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व्यापार युद्ध (Trade War) की राह पर बढ़ रहे भारत-अमेरिका

  • 27 Mar 2019
  • 15 min read

संदर्भ

हाल ही में जारी अमेरिका के नेशनल ब्यूरो ऑफ इकोनॉमिक रिसर्च (National Bureau of Economic Research-NBER) की व्यापार युद्ध और अमेरिकी अर्थव्यवस्था (Trade War & US Economy) नामक रिपोर्ट की दुनियाभर में चर्चा है। अमेरिका के प्रमुख अर्थशास्त्रियों के समूह द्वारा तैयार इस रिपोर्ट में कहा गया है कि व्यापार युद्ध यानी ट्रेड वॉर अमेरिका के हित में नहीं है। 2018 में व्यापार युद्ध से अमेरिकी अर्थव्यवस्था को लगभग 54 हज़ार करोड़ रुपए की चोट पहुँची है। यह रिपोर्ट ऐसे समय में आई है जब एक ओर अमेरिका और चीन के बीच जारी व्यापार युद्ध खत्म होने की संभावना बन रही है...और दूसरी ओर अमेरिका व्यापार युद्ध का रुख भारत की ओर मोड़ते हुए भारत का GSP लाभार्थी का दर्जा खत्म करने जा रहा है।

क्या है जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेंसेंज़ (GSP)

जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेंसेज़ (जीएसपी) अमेरिकी ट्रेड प्रोग्राम है जिसके तहत अमेरिका विकासशील देशों में आर्थिक प्रगति के लिये अपने यहाँ बिना शुल्क लिये सामानों का आयात करता है। अमेरिका ने दुनिया के 129 देशों को यह सुविधा दी हुई है जहाँ से लगभग 4800 उत्पादों का ड्यूटी फ्री आयात होता है। अमेरिका ने ट्रेड एक्ट 1974 के तहत 1 जनवरी, 1976 को GSP का गठन किया था।

भारत से क्यों वापस लिया यह दर्जा?

हाल ही में अमेरिका ने भारत से जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रेफरेंसेज़ (GSP) कार्यक्रम के लाभार्थी का दर्जा वापस ले लिया है। अमेरिका के GSP कार्यक्रम में शामिल देशों को विशेष तरजीह दी जाती है और अमेरिका इन देशों से एक तय राशि के आयात पर कोई शुल्क नहीं लेता। GSP कार्यक्रम के तहत भारत को 5.6 अरब डॉलर (लगभग 40 हज़ार करोड़ रुपए) के निर्यात पर छूट मिलती थी। भारत GSP का सबसे बड़ा लाभार्थी देश था। अमेरिकी राष्ट्रपति के अनुसार, उन्हें भारत से यह आश्वासन नहीं मिला कि वह अपने बाज़ार में अमेरिकी उत्पादों को इसके बराबर की छूट देगा। अमेरिका का यह भी कहना है कि भारत GSP के मापदंड पूरा करने में असफल रहा है। आपको बता दें कि अमेरिका दुनिया के 120 विकासशील देशों को अपने यहाँ बिना किसी आयात शुल्क के सामान निर्यात करने की छूट देता है, जिसमें भारत भी शामिल था। अमेरिकी नीतियों के मद्देनज़र यह सूची समय-समय पर बदलती रहती है।

क्या है व्यापार युद्ध?

जब एक देश दूसरे देश के प्रति संरक्षणवादी रवैया अपनाता है यानी वहाँ से आयात होने वाली वस्तुओं और सेवाओं पर शुल्क बढ़ाता है तो दूसरा देश भी जवाबी कार्रवाई करता है। ऐसी संरक्षणवादी नीतियों के प्रभाव को व्यापार युद्ध (Trade War) कहते हैं। इसकी शुरुआत तब होती है, जब किसी देश को दूसरे देश की व्यापारिक नीतियाँ अपने हितों के विपरीत प्रतीत होती हैं या वह देश रोज़गार सृजन के लिये घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये आयातित वस्तुओं पर शुल्क बढ़ाता है। जब दो देशों में व्यापार युद्ध छिड़ता है तो उसका असर अन्य देशों पर भी पड़ता है।

अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध से हुआ भारत को लाभ

फिलहाल अमेरिका और चीन के बीच जो व्यापार युद्ध चल रहा है, उसका लाभ भारत को मिल रहा है। वैश्विक कारोबार के लिये यह भले ही सही न हो, लेकिन भारत के लिये इसने संभावनाएं पैदा की हैं। इन दोनों देशों द्वारा एक-दूसरे के उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाने के बाद से इन्हें भारत से होने वाले निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है। जून से नवंबर 2018 के बीच चीन को होने वाले निर्यात में 32% और अमेरिका को होने वाले निर्यात में 12% की बढ़ोतरी दर्ज की गई। जून-नवंबर 2017 की अवधि में भारत से चीन को 637.40 करोड़ डॉलर का निर्यात हुआ था। लेकिन अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध छिड़ने के बाद जून-नवंबर 2018 में चीन को होने वाला निर्यात बढ़कर 846.40 करोड़ डॉलर पर पहुँच गया।

