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जैव विविधता और पर्यावरण

बाँध अवसादन के कारण जल संकट

  • 16 Jan 2023
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

अवसादन, ड्रेजिंग, जलवायु परिवर्तन, केंद्रीय जल आयोग, पर्यावरण प्रभाव आकलन।

मेन्स के लिये:

जल संकट, बाँध अवसादन और परिणाम।

चर्चा में क्यों?

जल, पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिये संयुक्त राष्ट्र संस्थान की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में लगभग 50,000 बड़े बाँधों में वर्ष 2050 तक 24-28% जल भंडारण क्षमता कम हो जाएगी, क्योंकि उनमें निरंतर अवसादीकरण हो रहा है।

  • अवसादीकरण के कारण इन जलाशयों/बाँधों की जल भंडारण क्षमता में पहले ही लगभग 13-19%  की कमी आ चुकी है।
  • यूनाइटेड किंगडम, पनामा, आयरलैंड, जापान और सेशेल्स वर्ष 2050 तक अपनी मूल क्षमता के 35-50% तक उच्चतम जल भंडारण क्षमता में कमी का अनुभव करेंगे।

बाँधों के संदर्भ में अवसादीकरण:

  • बाँधों में अवसादीकरण बाँध के तल पर रेत, बजरी और गाद जैसे अवसादों के संचय को संदर्भित करती है।
  • यह अवसाद समय के साथ जमा हो जाते हैं, जिससे जलाशय की समग्र भंडारण क्षमता कम हो सकती है।
  • जलाशय की क्षमता को बनाए रखने के लिये निकर्षण नामक एक प्रक्रिया के माध्यम से अवसाद को हटाने की आवश्यकता होती है।

निकर्षण/ड्रेजिंग: 

  • निकर्षण किसी जलाशय के तल पर जमा रेत, बजरी और गाद जैसे तलछट को हटाने की प्रक्रिया है।
  • यह कार्य विभिन्न तरीकों का उपयोग कर किया जा सकता है, जैसे कि ड्रेज मशीन के साथ यांत्रिक ड्रेजिंग या उच्च दबाव वाले जल के जेट के साथ हाइड्रोलिक ड्रेजिंग।
  • आमतौर पर जलाशय से निकाली गई सामग्री का उपयोग या निपटान अन्य स्थानों पर किया जाता है। 

अवसादीकारण का कारण:  

  • बाँध के ऊपरी क्षेत्रों में भू-क्षरण: बाँध के ऊपरी क्षेत्रों में भू-क्षरण के कारण मृदा एवं पत्थर आदि  का जलाशय के तल पर जमा होना।
  • शहरी और कृषि क्षेत्रों से अपवाह (यह तब होता है जब ज़मीन की क्षमता से अधिक पानी होता है): मानव गतिविधियों, जैसे- शहरीकरण और कृषि के लिये भूमि का बढ़ता उपयोग, जलाशय में तलछट के अपवाह को बढ़ा सकता है।
  • प्राकृतिक प्रक्रियाएँ: अपक्षय और अपरदन जैसी प्रक्रियाओं के माध्यम से अवसादन प्राकृतिक रूप से भी हो सकता है।
  • जलवायु परिवर्तन: अधिक तीव्र और व्यापक वर्षा का कारण जलवायु परिवर्तन है।
  • वनों की कटाई: पेड़ मृदा के अपरदन को रोकने में मदद करते हैं, इसलिये जब वनों की कटाई या उनका क्षरण होता है, तो जलाशय में अवसादीकरण का खतरा अधिक बढ़ जाता है।
  • बाँध का खराब प्रबंधन: रखरखाव और मरम्मत की कमी भी अवसादन का कारण बन सकती है, क्योंकि इससे बाँध की संरचना क्षतिग्रस्त हो सकती है, जिससे अवसाद जलाशय में प्रवेश कर सकते हैं।

बाँध अवसादीकरण के परिणाम:  

