अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-ब्रिटेन रणनीतिक सहयोग का सुदृढ़ीकरण
- 23 Jul 2025
- 143 min read
यह एडिटोरियल 23/07/2025 को द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित “PM Modi in the UK: Let go of the bilateral baggage” पर आधारित है। यह लेख भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर औपचारिक हस्ताक्षर को द्विपक्षीय संबंधों में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ के रूप में प्रस्तुत करता है, जहाँ मध्य शक्तियों के रूप में दोनों राष्ट्र एक-दूसरे के वैश्विक प्रभाव को बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं।
प्रिलिम्स के लिये:भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौता, सेमीकंडक्टर, साइबर सुरक्षा, हिंद महासागर में HMS क्वीन एलिज़ाबेथ, प्रत्यर्पण, कार्बन सीमा समायोजन तंत्र, बौद्धिक संपदा (IP) अधिकार, AUKUS मेन्स के लिये:भारत और ब्रिटेन के बीच अभिसरण के प्रमुख क्षेत्र, भारत और ब्रिटेन के बीच टकराव के प्रमुख क्षेत्र। |
भारतीय प्रधानमंत्री की हालिया लंदन यात्रा के दौरान भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौते पर औपचारिक हस्ताक्षर द्विपक्षीय संबंधों में एक महत्त्वपूर्ण क्षण का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो अंततः 1990 के दशक से चली आ रही प्रतिबद्धताओं और उपलब्धियों के बीच के अंतराल को कम करता है। व्यापार, तकनीक, रक्षा और शिक्षा तक विस्तृत यह व्यापक सहयोग अतीत की कूटनीतिक असफलताओं और औपनिवेशिक काल के विरोधों से एक नया बदलाव दर्शाता है। चीन की हठधर्मिता और अमेरिका की अनिश्चितता से आकार लेते हुए, तेज़ी से बहुध्रुवीय होते विश्व में मध्य शक्तियों के रूप में, भारत और ब्रिटेन एक-दूसरे के वैश्विक प्रभाव को बढ़ाने वाले बल के रूप में अपनी स्थिति बना रहे हैं।
भारत और UK के बीच अभिसरण के प्रमुख क्षेत्र कौन-से हैं?
- व्यापार और आर्थिक सहयोग: भारत और UK ने आर्थिक सहयोग में उल्लेखनीय प्रगति की है, भारत-UK मुक्त व्यापार समझौते (FTA) से द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
- सत्र 2023-24 में भारत और UK के बीच द्विपक्षीय व्यापार बढ़कर 21.34 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया। कंज़र्वेटिव और लेबर दोनों सरकारों के तहत चल रही FTA वार्ता का उद्देश्य 99% भारतीय निर्यात पर शुल्क हटाना है।
- सत्र 2024-25 में UK को भारत का निर्यात 12.6% बढ़कर 14.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया।
- यह तात्कालिकता ब्रेक्सिट के बाद ब्रिटेन की यूरोपीय संघ से परे विविधीकरण की आवश्यकता से प्रेरित है, जिसमें भारत के विशाल और बढ़ते बाज़ार को UK के आर्थिक पुनरुद्धार के लिये महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
- सत्र 2023-24 में भारत और UK के बीच द्विपक्षीय व्यापार बढ़कर 21.34 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया। कंज़र्वेटिव और लेबर दोनों सरकारों के तहत चल रही FTA वार्ता का उद्देश्य 99% भारतीय निर्यात पर शुल्क हटाना है।
- प्रौद्योगिकी और नवाचार: वर्ष 2024 में शुरू की गई भारत-UK प्रौद्योगिकी सुरक्षा पहल (TSI), AI, सेमीकंडक्टर और साइबर सुरक्षा जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों पर उनके संयुक्त प्रयास को मज़बूत करती है।
- भारत का विकसित होता तकनीकी क्षेत्र और ब्रिटेन की उन्नत अनुसंधान क्षमताएँ नवाचार-संचालित सहयोग के लिये एक आदर्श हैं।
