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क्वारंटाइन: संक्रामक रोगों का कारगर उपाय

  • 04 Apr 2020
  • 15 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में क्वारंटाइन सेंटर्स और उसकी उपयोगिता व महत्त्व से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ 

वैश्वीकरण ने विभिन्न समाजों और अर्थव्यस्थाओं के एकीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसके कारण विश्व में विभिन्न लोगों, क्षेत्रों एवं देशों के मध्य अन्तःनिर्भरता में वृद्धि हुई है। वैश्विक महामारी COVID-19 के संक्रमण से पूर्व वैश्वीकरण के पक्ष में उपर्युक्त तर्कों को सुनना आम बात थी। COVID -19 महामारी आज भारत समेत दुनिया भर में स्वास्थ्य और जीवन के लिये गंभीर चुनौती बनकर खड़ी है। अब पूरी दुनिया में इसका असर भी दिखने लगा है। विशेषज्ञों के अनुसार, वैश्वीकरण के कारण आपसी संपर्क बढ़ने से पूरा विश्व इस गंभीर बीमारी के प्रति सुभेद्य हो गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation-WHO) के अनुसार, लगभग 190 देशों में 1,000,000 से अधिक लोग कोरोना वायरस से संक्रमित पाए गए हैं। 

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण से बचने का प्राथमिक उपचार क्वारंटाइन व आइसोलेशन विधि है। इस आलेख में क्वारंटाइन व आइसोलेशन की प्रक्रिया, दोनों में आधारभूत अंतर, क्वारंटाइन व आइसोलेशन के संदर्भ में भारत की तैयारी, भारत में क्वारंटाइन व आइसोलेशन की कठिनाइयाँ तथा महत्त्व पर विमर्श किया जाएगा।

क्या है क्वारंटाइन?

  • सामान्यतः क्वारंटाइन शब्द लैटिन भाषा के शब्द क्वारेंटेना (Quarantena) से बना है। जिसका मूल अर्थ ‘40 दिन के समय’ से है। इसका मतलब संगरोध या संगरोधन या किनारे पर आने-जाने से रोकना है। 
  • ऐसी कोई बीमारी, जिसकी मानव से मानव में स्थानांतरित होने की पुष्टि हो चुकी है और उस दौरान यदि किसी व्यक्ति के संक्रमित होने की आशंका होती है, भले ही उसमें संक्रमण के लक्षण न प्रकट हुए हो तो भी उस व्यक्ति की गतिविधियाँ को एक स्थान विशेष में सीमित कर दिया जाता है।       
  • दरअसल, पुराने समय में जिन जहाज़ों में किसी यात्री के रोगी होने या जहाज़ पर लदे माल में रोग प्रसारक कीटाणु होने का संदेह होता था, तो उस जहाज़ को बंदरगाह से दूर चालीस दिन ठहरना पड़ता था। 
  • प्राचीन काल में विभिन्न समाजों ने संक्रामक बीमारियों से बचाव के लिये संगरोध का सहारा लिया है, तथा यात्रा व परिवहन पर प्रतिबंध लगाया है। इतना ही नहीं संक्रमित व्यक्तियों के संक्रमण मुक्त होने तक समुद्री संगरोध (Maritime Quarantine) का भी सहारा लिया।
  • ग्रेट ब्रिटेन में प्लेग को रोकने के प्रयास के रूप में इस व्यवस्था की शुरुआत हुई थी। 

पृष्ठभूमि

  • वर्ष 1824 में संयुक्त राज्य अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जॉन मार्शल (John Marshall) ने अपने एक आदेश में कहा कि किसी संक्रामक रोग के प्रसार की आशंका में राज्य के पास क्वारंटाइन कानून और स्वास्थ्य आपातकाल के दिशा-निर्देशों को लागू करने का पूर्ण अधिकार है। 
  • बैक्टीरिया या वायरस संक्रमण के तेजी से हो रहे प्रसार को कम करने के लिये क्वारंटाइन को सबसे प्रभावी और पुराना तंत्र माना जाता है। यह सार्वजनिक स्वास्थ्य के रखरखाव और बीमारियों के संचरण को नियंत्रित करने के लिये दुनिया के सभी न्यायालयों द्वारा कानूनी रूप से अनुमोदित किया गया है।     
  • यह दर्शाता है कि चिकित्सा जगत ने क्वारंटाइन विधी को संक्रामक बीमारियों के प्रसार को रोकने में एक प्रभावी उपाय के रूप में मान्यता दी है।  
  • वर्ष 1377 में यूरोप महाद्वीप में तेज़ी से फैल रहे प्लेग के प्रसार को रोकने के लिये ग्रेट काउंसिल (Great Council) ने पहली बार मेडिकल आइसोलेशन बिल को पारित किया।  
  • आइसोलेशन के अंतर्गत 30 दिन की समयावधि को निर्धारित किया गया, जिसे ट्रेंटिनो (Trentino) नाम दिया गया। जब इस समयावधि को बढ़ाकर 40 दिन कर दिया गया तब इसे क्वारंटाइन नाम से जाना जाने लगा 

