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शासन व्यवस्था

बजट और शिक्षा

  • 27 Jan 2022
  • 11 min read

यह एडिटोरियल 24/01/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Budgeting For The Education Emergency” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में शिक्षा पर निम्न सार्वजनिक व्यय से संबद्ध चुनौतियों के संबंध में चर्चा की गई है।

संदर्भ

कोविड-19 महामारी की शुरुआत के बाद से भारत की शिक्षा प्रणाली की पहले से ही बदहाल स्थिति और बदतर हो गई है। महामारी के कारण विद्यालयी पठन-पाठन लगभग 20 माह से अवरुद्ध है जिससे बच्चों के विशेष रूप से गरीब और वंचित तबकों के बच्चों के सीखने के प्रतिफलों (learning Outcomes) पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। भारत में शिक्षा पर तुलनात्मक रूप से निम्न सार्वजनिक व्यय और विभिन्न मंत्रालयों के अंतर्गत शिक्षा पर सार्वजनिक व्यय के आँकड़ों की अनुपलब्धता भारत के शिक्षा क्षेत्र की दुर्दशा को और गंभीर बनाती है। ये चुनौतियाँ वित्त वर्ष 2022-23 के आगामी बजट में शिक्षा क्षेत्र के मद्देनज़र सुधार की व्यापक गुंजाइश रखती हैं।

शिक्षा और सार्वजनिक व्यय

  • भारत एवं अन्य देश: महामारी से पहले भी भारत के अधिकांश राज्यों में शिक्षा पर सार्वजनिक व्यय का स्तर अन्य मध्यम आय वाले देशों की तुलना में कम ही था।
    • शिक्षा मंत्रालय के ‘शिक्षा पर बजट व्यय के विश्लेषण’ (Analysis of Budgeted Expenditure on Education) के अनुसार, अधिकांश प्रमुख राज्यों द्वारा शिक्षा पर राज्य की आय का 2.5% से 3.1% ही व्यय किया जा रहा था।
    • इसकी तुलना में वर्ष 2010-11 और 2018-19 के बीच निम्न-मध्यम आय वाले देशों ने (एक समूह के रूप में) अपने सकल घरेलू उत्पाद का 4.3% भाग शिक्षा पर व्यय किया था।
  • बजट में शिक्षा का अंश: देश में अत्यंत गंभीर शिक्षा संकट के बीच भी वर्ष 2021-22 के बजट में शिक्षा पर सार्वजनिक व्यय की वृद्धि के संबंध में केंद्र सरकार और कई राज्य सरकारों द्वारा नकारात्मक प्रवृत्ति ही दर्शाई गई।
    • समग्र बजट के आकार में वृद्धि के बावजूद शिक्षा विभाग के लिये केंद्र सरकार के आवंटन में पिछले वर्ष की तुलना में कटौती की गई थी।
    • देश के प्रमुख राज्यों और दिल्ली में से 8 राज्यों ने वर्ष 2020-21 की तुलना में वर्ष 2021-22 में शिक्षा विभागों के लिये अपने बजट आवंटन को या तो कम कर दिया या लगभग पूर्ववत ही बनाए रखा।
      • 7 राज्यों ने अपने आवंटन में 2-5% की मामूली वृद्धि की।
      • केवल 6 राज्यों ने अपने आवंटन में 5% से अधिक की वृद्धि की, हालाँकि यह देखा जाना शेष है कि बजट आवंटन की तुलना में कितना वास्तविक व्यय किया जाता है।
  • शिक्षा पर सार्वजनिक व्यय में वृद्धि की आवश्यकता:
    • सदृश GDP वाले देशों की तुलना में कम व्यय: यूनेस्को का ‘2030 फ्रेमवर्क फॉर एक्शन’ सार्वजनिक शिक्षा व्यय स्तर को सकल घरेलू उत्पाद के 4-6% और सार्वजनिक व्यय के 15% -20% के बीच रखने की सलाह देता है।
      • विश्व बैंक के हाल के एक अध्ययन में कहा गया है कि भारत ने अपने बजट का 14.1% शिक्षा पर खर्च किया, जबकि लगभग समान स्तर के GDP वाले वियतनाम में यह 18.5% और इंडोनेशिया में 20.6% रहा था।
      • चूँकि भारत में इन देशों की तुलना में 19 वर्ष से कम आयु की जनसंख्या का प्रतिशत अधिक है, इसलिये वास्तव में भारत को इन देशों की तुलना में बजट का अधिक हिस्सा आवंटित करना चाहिये।
    • लॉकडाउन से वंचित तबके को बड़ा नुकसान: प्री-स्कूल और स्कूल में नामांकित कुल बच्चों में से अधिकांश बच्चे स्कूल बंद रहने के 20 माह के दौरान सार्थक व्यवस्थित सीखने की प्रक्रिया से दूर रहे।
      • उन्होंने न केवल बुनियादी अक्षर और अंक कौशल खो दिया, बल्कि उनके सीखने की क्षमता भी प्रभावित हुई।
      • शिक्षकों से संपर्क के अभाव में लाखों बच्चे शिक्षा से वंचित हुए।
      • भारत में ओमिक्रॉन लहर की प्रत्याशा में अंतर्राष्ट्रीय रुझानों के विपरीत स्कूलों को फिर से बंद करने की जल्दबाज़ी की गई।
    • शिक्षक प्रशिक्षण को प्रतिस्थापित कर सकने की प्रौद्योगिकी की विफलता: कई राज्य सरकारें और केंद्र सरकार शिक्षा में प्रौद्योगिकी का उपयोग करने के लिये सार्वजनिक संसाधनों का व्यय कर रही हैं, हालाँकि इस बारे में कोई स्पष्टता नहीं है कि प्रौद्योगिकी पर कितना सार्वजनिक संसाधन खर्च किया जा रहा है।
      • इसके अलावा ऑनलाइन लर्निंग की प्रभावकारिता को लेकर संदेह मौजूद हैं क्योंकि प्री-रिकार्डेड विडियो तक भी 20% से कम छात्रों की पहुँच है।
  • व्यय डेटा की अस्पष्टता- एक अंतर्निहित समस्या: वर्ष 2020-21 के आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, शिक्षा पर केंद्र और राज्य सरकारों का संयुक्त व्यय सकल घरेलू उत्पाद के 2.8% होने का अनुमान था (वर्ष 2018-19), जबकि शिक्षा मंत्रालय के आँकड़े से पता चलता है कि इसी वर्ष शिक्षा पर सार्वजनिक व्यय वर्ष 2011-12 में 3.8% से बढ़ते हुए सकल घरेलू उत्पाद के 4.3% तक पहुँच गया था।
    • आँकड़ों में यह अंतर शिक्षा मंत्रालय के अलावा अन्य मंत्रालयों द्वारा शिक्षा पर व्यय को संलग्न करने के कारण है। 
      • उदाहरण के लिये सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा आंगनवाड़ी, छात्रवृत्ति आदि पर किये गए व्यय और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा उच्च शिक्षा पर किया गया व्यय।
    • हालाँकि इन व्ययों की संरचना आसानी से उपलब्ध नहीं है क्योंकि विभागों (शिक्षा मंत्रालय के अलावा) के शिक्षा व्यय को स्तर के आधार पर नहीं दर्शाया जाता है।
      • राज्य सरकारों के अन्य विभागों द्वारा शिक्षा पर किये जाने वाले व्यय का आकलन और अस्पष्ट है क्योंकि वे शिक्षा पर अलग से व्यय की व्यवस्था भी नहीं करते हैं।