- ब्रिटेन की SRAM और MRAM टेक्नोलॉजीज़ ने भारत के सेमीकंडक्टर क्षेत्र में पहले ही 30,000 करोड़ रुपए निवेश करने की प्रतिबद्धता जताई है, जो बढ़ते तकनीकी निवेश को दर्शाता है।
- AI अनुसंधान और विकास में चल रही साझेदारी इस क्षेत्र की संभावनाओं को दर्शाती है, जहाँ दोनों देश ‘सुरक्षित, ज़िम्मेदार और मानव-केंद्रित’ AI सिस्टम विकसित करने पर केंद्रित हैं।
- रक्षा और सुरक्षा: भारत और ब्रिटेन ने रक्षा क्षेत्र में, विशेष रूप से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में, सहयोग बढ़ाया है, जहाँ दोनों चीन के बढ़ते प्रभाव को लेकर चिंतित हैं।
- भारत के समुद्री हितों के लिये ब्रिटेन का समर्थन, जैसा कि हिंद महासागर में HMS क्वीन एलिज़ाबेथ की तैनाती में देखा गया है, क्षेत्रीय सुरक्षा के लिये एक संयुक्त मोर्चे को दर्शाता है।
- वर्ष 2023 में, ब्रिटेन से भारत की रक्षा खरीद न्यूनतम थी, जो कुल अधिग्रहणों का केवल 3% थी, लेकिन वर्ष 2023 में स्थापित 2+2 तंत्र रक्षा प्रौद्योगिकीअंतरण एवं सैन्य अंतर-संचालन में सहयोग के भविष्य के अवसरों का संकेत देता है।
- जलवायु परिवर्तन और हरित ऊर्जा: जलवायु परिवर्तन से निपटने में भारत-ब्रिटेन संबंध तेज़ी से महत्त्वपूर्ण होते जा रहे हैं, दोनों देश महत्त्वाकांक्षी जलवायु लक्ष्यों के लिये प्रतिबद्ध हैं।
- भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक अपनी 65% बिजली नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से उत्पन्न करना है, जबकि ब्रिटेन का लक्ष्य वर्ष 2050 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करना है।
- हरित प्रौद्योगिकियों, विशेष रूप से हरित हाइड्रोजन और जलवायु वित्त में सहयोगात्मक प्रयास, उनकी साझेदारी के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- ब्रिटेन-भारत हाइड्रोजन साझेदारी, वर्ष 2022 में घोषित ब्रिटेन-भारत हाइड्रोजन हब पर आधारित है।
- भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक अपनी 65% बिजली नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से उत्पन्न करना है, जबकि ब्रिटेन का लक्ष्य वर्ष 2050 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करना है।
- जन-जन संबंध: ब्रिटेन में 16 लाख से अधिक भारतीय प्रवासी समुदाय, दोनों देशों के बीच जन-जन संबंधों के लिये एक महत्त्वपूर्ण सेतु का काम करता है।
- उच्च स्तर की सामाजिक-आर्थिक सफलता के साथ, ब्रिटेन में भारतीय मूल का समुदाय स्वास्थ्य सेवा, प्रौद्योगिकी और व्यवसाय सहित विभिन्न क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण योगदान देता है।
- इसके अतिरिक्त, भारतीय मूल के सांसदों ने ब्रिटिश राजनीति में अपनी छाप छोड़ी है, वर्ष 2024 तक संसद में 26 सांसदों के साथ, जो राजनीतिक एवं आर्थिक मामलों पर प्रवासी समुदाय के मज़बूत प्रभाव को दर्शाता है।
- शिक्षा और अनुसंधान सहयोग: भारत-UK शिक्षा साझेदारी निरंतर विकसित हो रही है और भारतीय छात्र UK में अंतर्राष्ट्रीय छात्रों का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं।
- यह सहयोग, जिसका उदाहरण भारत में साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय के परिसर की स्थापना है, शैक्षिक समन्वय के बढ़ते महत्त्व को दर्शाता है।
- भारत युवा पेशेवर योजना का निर्माण द्विपक्षीय शैक्षणिक गतिशीलता को और बढ़ावा देता है।
भारत और ब्रिटेन के बीच टकराव के प्रमुख क्षेत्र कौन से हैं?