क्वारंटाइन व आइसोलेशन में अंतर  

  • सामान्य रूप से आइसोलेशन की प्रक्रिया तब अपनाई जाती है जब कोई व्यक्ति किसी संक्रामक बीमारी से संक्रमित हो जाता है। इस प्रक्रिया में संक्रमित व्यक्ति को अन्य गैर संक्रमित लोगों से अलग कर दिया जाता है ताकि संक्रमण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में न स्थानांतरित हो पाए। वहीँ क्वारंटाइन की प्रक्रिया तब अपनाई जाती है जब किसी समूह या समुदाय के संक्रमित होने की आशंका व्यक्त की जाती है
  • आइसोलेशन का कार्य स्वास्थ्य उपकरणों से लैस परिसरों यथा: हॉस्पिटल, मेडिकल सेंटर, मेडिकल कॉलेज इत्यादि स्थानों पर ही संभव है। जबकि क्वारंटाइन की प्रक्रिया अस्थाई तौर पर सीमित स्वास्थ्य उपकरणों से लैस स्थानों पर अपनाई जा सकती है। व्यक्ति स्वयं को होम क्वारंटाइन भी कर सकता है अर्थात अपने घर के किसी एक कमरे में ही अपनी गतिविधियों को सीमित कर ले   
  • जहाँ आइसोलेशन का उद्देश्य संक्रमित व्यक्ति को पूर्णरूप से संक्रमण मुक्त करना है तो वहीँ क्वारंटाइन का उद्देश्य संक्रमण की आशंका वाले समूह या समुदाय की निगरानी करना है
  • कोरोना वायरस के संदर्भ में विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, आइसोलेशन की कोई निर्धारित समयावधि नहीं है क्योंकि यह व्यक्ति के पूर्णतः संक्रमण मुक्त होने तक कार्य करती है। जबकि क्वारंटाइन की समयावधि 14 दिन निर्धारित की गई है

क्वारंटाइन अवधि व मूल अधिकार 

  • वर्ष 1990 में गोवा में कार्यरत वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फेडरेशन के एक कर्मचारी को HIV वायरस के संक्रमण से पीड़ित पाया गया। उसे गोवा पब्लिक हेल्थ (अमेंडमेंट) एक्ट, 1957 द्वारा तत्काल 64 दिनों की क्वारंटाइन अवधि में रखा गया। परंतु उस व्यक्ति द्वारा सरकार के इस कृत्य को अपने मूल अधिकारों के हनन के रूप में देखा गया और मूल अधिकारों की पुनर्बहाली हेतु बॉम्बे उच्च न्यायालय में अपील दायर की गई।
  • वर्ष 1990 में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने निर्णय देते हुए कहा कि एकांतवास में किसी व्यक्ति को रखना निश्चित ही उसके मूल अधिकारों का हनन है, परंतु यदि कोई व्यक्ति किसी संक्रामक बीमारी से पीड़ित है जिसका प्रसार एक व्यक्ति से अन्य व्यक्ति में हो सकता है तब ऐसी स्थिति में व्यक्तिगत स्वतंत्रता को पब्लिक हेल्थ के विरुद्ध प्राथमिकता नहीं दी जा सकती है।    
  • बॉम्बे उच्च न्यायालय ने जनहित को ध्यान में रखते हुए गोवा सरकार के क्वारंटाइन अवधि के निर्णय को सही पाया गया।     
  • वर्ष 2014 में इबोला नामक संक्रामक बीमारी का इलाज़ करने वाली संयुक्त राज्य अमेरिका की एक महिला स्वास्थ्यकर्मी को कुछ दिनों के लिये क्वारंटाइन अवधि में रखने का निर्णय लिया गया और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार पर जनहित व जन स्वास्थ्य को वरीयता दी गई। 
  • भारत में एपिडमिक डिजीज़ एक्ट, 1897 के अनुसार, किसी संक्रामक बीमारी के प्रसार की आशंका में केंद्र व राज्य सरकार को निरोधात्मक उपाय करने की शक्ति प्रदान की गई है। 

