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हिस्टेरेकटमी : चिकित्सा या एक गर्भहीन समाज का रास्ता !

  • 02 Mar 2017
  • 15 min read

सन्दर्भ 

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग द्वारा कर्नाटक एवं महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी किया गया है जिसमे  हिस्टेरेकटमी (Hysterectomy) के सम्बन्ध में जांच करने को कहा गया है | ध्यातव्य है कि इन दोनों राज्यों में  पिछले काफी समय से इस तरह के कई मामले सामने आये हैं जहाँ इस चिकित्सकीय पद्धति का दुरूपयोग किये जाने का आरोप लगाया गया है | हिस्टेरेकटमी के पश्चात एक ग्रामीण महिला की मृत्यु हो जाने के बाद इस सन्दर्भ में कई सवाल उठ खड़े हुए हैं |

प्रमुख बिंदु 

  • ध्यातव्य है कि महाराष्ट्र के ओस्मानाबाद का उमार्ग ( Omarg ) क्षेत्र हिस्टेरेकटमी हब के रूप में सामने आया है |
  • वर्ष 2015 में जारी एक एक्सपर्ट कमिटी की रिपोर्ट के अनुसार कालाबुरगी ( कर्नाटक) में कुल 30 महीनो के  अन्दर 2,258 हिस्टेरेकटमी काराए जाने की जानकारी प्राप्त हुई थी |
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि मरीजों  को दिग्भ्रमित कर हिस्टेरेकटमी के लिए राज़ी किया गया था |
  • इसके बाद से मरीजों  को मुख्य रूप से शरीर में हॉर्मोनल असंतुलन, कमजोरी,कमर दर्द और नज़र के धुंधलेपन की समस्या थी |
  • ध्यातव्य है कि शीर्ष उपभोक्ता फोरम ने भी गरीबों के इलाज के एवज में राशि मुहैया कराने वाली एक केंद्रीय योजना के तहत लाभ प्राप्त करने की खातिर निजी अस्पतालों द्वारा महिलाओं के गर्भाशय निकाले जाने के लिए किए जा रहे ‘अंधाधुंध हिस्टेरेक्टमी’ ऑपरेशनों पर रोक लगाने के लिए केंद्र और एमसीआई से आवश्यक कदम उठाने को कहा है।
  • राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निस्तारण आयोग  (National Consumer Disputes Redressal Commission - NCDRC) का भी मानना है कि नर्सिंग होम जरूरत न होने पर भी हिस्टेरेक्टमी ऑपरेशन करके महिलाओं को धोखा दे रहे हैं और राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (Rashtriya Swasthya Bima Yojana-RSBY) का लाभ उठा रहे हैं। 
  • आयोग ने इस सम्बन्ध में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और भारतीय चिकित्सा परिषद से ऐसे चिकित्सकों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने को कहा है।
  • आंध्रप्रदेश के सिकंदराबाद में सामने आए ऐसे ही एक मामले में, एनसीडीआरसी ने एक महिला का ‘लापरवाही से इलाज’ करने के कारण सम्बंधित अस्पताल को क्षतिपूर्ति देने का आदेश दिया था जिसमे डॉक्टर ने महिला की सहमति के बिना ही उसके शरीर से अंडाशय और गर्भाशय निकाल दिया जबकि इसकी जरूरत नहीं थी और इसके कारण महिला अब गर्भवती नहीं हो सकती ।
  • सम्बंधित मामले में न्यायमूर्ति जेएम मलिक की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा था आरएसबीवाई निजी नर्सिंग होम के बीच सनक बन गई है, भारत में कई हजार नर्सिंग होम इस योजना का लाभ उठाते हैं और जरूरत न होने पर भी हिस्टेरेक्टमी ऑपरेशन करके महिलाओं को धोखा देते हैं। 
  • स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और एमसीआई को ऐसे चिकित्सकों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।

पृष्ठभूमि 

ध्यातव्य है की आजकल चिकित्सक महिलाओं में  आमतौर पर पाई जाने वाली स्वास्थ्य समास्याओं में  भी हिस्टरेक्टमी का परामर्श देने लग गए हैं  | ऐसी ही एक समस्या यूटराइन फाइब्रॉइड है जो महिलाओं के यूटरस से जुड़ी बीमारी है। यह एक तरह का गैर कैंसरस ट्यूमर है, जो तकरीबन 50 फीसदी महिलाओं को उनके जीवन में कभी न कभी हो ही जाता है। 

