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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

रुपए की मज़बूती के प्रतिकूल प्रभाव

  • 11 Aug 2017
  • 7 min read

पृष्ठभूमि

रुपए की विनिमय दर पिछले सप्ताह अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 63.50 रुपए पर पहुँच गई, जोकि पिछले दो वर्षों में अब तक की सबसे ऊँची दर है। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार भी उल्लेखनीय स्तर पर पहुँच गया है। ऐसे में अर्थव्यवस्था को दिन दूनी रात चौगुनी प्रगति करनी चाहिये थी, लेकिन सच यह है कि मज़बूत होता रुपया निर्यात और विनिर्माण में वृद्धि के मोर्चे पर एक चुनौती की तरह काम करता है।

समस्याएँ एवं चुनौतियाँ

  • दरअसल, रुपए में पिछले कुछ दिनों से जो एकतरफा तेज़ी दिख रही है, उसके फायदे कम और नुकसान अधिक नज़र आ रहे हैं। रुपया अगर और मज़बूत हुआ तो पटरी पर लौट रही भारतीय अर्थव्यवस्था पर फिर से दबाव बन सकता है।
  • हाल ही में रूपए के मुकाबले डॉलर का मूल्य घटकर 63.50 रुपए तक आ गया है। रुपए की इस तेज़ी की वज़ह से निम्नलिखित क्षेत्रों में सबसे अधिक प्रभाव देखने को मिलेगा:

• आईटी क्षेत्र: भारतीय आईटी कंपनियों का अधिकतर कारोबार विदेशों में होता है और उनकी कमाई डॉलर में आती है। रुपया मज़बूत होने से आईटी कंपनियों को डॉलर की कमाई भारतीय करेंसी में बदलने पर कम रुपए मिलेंगे। ऐसा होने से आईटी कंपनियों के मुनाफे पर चोट पड़ेगी।
• फार्मा क्षेत्र: देश से आईटी निर्यात के अलावा फार्मा निर्यात भी काफी अच्छा है। आईटी कंपनियों की तरह फार्मा कंपनियों की कमाई भी डॉलर में होती है और रुपया मज़बूत होने से फार्मा कंपनियों का प्रॉफिट मार्ज़िन भी कम होगा।
• निर्यात आधारित उद्योग: रुपए की तेज़ी का सबसे प्रतिकूल असर उन उद्योगों पर देखने को मिलेगा, जिनका कारोबार निर्यात पर टिका हुआ है। हीरे एवं जवाहरात के अलावा टेक्सटाइल उद्योग, इंजीनियरिंग गुड्स उद्योग और पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात करने वाले उद्योग इस श्रेणी में अहम हैं। डॉलर की कमज़ोरी की वज़ह से इन सभी उद्योगों के लाभांश कम होंगे।

