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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

‘हिंद-प्रशांत क्षेत्र’ में यूरोपीय संघ की भूमिका

  • 13 Oct 2021
  • 14 min read

यह एडिटोरियल 09/10/2021 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित ‘‘How Delhi came to see Europe as a valuable strategic partner’’ लेख पर आधारित है। इसमें हिंद-प्रशांत क्षेत्र में यूरोपीय संघ के प्रवेश से संबंधित प्रगतियों और समीकरणों की चर्चा की गई है।

संदर्भ

यूरोपीय संघ (European Union- EU) हिंद-प्रशांत क्षेत्र (Indo-Pacific) में घनिष्ठ संबंधों के निर्माण और अपनी मज़बूत उपस्थिति पर ज़ोर दे रहा है, जो कि ‘हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग हेतु यूरोपीय संघ की रणनीति’ से स्पष्ट हो जाता है।   

‘यूरोपीय आयोग’ के अध्यक्ष ने राय प्रकट की है कि "यदि यूरोप को अधिक सक्रिय वैश्विक प्रतिनिधि बनना है, तो उसे अगली पीढ़ी की भागीदारियों पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है।" हिंद-प्रशांत रणनीति के अलावा, यूरोपीय संघ चीन के ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (BRI) के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने हेतु ‘ग्लोबल गेटवे’ (Global Gateway) योजना शुरू करने पर भी विचार कर रहा है। 

हाल ही में, जर्मनी, फ्राँस और नीदरलैंड जैसे सभी सदस्य देशों ने हिंद-प्रशांत की अवधारणा को अपनाना शुरू कर दिया है और इसे अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीतियों के साथ एकीकृत भी कर रहे हैं। हिंद-प्रशांत को एक रणनीतिक अवधारणा के रूप में अपनाने के लिये यूरोपीय संघ को प्रेरित करने में इन्हीं सदस्य देशों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।

यूरोपीय संघ की हिंद-प्रशांत रणनीति

  • संवहनीय आपूर्ति शृंखला: हिंद-प्रशांत भागीदारों के साथ इस संलग्नता का प्राथमिक उद्देश्य अधिक प्रत्यास्थी और संवहनीय वैश्विक मूल्य शृंखलाओं का निर्माण करना है।
  • समान विचारधारा वाले देशों के साथ साझेदारी: ऐसा प्रतीत होता है कि यूरोपीय संघ की रणनीति वर्तमान में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में पहले से स्थापित साझेदारियों को और सुदृढ़ करने तथा समान विचारधारा वाले देशों के साथ नई साझेदारियाँ विकसित करने पर अधिक केंद्रित है, ताकि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उसकी भूमिका और बढ़ती उपस्थिति सुनिश्चित हो सके। 
  • ‘क्वाड’ (Quad) सदस्यों के साथ सहयोग की इच्छा: यूरोपीय संघ ‘क्वाड’ सदस्य देशों के साथ जलवायु परिवर्तन, प्रौद्योगिकी और वैक्सीन जैसे विषयों में सहयोग की इच्छा रखता है। 
    • इसके अतिरिक्त, पश्चिमी-प्रशांत क्षेत्र में चीन की विस्तारवादी प्रवृत्तियों और हिंद महासागर में इसके बढ़ते प्रभाव को देखते हुए यूरोपीय संघ हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ‘क्वाड’ देशों के साथ सहयोग को महत्त्पूर्ण मानता है।
  • यूरोपीय संघ, एशिया में एक बड़ी भूमिका निभाने, अधिक उत्तरदायित्त्व का वहन करने और इस भू-भाग के मामलों पर एक प्रभाव रखने की आवश्यकता महसूस करता है, क्योंकि एशिया का भविष्य यूरोप के साथ संबद्ध है।
  • रक्षा और सुरक्षा यूरोपीय संघ की हिंद-प्रशांत रणनीति के महत्त्वपूर्ण तत्व हैं, जिसका उद्देश्य सुरक्षित संचार, क्षमता निर्माण एवं इंडो-पैसिफिक में नौसैनिक उपस्थिति के माध्यम से एक ‘स्वतंत्र एवं नियम-आधारित क्षेत्रीय सुरक्षा संरचना को बढ़ावा देना है।

