोरेट-प्रेरित विकास ने पर्यावरणीय तनाव को बढ़ा दिया है, जिससे सतत विकास के लिये सुदृढ़ निगमित पर्यावरणीय दायित्व अनिवार्य हो गया है।

प्रिलिम्स के लिये: कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व (CSR), सतत विकास लक्ष्य (SDG), कंपनी अधिनियम, 2013, CSR पर इंजेती श्रीनिवास समिति, अनुच्छेद 51(g)

मेन्स के लिये: CSR की सफलता और सीमाएँ, CSR की क्षमता को उजागर करने के उपाय 

तेज़ी से बढ़ते पर्यावरणीय क्षरण और जलवायु जोखिम की पृष्ठभूमि में केवल कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) की औपचारिक पूर्ति अब पर्याप्त नहीं रह गई है; भारतीय कंपनियों को वास्तविक पर्यावरणीय उत्तरदायित्व को अपने मूल कर्त्तव्यों की संरचना में अंतर्निहित करने की आवश्यकता है। हालाँकि भारत में CSR पर व्यय लगातार बढ़ रहा है और अनुपालन स्तर भी उच्च बना हुआ है, फिर भी पर्यावरणीय पहलें बहुत हद तक परियोजना-आधारित हैं तथा मुख्य व्यावसायिक निर्णयों से पृथक ही बनी रहती हैं। कमज़ोर प्रवर्तन, ग्रीनवॉशिंग तथा परिणामों के सीमित मूल्यांकन के कारण CSR-प्रेरित पर्यावरणीय प्रयासों का विकासात्मक प्रभाव क्षीण हो जाता है। इसके बावजूद अधिक सशक्त विनियमन पर्यावरणीय कर्त्तव्यों की संवैधानिक आधारभूमि तथा परिणामोन्मुख CSR सुधारों के माध्यम से भारतीय कंपनियाँ सतत विकास में एक महत्त्वपूर्ण साझेदार के रूप में उभर सकती हैं।

कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व क्या है?

