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पाकिस्तान में 27वाँ संवैधानिक संशोधन का भारत के लिये महत्त्व

  • 20 Nov 2025
  • 59 min read

स्रोत: IE

पाकिस्तान के राष्ट्रपति ने संविधान के 27वें संशोधन को मंजूरी दे दी है, जो एक ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है। यह कदम लोकतंत्र को कमज़ोर तथा आधिकारिक रूप से राज्य पर सैन्य वर्चस्व स्थापित करता है।

  • यह भारत के लिये एक और अधिक आक्रामक प्रतिद्वंद्वी का संकेत देता है, जिससे परोक्ष युद्ध (प्रॉक्सी वॉर) और परमाणु हमले बढ़ने का खतरा बढ़ जाता है, इस परिस्थिति में अधिक सतर्कता और मज़बूत रणनीतिक तैयारी की आवश्यकता होगी।

पाकिस्तान के 27वें संविधान संशोधन के मुख्य प्रावधान क्या हैं?

  • सशस्त्र बलों के प्रमुख की स्थापना: यह एक चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेस की स्थापना करता है, जिसका प्रमुख स्थायी रूप से आर्मी चीफ होगा तथा इसे नौसेना और वायु सेना पर भी कमान का अधिकार प्राप्त होगा।
  • 5-स्टार ऑफिसर के लिये कानूनी प्रतिरक्षा: यह 5-स्टार ऑफिसर (फील्ड मार्शल) को पूर्ण कानूनी प्रतिरक्षा प्रदान करता है, जो कि राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री को उपलब्ध सुरक्षा से अधिक व्यापक है।
  • संघीय संवैधानिक न्यायालय: फेडरल कॉन्स्टिट्यूशनल कोर्ट सर्वोच्च न्यायालय का स्थान लेता है, संवैधानिक मामलों का अधिकार सॅंभालता है तथा सेना पर न्यायिक नियंत्रण को सीमित कर देता है।
  • सेना की विदेश नीति: संशोधन के अंतर्गत सेना पाकिस्तान की विदेश नीति का संचालन करती है तथा नागरिक नेतृत्व से स्वतंत्र रूप से विदेशी नेताओं से मिलने का अधिकार रखती है।

पाकिस्तान के 27वें संविधान संशोधन का भारत पर क्या असर हो सकता है?

  • दंड से मुक्ति के साथ आतंकवाद: सैन्य नियंत्रण में वृद्धि के साथ जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे पाकिस्तान के आतंकवादी समूहों को अधिक परिचालन स्वतंत्रता मिल सकती है तथा वे राज्य संरक्षण में भारत के विरुद्ध अधिक साहसिक हमले कर सकते हैं। 
    • ऑपरेशन सिंदूर के दौरान मारे गए आतंकवादियों के अंतिम संस्कार में पाकिस्तानी सेना के अधिकारियों की उपस्थिति से सेना की आतंकवादी समूहों के साथ संलिप्तता से चिंताएँ उत्पन्न हो गईं हैं।
  • सैन्य वृद्धि का जोखिम: एकीकृत सैन्य कमान, जो नागरिक निगरानी के बिना कार्य करती है, जोखिम लेने की संभावना बढ़ा सकती है, यह मानते हुए कि भारत की प्रतिक्रिया सीमित रहेगी, परमाणु खतरे की चिंताओं के कारण। इस प्रकार फिर से कारगिल जैसी स्थिति उत्पन्न होने का खतरा बढ़ जाता है।
  • परमाणु जोखिम में वृद्धि: परमाणु प्राधिकरण को नागरिक के बजाय सैन्य कमांडर के हाथों में केंद्रीकृत करने से निर्णय प्रक्रिया अधिक अस्पष्ट और संभावित रूप से जोखिमपूर्ण हो सकती है। भारत के प्रति शत्रुतापूर्ण शासन, जवाबी कार्रवाई को रोकने के लिये परमाणु हथियारों का प्रदर्शन कर सकता है और उनके उपयोग की सीमा को कम कर सकता है।
  • सख्त कार्यवाही: कश्मीर पाकिस्तानी सेना की विचारधारा का केंद्रीय स्तंभ है। किसी भी राजनीतिक समाधान या गुप्त समझौते की संभावना अब समाप्त हो चुकी है। आधिकारिक राज्य का रुख स्थायी और अपरिवर्तनीय रूप से कठोर रहेगा।
  • कमज़ोर कूटनीतिक जुड़ाव: सेना द्वारा विदेश नीति के निर्देशन के साथ, पारंपरिक कूटनीतिक बैक-चैनल और ट्रैक-II संवाद, जो अक्सर नागरिक मध्यस्थों पर निर्भर होते हैं, कम प्रभावी या अप्रासंगिक हो जाएंगे। संवाद और तनाव कम करने की गुंजाइश नाटकीय रूप से कम हो जाएगी।