- प्रवासन और वीज़ा नीतियाँ: प्रवासन भारत और ब्रिटेन के बीच लंबे समय से एक विवादास्पद मुद्दा रहा है।
- दोनों देशों के घनिष्ठ संबंधों की आकांक्षा के बावजूद, ब्रेक्सिट के बाद ब्रिटेन की प्रतिबंधात्मक आव्रजन नीतियाँ भारत की अपने कुशल पेशेवरों के लिये अधिक गतिशीलता की इच्छा के साथ असंगत हैं।
- वीज़ा मानदंडों को उदार बनाने की वार्ता के बावजूद, IT कर्मचारियों, स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों और छात्रों के लिये आसान वीज़ा अभिगम की भारत की बढ़ती माँग पूरी नहीं हुई है।
- भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौते (FTA) पर चर्चा आंशिक रूप से आव्रजन माँगों में सामंजस्य बिठाने में कठिनाई के कारण विलंबित हुई, क्योंकि भारत की मांग IT और स्वास्थ्य सेवा जैसे प्रमुख क्षेत्रों में पेशेवरों के लिये अधिक गतिशीलता है।
- विधिक और प्रत्यर्पण मुद्दे: प्रत्यर्पण दोनों देशों के बीच एक संवेदनशील मुद्दा बना हुआ है, भारत प्रायः ब्रिटेन पर भगोड़ों को शरण देने और प्रत्यर्पण के अनुरोधों को अस्वीकार करने का आरोप लगाता है।
- विजय माल्या जैसे हाई-प्रोफाइल मामलों ने इस मुद्दे को उजागर किया है।
- लंबे समय से चल रहे प्रयासों के बावजूद, ब्रिटेन भ्रष्टाचार, वित्तीय अपराधों और आतंकवाद के लिये भारत द्वारा वांछित व्यक्तियों को प्रत्यर्पित करने में हिचकिचा रहा है।
- ये विधिक गतिरोध विश्वास को कमज़ोर करते हैं और संभावित व्यापार समझौतों सहित दोनों देशों के बीच व्यापक सुरक्षा एवं आर्थिक सहयोग को जटिल बनाते हैं।
- रूस-यूक्रेन युद्ध और सामरिक स्वायत्तता: रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत का तटस्थ रुख प्रायः यूक्रेन के प्रति ब्रिटेन के दृढ़ समर्थन से असंगत रहा है।
- हालाँकि भारत ने शांतिपूर्ण समाधान के लिये समर्थन व्यक्त किया है, लेकिन उसने रूस के कार्यों की निंदा करने या पश्चिमी प्रतिबंधों में शामिल होने से परहेज़ किया है।
- रूस की सीधे तौर पर निंदा करने से भारत का इनकार ब्रिटेन की व्यापक रणनीति के विपरीत है, जिससे रक्षा और हिंद-प्रशांत सुरक्षा जैसे अन्य क्षेत्रों में उनके रणनीतिक सहयोग के बावजूद, कभी-कभी असंगतता की स्थिति उत्पन्न होती है।
- पर्यावरण मानक और कार्बन सीमा समायोजन: कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (CBAM) सहित जलवायु-परिवर्तन कार्रवाई के प्रति ब्रिटेन की बढ़ती प्रतिबद्धता, भारत के साथ असंगतता का एक संभावित स्रोत बनती है।
- भारत को चिंता है कि वर्ष 2027 तक लागू होने वाला CBAM, इस्पात और लौह जैसे उसके कार्बन-प्रधान उद्योगों पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा।
- इस उपाय को भारत पर्यावरण संरक्षणवाद के एक रूप के रूप में देखता है, क्योंकि इससे उसके निर्यातकों की लागत बढ़ जाएगी।
- लौह और इस्पात जैसे कार्बन-प्रधान आयातों पर कर लगाने का ब्रिटेन का प्रस्ताव भारत के निर्यात को बहुत प्रभावित कर सकता है, विशेषकर यह देखते हुए कि भारत विश्व स्तर पर दूसरा सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक है।
