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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-वियतनाम संबंध

  • 05 Dec 2020
  • 14 min read

इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में हाल के वर्षों में भारत और वियतनाम के संबंधों में हुई प्रगति के साथ भविष्य की संभावनाओं व इससे संबंधित विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।

संदर्भ:

हाल ही में भारत और वियतनाम के रक्षा मंत्रियों के बीच वीडियो-कॉन्फ्रेंस के माध्यम से एक द्विपक्षीय बैठक का आयोजन किया गया। इस बैठक के दौरान दोनों पक्षों ने भविष्य की बेहतर संभावनाओं के लिये एक नए संयुक्त विज़न स्टेटमेंट पर काम करने के लिये अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की। भारत दोनों देशों के साझा हितों और रणनीतिक चिंताओं के संदर्भ में वियतनाम को एक भरोसेमंद मित्र देश के रूप में देखता है। वर्तमान में दोनों ही देश रक्षा, व्यापार और भू-राजनीतिक क्षेत्र के साथ कई अन्य महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय मामलों में एक-दूसरे का सहयोग कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त दोनों देश समानता पर आधारित बहुपक्षवाद, सभी देशों की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का सम्मान, अंतर्राष्ट्रीय कानून तथा व्यवस्था का सम्मान जैसे महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक मूल्यों को साझा करते हैं। भारत और वियतनाम के बीच अंतर्राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय मुद्दों पर यह व्यापक सहमति भविष्य में दोनों देशों के बीच संबंधों को मज़बूत बनाने की संभावना का संकेत देती है।

पृष्ठभूमि:  

  • भारत और वियतनाम के संबंध दोनों देशों की स्वतंत्रता के बाद से ही मित्रवत तथा  सौहार्दपूर्ण रहे हैं।
  • वर्ष 1954 में ‘डिएन बिएन फु’ (Dien Bien Phu) में फ्राँसीसी सेना के विरूद्ध वियतनाम की विजय के बाद पंडित जवाहर लाल नेहरू वियतनाम जाने वाले पहले अंतर्राष्ट्रीय नेताओं में से एक थे।
  • वर्ष 1956 में भारत ने हनोई (वियतनाम की राजधानी) में अपने महावाणिज्य दूतावास की स्थापना की थी।
  • फरवरी 1958 में वियतनाम के राष्ट्रपति ‘हो ची मिन्ह’ पहली बार भारत की यात्रा पर आए जिसके बाद वर्ष 1959 में भारतीय राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने वियतनाम की यात्रा की।
  • वियतनाम ने वर्ष 1972 में भारत में अपने राजनयिक मिशन की स्थापना की। भारत,वियतनाम में अमेरिकी हस्तक्षेप के विरूद्ध आवाज़ उठाने में वियतनाम के साथ खड़ा हुआ।
  • वर्ष 1990 के दशक के शुरुआती वर्षों में दक्षिण-पूर्व एशिया और पूर्वी एशिया के साथ आर्थिक एकीकरण तथा राजनीतिक सहयोग के विशिष्ट उद्देश्य से भारत द्वारा अपनी ‘लुक ईस्ट नीति’ की शुरुआत के चलते भारत एवं वियतनाम के संबंध और भी मज़बूत हो गए।
  • वर्ष 2016 में दोनों देशों के बीच ‘व्यापक रणनीतिक साझेदारी’ के तहत रक्षा सहयोग को भी मज़बूती प्रदान की गई है।

सहयोग के क्षेत्र: 