  • पर्यावरणीय: 
    • जलाशय की कम जल भंडारण क्षमता, जो निचले क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिये जल की कमी और जलीय जानवरों के आवास के ह्रास का कारण बन सकती है। 
    • इसके कारण बाँध टूटने का खतरा बढ़ जाता है क्योंकि अवसाद (तलछट) के कारण बाँध अस्थिर हो सकता है।
  • आर्थिक:
    • तलछट को हटाने के लिये रखरखाव और ड्रेजिंग की लागत में वृद्धि। 
    • बाँध से कम जल प्रवाह के कारण जलविद्युत उत्पादन को क्षति। 
    • कृषि सिंचाई एवं  उद्योग के लिये जल- आपूर्ति में कमी। 
    • मछली पकड़ने और नौका विहार जैसी मनोरंजक गतिविधियों से प्राप्त राजस्व में कमी यदि जलाशय इन गतिविधियों में सक्षम नहीं होता है।
  • बाँध संरचना और टर्बाइन को क्षति:
    • जलाशय के तल पर तलछट का संचय बाँध की नींव के क्षरण का कारण बन सकता है, जो संरचनात्मक ढाँचे को कमज़ोर कर इसके लिये ज़ोखिम बढ़ा सकता है
    • तलछट टरबाइन को रोक सकता है जो जलविद्युत उत्पादन की दक्षता को कम कर सकता है तथा तलछट को हटाने के लिये महँगे रखरखाव की आवश्यकता हो सकती है।
    • तलछट टरबाइन ब्लेड पर घर्षण भी उत्पन्न कर सकता है जिससे क्षति हो सकती है तथा उनकी दक्षता कम हो सकती है।
    • जबकि तलछट जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने में मदद करता है, खराब प्रबंधन से पोषण संबंधी असंतुलन हो सकता है जिससे बाँध के जलाशय में यूट्रोफिकेशन और अन्य व्यवधान हो सकते हैं तथा साथ ही निचले क्षेत्रों में स्थित आवासों को क्षति पहुँच सकती है।

आगे की राह  

  • नियमित निरीक्षण और निगरानी: कमज़ोर संरचना, क्षरण और अन्य संभावित मुद्दों के समाधान के लिये बाँधों का नियमित रूप से निरीक्षण एवं निगरानी करना आवश्यक है। इसमें दृश्य निरीक्षण और उपकरण-आधारित निगरानी दोनों शामिल हैं, जैसे कि संचलन हेतु बाँध की नींव की निगरानी करना।
  • आपातकालीन कार्य योजनाएँ: बाँध के विफल होने या बाढ़ जैसी संभावित घटनाओं से निपटने हेतु आपातकालीन कार्ययोजना की आवश्यकता होती है। ये योजनाएँ आपातकालीन स्थिति में की जाने वाली कार्रवाइयों को रेखांकित करती हैं, जिसमें निकासी प्रक्रियाएँ तथा आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रणाली शामिल हैं। 
  • पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन: आसपास के पर्यावरण पर बाँध के संभावित प्रभावों का मूल्यांकन करने हेतु बाँधों का पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) किया जाना आवश्यक है। इसमें वन्यजीवों, जलीय प्रजातियों और डाउनस्ट्रीम समुदायों पर प्रभाव का आकलन करना शामिल है।
  • सार्वजनिक परामर्श: बाँध निर्माण पर निर्णय लेने की प्रक्रिया में सार्वजनिक परामर्श और भागीदारी को शामिल किया जाना आवश्यक है, जिसमें प्रस्तावित बाँध को लेकर सार्वजनिक टिप्पणी के लिये जानकारी और समय प्रदान किया जाना चाहिये। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:  

प्रश्न. मान लीजिये कि भारत सरकार जंगलों से घिरी और जातीय समुदायों द्वारा बसाई गई एक पहाड़ी घाटी में एक बाँध निर्माण हेतु विचार कर रही है। अप्रत्याशित आकस्मिकताओं से निपटने हेतु किस तर्कसंगत नीति का सहारा लिया जाना चाहिये? (2018)

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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