  • परिचय: कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व (CSR) एक ऐसा व्यावसायिक मॉडल है जिसमें कंपनियाँ सामाजिक और पर्यावरणीय चिंताओं को अपने संचालन में एकीकृत करती हैं।
    • यद्यपि वैश्विक स्तर पर यह प्रायः स्वैच्छिक होता है, फिर भी भारत कंपनी अधिनियम, 2013 के माध्यम से CSR को कानूनी अनिवार्यता बनाने वाला विश्व का पहला देश बन गया।
  • भारत में वैधानिक कार्यढाँचा: CSR जनादेश कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 135 और कंपनी (CSR नीति) नियम, 2014 द्वारा शासित है।
    • पात्रता मानदंड: किसी कंपनी पर CSR प्रावधान लागू होंगे यदि उसने तुरंत पूर्ववर्ती वित्तीय वर्ष में निम्नलिखित में से किसी एक सीमा को पूरा किया हो—
      • निवल संपत्ति: ₹500 करोड़ या उससे अधिक।
      • टर्नओवर: ₹1,000 करोड़ या उससे अधिक।
      • निवल लाभ: ₹5 करोड़ या उससे अधिक।
    • 2% अनिवार्यता (व्यय की आवश्यकता): पात्र कंपनियों के लिये यह कानूनी रूप से अनिवार्य है कि वे पिछले तीन वित्तीय वर्षों के दौरान अर्जित अपने औसत निवल लाभ का कम से कम 2% CSR गतिविधियों पर व्यय करें।
  • अनुमत गतिविधियाँ (अनुसूची VII): CSR निधियों का उपयोग किसी भी उद्देश्य के लिये नहीं किया जा सकता। गतिविधि का कंपनी अधिनियम की अनुसूची VII के अंतर्गत होना अनिवार्य है जिसमें निम्नलिखित सम्मिलित हैं— 
    • भुखमरी, गरीबी तथा कुपोषण का उन्मूलन; स्वास्थ्य, स्वच्छता तथा सुरक्षित पेयजल
    • शिक्षा, व्यावसायिक कौशल और आजीविका संवर्द्धन को बढ़ावा देना 
    • लैंगिक समानता, महिला सशक्तीकरण और वरिष्ठ नागरिकों तथा कमज़ोर समूहों के लिये समर्थन
    • पर्यावरण संधारणीयता, पारिस्थितिक संतुलन और प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण
    • राष्ट्रीय धरोहर, कला, संस्कृति और पारंपरिक शिल्पकला का संरक्षण एवं संवर्द्धन
    • सशस्त्र बलों, CAPF और अर्द्ध-सैनिक बलों के पूर्व सैनिकों व उनके आश्रितों का कल्याण
    • ग्रामीण, राष्ट्रीय, पैरालंपिक और ओलंपिक खेलों का प्रोत्साहन
    • प्रधानमंत्री राहत और अन्य सरकारी कल्याण निधियों में योगदान
    • सतत विकास लक्ष्यों के अनुरूप अनुसंधान, नवाचार, इनक्यूबेटर और सार्वजनिक वित्त पोषित संस्थानों को समर्थन देना।
  • नियमों का पालन न करना और दंड: वर्ष 2021 में भारत ने "पालन करो या स्पष्टीकरण दो" मॉडल से आगे बढ़ते हुए "पालन करो या दंड भुगतो" मॉडल अपनाया।
    • अप्रयुक्त धनराशि: यदि अप्रयुक्त राशि किसी चालू परियोजना से संबंधित है, तो उसे वित्तीय वर्ष की समाप्ति के 30 दिनों के भीतर एक विशेष अव्ययित CSR खाते में स्थानांतरित किया जाना चाहिये तथा 3 वर्षों के भीतर व्यय किया जाना चाहिये।
    • यदि यह किसी चालू परियोजना के लिये नहीं है, तो इसे 6 महीने के भीतर सरकार द्वारा निर्दिष्ट निधि (अनुसूची VII) में स्थानांतरित किया जाना चाहिये।
    • दंड प्रावधान:
      • कंपनी पर दंड: अप्रयुक्त राशि का दोगुना या ₹1 करोड़ (जो भी कम हो)।
      • दोषी/उत्तरदायी अधिकारियों पर दंड: अअप्रयुक्त राशि का 1/10वाँ हिस्सा या ₹2 लाख (जो भी कम हो)।

CSR

कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास को किस प्रकार गति प्रदान करता है?