- भारत को चिंता है कि वर्ष 2027 तक लागू होने वाला CBAM, इस्पात और लौह जैसे उसके कार्बन-प्रधान उद्योगों पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा।
- ब्रिटेन में चरमपंथी गतिविधियों का उदय: ब्रिटेन अपनी सीमाओं के भीतर खालिस्तानी अलगाववादी गतिविधियों से निपटने में संघर्ष कर रहा है, जिससे प्रायः भारत-ब्रिटेन संबंधों में तनाव उत्पन्न होता है।
- ब्रिटेन में खालिस्तानी समर्थक समूहों की मौजूदगी, जिसमें भारतीय उच्चायोग के बाहर विरोध प्रदर्शन भी शामिल हैं, ने राजनयिक तनाव उत्पन्न किया है।
- भारत ऐसी गतिविधियों को अपनी संप्रभुता का उल्लंघन मानता है, जिसे ब्रिटेन प्रभावी ढंग से रोकने में विफल रहा है।
- ब्रिटेन के आश्वासनों के बावजूद, ये घटनाएँ ब्रिटेन द्वारा चरमपंथ से निपटने के तरीके को लेकर भारत में नकारात्मक धारणाओं को बढ़ावा दे रही हैं, जिससे सुरक्षा मामलों में व्यापक सहयोग प्रभावित हो रहा है।
- व्यापार बाधाएँ और टैरिफ विवाद: भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौते (FTA) की दिशा में गति के बावजूद, महत्त्वपूर्ण टैरिफ विवाद अभी भी अनसुलझे हैं।
- ब्रिटिश ऑटोमोबाइल, स्कॉच व्हिस्की और कृषि उत्पादों पर उच्च टैरिफ कम करने में भारत की अनिच्छा और साथ ही भारत के सेवा बाज़ार में ब्रिटेन की व्यापक पहुँच की इच्छा, एक प्रमुख मुद्दा बना हुआ है।
- दोनों देश आम सहमति तक पहुँचने के लिये संघर्ष कर रहे हैं, क्योंकि भारत का उद्देश्य अपने घरेलू उद्योगों की रक्षा करना है जबकि ब्रिटेन निर्बाध बाज़ार अभिगम के लिये प्रयासरत है।
- वर्ष 2023 में, भारत ने ब्रिटिश व्हिस्की पर 150% और ऑटोमोबाइल पर 100% तक टैरिफ बनाए रखा, जबकि ब्रिटेन अपने निर्यात को बढ़ावा देने के लिये इसमें कमी चाहता था।
- वार्ता के तहत, स्कॉच व्हिस्की पर टैरिफ तुरंत आधा करके 75% कर दिया जाएगा और अगले 10 वर्षों में धीरे-धीरे घटाकर 40% कर दिया जाएगा।
- वर्ष 2023 में, भारत ने ब्रिटिश व्हिस्की पर 150% और ऑटोमोबाइल पर 100% तक टैरिफ बनाए रखा, जबकि ब्रिटेन अपने निर्यात को बढ़ावा देने के लिये इसमें कमी चाहता था।
- यह टैरिफ गतिरोध मुक्त व्यापार समझौते (FTA) की वार्ता को जटिल बनाता है और घरेलू प्राथमिकताओं को व्यापार उदारीकरण लक्ष्यों के साथ संरेखित करने में आने वाली कठिनाई को उजागर करता है।
- बौद्धिक संपदा और बाज़ार अभिगम: भारत और UK को बौद्धिक संपदा (IP) अधिकारों और एक-दूसरे के बाज़ारों तक पहुँच से संबंधित चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा है।
- मज़बूत बौद्धिक संपदा सुरक्षा के लिये UK का प्रयास प्रायः भारत के किफायती दवाओं तक पहुँच एवं उसकी घरेलू नवाचार नीतियों पर ध्यान केंद्रित करने के प्रयासों के विपरीत होता है।
- भारत का जेनेरिक उद्योग, जो विश्व के अधिकांश हिस्सों के लिये किफायती दवाओं का उत्पादन करता है, वैश्विक बौद्धिक संपदा मानकों के कारण दबाव का सामना कर रहा है।
ब्रिटेन के साथ संबंध बढ़ाने के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है?
