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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारतीय किसानों का अर्थशास्त्र

  • 02 Aug 2017
  • 6 min read

संदर्भ
देश भर में जो लोग किसानों के विरोध की लहर को खारिज़ करते हैं, उन्हें सबसे पहले भारतीय किसानों के जटिल अर्थशास्त्र को समझना चाहिये। भारत में अधिकांश किसान आपदा के एक ऐसे अशांत समुद्र में तैरते हैं, जहाँ उन्हें कोई सुरक्षा उपलब्ध नहीं है। 

संकट 

  • भारतीय किसानों के संकट की शुरुआत फसल के बुआई से होती है। आने वाले महीनों में उत्पादन कैसा रहेगा यह मौसम की स्थिति पर निर्भर रहता है। 
  • किसानों का उत्पादन केवल सूखे या बाढ़ से ही प्रभावित नहीं होता है, बल्कि बेमौसम वर्षा भी खड़ी फसल को नष्ट कर देती है। हालाँकि सिंचाई कुछ राहत प्रदान कर सकती है, लेकिन यह भी उत्पादन से जुड़े जोखिमों से पूरी तरह निजात नहीं दिला सकती है। 
  • दूसरा संकट कीमतों को लेकर है। यदि पैदावार अधिक होती है तो थोक बाज़ारों में अनाजों की कीमतों गिर जाती हैं। 
  • यदि फसल खराब हुई तो उपभोक्ताओं को शांत रखने के लिये सस्ते आयात के माध्यम से कीमतों को काबू में रखने का प्रयास किया जाता है। 
  • वर्ष 2016 में भरपूर वर्षा के कारण रिकॉर्ड अनाज उत्पादन हुआ, परिणामस्वरूप बाज़ारों में अनाज का मूल्य गिर गया। ऐसे में किसानों को कुछ फसलों की लागत भी ठीक से वसूल नहीं हो पाई है।
  • एचएसबीसी के अर्थशास्त्री के एक रिपोर्ट में दिखाया कि मुद्रास्फीति में गिरावट से किसानों पर कर्ज़ का बोझ बढ़ गया है, जो कि हाल के वर्षों में उनके वास्तविक आय से ज़्यादा है।

एम.एस.पी.

  • किसानों के जोखिम को कम करने के लिये अवसर कम हैं। 
  • अब तक कई सरकारों ने किसानों के जोखिम को कम करने के लिये लगातार कई कदम उठाए हैं, परंतु इससे किसानों की दशा में कोई विशेष बदलाव नहीं आया है। 
  • न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) को मूल रूप से गारंटीकृत कीमतों के माध्यम से जोखिम को कम करने का एक तरीका माना गया था। अब यह किसानों का राजनीतिक समर्थन प्राप्त करने का एक उपकरण बन गया है। 

प्रधानमंत्री फसल बीमा

    • 2016 में नरेंद्र मोदी सरकार ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना शुरू की जो एक संभावित गेम चेंजर था। हालाँकि, पिछले वित्तीय वर्ष में नुकसान सहने वाले किसानों को अभी तक इस योजना के तहत अनुमानित दावों का 55% मुआवज़ा नहीं मिला है। 
    • किसानों को अगले मौसम में बुवाई के लिये धन की अग्रिम आवश्यकता होती है। यदि वांछित समय पर मुआवज़े का भुगतान नहीं किया जाता है तो फसल बीमा से किसानों को क्या लाभ है? सरकार को इन व्यवस्थागत अक्षमताओं को दूर करना चाहिये।

कीमत जोखिम

  • किसानों के कीमत जोखिम को कम करने के लिये एक मज़बूत तंत्र की आवश्यकता है।
  • भविष्य में कीमतों में कमी का अर्थ है कि किसान ने बुवाई के समय मौजूद कीमतों को ध्यान में रखकर अपने उत्पादन का निर्णय लिया है। इस प्रकार उनकी कीमत की उम्मीदें आगे देखने की बजाय यथास्थिति के अनुसार होती है।
  • व्यष्‍टि अर्थशास्त्र का मानक मकड़जाल (कॉबवेब) मॉडल हमें यह समझने में सहायता करता है कि सीमित जानकारी के आधार पर उत्पादन करने का निर्णय हर साल कीमतों को आसमान पर क्यों ले जाते हैं। हाल ही में टमाटर की कीमतों में उछाल इसका सबसे ताज़ा उदाहरण है।
  • वर्ष 2016 में बढ़ती कीमतों एवं प्रोटीन की आवश्यकता के मद्देनज़र सरकार ने किसानों को दालों का उत्पादन करने के लिये प्रोत्साहित किया था। किसानों ने भी जवाब में रिकॉर्ड उत्पादन किया, फलस्वरूप कीमतें धराशाई हो गई और बाज़ार मूल्य भी समर्थन मूल्य के नीचे चला गया। किसानों को कोई फायदा नहीं हुआ। 

कीमतों जोखिम कम करने का तरीका

  • कीमतों में जोखिम को कम करने का एक तरीका मूल्य की कमी के दौरान भुगतान के माध्यम से है, जिसकी वकालत नीति आयोग ने की है। 
  • मूल्य की कमी के दौरान, यदि कीमतें पूर्व-निर्धारित स्तर से नीचे आती हैं तब, किसानों को प्रत्यक्ष लाभ अंतरण के माध्यम से मुआवज़ा दिया जा सकता है। 
  • इसके लिये किसानों को अपने प्रासंगिक विवरण के साथ निकटतम मंडी में पंजीकरण करवाने के लिये कहा जा सकता है। 
  • कृषि जिंसों में एक गहरा डेरिवेटिव मार्केट भी किफायती जोखिम के खिलाफ हेजिंग में किसानों की मदद करेगा। 
  • बाज़ार नियामक ने विकल्प अनुबंधों की अनुमति देकर अच्छा किया है, हालाँकि सरकार को कीमतों में वृद्धि होने पर व्यापार पर प्रतिबंध लगाने से बचना चाहिए।

निष्कर्ष 
उपभोक्ता के हितों की रक्षा करना किसी भी सरकार की ज़िम्मेदारी है। हालाँकि, उन क्षेत्रों में जहाँ बाज़ार स्वतंत्र रूप से काम नहीं करता है, वहाँ उत्पादक और उपभोक्ता दोनों के हितों के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता होती है। इसके लिये कृषि बाज़ार का निर्माण भी आवश्यक है।

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