  • विकास संबंधी अंतरालों की पूर्ति: CSR स्वास्थ्य, शिक्षा, कौशल विकास और ग्रामीण अधोसंरचना में सरकारी प्रयासों का पूरक है, जो अधूरी सामाजिक जरूरतों को पूरा करने तथा समावेशी विकास को बढ़ावा देने में मदद करता है। 
    • उदाहरण के लिये, Fulcrum की नवीनतम भारत CSR परफॉर्मेंस रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2023–24 में भारतीय कॉर्पोरेट क्षेत्र ने CSR पहलों पर रिकॉर्ड ₹34,909 करोड़ व्यय किये जो पिछले वर्ष की तुलना में 13% की वृद्धि है।
    • टाटा समूह और इन्फोसिस जैसी कंपनियों ने विद्यालयी अवसंरचना, डिजिटल कक्षाओं और प्राथमिक स्वास्थ्य परियोजनाओं को व्यापक स्तर पर समर्थन दिया है जिससे आकांक्षी और ग्रामीण ज़िलों में सेवाओं की अभिगम्यता में प्रत्यक्ष सुधार हुआ है।
  • सतत विकास सुनिश्चित करना: पर्यावरण के प्रति जिम्मेदार प्रथाओं को प्रोत्साहित करके, CSR आर्थिक विकास को पारिस्थितिक संरक्षण और दीर्घकालिक संसाधन संधारणीयता के साथ संतुलित करता है।
    • इंफोसिस ने राष्ट्रीय लक्ष्यों के अनुरूप, वर्ष 2040 तक शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करने की प्रतिबद्धता जताई है।
    • ITC की जलसंभर विकास परियोजनाओं ने सूखाग्रस्त क्षेत्रों में जल-हितैषी परिणाम उत्पन्न करने में सहायता की है, जिससे व्यावसायिक विकास पारिस्थितिक संतुलन के साथ संरेखित हुआ है।
  • हितधारक-केंद्रित शासन: CSR शेयरधारकों पर केंद्रित दृष्टिकोण से हटकर हितधारकों की उत्तरदायित्व की ओर एक संक्रमण को दर्शाता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि व्यवसाय कर्मचारियों, समुदायों और समग्र रूप से समाज के प्रति जवाबदेह बने रहें।
    • कंपनियाँ परियोजना डिज़ाइन में स्थानीय समुदायों को तेज़ी से शामिल कर रही हैं, जैसा कि महिंद्रा एंड महिंद्रा के कौशल विकास कार्यक्रमों में देखा जा सकता है, जो प्रशिक्षण को स्थानीय रोज़गार आवश्यकताओं के अनुरूप बनाते हैं।
  • दीर्घकालिक व्यावसायिक संवहनीयता का समर्थन: CSR सामाजिक, पर्यावरणीय और नियामक जोखिमों को कम करता है, एक स्थिर परिचालन वातावरण बनाता है तथा दीर्घकालिक लाभप्रदता का समर्थन करता है।
    • उदाहरण के लिये, L&T की निर्माण कौशल परिषदों ने प्रशिक्षित स्थानीय कार्यबल तैयार करके परियोजना में होने वाली विलंब को कम किया।
  • नैतिक और सामाजिक उत्तरदायित्व: चूँकि व्यवसाय सार्वजनिक संसाधनों और सामाजिक स्थिरता से लाभान्वित होते हैं, इसलिये CSR समाज को प्रतिदान देने के नैतिक कर्त्तव्य को अभिव्यक्त करता है।
    • CSR के अंतर्गत नैतिक आचरण और सामाजिक सहभागिता कॉर्पोरेट विश्वसनीयता, ब्रांड मूल्य एवं सार्वजनिक विश्वास को बढ़ाती है, जिससे सामाजिक संचालन अनुमति सुदृढ़ होती है।
      • उदाहरणस्वरूप, लगभग 49% पात्र सूचीबद्ध कंपनियों ने अपने निर्धारित 2% CSR व्यय से अधिक निवेश किया है, जो CSR आवंटन में सकारात्मक प्रवृत्तियों को दर्शाता है।
    • अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में किये जा रहे कार्य परोपकार-आधारित मॉडल के इस नैतिक आयाम का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। 
  • राष्ट्रीय और वैश्विक लक्ष्यों के साथ तालमेल: CSR व्यय अब सतत विकास लक्ष्यों (SDG) एवं स्वच्छ भारत, स्किल इंडिया और जल जीवन मिशन जैसी राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के साथ अधिकाधिक संरेखित हो रहा है।
    • CSR अब मात्र ‘परोपकार’ न होकर ‘राष्ट्रीय विकास पूँजी’ का रूप ले चुका है। वर्ष 2023–24 में कुल व्यय की लगभग 97% धनराशि (करीब ₹33,840 करोड़) सीधे सामाजिक परियोजनाओं पर व्यय की गई, न कि केवल सरकारी कोष में स्थानांतरित किया गया।
      • इससे यह संकेत मिलता है कि कंपनियाँ सक्रिय रूप से ऐसे कार्यक्रम लागू कर रही हैं, जो ज़मीनी स्तर पर जल जीवन एवं स्किल इंडिया मिशनों के समान हैं।
      • उदाहरण के लिये, HDFC बैंक और रिलायंस जैसी कंपनियों ने जल सुरक्षा को अपने ग्रामीण विकास पोर्टफोलियो में एकीकृत किया है।