ऐसी परिस्थिति से निपटने के लिये भारत का क्या रुख होना चाहिये?

  • खुफिया प्रणाली में सुधार: पाकिस्तान की सैन्य निर्णय प्रक्रिया में किसी भी महत्त्वपूर्ण बदलाव पर निगरानी रखने के लिये HUMINT (मानव खुफिया) और TECHINT (तकनीकी खुफिया) को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
    • पाकिस्तान की सैन्य गतिविधियों और संचार पर नज़र रखने के लिये उपग्रह निगरानी और SIGINT (सिग्नल इंटेलिजेंस) को सशक्त किया जाना चाहिये, ताकि किसी भी पाकिस्तानी जोखिमपूर्ण कदम को रोका जा सके।
  • पूर्व-सक्रिय विघटन: भारत को अपनी सीमा प्रबंधन नीतियों को परिष्कृत करना चाहिये ताकि सीमा पार आतंकवाद, उग्रवादी घुसपैठ और शरणार्थी प्रवाह को स्मार्ट फेंसिंग, ड्रोन और AI आधारित निगरानी के माध्यम से नियंत्रित किया जा सके।
    • साथ ही त्वरित प्रतिक्रिया दलों को मज़बूत करना और स्थानीय अधिकारियों के साथ समन्वय बढ़ाना आवश्यक है, ताकि सुरक्षा संचालन तेज़ और प्रभावी हों।
  • त्वरित और दंडात्मक हमले की क्षमता: ऐसी क्षमता का प्रदर्शन किया जाए जो तेज़, उच्च-प्रभाव वाले पारंपरिक हमले कर सके, जो परमाणु सीमा से नीचे हों लेकिन महत्त्वपूर्ण क्षति पहुँचा सकें। पाकिस्तान की CDF संरचना के जवाब में एकीकृत कमांड्स को फास्ट‑ट्रैक करना चाहिये, ताकि तेज़ और समन्वित प्रतिक्रिया सुनिश्चित हो सके।
  • परमाणु स्पष्टता:  भारत को अपनी परमाणु लाल रेखाओं (न्यूक्लियर रेड लाइन्स) को स्पष्ट रूप से घोषित करना चाहिये, यह कहते हुए कि भारतीय बलों के खिलाफ किसी भी टैक्टिकल न्यूक्लियर वेपन (TNW) के प्रयोग पर एक विशाल रणनीतिक जवाबी हमला किया जाएगा। ऐसा संदेश पाकिस्तान की TNW नीति को खोखला साबित करेगा और किसी भी उकसावे की स्थिति में तीव्र प्रतिक्रिया की अनिवार्यता स्पष्ट कर देगा।
  • कूटनीतिक आक्रमण: भारत को अपने कथानक निर्माण के प्रयासों को मज़बूत करना होगा, क्योंकि ब्रह्म चेलानी जैसे भू-रणनीतिज्ञों ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि वैश्विक संवाद को आकार देने में देश की ‘सुस्त प्रतिक्रिया समय (sluggish response time)’ के कारण उसे बहुमूल्य कूटनीतिक पूंजी की हानि हुई है। 
    • उदाहरण के लिये, ऑपरेशन सिंदूर के दौरान अमेरिका के मध्यस्थता दावे का भारत की देरी से जवाब देने के कारण वह कथानक अनावश्यक रूप से प्रभावी हो गया।

