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बिग टेक के एकाधिकार को चुनौती

  • 14 Dec 2022
  • 14 min read

यह एडिटोरियल 13/12/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Big Tech and the need in India for ex-ante regulation” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में ‘बिग टेक’ कंपनियों के बाज़ार प्रभुत्व और संबंधित मुद्दों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

भारतीय एंटी-ट्रस्ट निकाय ‘भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (Competition Commission of India- CCI) द्वारा गूगल (Google) पर एंड्रॉइड मोबाइल उपकरण पारितंत्र में अपनी प्रभुत्वशाली स्थिति का दुरुपयोग करने के लिये 1,337.76 करोड़ रुपए का अर्थदंड लगाया गया है। इस कदम ने हमारा ध्यान आकर्षित किया है कि बिग टेक (Big Tech) कंपनियों की बाज़ार शक्ति पर देश में पुनर्विचार किये जाने की आवश्यकता है।

  • बिग टेक कंपनियाँ अपने अभिनव उत्पादों एवं सेवाओं के लिये—जो उपभोक्ताओं, व्यवसायों और सरकारों को व्यापक लाभ पहुँचाती हैं, प्रतिष्ठित हैं। लेकिन बाज़ार एकाधिकार (Market Monopolisation) और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को कमज़ोर करने के लिये उनकी आलोचना भी की जाती है।
  • इस परिदृश्य में, यह भारत के लिये उपयुक्त समय है कि वह अपने प्रतिस्पर्द्धा कानून को अद्यतन करे और स्वतंत्र, निष्पक्ष एवं न्यायसंगत प्रतिस्पर्द्धी बाज़ार सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक संशोधन लेकर आए।

बिग टेक क्या है?

  • ‘बिग टेक’ शब्द का उपयोग वैश्विक स्तर पर महत्त्वपूर्ण कुछ चुनिंदा प्रौद्योगिकी कंपनियों, जैसे गूगल, फेसबुक, अमेज़न, एप्पल और माइक्रोसॉफ्ट के लिये किया जाता है।
  • बिग टेक को कंपनियों के एक स्थिर समूह के बजाय एक अवधारणा के रूप में बेहतर समझा जाता है। नई कंपनियाँ इस श्रेणी में उसी तरह प्रवेश कर सकती हैं जैसे मौजूदा कंपनियाँ इससे बाहर हो सकती हैं।

बिग टेक कंपनियाँ भारत के डिजिटल स्पेस को कैसे रूपांतरित कर रही हैं?

  • राजस्व स्रोत: वे फिनटेक बाज़ार में—जो राजस्व का एक आकर्षक स्रोत है (विशेष रूप से भारत में प्रति उपयोगकर्त्ता विज्ञापन राजस्व कम होने के कारण), एक प्रमुख भूमिका निभाती हैं।
  • साक्षरता से जुड़ी बाधाओं को दूर करना: बिग टेक कंपनियों द्वारा नये उपयोगकर्त्ताओं तक पहुँच बनाने और साक्षरता से जुड़ी बाधाओं को दूर करने के लिये वॉइस-बेस्ड और क्षेत्रीय भाषा इंटरफेस की पेशकश की जा रही है।
  • अवसंरचनात्मक और रोज़गार अंतराल को दूर करना: नये कारोबार कार्यक्षेत्र वेयरहाउसिंग, वितरण सुविधाएँ और रोज़गार अवसर प्रदान करने के रूप में मौजूदा अवसंरचनात्मक एवं रोज़गार अंतराल को दूर करते हुए भारत को अपने घरेलू बाज़ारों की बेहतर सेवा कर सकने में मदद कर रहे हैं।
  • सामाजिक और राजनीतिक प्रगति: अधिकांश भारतीय इंटरनेट उपयोगकर्त्ता सूचनाओं तक पहुँच बनाने, संवाद करने और राजनीतिक एवं सामाजिक जीवन में भागीदारी करने के लिये एक या एक से अधिक बिग टेक प्लेटफॉर्म पर निर्भरता रखते हैं।
    • यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार के प्रयोग का भी लोकतंत्रीकरण कर रहा है।