भारत में CSR के विकासात्मक प्रभाव को सीमित करने वाली प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • क्षेत्रीय स्तर पर असमान अभिगम्यता और सामाजिक प्रभाव की सीमितता: यद्यपि CSR के अंतर्गत कुल व्यय में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, फिर भी इसके विकासात्मक लाभ भौगोलिक तथा क्षेत्रगत रूप से अत्यधिक संकेंद्रित बने हुए हैं।
    • CSR निधियों का 60% से अधिक भाग कुछ औद्योगिक राज्यों में ही व्यय हो जाता है, जबकि आकांक्षी ज़िलों तथा जनजातीय क्षेत्रों को अपेक्षाकृत बहुत कम सहायता प्राप्त होती है। 
    • अनेक CSR परियोजनाएँ दीर्घकालिक मानव-विकास परिणामों के स्थान पर दृश्यमान अवसंरचना पर केंद्रित रहती हैं, जिससे प्रभाव खंडित और सतही रह जाता है।
      • उदाहरण के लिये, शिक्षा से संबंधित CSR व्यय का झुकाव शहरी डिजिटल कक्षाओं की ओर है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में अधिगम परिणाम अब भी कमज़ोर बने हुए हैं।
  • सीमांत पर्यावरणीय कार्रवाई: कई कंपनियों द्वारा की जाने वाली पर्यावरणीय पहलें बहुत हद तक प्रतीकात्मक और मुख्य व्यावसायिक कार्यों से अलग-थलग रहती हैं, जिन पर अल्पकालिक गतिविधियों का प्रभुत्व होता है।
    • उदाहरण के लिये, पर्यावरणीय संधारणीयता संबंधी पहलें कुल CSR व्यय के 15% से भी कम हैं और कई कंपनियाँ व्यवस्थित उत्सर्जन कटौती के बजाय वृक्षारोपण अभियान जैसी अलग-अलग परियोजनाओं पर निर्भर करती हैं।
    • हालाँकि कंपनियाँ नेट-ज़ीरो प्रतिबद्धताओं की घोषणा करती हैं, लेकिन स्वतंत्र ESG समीक्षाएँ आपूर्ति शृंखला (स्कोप-3) उत्सर्जन के सीमित कवरेज को दर्शाती हैं, जिससे वास्तविक संधारणीयता लाभ कम हो जाते हैं।
  • आकस्मिक व्यय और अल्पकालिक सोच: वार्षिक 2% के अनिवार्य व्यय का दबाव सामयिक व्यय के एक चक्र का कारण बनता है, जहाँ कंपनियाँ दशकों तक चलने वाले परिवर्तनों के लिये प्रतिबद्ध होने के बजाय वार्षिक समय सीमा को पूरा करने के लिये त्वरित, उच्च-दृश्यता वाली परियोजनाओं को वित्त पोषित करती हैं। 
    • वे सॉफ्ट इंफ्रास्ट्रक्चर दीर्घकालिक अधोसंरचना विकास, जल आपूर्ति एकीकरण और अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों में निवेश करने में विफल रहते हैं
    • इससे विश्वास कम होता है और गैर सरकारी संगठनों के बीच अनुदान पर निर्भरता की संस्कृति उत्पन्न होती है, जो दीर्घकालिक कर्मचारियों या अधोसंरचनाओं हेतु योजना बनाने में असमर्थ होते हैं।
    • उदाहरण के लिये, वित्त वर्ष 2024 में, CSR में सक्रिय लगभग 65% संगठनों ने 5 से कम परियोजनाएँ लागू कीं, जो प्रायः एकमुश्त अनुदान के रूप में थीं। 
  • रणनीतिक असंगति और खंडित प्रयास: CSR को प्रायः मानव संसाधन या विधिक टीमों द्वारा प्रबंधित अनुपालन कर के रूप में माना जाता है, बजाय इसके कि इसे मुख्य व्यावसायिक रणनीति या राष्ट्रीय विकास लक्ष्यों में एकीकृत किया जाए।
    • इसके परिणामस्वरूप खंडित, छोटे पैमाने के हस्तक्षेप होते हैं जिनमें कुपोषण या गहन तकनीकी कौशल जैसे जटिल मुद्दों को हल करने के लिये आवश्यक गुणक प्रभाव की कमी होती है।
    • उदाहरण के लिये, लगभग 40% भारतीय कंपनियाँ CSR को अपने समग्र व्यावसायिक लक्ष्यों के साथ संरेखित करने में कठिनाई की रिपोर्ट करती हैं, जिसके परिणामस्वरूप ‘यादृच्छिक परोपकार’ जैसी स्थिति उत्पन्न होती है।
  • अनुपालन-संचालित परोपकार और नियंत्रण का केंद्रीकरण: यद्यपि लगभग 49% पात्र कंपनियाँ 2% CSR व्यय मानदंड से अधिक व्यय करती हैं, फिर भी प्रभावशीलता में व्यापक अंतर देखने को मिलता है।
    • धनराशि का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा कंपनी-नियंत्रित फाउंडेशनों के माध्यम से दिया जाता है, जिससे स्वतंत्रता, नवाचार एवं ज़मीनी स्तर तक अभिगम्यता के बारे में चिंताएँ बढ़ जाती हैं। 
    • लघु गैर सरकारी संगठनों और सामुदायिक संगठनों को CSR फंडिंग तक अभिगम्यता में बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जिससे हस्तक्षेपों की विविधता और नवोन्मेष सीमित हो जाता है।

कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व की पूरी क्षमता को उजागर करने के लिये किन उपायों की आवश्यकता है?

  • लक्षित और न्यायसंगत आवंटन: क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करने के लिये, CSR आवंटन को कॉर्पोरेट स्थान प्राथमिकताओं के बजाय ज़िला-स्तरीय विकास संकेतकों द्वारा निर्देशित किया जाना चाहिये।
    • ब्रिटेन के स्थान-आधारित सामाजिक निवेश मॉडल के समान एक राष्ट्रीय CSR प्राथमिकता कार्यढाँचा, आकांक्षी ज़िलों और जनजातीय क्षेत्रों में धन का प्रवाह सुनिश्चित कर सकता है। भारत, ज़िला विकास योजनाओं (DDP) के साथ CSR के आंशिक अभिसरण को अनिवार्य कर सकता है, ताकि सार्वजनिक योजनाओं के साथ दोहराव के बजाय पूरकता सुनिश्चित हो सके।
  • सतत विकास को मुख्य व्यवसाय और मूल्य शृंखलाओं में समाहित करना: पर्यावरणीय CSR को हाशिये की गतिविधियों तक सीमित न रखते हुए, उसे व्यवसाय-समेकित स्थिरता में रूपांतरित करना आवश्यक है, जैसा कि यूरोपीय संघ के ESG-आधारित कॉरपोरेट उत्तरदायित्व मॉडल में देखा जाता है। भारतीय कंपनियों को CSR को आपूर्ति शृंखला के कार्बन उत्सर्जन को कम करने, चक्रीय अर्थव्यवस्था प्रथाओं और जल प्रबंधन से जोड़ना चाहिये। 
    • उदाहरण के लिये, यूनिलीवर की वैश्विक स्थिरता योजना आपूर्तिकर्त्ताओं के उत्सर्जन और सामुदायिक परिणामों को एकीकृत करती है, जिससे ठोस जलवायु एवं आजीविका लाभ प्राप्त हुए हैं।
  • सामुदायिक भागीदारी और सह-निर्माण को संस्थागत रूप देना: CSR की प्रभावशीलता बढ़ाने के लिये परियोजना-डिज़ाइन चरण में ही स्थानीय हितधारकों से परामर्श को अनिवार्य किया जाना चाहिये, जैसा कि ब्राज़ील के सहभागी विकास मॉडल में किया जाता है।
    • भारतीय कंपनियों को जरूरतों के आकलन और निगरानी के लिये पंचायतों, स्वयं सहायता समूहों एवं स्थानीय गैर सरकारी संगठनों के साथ साझेदारी करनी चाहिये। 
    • टाटा ट्रस्ट्स के समुदाय-नेतृत्व वाले ग्रामीण विकास कार्यक्रमों जैसे सफल पायलट प्रोजेक्ट यह दर्शाते हैं कि स्थानीय स्वामित्व से संधारणीयता और परिणाम बेहतर होते हैं।
  • आयोजन-आधारित परोपकार से दीर्घकालिक संस्था निर्माण की ओर बदलाव: विश्वास को मज़बूत करने के लिये, CSR को सामाजिक निवेश के नॉर्डिक मॉडल का अनुसरण करते हुए, निकास और अनुरक्षण योजनाओं के साथ दीर्घकालिक परियोजनाओं को प्राथमिकता देनी चाहिये, जहाँ वित्त पोषण 5-10 वर्षों तक चलता है।
    • भारतीय कंपनियाँ स्वास्थ्य और शिक्षा के अधोसंरचना के लिये बहुवर्षीय CSR प्रतिबद्धताएँ अपना सकती हैं, जिससे परिसंपत्ति निर्माण के अलावा प्रशिक्षित कर्मियों एवं परिचालन निधि की गारंटी मिल सके।