संयुक्त राष्ट्र के एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि अमेरिका और चीन के बीच चल रहे व्यापार युद्ध से भारतीय अर्थव्यवस्था को फायदा होगा क्योंकि इससे देश के निर्यात में लगभग 3.5% की तेज़ी आएगी। यूएन कॉन्फ्रेंस ऑन ट्रेड एंड डिवेलपमेंट (UNCTAD) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका और चीन के बीच चल रहे व्यापार युद्ध (एक-दूसरे के सामानों पर शुल्क लगाना) का फायदा कई देशों को मिल रहा है, जिसमें ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, भारत, फिलीपींस, पाकिस्तान और वियतनाम प्रमुख हैं। The Trade Wars: The Pain & Gain नामक इस रिपोर्ट में कहा गया है, ‘द्विपक्षीय टैरिफ उन देशों में काम कर रही फर्मों के लाभ के लिये वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बदल देते हैं, जो उनसे सीधे प्रभावित नहीं होते हैं।’ 

भारत-अमेरिका ट्रेड वॉर का खतरा?

1976 से GSP व्यवस्था के तहत विकासशील देशों को दी जाने वाली आयात शुल्क रियायत के मद्देनज़र करीब दो हज़ार भारतीय उत्पादों को शुल्क मुक्त रूप में अमेरिका भेजने की अनुमति मिली हुई है। इस व्यापार छूट के तहत भारत से किये जाने वाले करीब 40 हज़ार करोड़ रुपए के निर्यात पर कोई शुल्क नहीं लगता। आपको बता दें कि GSP के तहत प्राथमिकता मिलने की वज़ह से अमेरिका को जितने राजस्व का नुकसान होता है, उसका एक-चौथाई भारतीय निर्यातकों को प्राप्त होता है। इसके अलावा, अमेरिका का कहना है कि उसकी वस्तुओं पर भारत में बहुत अधिक शुल्क लगाया जाता है। इसके बदले में अमेरिका भारतीय उत्पादों पर जवाबी शुल्क (Mirror Tax) लगाने की धमकी देता है।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी मोटरसाइकिल हार्ले-डेविडसन का उदाहरण देते हुए कहा था कि जब हम भारत को मोटरसाइकिल भेजते हैं तो उस पर 100% शुल्क लगाया जा रहा था, जिसे बाद में घटाकर 50% किया गया। लेकिन जब भारत हमें मोटरसाइकिल का निर्यात करता है तो हम कुछ भी शुल्क नहीं लगाते हैं। इसलिये अब समय आ गया है कि अमेरिका भी बराबर का शुल्क लगाएगा। इससे यह तो प्रतिध्वनित होता ही है कि अमेरिका और भारत के व्यापारिक संबंध अमेरिका-चीन व्यापारिक संबंधों की राह पर बढ़ सकते हैं।

ट्रेड वॉर की राह से अलग हो रहे हैं अमेरिका और चीन

दूसरी तरफ, चीन और अमेरिका ट्रेड वार थामने के लिये राज़ी हो गए हैं। अमेरिका ने चीन से होने वाले आयात पर 90 दिन तक कोई नया टैरिफ नहीं लगाने की बात कही है, तो चीन ने भी व्यापार असंतुलन में कमी लाने के लिये अमेरिका से निर्यात बढ़ाने की बात कही। कुछ समय पहले अर्जेंटीना में अमेरिका और चीन के राष्ट्रपतियों के बीच हुई बैठक में ऐसे ही कई अहम फैसले हुए। चीन से होने वाले 200 अरब डॉलर के आयात पर अमेरिका टैरिफ को 10% तक सीमित रखने को राज़ी हो गया है, जिसे ‘फिलहाल’ बढ़ाकर 25% नहीं किया जाएगा। चीन भी व्यापार असंतुलन में कमी लाने के लिये अमेरिका से आयात बढ़ाने पर रज़ामंद हो गया है। इसमें अधिकांश मात्रा में कृषि, ऊर्जा, औद्योगिक तथा अन्य उत्पाद शामिल होंगे। इसके अलावा दोनों देश तकनीकी हस्तांतरण, बौद्धिक संपदा संरक्षण, गैर-टैरिफ प्रतिबंधों, साइबर घुसपैठ और साइबर चोरी, सेवाओं और कृषि के संबंध में ढाँचागत बदलाव पर तुरंत वार्ता शुरू करने पर सहमत हो गए हैं।

क्या करना होगा भारत को?