  •  सामरिक भागीदारी: दोनों ही देशों ने भारत की ‘हिंद-प्रशांत सागरीय पहल’ (Indo-Pacific Oceans Initiative- IPOI) और हिंद-प्रशांत के संदर्भ में आसियान के दृष्टिकोण (‘क्षेत्र में सभी के लिये साझा सुरक्षा, समृद्धि और प्रगति’) को ध्यान में रखते हुए अपनी रणनीतिक साझेदारी को मज़बूत करने पर सहमति व्यक्त की।
  • IPOI भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा नवंबर 2019 में थाईलैंड में आयोजित पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन के दौरान लॉन्च की गई एक पहल है।
  • यह पहल समुद्री सुरक्षा सहित सात महत्त्वपूर्ण बिंदुओं पर केंद्रित है, जिसमें समुद्री पारिस्थितिकी, समुद्री संसाधन, ‘क्षमता निर्माण और संसाधन साझाकरण’, ‘आपदा जोखिम में कमी तथा आपदा प्रबंधन,’ ‘विज्ञान, प्रौद्योगिकी और शैक्षणिक सहयोग’,  ‘व्यापार कनेक्टिविटी व समुद्री परिवहन शामिल’ है।
  • भारत ने वियतनाम से IPOI के सात बिंदुओं में से एक पर भागीदार बनाने का आह्वान किया है।
  • आर्थिक सहयोग: ‘आसियान-भारत मुक्त व्यापार संधि’ पर हस्ताक्षर किये जाने के बाद से भारत और वियतनाम के बीच आर्थिक क्षेत्र के सहयोग में काफी प्रगति देखने को मिली है। 
    • भारत को पता है कि वियतनाम दक्षिण-पूर्व एशिया में राजनीतिक स्थिरता और पर्याप्त आर्थिक विकास के साथ एक संभावित क्षेत्रीय शक्ति है।
    • इसके साथ ही हाल के वर्षों में वियतनाम ने आर्थिक क्षेत्र में भी महत्त्वपूर्ण प्रगति  की  है, वैश्विक व्यापार में गिरावट के बावजूद इसमें वृद्धि बनी रही।  इस प्रगति के लिये वियतनाम के बढ़ते निर्यात अधिशेष को उत्तरदायी माना जाता है। वियतनाम के  मध्यम वर्ग की वजह से भी बाज़ार में स्थिरता की स्थिति देखी गई है।  
    • वियतनाम ने दक्षिण चीन सागर में तेल और गैस के स्रोतों की खोज हेतु भारत द्वारा अपनी उपस्थिति का विस्तार किये जाने के प्रति भी उत्सुकता व्यक्त की है।  साथ ही वियतनाम ने दृढ़ता के साथ स्पष्ट किया है कि यह क्षेत्र पूर्णरूप से वियतनाम के आर्थिक क्षेत्र का हिस्सा है। 
    • भारत द्वारा ‘त्वरित प्रभाव परियोजनाओं’ (Quick Impact Projects- QIP) के माध्यम से वियतनाम में विकास और क्षमता सहयोग में निवेश किया जा रहा है, इसके साथ ही वियतनाम के मेकांग डेल्टा क्षेत्र में जल संसाधन प्रबंधन, ‘सतत् विकास लक्ष्य’ (SDG), और डिजिटल कनेक्टिविटी के क्षेत्र में भी भारत द्वारा निवेश किया गया है। 
    • भारत द्वारा वर्ष 1976 से ही वियतनाम को कई मौकों पर ‘लाइन ऑफ क्रेडिट’ के माध्यम से आर्थिक सहायता उपलब्ध कराई गई है।   
  • रक्षा सहयोग: 
    • वर्ष 2009 में भारत और वियतनाम के रक्षा मंत्रियों के बीच रक्षा सहयोग से जुड़े एक  समझौता-ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर के बाद दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग में काफी प्रगति हुई है।  
    • वर्तमान में जहाँ वियतनाम ने अपने सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण में रुचि दिखाई है, वहीं भारत भी इस रणनीतिक क्षेत्र में शांति बनाए रखने के लिये अपने दक्षिण-पूर्व एशियाई साझेदारों की रक्षा क्षमताओं को पर्याप्त रूप से विकसित करने का इच्छुक रहा है।
      • वियतनाम ने भारत की आकाश (सतह से हवा में मारक क्षमता वाली मिसाइल प्रणाली) और ध्रुव हेलीकॉप्टर तथा ब्रह्मोस मिसाइलों के प्रति अपनी रुचि दिखाई है।  
      • इसके अतिरिक्त दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग के अंतर्गत क्षमता निर्माण, सामान्य सुरक्षा चिंताओं से निपटना, कर्मियों का प्रशिक्षण और रक्षा अनुसंधान एवं विकास में सहयोग आदि भी शामिल हैं। 

चीन का मुद्दा:  भारत और वियतनाम दोनों के लिये रणनीतिक दृष्टि से चीन का मुद्दा बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। 