निष्कर्ष:

पाकिस्तान का 27वाँ संशोधन सैन्य नियंत्रण और कड़े रुख को कानूनी रूप से स्थायी बनाता है, जिससे परमाणु और प्रॉक्सी युद्ध का खतरा बढ़ जाता है और पाकिस्तान केवल व्यवहार में ही नहीं, बल्कि कानूनन भी गैरिसन स्टेट (garrison state) बन जाता है। भारत के संदर्भ में यह राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये तीक्ष्ण रणनीतिक सतर्कता, सुदृढ़ खुफिया तंत्र, निरंतर कूटनीतिक दबाव और सुविचारित निवारक उपायों की आवश्यकता को दर्शाता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: पाकिस्तान की सैन्य-प्रमुख सरकार द्वारा उत्पन्न खतरों का मुकाबला करने के लिये भारत को कौन-कौन से रणनीतिक और कूटनीतिक उपाय अपनाने चाहिये, इस पर चर्चा कीजिये।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)

1. पाकिस्तान में 27वाँ संशोधन क्या है?

यह एक संवैधानिक बदलाव है जो मिलिट्री सुप्रीमेसी को फॉर्मल बनाता है, आर्मी चीफ के अंडर पावर को सेंट्रलाइज़ करता है तथा सिविलियन और ज्यूडिशियल ओवरसाइट को सीमित करता है।

2. यह संशोधन इंडिया की सिक्योरिटी पर किस प्रकार प्रभाव डालता है?

यह प्रॉक्सी टेररिज़्म, न्यूक्लियर एस्केलेशन और कन्वेंशनल मिलिट्री टकराव के रिस्क को बढ़ाता है, जिसके लिये इंडिया को स्ट्रेटेजिक डिटरेंस और इंटेलिजेंस कैपेबिलिटी को मज़बूत करने की ज़रूरत है।

3. यह संशोधन कश्मीर पर किसी राजनीतिक समाधान की संभावना को प्रभावी रूप से क्यों समाप्त कर देता है?

पाकिस्तानी सेना की विचारधारा मूलतः कश्मीर पर कठोर रुख पर आधारित है; सेना का औपचारिक राज्य नियंत्रण इस रुख को स्थायी और कठोर बना देता है, जिससे किसी भी कूटनीतिक समाधान या समझौते की संभावना समाप्त हो जाती है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न

प्रिलिम्स

प्रश्न. सिंधु नदी प्रणाली के संदर्भ में निम्नलिखित चार नदियों में से तीन नदियाँ इनमें से किसी एक नदी में मिलती हैं जो सीधे सिंधु से मिलती है। निम्नलिखित में से वह नदी कौन-सी है जो सीधे सिंधु से मिलती है? (2021)

(a) चिनाब
(b) झेलम
(c) रावी
(d) सतलुज

उत्तर: (d)


मेन्स

प्रश्न. “भारत में बढ़ते हुए सीमापारीय आतंकी हमले और अनेक सदस्य-राज्यों के आंतरिक मामलों में पाकिस्तान द्वारा बढ़ता हुआ हस्तक्षेप SAARC (दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन) के भविष्य के लिये सहायक नहीं है।” उपयुक्त उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिये। (2016)

प्रश्न. आतंकवादी गतिविधियों और परस्पर अविश्वास ने भारत-पाकिस्तान संबंधों को धूमिल बना दिया है। खेलों और सांस्कृतिक आदान-प्रदान जैसी मृदु शक्ति किस सीमा तक दोनों देशों के बीच सद्भाव उत्पन्न करने में सहायक हो सकती है। उपयुक्त उदाहरणों के साथ चर्चा कीजिये। (2015)

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