यूरोपीय संघ के लिये हिंद-प्रशांत क्षेत्र का महत्त्व 

  • महज़ छह मिलियन आबादी वाले डेनमार्क जैसे देश का भारत के साथ एक महत्त्वपूर्ण हरित साझेदारी स्थापित करना इस बात की पुष्टि करता है कि यूरोप के छोटे-छोटे देश भी भारत के आर्थिक, तकनीकी और सामाजिक परिवर्तन में बहुत कुछ योगदान कर सकते हैं।  
    • छोटे से देश- ‘लक्ज़मबर्ग’ में भीं व्यापक वित्तीय शक्ति मौजूद हैं, वहीं ‘नॉर्वे’ भारत को प्रभावशाली समुद्री प्रौद्योगिकियाँ प्रदान कर सकता है, एस्टोनिया एक महत्त्वपूर्ण साइबर शक्ति है, ‘चेक रिपब्लिक’ ऑप्टोइलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में एक मज़बूत शक्ति है, पुर्तगाल ‘लुसोफोन’ (Lusophone) भू-भाग में प्रवेश का एक द्वार बन सकता है, जबकि स्लोवेनिया ‘कोपेर’ में अवस्थित अपने एड्रियाटिक समुद्री बंदरगाह के माध्यम से यूरोप के मुख्य क्षेत्र तक वाणिज्यिक पहुँच प्रदान करता है। 
    • अब जब भारत इन संभावनाओं को समझने लगा है तो 27 देशों के यूरोपीय संघ के साथ नए रास्ते भी खुलने लगे हैं।
  • व्यापार और निवेश के मामले में यूरोपीय संघ और हिंद-प्रशांत नैसर्गिक भागीदार क्षेत्र हैं।
    • हिंद-प्रशांत क्षेत्र में यूरोपीय संघ शीर्ष निवेशक, विकास सहयोग का अग्रणी प्रदाता और सबसे बड़े व्यापारिक भागीदारों में से एक है।
    • माल और सेवाओं के वैश्विक व्यापार में हिंद-प्रशांत तथा यूरोप संयुक्त रूप से 70% से अधिक की हिस्सेदारी रखते हैं और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश प्रवाह में उनकी हिस्सेदारी 60% से अधिक है।
    • हिंद-प्रशांत और यूरोप के बीच व्यापारिक आदान-प्रदान विश्व के किसी भी अन्य भौगोलिक क्षेत्रों की तुलना में काफी अधिक है।
    • हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ‘मलक्का जलडमरूमध्य’, ‘दक्षिण चीन सागर’ और ’बाब अल-मंदेब जलडमरूमध्य’ जैसे विश्व के कुछ प्रमुख जलमार्ग मौजूद हैं जो यूरोपीय संघ की व्यापारिक गतिविधियों के लिये भारी महत्त्व रखते हैं। 

यूरोपीय संघ की हिंद-प्रशांत रणनीति के प्रभाव

  • क्षेत्रीय सुरक्षा में योगदान: व्यापक भू-राजनीतिक पहुँच के साथ एक मज़बूत यूरोप भारत के लिये बेहद अनुकूल है। भारत इस बात से अवगत है कि यूरोप हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका की सैन्य क्षमता की बराबरी नहीं कर सकता। लेकिन यह सैन्य संतुलन को सुदृढ़  करने और कई अन्य तरीकों से क्षेत्रीय सुरक्षा के लिये योगदान करने में उल्लेखनीय सहायता कर सकता है।
    • यूरोप हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भविष्य के परिणामों को प्रभावित कर सकने की भारत की क्षमता में उल्लेखनीय रूप से वृद्धि कर सकता है। यह ऑस्ट्रेलिया, जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ भारत के ‘क्वाड’ गठबंधन के लिये एक मूल्यवान पूरकता भी प्रदान कर सकता है।
  • विकास अवसंरचना के साथ सैन्य सुरक्षा: यूरोपीय संघ की हिंद-प्रशांत रणनीति का इस क्षेत्र पर सैन्य सुरक्षा की तुलना में कहीं अधिक त्वरित और व्यापक विषयों तक विस्तृत प्रभाव पड़ने की संभावना है।
    • इसमें व्यापार और निवेश से लेकर हरित भागीदारी तक, गुणवत्तापूर्ण अवसंरचना निर्माण से लेकर डिजिटल भागीदारी तक और क्षेत्रीय शासन को सुदृढ़ करने से लेकर अनुसंधान एवं नवाचार को बढ़ावा देने तक विविध विषय शामिल हैं।
  • बहुध्रुवीय विश्व: अमेरिका और चीन के बीच गहरे होते संघर्ष के कारण दक्षिण पूर्व एशिया के लिये घटती संभावनाओं के परिदृश्य में यूरोप को एक महत्त्वपूर्ण शक्ति के रूप में देखा जा रहा है, जो इस भूभाग के लिये व्यापक रणनीतिक विकल्पों के द्वार खोल सकता है। 
    • भारत में भी यही दृष्टिकोण मौजूद है, जो अब यूरोपीय संघ को एक बहुध्रुवीय विश्व के निर्माण के लिये एक महत्त्वपूर्ण तत्व के रूप में देखता है।