  • बाज़ार की मांग से जुड़ा परिणाम-उन्मुख कौशल विकास: रोज़गार में वास्तविक रूपांतरण सुनिश्चित करने के लिये CSR आधारित कौशल प्रशिक्षण को उद्योग-संलग्न और मांग-आधारित बनाना आवश्यक है, जैसा कि जर्मनी की द्वैध व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रणाली में किया जाता है।
    • भारतीय कंपनियों को उद्योग संघों के साथ मिलकर पाठ्यक्रम विकसित करने, अप्रेंटिसशिप प्रदान करने और कम-से-कम 12 महीनों तक प्रशिक्षण-उपरांत रोज़गार की निगरानी करनी चाहिये। L&T का प्रशिक्षण-से-रोज़गार मॉडल एक व्यावहारिक घरेलू मॉडल प्रस्तुत करता है।
    • इंजेती श्रीनिवास समिति परिणाम-आधारित CSR को बढ़ावा देने और कंपनी-नियंत्रित संस्थाओं के बजाय विश्वसनीय कार्यान्वयन एजेंसियों के साथ सहयोग को प्रोत्साहित करने की अनुशंसा करती है।
  • मापनीय संकेतकों के माध्यम से SDG संरेखण को गहन करना: CSR और सतत विकास लक्ष्यों (SDG) के बीच अभिसरण को प्रतीकात्मक मानचित्रण से आगे बढ़ाकर संकेतक-आधारित रिपोर्टिंग में रूपांतरित किया जाना चाहिये, जैसा कि संयुक्त राष्ट्र के SDG कंपास कार्यढाँचे में प्रतिपादित है।
    • कंपनियों को आउटपुट गणनाओं के बजाय परिणाम संकेतक— जैसे अधिगम के स्तर, आय-वृद्धि और स्वास्थ्य सूचकांक निर्धारित करने चाहिये। 
    • जापान की SDG-संलग्न कॉरपोरेट रिपोर्टिंग यह दर्शाती है कि मापनीय संरेखण से जवाबदेही और विस्तार क्षमता में सुधार होता है।
  • प्रभाव आकलन और डेटा पारदर्शिता का विस्तार: प्रभाव आकलन को चरणबद्ध रूप से मध्यम आकार की CSR परियोजनाओं तक विस्तारित किया जाना चाहिये तथा इसके लिये मानकीकृत उपकरणों एवं डिजिटल डैशबोर्ड का उपयोग किया जाना चाहिये।
    • कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश विभिन्न क्षेत्रों में परिणामों पर नज़र रखने के लिये केंद्रीकृत सामाजिक-प्रभाव रजिस्टरों का उपयोग करते हैं।   
    • भारत में MCA CSR पोर्टल को एक वास्तविक-समय परिणाम-निगरानी मंच के रूप में सुदृढ़ किया जा सकता है, जिससे साक्ष्य-आधारित पुनर्रचना और अधिगम संभव हो।
  • CSR को संवैधानिक और पर्यावरणीय कर्त्तव्य के रूप में पुनर्परिभाषित करना: CSR को स्वैच्छिक परोपकार से आगे बढ़ाकर संविधान के अनुच्छेद 51A(g) में निहित पर्यावरण संरक्षण के मौलिक कर्त्तव्य से जोड़ा जाना चाहिये जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भी रेखांकित किया गया है।
    • इसके लिये कंपनियों को पर्यावरणीय उत्तरदायित्व को एक मूल दायित्व के रूप में आत्मसात करने की आवश्यकता है, न कि विवेकाधीन व्यय के रूप में। 

