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भारतीय राजनीति

केंद्र-राज्य चैनल को खुला रखें

  • 06 Jul 2019
  • 12 min read

इस Editorial में The Hindu, Indian Express, Business Line, Hindustan TImes आदि में प्रकाशित लेख शामिल हैं। इस आलेख में केंद्र-राज्य के मध्य संसाधनों के मुद्दों का विश्लेषण किया गया है तथा आवश्यकतानुसार यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ

भारत का राजनीतिक ढाँचा मुख्य रूप से संघीय प्रवृत्ति को प्रदर्शित करता है। इस ढाँचे को भारत के संविधान से मान्यता प्राप्त है। भारत में केंद्र और राज्य के मध्य शक्तियों का विभाजन किया गया है जिसमें राज्यों को भी राज्य सूची के माध्यम से महत्त्वपूर्ण मामलों में शक्ति तथा स्वायत्ता प्राप्त है। स्वतंत्रता के पश्चात् भारत में योजना आयोग का गठन हुआ तथा योजना आयोग भारत में वित्तीय मामलों के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण संस्थान बनकर उभरा। साथ ही राज्यों हेतु केंद्रीय सहायता तथा आवंटन इसी आयोग पर निर्भर हो गया। इस स्थिति ने भारत में वित्तीय मामलों में केंद्रीकरण को बढ़ावा दिया तथा संघवाद की अवधारणा कमज़ोर हुई। इस मुद्दे पर विभिन्न राज्यों द्वारा समय-समय पर आपत्ति भी दर्ज की जाती रही है। उपर्युक्त मुद्दों को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2014 में गठित नई सरकार ने योजना आयोग के स्थान पर नीति आयोग का गठन किया। नीति आयोग वर्तमान में भारत के सबसे बड़े थिंक टैंक के रूप में कार्यरत है। इसका उद्देश्य धारणीय विकास के लक्ष्यों (SDG) की पूर्ति में सरकार को सहयोग देना तथा केंद्र एवं राज्यों को ज़रूरी तकनीकी सहायता उपलब्ध कराना है।

मौजूदा समय में केंद्र-राज्य संबंध तथा नीति आयोग

नीति आयोग के निर्माण से वित्तीय केंद्रीकरण की पूर्व स्थिति में बदलाव आया है तथा भारत राजकोषीय संघवाद की ओर तेज़ी से स्थानांतरित हुआ है। इस बदलाव के साथ ही वर्तमान सरकार ने केंद्र-राज्य के मध्य विभिन्न माध्यमों से संघवाद को बढ़ावा दिया है जिसमें प्रमुख रूप से निम्नलिखित बिंदु शामिल हैं-

  • योजना आयोग की समाप्ति तथा इसके स्थान पर नीति आयोग का गठन।
  • केंद्र-राज्य संबंधों को ध्यान में रखकर जीएसटी परिषद का गठन।
  • राजकोषीय विकेंद्रीकरण के उद्देश्य से राज्यों के खर्च पर केंद्र का नियंत्रण कम करना।
  • 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों को लागू करना।

ध्यातव्य है कि भारत में उपर्युक्त प्रयास ऐसे समय में किये जा रहे हैं जब भारत में मज़बूती से राजनीतिक केंद्रीकरण हो रहा है तथा विभिन्न क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की स्थिति कमज़ोर हुई है। ऐसी राजनीतिक स्थिति किसी भी संघीय व्यवस्था के दृष्टिकोण से राज्यों के लिये ठीक नहीं मानी जाती है। इससे राज्यों की मोलभाव की शक्ति कमज़ोर हो जाती है, ऐसे में केंद्र द्वारा की गई पहलें सराहनीय हैं।

विकेंद्रीकरण से जुड़े मुद्दे

भारत में राजकोषीय संघवाद पर बहस का इतिहास रहा है। वर्तमान में भी केंद्रीकरण बनाम विकेंद्रीकरण पर दोबारा चर्चा शुरू हुई है। इसका कारण है कि राजकोषीय विकेंद्रीकरण ने कुछ मुद्दों को जन्म दिया है। इन मुद्दों पर विचार करना आवश्यक है क्योंकि ये मुद्दे संपूर्ण भारत के विकास तथा कल्याण के लिये आवश्यक हैं।