  • दोनों ही देशों ने चीन के साथ युद्ध लड़े हैं और दोनों का ही चीन के साथ सीमा विवाद रहा है, साथ ही चीन ने आक्रामक रूप से अभी भी दोनों देशों की सीमाओं में अतिक्रमण की गतिविधियाँ जारी रखी हैं। 
  • ऐसे में चीन की आक्रामकता को नियंत्रित करने के लिये भारत और वियतनाम के बीच  सहयोग में वृद्धि होना स्वाभाविक है। 

आगे की राह: 

  • वैश्विक स्तर पर समन्वय: हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उभरती रणनीतिक चुनौतियों (विशेषकर क्षेत्र में चीन की आक्रामकता से जुड़ी) को देखते हुए भारत और वियतनाम को संयुक्त राष्ट्र जैसे बहुपक्षीय संस्थाओं के साथ मिलकर कार्य करना चाहिये। 
    • इस संदर्भ में भारत और वियतनाम को शीघ्र ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में प्राप्त होने वाली अपनी अस्थायी सदस्यता का लाभ उठाना चाहिये। 
  • आर्थिक क्षेत्र में समन्वय:  वर्तमान में भारत और वियतनाम को वैश्विक स्तर पर उठ रही चीन विरोधी भावनाओं और कई बड़ी कंपनियों द्वारा अपने उत्पादन केंद्रों को चीन से किसी अन्य देश में स्थानांतरित करने के निर्णय के बीच उत्पन्न हुए आर्थिक अवसरों का पूरा लाभ उठाना चाहिये।
    • हालाँकि वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए भारत को एक व्यापक रणनीति की तैयारी पर कार्य करना होगा, ताकि भारत द्वारा ‘क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी’ (RCEP) में शामिल न होने के निर्णय का दोनों देशों के संबंधों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव न पड़े। 
    • इसके अतिरिक्त वियतनाम की खुली व्यापार नीति से भी भारत बहुत कुछ सीख सकता है, जिसके कारण पिछले 8 वर्षों में वियतनाम के निर्यात में लगभग 240% की वृद्धि हुई है।
  • अन्य क्षेत्रीय सहयोगियों के साथ समन्वय:
    • वर्तमान में आसियान समूह में वियतनाम की अध्यक्षता भारत और आसियान के लिये क्षेत्रीय सुरक्षा मुद्दों पर मिलकर कार्य करने की प्रक्रिया को आसान बना सकती है।
    • दक्षिण चीन सागर में चीन के आक्रामक रवैये के कारण आसियान के तहत ही इंडोनेशिया जैसी कुछ बड़ी शक्तियों के चीन के खिलाफ खुलकर सामने आने की भी संभावना है। 
  • मज़बूत संबंधों की स्थापना: भारत और वियतनाम को रक्षा सौदों को अंतिम रूप देने के लिये बातचीत की प्रक्रिया में तेज़ी लानी चाहिये। 
    • हाल ही में गलवान घाटी (Galwan Valley) में  भारत और चीन के बीच उपजे तनाव और चीन द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में अंतर्राष्ट्रीय कानूनों [जैसे- ‘समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय’ (UN Convention on the Law of the Sea-UNCLOS) आदि] के उल्लंघन के मामलों के कारण वियतनाम जैसे देश के साथ भारत के सैन्य संबंधों को मज़बूत किया जाना बहुत ही आवश्यक हो गया है।  

निष्कर्ष: भारत और वियतनाम के रक्षा मंत्रियों की हालिया बैठक के दौरान दोनों देशों ने अगले वर्ष भी एक संयुक्त विज़न स्टेटमेंट जारी करने के संकेत दिये हैं जो यह दर्शाता है कि दोनों ही पक्ष इस संबंध को आगे ले जाने के लिये प्रतिबद्ध हैं।  

ASEAN-India

अभ्यास प्रश्न: ‘भारत और वियतनाम के बीच क्षेत्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर व्यापक सहमति भविष्य में दोनों देशों के संबंधों में अधिक मज़बूती की संभावनाओं का एक सकारात्मक संकेत देता है।’ टिप्पणी कीजिये। 

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