- वीज़ा और प्रवासन नीतियों को सुव्यवस्थित करना: भारत को कुशल पेशेवरों, छात्रों और श्रमिकों को प्राथमिकता देते हुए, अधिक लचीली एवं पारस्परिक रूप से लाभकारी वीज़ा व्यवस्था बनाने के लिये केंद्रित वार्ताओं में शामिल होना चाहिये।
- विशेष रूप से भारतीय तकनीकी, स्वास्थ्य सेवा और शैक्षिक पेशेवरों के लिये, आवागमन को आसान बनाने हेतु द्विपक्षीय समझौते स्थापित किये जा सकते हैं।
- सी. राजा मोहन भारत के अंतर्राष्ट्रीयकरण पर ज़ोर देते हुए कहते हैं कि "जैसे-जैसे दुनिया भारतीय प्रतिभाओं की तलाश कर रही है, प्रवासी समुदाय, जो अब लगभग 36 मिलियन बताया जाता है, बढ़ता रहेगा।"
- भारत लोगों के बीच संबंधों को बढ़ावा देने और व्यापार वार्ता में प्रमुख विवादास्पद मुद्दों में से एक का समाधान करने के लिये इस अवसर का लाभ उठा सकता है।
- एक सुस्पष्ट प्रवासन नीति, विशेष रूप से तकनीकी प्रतिभाओं के लिये, ब्रिटेन की ब्रेक्सिट-पश्चात आर्थिक रणनीति में एक महत्त्वपूर्ण भागीदार के रूप में भारत की स्थिति को मज़बूत करेगी।
- तकनीकी सहयोग को प्राथमिकता: भारत को AI, क्वांटम कंप्यूटिंग और हरित प्रौद्योगिकियों जैसे उभरते क्षेत्रों में ब्रिटेन के साथ संयुक्त अनुसंधान पहलों को बढ़ाना चाहिये।
- तकनीकी स्टार्टअप और अनुसंधान पर केंद्रित द्विपक्षीय नवाचार केंद्र स्थापित करने से ज्ञान के बेहतर आदान-प्रदान को बढ़ावा मिल सकता है।
- तकनीकी अवसंरचना पर गहन सहयोग को बढ़ावा देकर, भारत वैश्विक तकनीकी नेतृत्व में ब्रिटेन के लिये एक रणनीतिक साझेदार के रूप में अपनी स्थिति स्थापित कर सकता है, तकनीकी विभाजन को कम कर सकता है और निरंतर विकास को बढ़ावा दे सकता है।
- सांस्कृतिक कूटनीति के माध्यम से सॉफ्ट पावर का लाभ उठाना: भारत को ब्रिटेन के साथ मज़बूत भावनात्मक संबंधों को बढ़ावा देने के लिये अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और फिल्मों, कला एवं पारंपरिक शिल्प सहित रचनात्मक उद्योगों का प्रदर्शन करके अपनी सांस्कृतिक कूटनीति को प्राथमिकता देनी चाहिये।
- सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रमों का निर्माण, विशेष रूप से शिक्षा, कला और डिजिटल मीडिया में, लंबे समय से चली आ रही औपनिवेशिक धारणाओं को कम करने तथा आपसी सम्मान को बढ़ाने में सहायता कर सकता है।