एपिडमिक डिजीज़ एक्ट, 1897

  • औपनिवेशिक काल में महामारियों की रोकथाम के लिये एपिडमिक डिजीज़ एक्ट, 1897 बनाया गया था। जो स्वाइन फ्लू, डेंगू, हैज़ा और प्लेग जैसी बीमारियों के प्रकोप से बचने के लिये देशभर में नियमित रूप से लागू किया जाता है। 
  • यह अधिनियम विशेष प्रावधान करता है जो बीमारी के प्रसार को नियंत्रित करने और रोकथाम के उपायों को लागू करने के लिये आवश्यक हैं। 

प्रावधान

  • एपिडमिक डिजीज़ एक्ट, 1897 की धारा 2 के अनुसार, जब राज्य सरकार को यह समाधान हो जाए कि पूरे राज्य या उसके किसी भाग में किसी खतरनाक महामारी का प्रकोप हो गया है, या होने की आशंका हो और मौजूदा विधि के साधारण उपबंध इसके लिये पर्याप्त नहीं हैं, तो वह ऐसे उपाय कर सकेगी या ऐसे उपाय करने के लिये किसी व्यक्ति से अपेक्षा कर सकेगी या उसके लिये उसे सशक्त कर सकेगी और जनता द्वारा या किसी व्यक्ति द्वारा या व्यक्तियों के किसी वर्ग द्वारा अनुपालन करने के लिये किसी सूचना द्वारा ऐसे अस्थायी विनियम विहित कर सकेगी जिन्हें वह उस रोग के प्रकोप या प्रसार की रोकथाम के लिये आवश्यक समझे तथा वह यह भी अवधारित कर सकेगी कि उपगत व्यय (इसके अंतर्गत प्रतिकर, यदि कोई हो तो) किस रीति से और किसके द्वारा चुकाए जाएंगे।
  • अधिनियम की धारा-2 ए केंद्र सरकार को महामारी के प्रसार को रोकने के लिये कदम उठाने का अधिकार देती है। यह सरकार को किसी भी जहाज़  के आने या किसी बंदरगाह को छोड़ने और देश में आने या जाने के इच्छुक किसी भी व्यक्ति को हिरासत में लेने की शक्ति प्रदान करता  है।
  • अधिनियम की धारा-3 के तहत भारतीय दंड संहिता की धारा-188 के अनुसार, किसी भी विनियमन या आदेश की अवज्ञा करने पर दंड का प्रावधान किया गया है। 
  • अधिनियम की धारा-4 के अनुसार, अधिनियम का कार्यान्वयन कराने वाले अधिकारियों को कानूनी संरक्षण प्रदान करता है।

चुनौतियाँ

  • भारत में होम क्वारंटाइन जैसी सुविधा तैयार करना बेहद कठिन व खतरनाक है क्योंकि भारत में जनसंख्या घनत्व अधिक है। भारत में अन्य विकसित देशों के विपरीत मकानों की अवसंरचना अत्यधिक सघन है।
  • जागरूकता में कमी के कारण लोग अस्थाई तौर पर निर्मित किये गए क्वारंटाइन सेंटर्स से भाग जाते हैं।
  • क्वारंटाइन सेंटर्स में निवास कर रहे लोग सोशल डिस्टेंसिंग का पालन न करते हुए आपस में वस्तुओं का लेनदेन करते हैं।      
  • यह भी देखा जा रहा है कि विभिन्न क्वारंटाइन सेंटर्स में आवश्यक मूलभूत सुविधाओं की कमी है।               

आगे की राह

  • प्राकृतिक या मानवजनित बड़ी आपदाओं से निपटने के लिये बनाए गए राष्ट्रीय संकट प्रबंधन समिति (National Crisis Management Committee-NCMC) के माध्यम से सामाजिक संगठनों, विभिन्न मंत्रालयों और विभागों में समन्वय स्थापित किया जाना चाहिये।
  • एक समर्पित वेब पोर्टल स्थापित किया जाना चाहिये, जिसमें प्रमुख संकेतक, रोग की पहचान संबंधी दिशा-निर्देश, जोखिम संचार सामग्री और उपायों की कार्ययोजना शामिल हो।
  • सरकार को आइसोलेशन वार्ड की सुविधा के साथ सेपरेशन किट, मास्क इत्यादि की व्यवस्था करनी चाहिये।
  • कोरोना वायरस से बचाव न केवल सरकार का उत्तरदायित्व है बल्कि सभी संस्थानों, संगठनों, निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों, यहाँ तक ​​कि सभी व्यक्तियों को इससे बचाव हेतु आकस्मिक और अग्रिम तैयारी की योजनाएँ बनानी चाहिये।

प्रश्न- ‘क्वारंटाइन सेंटर्स कोरोना वायरस के रोकथाम में एक प्रभावी उपकरण साबित हो रहे हैं।’ क्वारंटाइन व आइसोलेशन में अंतर स्पष्ट करते हुए क्वारंटाइन सेंटर्स की महत्ता पर प्रकाश डालिये।

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