  • यूटराइन फाइब्रॉइड गर्भाशय का गैर कैंसरस ट्यूमर है। इसे गर्भाशय की रसौली भी कहा जाता है। गर्भाशय की मांसपेशियों में छोटी-छोटी गोलाकार गांठें बनती हैं, जो अलग-अलग आकार की हो सकती हैं |
  • कई मामलों में इसका औसत वजन 1 से 2 किग्रा. या इससे भी ज्यादा हो जाता है। कई बार यह बहुत बड़ी होकर भी जान को खतरा नहीं पहुंचाती, जबकि कई बार कम साइज की होकर भी जानलेवा हो सकती हैं।
  • तकरीबन 50 फीसदी महिलाओं को उनके जीवन में कभी न कभी यूटराइन फाइब्रॉइड्स होता है, लेकिन ज्यादातर महिलाओं को इसका पता ही नहीं चलता क्योंकि शुरुआती तौर पर इसका कोई लक्षण नजर नहीं आता ।
  • कुछ महिलाओं यह फाइब्रॉइड्स आकार में बहुत बड़े हो जाते हैं जिससे उनमे  बार-बार गर्भपात की समस्या उत्पन्न हो सकती है एवं गर्भ धारण करने में दिक्कत होती है ।
  • दो तिहाई मामले ऐसे होते हैं, जिनमें इसका कोई लक्षण सामने नहीं आता। डिलिवरी से पहले होने वाले अल्ट्रासाउंड या किसी और जांच में इसका पता चल जाता है। 
  • यूटराइन फाइब्रॉइड के बारे में कहा जाता है कि इसके शरीर में होने के बाद भी कई महिलाओं को न तो इससे कोई दिक्कत होती है और न इसका कोई लक्षण दिखाई देता है। 
  • कुछ मामलों में ऐसे फाइब्रॉइड को बिना इलाज के भी छोड़ा जा सकता है लेकिन कुछ मामलों में अगर फाइब्रॉइड कोई लक्षण नहीं दिखा रहा है तो भी उसे निकलवाना जरूरी है। यह कितनी तेज गति से बढ़ रहा है, इस पर ध्यान रखना भी जरूरी है क्योंकि ऐसा फाइब्रॉइड कैंसरस भी हो सकता है, हालांकि इसकी आशंका बहुत कम होती है। 
  • कुल यूटराइन फाइब्रॉइड के आधा फीसदी से भी कम केस कैंसरस होते हैं। सिर्फ अल्ट्रासाउंड या एमआरआई कराने से इसका फर्क पता नहीं चलता है।
  • यूटराइन फाइब्रॉइड्स में आमतौर पर जो भी ट्यूमर होते हैं, वे गैर कैंसरस होते हैं इसलिए तत्काल सर्जरी की जरूरत नहीं होती।  ऐसे में दवाइयों के प्रयोग से इन पर नियंत्रण का प्रयास किया जाता है |
  • अगर फाइब्रॉइड बेहद छोटे हैं और किसी दिक्कत को नहीं बढ़ा रहे हैं तो फौरन किसी इलाज की जरूरत नहीं होती । 
  • अगर इनका आकार बढ़ रहा हो  या फाइब्रॉइड की वजह से यूटरस का साइज 12 हफ्ते के गर्भ जितना हो गया है, तो फौरन इलाज शुरू किया जाता है।
  • प्रारभिक स्थिति में दवाओं से इलाज किया जाता है, लेकिन दवाओं से इसका परमानेंट इलाज संभव नहीं है। दवाओं से फाइब्रॉइड्स सिकुड़ जाते हैं और कुछ समय के लिए ही आराम मिलता है। वैसे भी दवाओं को छह महीने से ज्यादा नहीं दिया जाता क्योंकि इसके साइड इफेक्ट्स होते हैं। 
  • एलोपैथिक होमियोपैथिक एवं आयुर्वेदिक सभी तरह की दवाएँ इसके इलाज के लिए प्रयुक्त होती हैं | 
  • इलाज के दौरान डॉक्टर महिला का लगातार अल्ट्रासाउंड कराकर देखते हैं और उसी प्रोग्रेस के आधार पर इलाज आगे बढ़ता है। चार से छह महीने के इलाज में मरीज को ठीक किया जा सकता है ।

सर्जरी :

अगर दवाओं से चीजें काबू न हो रही हों या फाइब्रॉइड का साइज ज्यादा बढ़ गया हो तो ही डॉक्टर सर्जरी की सलाह देते हैं। यह सर्जरी भी विभिन्न प्रकार की हो सकती है | इनमे प्रमुख हैं - मायोमेक्टमी और हिस्टरेक्टमी | दोनों ही लैप्रोस्कोपिक (छोटे सुराख से) तरीके से भी की जा सकती हैं। इस प्रक्रिया से सर्जरी करने के बाद ठीक होने का समय कम हो जाता है। लेकिन दोनों ही इनवेसिव तरीके तो हैं ही जिनमें एनैस्थिसिया और सर्जरी के बाद की कुछ जटिलताओं की संभावना हमेशा रहती है ।

मायोमेक्टमी:  ऐसी महिलाओं के लिए मायोमेक्टमी सर्जरी कराने की सलाह दी जाती है। इसमें फाइब्रॉइड को निकाल दिया जाता है और गर्भाशय को कोई नुकसान नहीं पहुंचता।  फाइब्रॉइड के इलाज का यह परंपरागत तरीका है और दुनिया भर में सबसे ज्यादा सर्जरी इसी तरीके से की जाती हैं। इसमें यूटरस बना रहता है।हालाँकि सर्जरी को कराने के बाद इस बात के 25 फीसदी चांस हैं कि सर्जरी के 10 साल के भीतर नए फाइब्रॉइड बन जाएं।