निर्यात और अधिमूल्यन के अंतर्संबंध को समझने का प्रयास

  • मज़बूत होता रुपया किस प्रकार कमज़ोर निर्यात का कारण बन जाता है, यह जानने के लिये हमें पहले अर्थशास्त्र के कुछ तकनीकी शब्दों का मतलब समझना होगा।
  • विनिमय दर: किसी भी अन्य वस्तु एवं सेवा की भाँति ही विनिमय दर भी मांग और आपूर्ति के सिद्धांत द्वारा तय होती है। मुद्रा की मांग बढ़ने पर इसकी कीमत बढ़ती है और मांग घटने पर कीमत घटती है। एक डॉलर के मुकाबले 65 रुपए की विनिमय दर का सीधा-सा मतलब है कि एक डॉलर की कीमत 65 रुपए के बराबर है।
  • मुद्रा का अवमूल्यन: किसी मुद्रा के ह्रास या अवमूल्यन का मतलब दूसरी मुद्रा की तुलना में उसकी कीमत का गिरना है।
  • दरअसल, रुपए के बहुत अधिक मज़बूत होने का संबंध मुद्रा के अधिमूल्यन (Overvaluation) से है। जब सरकार देश की मुद्रा की “इकाई विनिमय-दर” को सामान्य दर (अर्थात स्वतंत्र विदेशी विनिमय बाज़ार में मांग तथा पूर्ति द्वारा निर्धारित होने वाली दर) से ऊँचा निर्धारित करती है तो यह अधिमूल्यन कहलाता है।
  • अधिमूल्यन, अवमूल्यन की ठीक विपरीत स्थिति है। इसका प्रभाव यह होता है कि विदेशों से वस्तुएँ खरीदना सस्ता हो जाता है जबकि विदेशी व्यापारियों द्वारा इस देश की वस्तुएँ खरीदना महँगा हो जाता है।
  • इस प्रकार मुद्रा का अधिमूल्यन आयात को प्रोत्साहित तथा निर्यात को हतोत्साहित करता है। स्वतंत्र विदेशी विनिमय बाज़ार में कोई भी मुद्रा अधिक समय तक अधिमूल्यन की स्थिति में नहीं रह सकती, परंतु विनिमय नियंत्रण द्वारा लंबे समय तक अधिमूल्यन की स्थिति को बनाए रखा जा सकता है।
  • रुपए का अधिक मज़बूत होना जहाँ एक ओर समस्यायों का कारण है, वहीं यदि महँगाई के आलोक में इसके प्रभावों का आकलन करें तो यह सकारात्मक तस्वीर पेश करता है। दरअसल, मज़बूत मुद्रा महँगाई के लिये एक सकारात्मक पक्ष है क्योंकि यह आयात को सस्ता कर देती है।

निष्कर्ष

  • हम प्रायः सुनते हैं कि किसी देश की विनिमय दर अधिक या फिर कम हो गई। जब हम किसी चीज़ के कम या ज़्यादा होने की बात कर रहे होते हैं तो ज़ाहिर है कि एक ऐसी स्थिति भी होगी, जब वह चीज़ कम या अधिक होने की बजाय जितनी चाहिये उतनी ही हो, अर्थात् विनिमय दर का भी एक वांछित और निश्चित स्तर होना चाहिये। हालाँकि, विनिमय दर को लेकर ऐसा नहीं कहा जा सकता।
  • भारत के लिये रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया वास्तविक प्रभावी विनिमय दर की गणना करता है। इसकी गणना के लिये दो मानकों का मुख्य रूप से प्रयोग किया जाता है: पहला दुनिया के मुख्य देशों की करेंसी की तुलना में रुपए की कीमत के विश्लेषण के आधार पर और दूसरा क्रय शक्ति समता (purchasing power parity-ppp) के आधार पर।
  • हम यह निर्धारित नहीं कर सकते हैं कि किन परिस्थितियों में क्रय शक्ति समता (ppp) का कौन-सा स्तर सही है। साथ ही, विनिमय दर की गणना के लिये जब हम कीमतों का विश्लेषण करते हैं तो आधार वर्ष का चयन किया जाता है।
  • उदाहारण के लिये, यदि वर्ष 2004-05 को आधार वर्ष मानकर चला जाए तो रुपए में 12.3 फीसदी का अधिमूल्यन हुआ है, वहीं अगर वर्ष 2012-13 को आधार वर्ष मान लिया जाए तो रुपए का वर्ष 2013-14 में अवमूल्यन हुआ था।
  • इन परिस्थितियों में 'वास्तविक प्रभावी विनिमय दर' का आकलन कर पाना थोड़ा मुश्किल नज़र आता है। अतः विनिमय दर में कमी या अधिकता को लेकर हमें इतना भी भावुक नहीं हो जाना चाहिये कि नीतियों में आमूल-चूल परिवर्तन के लिये तैयार हो जाएँ। हाँ, आयात और निर्यात में संतुलन बनाने के अन्य प्रयास अवश्य होते रहने चाहियें।
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