बिग टेक को विनियमित करने के लिये भारत का वर्तमान दृष्टिकोण

  • भारत में एंटी-ट्रस्ट विषयों को प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 द्वारा नियंत्रित किया जाता है और भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग सभी प्रकार के एकाधिकारवादी अभ्यासों का नियंत्रण करता है।
    • उदाहरण के लिये, भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग ने हाल ही में गूगल के ‘व्यावसायिक उड़ान खोज विकल्प’—जिससे यह ऑनलाइन सर्च बाज़ार में एक प्रमुख स्थान प्राप्त कर रहा है, पर चिंता व्यक्त की है।
      • गूगल को वर्ष 2019 में मोबाइल एंड्रॉइड बाज़ार में अपनी प्रमुख स्थिति का दुरुपयोग करते हुए उपकरण निर्माताओं पर अनुचित शर्तें थोपने का भी दोषी पाया गया था।
  • इसके अलावा, सरकार ने प्रतिस्पर्द्धा संशोधन विधेयक, 2022 के माध्यम से प्रतिस्पर्द्धा कानून में संशोधन का प्रस्ताव भी किया है।

भारत में बिग टेक कंपनियों से संबद्ध प्रमुख चुनौतियाँ

  • संवेदनशील डेटा का अप्रतिबंधित प्रवाह: जबकि डेटा अर्थव्यवस्था का विकास हुआ है, हमने इसके विनियमन को प्रभावी ढंग से संबोधित नहीं किया है। इन प्लेटफॉर्मों पर संवेदनशील डेटा (वित्तीय रिकॉर्ड, फोन लोकेशन और मेडिकल हिस्ट्री आदि) का संग्रहण चिंताजनक परिणाम दे सकता है।
    • बड़े निगम इस डेटा को बिना किसी प्रतिबंध के उपयोग या स्थानांतरित करने के अधिकार के स्वामित्व का दावा करते हैं।
  • इंटरनेट एकाधिपत्य (Internet Monopolisation):बिग टेक कंपनियाँ ‘उपभोक्ता निष्ठा’ (Consumer Loyalty) को अर्जित करने के बजाय उसकी खरीद करने के लिये प्रतिस्पर्द्धियों का अधिग्रहण कर लेती हैं। वे उपभोक्ताओं को अपने पारिस्थितिकी तंत्र में अवरुद्ध करके रखते हैं और उन्हें अपने ही प्लेटफॉर्मों का उपयोग करने के लिये बाध्य करते हैं।
    • उनकी संयुक्त शक्ति चुनावों को भी प्रभावित कर सकती है और किसी राष्ट्र के राजनीतिक रुझान को बदल सकती है।
  • विनियामक निर्वात (Regulatory Vacuum): बिग टेक फर्मों द्वारा नवाचार और प्रगति की तेज़ गति के कारण नियामकों के पास केवल प्रतिक्रिया दे सकने की ही सक्षमता होती है, वे इसका सामना कर सकने की तैयारी नहीं रखते। ये दिग्गज प्लेटफॉर्म प्रयास करते हैं कि वे अकेले मध्यस्थ बने रहें और इसलिये उन्हें कंटेंट के लिये उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है।
  • विवेकाधीन मूल्य निर्धारण (Discretionary Pricing):गैर-डिजिटल क्षेत्र में मूल्य निर्धारण बाज़ार की शक्तियों के माध्यम से तय होता है। लेकिन डिजिटल क्षेत्र नियम प्रायः बड़े प्लेटफॉर्म द्वारा तय किये जाते हैं। इन प्लेटफॉर्मों पर उपभोक्ता स्वयं उत्पाद हैं।
    • बिग टेक फर्मों द्वारा गेटकीपिंग के साथ ‘नेटवर्क इफेक्ट्स’ (Network Effects) और ‘विनर-टेक-इट-ऑल’ (Winner-takes-it-all) जैसी अवधारणाओं के संयोग से समस्या और बढ़ जाती है।