संबद्ध मुद्दे

  • कुछ एशियाई देश यूरोप को रणनीतिक संदेह की दृष्टि से देखते हैं, जबकि कई अन्य देश उसे एक मूल्यवान भागीदार के रूप में देखते हैं।
  • कई ऐसे अन्य आसन्न मुद्दे भी हैं जिनका भारत-प्रशांत क्षेत्र सामना कर रहा है और जो यूरोपीय देशों के स्वयं के सुरक्षा हितों पर प्रभाव डाल सकते हैं, जैसे उभरती प्रौद्योगिकियों के संभावित जोखिम, आपूर्ति शृंखला लचीलेपन को सुनिश्चित करना और दुष्प्रचार का मुकाबला करना।  
  • इस क्षेत्र की सीमित संयुक्त सैन्य क्षमताओं और अमेरिका पर निरंतर निर्भरता को देखते हुए, सुरक्षा एजेंडे के सैन्य आयाम को अभी तक गहराई से नहीं समझा गया है।
    • संयुक्त सैन्य अभ्यासों, नौवहन की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना और समुद्री डकैती से निपटने जैसे अन्य विषय भी महत्त्वपूर्ण हैं, जहाँ फ्राँस और जर्मनी हिंद-प्रशांत क्षेत्र के अन्य देशों के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यास में पहले भी संलग्न हो चुके हैं।

आगे की राह

  • यूरोपीय संघ के सदस्य देशों को चीन के साथ और इस क्षेत्र के भीतर अपनी संलग्नता को बेहतर सामंजित करने की आवश्यकता है और इस विषय में यूरोपीय संघ की भूमिका को और परिष्कृत किया जाना चाहिये।
  • भागीदारों के साथ यूरोपीय संघ के सहयोग का सुदृढ़ होना आवश्यक है और इसे एक वैकल्पिक संवहनीय मॉडल के रूप में अपना महत्त्व प्रदर्शित करना होगा।
  • यदि यूरोपीय संघ हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपने व्यापक दृष्टिकोण को आगे बढ़ाना और इसका नेतृत्त्व करना चाहता है, तो भारत, आसियान, जापान, ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन  के साथ एक सुसंगत एवं समन्वित कार्रवाई ही एकमात्र विकल्प है। </ul style="list-style-type: circle;">
  • डिजिटल कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने हेतु संयुक्त परियोजनाओं को कार्यान्वित करना इस दिशा में पहला कदम हो सकता है।

निष्कर्ष

भारत को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में यूरोपीय संघ के प्रवेश का स्वागत करना चाहिये, क्योंकि यूरोप अपने व्यापक आर्थिक प्रभाव, प्रौद्योगिकीय क्षमता और नियामक शक्ति के साथ एक बहुध्रुवीय विश्व और एक पुनर्संतुलित हिंद-प्रशांत का वादा कर सकता है जो स्वयं भारत की इच्छाओं और आवश्यकताओं के अनुकूल है।

भारत की रणनीति में "अमेरिका को संलग्न करना, चीन पर नियंत्रण रखना, यूरोप के लिये अवसर बनाना, रूस को आश्वस्त करना, जापान को एक हिस्सेदार बनाना शामिल है। आवश्यकता यह भी है कि यूरोप के लिये अवसर के निर्माण के तरीकों पर ज़ोर दिया जाए।

अभ्यास प्रश्न: हिंद-प्रशांत क्षेत्र में यूरोपीय संघ की संलग्नता सैन्य संतुलन को सुदृढ़ करेगी और साथ ही क्षेत्रीय सुरक्षा में योगदान करेगी। चर्चा कीजिये।

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