भारत के साथ यदि अमेरिकी व्यापार संबंधों में तनाव आता है तो इस कारोबारी तनाव को कम करने के लिये भारत को अमेरिका के साथ वाणिज्यिक वार्ता को आगे बढ़ाना होगा और चीन की तरह ही लचीला और कूटनीतिक रुख अपनाना होगा। व्यापार युद्ध न अमेरिका के लिये लाभप्रद है, न ही भारत के लिये। ऐसे में भारत को अमेरिका के समक्ष बेहतर व्यापार प्रस्ताव पेश करने चाहिये और अमेरिका को भी चाहिये कि वह भारत का प्राथमिकता प्राप्त देश का दर्जा बनाए रखे। यह दोनों के लिये ही लाभकारी होगा।

फिलहाल अमेरिका ने जो कदम उठाया है वह दोनों देशों के कारोबार के लिये बड़ी चुनौती बन सकता है। इससे भारत से निर्यात किये जाने वाले वस्त्र, रेडीमेड कपड़े, रेशमी कपड़े, प्रसंस्करित खाद्य पदार्थ, जूते, प्लास्टिक का सामान, इंजीनियरिंग उत्पाद, हाथ के औज़ार, साइकिलों के पुर्ज़ों का निर्यात प्रभावित हो सकता है।

गौरतलब है कि अमेरिका भारत का सबसे बड़ा वैश्विक कारोबारी सहयोगी है। भारत से अमेरिका को निर्यात 2017-18 में बढ़कर 47.87 अरब डॉलर हो गया था, जो 2016-17 में 42.21 अरब डॉलर रहा था। इसकी वज़ह से व्यापार घाटे को लेकर अमेरिका की चिंता बढ़ी है। लेकिन अमेरिका का भारत के साथ व्यापार घाटा सिर्फ 22 अरब डॉलर है, जबकि अमेरिका का चीन के साथ व्यापार घाटा 566 अरब डॉलर है।

यहाँ यह भी ध्यान में रखना होगा कि चीन के साथ व्यापार युद्ध खत्म होने के पीछे अमेरिका की कोई उदारता नहीं है, बल्कि यह उसकी मजबूरी भी है। पिछले वर्ष अमेरिका द्वारा चीन से आयतित वस्तुओं पर 250 अरब डॉलर का शुल्क लगाए जाने से अमेरिका के उपभोक्ताओं और अमेरिकी कंपनियों को चीन से आयातित वस्तुओं पर बढ़ी हुई लागत चुकानी पड़ रही है। इससे अमेरिकी उपभोक्ताओं और अमेरिकी कंपनियों को अधिक आर्थिक बोझ उठाना पड़ रहा है।

भारत तथा अमेरिका के बीच वस्‍तुओं और सेवाओं का वार्षिक द्विपक्षीय व्‍यापार पिछले दशक में दोगुना हो गया है। यह 2007 में 58 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो 2017 में बढ़कर 126 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया। दोनों देश द्विपक्षीय व्‍यापार में और बढ़ोतरी करने के उपाय तलाशने के लिये संकल्‍पबद्ध हैं। अनिश्चित वैश्विक आर्थिक परिस्थितियों के बावजूद 2018 में भी दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्‍यापार में बढ़ोतरी जारी रही। पिछले कुछ वर्षों के दौरान द्विपक्षीय निवेश प्रवाह में भी बढ़ोतरी हुई है। अमेरिकी कंपनियां भारत में 6.6 मिलियन रोज़गारों का समर्थन करती हैं और भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 2017 में 90 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का मूल्य संवर्द्धन किया। अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापार साझेदार और भारतीय माल का सबसे बड़ा निर्यात बाजार है। भारत में पिछले 4 वर्षों के दौरान अमेरिका से 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का विदेशी प्रत्यक्ष निवेश हुआ है।

ऐसे में जब चीन के लचीले एवं कूटनीतिक दृष्टिकोण के कारण दोनों देशों के बीच व्यापार युद्ध खत्म होने की संभावना बन गई है, तब भारत-अमेरिका के बीच कारोबारी तनाव को कम करने के लिये चीन की तरह भारत को भी लचीला और कूटनीतिक रुख अपनाने की ज़रूरत है। हालाँकि इस बीच अमेरिका और चीन में भारत के निर्यात बढ़ने के जो नए मौके बनने लगे थे, वे रुक जाएंगे, साथ ही अमेरिका द्वारा लगाए जाने वाले नए आयात शुल्कों से भारतीय निर्यातकों की मुश्किलें बढ़ जाएंगी।

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