निष्कर्ष: 

कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) समावेशी और सतत विकास को आगे बढ़ाने का एक महत्त्वपूर्ण साधन बनकर उभरा है। यह सतत विकास लक्ष्यों— SDG3 (उत्तम स्वास्थ्य और खुशहाली), SDG4 (सर्वोत्तम शिक्षा), SDG8 (उत्कृष्ट श्रम और आर्थिक विकास) और SDG13 (जलवायु परिवर्तन कार्रवाई) की प्राप्ति में प्रत्यक्ष योगदान देता है। हालाँकि भारत की CSR रूपरेखा में व्यय और अनुपालन के स्तर पर उल्लेखनीय विस्तार हुआ है, लेकिन इसका भावी प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि इसे केवल अनुपालन-आधारित परोपकार से आगे ले जाकर परिणाम-उन्मुख, समुदाय-नेतृत्व वाले और व्यवसाय-समेकित सामाजिक निवेश के रूप में किस हद तक विकसित किया जाए।

दृष्टि मेन्स प्रश्न 

भारत में सतत विकास हासिल करने में कॉर्पोरेट दायित्व और पर्यावरण प्रशासन की भूमिका पर चर्चा कीजिये। उपयुक्त उदाहरणों के साथ अपने उत्तर की पुष्टि कीजिये। 

 

प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न: 

प्रश्न 1. कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व (CSR) क्या है?
यह कंपनियों की उस भूमिका को संदर्भित करता है जिसके अंतर्गत वे पर्यावरणीय क्षति को कम करने तथा संधारणीय प्रथाओं को बढ़ावा देने के लिये अपने कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व का निर्वहन करती हैं।

प्रश्न 2. संपादकीय विभाग CSR के अंतर्गत पर्यावरण पर इतना ज़ोर क्यों देता है?
क्योंकि तीव्र आर्थिक विकास के परिणामस्वरूप प्रदूषण और पारिस्थितिक दबाव में वृद्धि हुई है जिससे पर्यावरणीय उत्तरदायित्व CSR की एक महत्त्वपूर्ण प्राथमिकता बन गया है।

प्रश्न 3. वर्तमान CSR प्रथाओं की कौन-सी सीमाएँ उजागर होती हैं?
CSR प्रायः स्वैच्छिक और परियोजना-आधारित बना रहता है जिसमें प्रवर्तन की कमी होती है तथा ‘ग्रीनवॉशिंग’ की प्रवृत्तियाँ भी देखी जाती हैं।

प्रश्न 4. कमज़ोर विनियमन CSR परिणामों को किस प्रकार प्रभावित करता है?
अपर्याप्त निगरानी और जवाबदेही के कारण कंपनियाँ पर्यावरणीय CSR को एक मूल दायित्व के बजाय मात्र अनुपालन की औपचारिकता के रूप में ग्रहण करती हैं।

प्रश्न 5. संपादकीय में सुझाए गए अनुसार CSR के लिये आगे का रास्ता क्या है?
विनियामक ढाँचे को सुदृढ़ करना, पारदर्शिता बढ़ाना तथा व्यावसायिक निर्णयों में पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों को एकीकृत करना CSR को अधिक प्रभावी बनाने में सहायक होगा।

 

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ) 

मेन्स 

प्रश्न 1. कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व कंपनियों को अधिक लाभदायक तथा चिरस्थायी बनाता है। विश्लेषण कीजिये। (2017)

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