- इससे लोगों के बीच बेहतर संपर्क को भी बढ़ावा मिलेगा, जो एक मज़बूत द्विपक्षीय संबंध के लिये आवश्यक है।
- क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा पर सहयोग: भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा के मुद्दों पर ब्रिटेन के साथ एक मज़बूत साझेदारी के लिये प्रयास कर सकता है।
- समुद्री सुरक्षा, आतंकवाद-निरोध और साइबर रक्षा में संयुक्त पहलों का नेतृत्व करके, भारत एक नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को बढ़ावा देने में ब्रिटेन का एक अनिवार्य साझेदार बन सकता है।
- इसके अतिरिक्त, क्वाड और AUKUS जैसे बहुपक्षीय सुरक्षा ढाँचों में घनिष्ठ सहयोग दोनों देशों को क्षेत्रीय एवं वैश्विक सुरक्षा चुनौतियों से निपटने में लाभ प्रदान कर सकता है।
- जलवायु कार्रवाई पर संयुक्त अनुसंधान मंच बनाना: भारत नवीकरणीय ऊर्जा, सतत् कृषि और कार्बन कैप्चर तकनीकों पर केंद्रित संयुक्त अनुसंधान पहलों के माध्यम से जलवायु परिवर्तन से निपटने में UK के साथ अधिक व्यापक रूप से सहयोग कर सकता है।
- संयुक्त जलवायु कार्रवाई मंच और नवाचार केंद्र स्थापित करके, भारत न केवल UK के शुद्ध-शून्य लक्ष्यों के साथ तालमेल बिठा सकता है, बल्कि सतत् प्रथाओं को लागू करने में भी अग्रणी बन सकता है, जिससे यह वैश्विक हरित परिवर्तन में एक केंद्रीय भागीदार बन सकता है।
- लक्षित कूटनीति के माध्यम से व्यापार और निवेश प्रवाह में वृद्धि: भारत को विशेष रूप से ऑटोमोबाइल, शराब और वस्त्र जैसे क्षेत्रों में टैरिफ बाधाओं को कम करने के लिये सक्रिय रूप से वार्ता करनी चाहिये, साथ ही वित्तीय सेवाओं एवं विधिक विशेषज्ञता सहित ब्रिटिश सेवाओं के लिये बाज़ार अभिगम बढ़ाने के तरीकों की खोज़ करनी चाहिये।
- यह सुनिश्चित करके कि मुक्त व्यापार समझौते में वस्तुओं और सेवाओं के अधिक गतिशील आदान-प्रदान के प्रावधान शामिल हैं, भारत UK की ब्रेक्सिट के बाद की आर्थिक महत्त्वाकांक्षाओं में एक प्रमुख भागीदार के रूप में अपनी स्थिति को मज़बूत कर सकता है।
- इसके अलावा, भारत स्वयं को वैश्विक क्षमता केंद्रों (GCC) के केंद्र के रूप में स्थापित कर सकता है तथा अपने कुशल कार्यबल का लाभ उठाकर लागत प्रभावी नवाचार और परिचालन दक्षता चाहने वाली ब्रिटिश कम्पनियों को आकर्षित कर सकता है।
भारत-ब्रिटेन संबंधों को मज़बूत करने में GCC क्या भूमिका निभा सकते हैं?