  • योजना आयोग की समाप्ति ने एक अनचाहे परिणाम को जन्म दिया। हालाँकि योजना आयोग की समाप्ति एक ज़रूरी तथा बहुप्रतीक्षित मांग थी जिसे एक सुधार के रूप में ही लिया जाना चाहिये। योजना आयोग की समाप्ति ने एक संस्थागत निर्वात की स्थिति को जन्म दिया है। राष्ट्रीय स्तर पर कुछ योजनाएँ जो भारत के सभी नागरिकों के लिये न्यूनतम आवश्यकता की पूर्ति को ध्यान में रखकर उपयोगी होती हैं, के क्रियान्वयन के संबंध में संस्थागत निर्वात की स्थिति उत्पन्न हुई है। विभिन्न विचारक और अर्थशास्त्री इस समस्या को दूर करने के लिये एक संघीय संस्थान की वकालत कर रहे हैं जिसमें योजना आयोग की कमियों को दूर करते हुए एक ऐसे संस्थान का निर्माण हो जिससे निर्वात को भरा जा सके।
  • विभिन्न राज्य सरकारें योजना आयोग के केंद्रीकरण की प्रकृति को लेकर कड़ी आलोचना करती रही हैं। लेकिन आयोग, राष्ट्रीय विकास परिषद के साथ मिलकर राज्यों को एक ऐसा मंच उपलब्ध कराता था जिसमें राज्य, केंद्र के साथ वार्ता कर सकते थे तथा राज्य अपनी समस्याओं को केंद्र के समक्ष रख सकते थे। वहीं दूसरी ओर 14वें वित्त आयोग की सिफारिशों के बावजूद इस निर्वात की स्थिति में राज्यों को संसाधनों का स्थानांतरण केंद्रीय मंत्रालयों, मुख्य रूप से वित्त मंत्रालय पर निर्भर हो गया है।
  • भारत में राज्यों के स्तर पर आर्थिक तथा भौगोलिक विषमताएँ हैं। प्रायः अध्ययनों में सामने आया है कि प्रति व्यक्ति उच्च आय वाले राज्य अपनी स्वयं की योजनाएँ बनाने और क्रियान्वित करने की क्षमता रखते हैं। किंतु प्रति व्यक्ति निम्न आय वाले राज्य तथा छोटे राज्यों को नियोजन के स्तर पर कठिनाई का सामना करना पड़ता है। साथ ही इन राज्यों के पास संसाधनों की कमी भी होती है। ऐसी स्थिति में ऐसे राज्यों को केंद्र की अतिरिक्त सहायता की आवश्यकता होती है। केंद्र नीति, संसाधन तथा तकनीक के स्तर पर राज्यों की सहायता केंद्र प्रायोजित योजनाओं के माध्यम से कर सकता है। अतः बड़े राज्यों अर्थात् आर्थिक रूप से सक्षम राज्यों के लिये राजकोषीय संघवाद तो सही विचार है किंतु आर्थिक रूप से कमज़ोर तथा छोटे राज्यों के लिये राजकोषीय केंद्रीकरण आवश्यक है।
  • भारत में पिछले दो दशकों में केंद्रीय योजनाओं में वृद्धि हुई है लेकिन भारत के कम आय तथा कमज़ोर रूप से शासित (Weakly governed) राज्य केंद्र प्रायोजित योजनाओं (CSS) के कोष का दक्षता से उपयोग करने में असफल रहे हैं। छह प्रमुख योजनाओं के विश्लेषण के आधार पर वर्ष 2016 के आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि भारत के सबसे गरीब जिलों को एक राज्य को आवंटित कुल धन का मुश्किल से 40% प्राप्त हुआ है। ऐसी स्थिति में इस समस्या से निपटने के लिये योजना आयोग की वित्तीयन प्रणाली को लागू करने की आवश्यकता नहीं है। लेकिन एक भिन्न प्रकार के उपागम पर विचार किया जा सकता है जो उपर्युक्त मुद्दे का समाधान उपलब्ध करा सके जिससे योजनाओं का लाभ लक्षित बिंदु तक पहुँच सके।
नीति आयोग

1 जनवरी, 2015 को थिंक टैंक के रूप में अस्तित्व में आए नीति आयोग (National Institution for Transforming India-NITI) का मुख्य कार्य न्यू इंडिया के निर्माण का विज़न एवं इसके लिये रणनीतिक मसौदा बनाना तथा कार्य योजनाएँ तैयार करना है।

केंद्र सरकार की नीति निर्धारण संस्था के रूप में नीति आयोग देश भर से सुझाव आमंत्रित करके जन-भागीदारी एवं राज्य सरकारों की भागीदारी से नीतियाँ बनाने का काम करता है।

अगस्त 2014 को प्रधानमंत्री ने योजना आयोग को भंग करने की घोषणा की थी और उसके बाद योजना आयोग के भंग होने के साथ ही पंचवर्षीय योजना का युग भी समाप्त हो गया।

नीति आयोग की स्थापना के बाद योजना के अंतर्गत व्यय और गैर-योजनांतर्गत व्यय का अंतर समाप्त हो चुका है। अब केंद्र सरकार से राज्य सरकारों को धनराशि का हस्तांतरण केवल केंद्रीय वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर होता है।

उल्लेखनीय है कि नीति आयोग योजना आयोग की भाँति भारत सरकार के केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा सृजित एक निकाय है। इस प्रकार यह न तो संवैधानिक और न ही वैधानिक निकाय है। दूसरे शब्दों में कहें तो यह एक संविधानेत्तर निकाय होने के साथ ही एक गैर-वैधानिक (जो संसद के किसी अधिनियम द्वारा अधिनियमित न हो) निकाय भी है।

निष्कर्ष

भारत में केंद्र-राज्य संबंधों में संसाधनों का वितरण प्रायः विवाद का विषय रहा है। इसको ध्यान में रखकर योजना आयोग के स्थान पर नीति आयोग का गठन किया गया किंतु अभी भी राजकोषीय विकेंद्रीकरण बनाम केंद्रीकरण का मुद्दा बना हुआ है। लेकिन अतीत के अनुभवों के आधार पर पिछली व्यवस्था में लौटना उचित प्रतीत नहीं होता है। भारत में ऐसी व्यवस्था की ज़रुरुत है जो भारत की विविधता और आवश्यकताओं के मध्य सामंजस्य स्थापित कर सके। यथा-छोटे और कमज़ोर राज्यों के लिये केंद्र आवश्यक नीतिगत और संसाधनों के माध्यम से सहयोग उपलब्ध करे तथा समृद्ध राज्यों को अधिक राजकोषीय स्वायत्ता मिल सके। इसके अतिरिक्त 15वें वित्त आयोग के लिये भी इस समस्या से निपटना चुनौतीपूर्ण होगा लेकिन ज़रूरी तकनीकी सहयोग तथा मज़बूत इच्छाशक्ति के बल पर इस चुनौती से निपटा जा सकता है।

प्रश्न: किसी भी संघीय व्यवस्था में केंद्र-राज्य संबंध विभिन्न मुद्दों को लेकर बहस का विषय बने रहते हैं। आपके विचार में भारत के संदर्भ में ऐसे कौन से मुद्दे हैं?

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