आगे की राह

  • शिक्षा प्रणाली को पुनर्जीवित करने हेतु बहु-आयामी दृष्टिकोण: कोविड-19 महामारी के कारण उत्पन्न संकट भारत की सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली की लंबे समय से जारी निम्न वित्तपोषण की समस्या को दूर करने का एक अवसर हो सकता है।
    • शिक्षा प्रणाली को अब न केवल कई वर्षों के लिये संसाधनों का उपयोग करने की आवश्यकता है, बल्कि गरीब और वंचित बच्चों की आवश्यकताओं पर भी ठोस ध्यान देने की ज़रूरत है जो इस तरह के शैक्षिक संकटों में प्रतिकूल रूप से प्रभावित होने की सर्वाधिक संभावना रखते हैं।
    • हालाँकि, सार्वजनिक व्यय की वृद्धि करना एक आवश्यकता तो है लेकिन सभी समस्याओं के समाधान के लिये उपयुक्त शर्त नहीं है। यह देखा जाना भी आवश्यक है कि सार्वजनिक धन कहाँ खर्च किया जा रहा है, जबकि यह रिकॉर्ड रखना भी महत्त्वपूर्ण है कि संसाधनों का कितने प्रभावी ढंग से उपयोग किया जा रहा है।
  • अतिरिक्त संसाधन: सार्वजनिक व्यय में वृद्धि के अलावा अतिरिक्त आवश्यकताओं में शामिल हैं:
    • बैक-टू-स्कूल अभियान और पुन: नामांकन अभियान
    • कुपोषण को दूर करने के लिये विस्तारित पोषण कार्यक्रम
    • बच्चों को विशेष रूप से भाषा और गणित सीखने में मदद करने के लिये पाठ्यक्रम का पुनर्गठन
    • उनके सामाजिक-भावनात्मक विकास का विशेष रूप से प्रारंभिक कक्षाओं में, समर्थन करना
    • अतिरिक्त शिक्षण सामग्री, शिक्षक प्रशिक्षण एवं कार्यान्वित समर्थन, अतिरिक्त शिक्षा कार्यक्रम और छुट्टियों एवं सप्ताहांत के दौरान अनुदेशात्मक समय में वृद्धि करना
  • आगामी बजट से उम्मीदें: आँकड़ों की भरमार के इस युग में यह आश्चर्यजनक है कि शिक्षा क्षेत्र पर सार्वजनिक व्यय के आँकड़े आसानी से उपलब्ध नहीं हैं।
    • व्यय डेटा की अस्पष्टता आगामी बजट के लिये एक अवसर प्रदान करती है कि वह वर्ष 2021-22 में प्रमुख विभागों द्वारा शिक्षा के विभिन्न स्तरों के लिये आवंटित किये जाने वाले अतिरिक्त धन के संबंध में मौजूद भ्रम को दूर करे।
    • बजट में इस तरह के धन के लिये भी प्रावधान होना चाहिये जो विशेष रूप से बच्चों के सामने मौजूद शिक्षण संबंधी समस्या को संबोधित करे जहाँ वे सीखने के अवसरों से वंचित हुए हैं।

अभ्यास प्रश्न: निम्न सार्वजनिक व्यय के संदर्भ में भारत के शिक्षा क्षेत्र के सामने विद्यमान चुनौतियों की चर्चा कीजिये।

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