- आर्थिक और व्यापारिक विकास के उत्प्रेरक: वैश्विक क्षमता केंद्र (GCC) लागत-प्रभावी, उच्च-गुणवत्ता वाले व्यावसायिक संचालन को सुगम बनाकर भारत और ब्रिटेन दोनों में आर्थिक विकास के प्रमुख चालक के रूप में कार्य करते हैं।
- GCC, ब्रिटेन की कंपनियों को भारत के उच्च कुशल कार्यबल का लाभ उठाने में सहायता करते हैं और साथ ही इसकी प्रतिस्पर्द्धी लागत संरचनाओं का लाभ भी उठाते हैं।
- भारत में GCC का विस्तार करके, ब्रिटेन की कंपनियाँ अपनी वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ा सकती हैं तथा इसके विपरीत, ब्रिटेन में भारतीय कंपनियाँ द्विपक्षीय आर्थिक जुड़ाव को गहरा कर सकती हैं और व्यापारिक संबंधों को मज़बूत कर सकती हैं।
- तकनीकी और ज्ञान हस्तांतरण को सक्षम बनाना: GCC नवाचार को बढ़ावा देने और तकनीकी विशेषज्ञता के हस्तांतरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- भारत के लिये, ये केंद्र अत्याधुनिक तकनीकों, विशेष रूप से IT, AI और साइबर सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में, के प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करते हैं।
- भारत में GCC स्थापित करने वाली ब्रिटेन की कंपनियाँ अपने भारतीय समकक्षों को ज्ञान हस्तांतरण की सुविधा भी प्रदान करती हैं, जिससे दोहरा लाभ होता है।
- रोज़गार और कौशल विकास को मज़बूत करना: GCC भारत और UK में हज़ारों रोज़गार सृजित करने, कौशल विकास को बढ़ावा देने और अधिक कुशल कार्यबल को बढ़ावा देने में सहायता करते हैं।
- भारतीय शैक्षणिक संस्थानों के साथ सहयोग करके, UK स्थित GCC भारतीय पेशेवरों को विश्व स्तरीय प्रशिक्षण और विकास कार्यक्रमों तक पहुँच के अवसर प्रदान करते हैं।
- नवाचार और अनुसंधान एवं विकास में रणनीतिक सहयोग को बढ़ावा देना: GCC न केवल व्यावसायिक संचालन पर केंद्रित हैं, बल्कि अनुसंधान एवं विकास (R&D) गतिविधियों में भी केंद्रीय भूमिका निभाते हैं, विशेष रूप से फार्मास्यूटिकल्स, इंजीनियरिंग एवं स्वास्थ्य सेवा जैसे क्षेत्रों में।
- ये केंद्र नवाचार के केंद्र के रूप में कार्य करते हैं, जहाँ भारतीय पेशेवर UK के विशेषज्ञों के साथ संयुक्त परियोजनाओं पर कार्य करते हैं, दवा विकास, स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों एवं इंजीनियरिंग समाधान जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों को आगे बढ़ाते हैं।
निष्कर्ष:
भारत-UK संबंध एक महत्त्वपूर्ण मोड़ पर हैं, जो व्यापार, व्यावसायिक जुड़ाव और रणनीतिक संरेखण में द्विपक्षीय सहयोग की अपार संभावनाएँ प्रदान करते हैं। राजनयिक संवाद, प्रौद्योगिकी में सहयोग और वैश्विक शांति एवं समृद्धि के लिये साझा प्रतिबद्धताओं के माध्यम से, दोनों देश अपनी साझेदारी को मज़बूत कर सकते हैं तथा एक साथ मिलकर एक अधिक सामंजस्यपूर्ण, सतत् भविष्य का निर्माण कर सकते हैं।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत-UK संबंध पिछले कुछ वर्षों में महत्त्वपूर्ण रूप से विकसित होते हुए तथा औपनिवेशिक विरासत से हटकर एक अधिक रणनीतिक साझेदारी की ओर अग्रसर हुए हैं। इस संदर्भ में, दोनों देशों के बीच अभिसरण और विचलन के प्रमुख क्षेत्रों का विश्लेषण कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न 1. हमने ब्रिटिश मॉडल पर आधारित संसदीय लोकतंत्र को अपनाया है, किंतु हमारा मॉडल उस मॉडल से किस प्रकार भिन्न है? (2021)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) प्रश्न 2. निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2014)
उपर्युक्त में से कौन-से 'आर्कटिक काउन्सिल' के सदस्य हैं? (a) 1, 2 और 3 उत्तर: (d) मेन्सप्रश्न 1. हाल के समय में भारत और यू.के. की न्यायिक व्यवस्थाएँ अभिसरणीय एवं अपसरणीय होती प्रतीत हो रही हैं। दोनों राष्ट्रों की न्यायिक कार्यप्रणालियों के आलोक में अभिसरण तथा अपसरण के मुख्य बिदुंओं को आलोकित कीजिये। (2020) |