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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

टिशू कल्चर प्लांट्स

  • 09 May 2022
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

एपीडा, डीबीटी,  टिशू कल्चर।

मेन्स के लिये:

टिशू कल्चर प्लांट्स और उनका महत्त्व।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही केंद्र ने कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (Agricultural and Processed Food Products Export Development Authority- APEDA) के माध्यम से टिशू कल्चर प्लांट्स/पौधों (Tissue Culture Plants) के निर्यात को प्रोत्साहन देने के क्रम में बायोटेक्नोलॉजी विभाग (Department of Biotechnology- DBT) से मान्यता प्राप्त भारत भर की टिशू कल्चर लैबोरेटरीज़ के साथ मिलकर “वनस्पति, जीवित पौधों, कट फ्लॉवर्स जैसे टिशू कल्चर पौधों और रोपण सामग्री का निर्यात संवर्द्धन” पर एक वेबिनार का आयोजन किया।  

  • इसका उद्देश्य टिशू कल्चर प्लांट्स (Tissue Culture Plants) के निर्यात को बढ़ावा देना है।

प्रमुख बिंदु

टिशू कल्चर:

  • यह ‘उपयुक्त विकास माध्यम’ में पौधे के ऊतक के एक छोटे से टुकड़े से या पौधे की बढ़ती युक्तियों से कोशिकाओं को हटाकर नए पौधों के उत्पादन की एक प्रक्रिया है।
  • इस प्रक्रिया में ‘विकास माध्यम’ या ‘कल्चर सॉल्यूशन’ बहुत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसका उपयोग पौधों के ऊतकों को उगाने के लिये किया जाता है और इसमें 'जेली' के रूप में पौधों के विभिन्न पोषक तत्त्व होते हैं जिन्हें पौधों के हार्मोन के रूप में जाना जाता है जो पौधों की वृद्धि के लिये आवश्यक हैं।

‘प्लांट टिशू कल्चर’ के अनुप्रयोग:

  • पौधों के श्वसन और उपापचय का अध्ययन करना।
  • पौधों के अंगों के कार्यों का मूल्यांकन करना।
  • विभिन्न पादप रोगों का अध्ययन करना और उनके उन्मूलन के लिये विधियों पर कार्य करना।
  • एकल कोशिका क्लोन आनुवंशिक, रूपात्मक और रोग संबंधी अध्ययनों के लिये उपयोगी होते हैं।
  • बड़े पैमाने पर ‘क्लोनल’ प्रसार के लिये भ्रूण कोशिका निलंबन का उपयोग किया जा सकता है।
  • कोशिका निलंबन से दैहिक भ्रूणों को ‘जर्मप्लाज़्म’ बैंकों में लंबे समय तक संग्रहीत किया जा सकता है।
  • नई विशेषताओं के साथ भिन्न क्लोन उत्पादन की घटनाओं को ‘सोमाक्लोनल’ विविधताओं के रूप में जाना जाता है।
  • फसलों में सुधार के लिये अगुणित (गुणसूत्रों के एक समुच्चय के साथ) का उत्पादन। 
  • उत्परिवर्ती कोशिकाओं को संवर्द्धनों से चुना जा सकता है और फसल सुधार के लिये इनका उपयोग किया जा सकता है।
  • अपरिपक्व भ्रूणों को पादपों की संकर प्रजाति पैदा करने के लिये इन विट्रो में संवर्द्धित (cultured) किया जा सकता है, यह एक प्रक्रिया जिसे एम्ब्रयो रेस्क्यू (Embryo Rescue) कहा जाता है।

भारत में टिशू कल्चर का भविष्य:

  • भारत  ज्ञान, बायोटेक विशेषज्ञों के साथ विशाल टिशू कल्चर के अनुभव के साथ-साथ निर्यात-उन्मुख गुणवत्तायुक्त पादप सामग्री के उत्पादन में मदद करने के लिये कम लागत वाली श्रम शक्ति से युक्त देश है।
  • ये सभी कारक भारत को अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में गुणवत्तापूर्ण वनस्पतियों की एक विस्तारित और विविध श्रेणी का संभावित वैश्विक आपूर्तिकर्त्ता बनाते हैं तथा बदले में विदेशी मुद्रा का अर्जन करते हैं।
  • कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण(APEDA) एक वित्तीय सहायता योजना (FAS) चला रहा है ताकि प्रयोगशालाओं  को उन्नत बनाने में मदद मिल सके जिससे निर्यात करने के लिये गुणवत्तायुक्त टिशू कल्चर पादप सामग्री का उत्पादन किया जा सके।  
    • यह विविध देशों को टिशू कल्चर रोपण सामग्री के निर्यात के संबंध में सुविधा प्रदान करता है जैसे- बाज़ार के विकास, अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनियों में ऊतक संवर्द्धन पौधों का बाज़ार विश्लेषण और प्रचार एवं प्रदर्शनी तथा विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर क्रेता-विक्रेता बैठक के माध्यम से आदि। 
  • भारत से टिशू कल्चर पौधों का आयात करने वाले शीर्ष दस देश हैं:
    • नीदरलैंड, अमेरिका, इटली, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, जापान, केन्या, सेनेगल, इथियोपिया और नेपाल। 
  • भारत का 2020-2021 में टिशू कल्चर पौधों का निर्यात 17.17 मिलियन अमेरिकी डाॅलर था, जिसमें नीदरलैंड का लगभग 50% शिपमेंट था।

भारत में टिशू कल्चर निर्यातकों के समक्ष चुनौती:

  • बिजली की बढ़ती लागत
  • प्रयोगशालाओं में कुशल कार्यबल का निम्न दक्षता स्तर
  • प्रयोगशालाओं में संदूषण के मुद्दे
  • सूक्ष्म प्रचारित (Micro-Propagated) रोपण सामग्री के परिवहन की लागत 
  • अन्य देशों के साथ भारतीय रोपण सामग्री के HS-कोड में सामंजस्य का अभाव
  • वन एवं क्वारेंटाइन विभागों का प्रतिरोध

स्रोत: पी.आई.बी.

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