हिस्टरेक्टमी:  इस तरीके में यूटरस को ही निकाल दिया जाता है | यह सर्जरी ऐसी महिलाओं को कराने की सलाह दी जाती है, जिनका परिवार पूरा हो चुका है या जिनकी आगे बच्चा पैदा करने की योजना नहीं है; फाइब्रॉइड ज्यादा बढ़ चुके हैं और परेशानी ज्यादा है, तो ही इसे कराने की सलाह देते हैं। इससे फाइब्रॉइड दोबारा होने की आशंका नहीं होती ।

हिस्टरेक्टमी में गर्भाशय का केवल ऊपरी हिस्सा निकाला जाता है, सर्विक्स अपने स्थान पर ही रहता है। कुछ हिस्टरेक्टमी में यूट्रस (गर्भाशय) और सर्विक्स पूरी तरह निकाल दिए जाते हैं।रेडिकल हिस्टरेक्टमी में यूट्रस, सर्विक्स तथा वजाइना का ऊपरी भाग निकाला जाता है। रेडिकल हिस्टरेक्टमी केवल तभी की जाती है जब महिला किसी जानलेवा बीमारी जैसे कैंसर आदि से पीड़ित हो। हिस्टरेक्टमी वजाइनल सर्जरी, पेट की सर्जरी या लेप्रोस्कोपिक सर्जरी के द्वारा की जाती है।

हिस्टरेक्टमी से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य

  • यदि महिला गर्भाशय के कैंसर (यूटरस कैंसर), गर्भाशय की ग्रीवा (सर्विक्स कैंसर) का कैंसर या डिम्ब ग्रंथि के कैंसर (ओवेरियन कैंसर) से पीड़ित है तो हिस्टरेक्टमी की जा सकती है।
  • कई बार हिस्टरेक्टमी का उपयोग गर्भाशय की गांठों और गर्भाशय के बढ़ जाने आदि समस्याओं के लिए किया जाता है |
  • किन्तु वर्तमान में  चिकित्सकों की आम राय है कि एक स्वस्थ महिला भी गर्भावस्था से बचने के लिए हिस्टरेक्टमी करवा सकती है। जिसे आम तौर पर “फैमिली प्लानिंग सर्जेरी” कहा जाता है | इसके द्वारा अनचाही गर्भावस्था को रोका जा सकता है। 
  • इस रूप में यह अनचाही गर्भावस्था को रोकने का स्थाई हल है जिसमें महिला के गर्भाशय या गर्भाशय के कुछ भागों को सर्जरी के द्वारा निकाल दिया जाता है। अनेक वयस्क महिलायें जिनके बच्चे हो चुके हैं तथा वे और अधिक बच्चे नहीं चाहती, ऐसी महिलाओं ने हिस्टरेक्टमी को अपनाया है।

समस्या कहाँ है 

  • यूटरस निकल जाने के बाद शरीर में हॉर्मोनल असंतुलन हो सकता है। शरीर में खालीपन लग सकता है और कमर दर्द की समस्या भी हो सकती है।
  • यह ऑपरेशन अकसर महिलाओं को परिणाम की जानकारी दिए बिना या उन्हें दिग्भ्रमित करके किया जाता है और जब महिलाएँ इस बारे में पूछती हैं तो चिकित्सक उनसे झूठ बोलते हैं । जबकि ऐसा दुर्लभ ही होता है कि जान बचाने के लिए हिस्टेरेक्टोमी ऑपरेशन की जरूरत हो| 
  • मरीज से पूछे बिना या उसकी सहमति के बिना या उसे गलत जानकारी देकर हिस्टेरेक्टोमी ऑपरेशन कर दिया जाना - जिसके कारण उसे कई प्रकार की चिकित्सकीय जटिलताओं का सामना करना पड सकता है  और वह भविष्य में गर्भवती भी नहीं हो सकती- यह रवैया सर्वथा अस्वीकार्य है |

निष्कर्ष 

देश में मासूम महिलाओं को बचाए जाने की जरूरत है और इस प्रकार के अंधाधुंध हिस्टेरेक्टोमी ऑपरेशन पर रोक लगानी चाहिए | देश में प्रत्येक निजी और सरकारी अस्पतालों के लिए हिस्टेरेक्टोमी ऑपरेशन संबंधी आंकड़ों को मुहैया कराना अनिवार्य होना चाहिए। अस्पताल और चिकित्सक ऐसी लापरवाही बरतकर किसी के स्वास्थ्य से खिलवाड़ न कर सकें इसके लिए कठोर नियमन किया जाना चाहिए | यूके और यूएस जैसे तमाम देशों में ऐसे नियम बनाए गए हैं जिनके मुताबिक डॉक्टरों को हिस्टरेक्टमी के ऑप्शन पर तभी जाना चाहिए, जब बेहद जरूरी हो। भारत में अब तक ऐसा कोई नियम नहीं है। लोगों को खुद भी जागरूक होना चाहिए और इस बात को समझना चाहिए कि इस सर्जरी के लिए काफी अनुभव और स्किल जरूरत होती है इसलिए अपने सर्जन का चयन पूरी सावधानी के साथ करें ।

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