आगे की राह

  • डिजिटल मार्केटप्लेस का विनियमन: चूँकि भारत अब डिजिटल रूपांतरण (Digital Transformation) के शिखर पर है, यह आवश्यक है कि आधुनिक स्टार्ट-अप और सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों(MSMEs) के लिये उचित अवसर सुनिश्चित करने के लिये देश में सबके लिये एक समान अवसर मौजूद हो।
    • वर्ष 2000 का प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम वृहत रूप से भौतिक बाज़ार को संबोधित करने के लिये अधिनियमित किया गया था। डिजिटल मार्केटप्लेस के लिये इस कानून को प्रासंगिक बनाने की तत्काल आवश्यकता है।
    • यूरोपीय संघ ने पहले ही ‘यूरोपियन यूनियन डिजिटल सर्विसेज़ एक्ट’ के माध्यम से इस आवश्यकता को समझ लिया है। समय आ गया है कि भारत में भी इसी तरह के कानून को अपनाया जाए।
  • मूल्य निगरानी: बाज़ार में किसी भी डिजिटल प्लेटफॉर्म की स्थिति को परिभाषित करने में मूल्य निर्धारण एक मौलिक भूमिका निभाता है। स्थानीय विक्रेताओं के लिये एक समान अवसर सुनिश्चित करने के लिये मूल्य निर्धारण का एक प्रत्याशित या पूर्व-अनुमानित ढाँचा स्थापित करना आवश्यक है।
    • सरकार का ‘ओपन नेटवर्क फ़ॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC) प्लेटफॉर्म इन छोटे खिलाड़ियों के लिये एक विश्वसनीय विकल्प है।
  • तटस्थता, अंतर-संचालनीयता और जवाबदेही सुनिश्चित करना: प्लेटफॉर्म की तटस्थता (Neutrality) को एक अनिवार्य मानदंड बनाया जाना चाहिये ताकि बिग टेक प्लेटफॉर्म अपने प्लेटफॉर्म का उपयोग करने वाले अन्य कारोबारों के साथ गलत तरीके से भेदभाव न कर सकें।
    • अंतर-संचालनीयता (Interoperability) उपभोक्ता की पसंद को सक्षम करने और AI-आधारित एल्गोरिदम के भार को कम करने में मदद करेगी।
    • हानिकारक एल्गोरिथम संबंधी परिवर्धन (Algorithmic Amplification) की पहचान करने, मूल्यांकन करने और उसे दंडित करने के लिये एल्गोरिथम संबंधी जवाबदेही (Algorithmic Accountability) सुनिश्चित की जानी चाहिए।
  • उपभोक्ताओं को ‘कुशन’ प्रदान करना: उपभोक्ताओं के हित में नये उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियम, 2020 और प्रतिस्पर्द्धा कानून के बीच सामंजस्य स्थापित करने की आवश्यकता है।
    • ऐसे उपभोक्ताओं के लिये उचित मुआवजा सुनिश्चित करने हेतु एक तंत्र तैयार करने की आवश्यकता है जो बिग टेक कंपनियों की प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी अभ्यासों का खामियाजा भुगतते हैं।
  • डेटा गोपनीयता और सुरक्षा: दुनिया भर की सरकारों ने उपयोगकर्त्ताओं के गोपनीयता के अधिकार की रक्षा के लिये कड़े कानून लागू किये हैं जहाँ टेक कंपनियों के लिये डेटा सुरक्षा एवं गोपनीयता हेतु कुछ बुनियादी एवं आवश्यक उपायों का पालन करना अनिवार्य बनाया गया है।
    • इस संदर्भ में, सभी डिजिटल मार्केट खिलाड़ियों के लिये समर्पित डेटा सुरक्षा मानदंड तैयार किये जाने चाहिये जो सीमा पार प्रवाह की निगरानी भी करेंगे ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि भारत के बाहर डेटा का हस्तांतरण घरेलू नवाचार, कानून प्रवर्तन या अन्य सेवाओं को बाधित नहीं करता हो।

अभ्यास प्रश्न: ‘‘बिग टेक कंपनियों ने भारत के डिजिटल स्पेस में क्रांति ला दी है, लेकिन इसने डिजिटल मार्केटप्लेस पर एकाधिकार भी कर लिया है।’’ टिप्पणी कीजिये।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रारंभिक परीक्षा:

भारत में कानून के प्रावधानों के तहत 'उपभोक्ताओं' के अधिकारों/विशेषाधिकारों के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (वर्ष 2012)

  1. उपभोक्ताओं को खाद्य परीक्षण के लिए नमूने लेने का अधिकार है।
  2. जब कोई उपभोक्ता किसी उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज करता है तो उसे कोई शुल्क नहीं देना होता है।
  3. उपभोक्ता की मृत्यु होने की दशा में उसका कानूनी उत्तराधिकारी उसकी ओर से उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज करा सकता है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

  (A) केवल 1
  (B) केवल 2 और 3
  (C) केवल 1 और 3
  (D) 1, 2 और 3

उत्तर: (C)

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