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भूगोल

सौर्यिक गतिविधि में कमी का भूमंडलीय तापन पर प्रभाव नहीं

  • 26 Sep 2020
  • 13 min read

प्रिलिम्स के लिये 

सौर कलंक, सौर चक्र, सोलर मिनिमम,  मॉर्डन ग्रैंड सोलर न्यूनतम

मेन्स के लिये 

सौर्यिक गतिवधि में कमी एवं शीतलन, पृथ्वी सतह का शीतलन: कारण, भूमंडलीय तापन के प्रभावों में कमी

चर्चा में क्यों? 

वैज्ञानिकों के अनुसार, 11 वर्ष का नया सौर चक्र अर्थात् 25वां सौर चक्र प्रारंभ हो गया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि सौर कलंकों की तीव्रता पिछले 100 वर्षों में वर्ष 2019 में सबसे कम रही है। इसे ‘सौर न्यूनतम’ ( Solar Minimum) के रूप में भी जाना जाता है। वर्ष 2020 में भी सौर कलंकों की तीव्रता कम देखी गई है।

सौर्यिक गतिवधि में कमी एवं शीतलन 

  • संयुक्त राज्य अमेरिका के ‘नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन’ (National Oceanic and Atmospheric Administration-NOAA) के स्पेस एनवायरनमेंट सेंटर (Space Environment Centre-SEC) के अनुसार, वर्ष 2020 में, 21 सितंबर तक, सूर्य के 71% भाग पर सौर कलंकों की अनुपस्थिति अवलोकित की गई है। इसी वर्ष मई माह में सौर कलंकों की अनुपस्थिति वाली सतह का हिस्सा 78% तक था। वैज्ञानिकों के अनुसार, इससे मिनी हिमयुग (Little Ice Age) की आशंकाओं को बल मिलता है।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार, वर्ष 2020 से वर्ष 2053 तक सूर्य ‘मॉर्डन ग्रैंड सोलर मिनिमम’ (Modern Grand Solar Minimum) गतिविधि की लंबी अवधि से गुजर रहा है। पिछली बार इस तरह की घटना माउंडर मिनिमम (Mounder Minimum) के दौरान घटित हुई थी।
  • एक अध्ययन के अनुसार, मॉडर्न ग्रैंड सोलर मिनिमम के दौरान सौर्यिक चुंबकीय गतिविधि में 70% की कमी के कारण पृथ्वी की सतह का तापमान कम होने की संभावना है।
  • यूनाइटेड किंगडम के नॉर्थम्ब्रिया विश्वविद्यालय की वेलेंटीना ज़रखोवा ने 4 अगस्त, 2020 को ‘Temperature’ में प्रकाशित अपने लेख में सूर्य के आंतरिक भाग में जटिल चुंबकीय गतिविधि तथा सौर विकिरणों पर इसके प्रभावों का अध्ययन किया। 
  • सौर विकिरणों की मात्रा में भिन्नताएँ पृथ्वी के वायुमंडल की ऊपरी परत के तापमान और पृथ्वी की सतह की ओर सौर ऊर्जा के परिवहन को भी प्रभावित करती हैं। 
  • ज़रखोवा ने सौर पृष्ठभूमि के माध्यम से चुंबकीय गतिविधि के अध्ययन में पाया कि सौर कलंकों की तीव्रता 24वें तथा 25वें चक्रों में कम होती जा रही है। 26वें सौर चक्र में इसके लगभग शून्य हो जाने की आशंका है। 

पृथ्वी का शीतलन: कारण 

  • माउंडर मिनिमम के दौरान उत्तरी अटलांटिक दोलन (North Atlantic Oscillation-NAO) को नकारात्मक (Negative) स्थिति में देखा गया था। NAO ग्रीनलैंड के पास एक स्थायी रूप से कम दबाव और इसके दक्षिण में एक स्थायी उच्च दबाव प्रणाली के मध्य संतुलन की एक स्थिति है। इस नकारात्मक संतुलन की स्थिति के कारण यूरोप का तापमान सामान्य तापमान से काफी नीचे चला गया।
  • शीतलन का दूसरा कारण प्रत्यक्ष रूप से सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र से संबंधित है। सूर्य का चुंबकीय क्षेत्र पृथ्वी को कॉस्मिक और आकाशगंगा संबंधी (Galactic) हानिकारक विकिरणों से बचाता है। ज़रखोवा के अनुसार, पृथ्वी पर पहुँचने वाली हानिकारक किरणों में कमी और वायुमंडल में उच्च बादलों के निर्माण के कारण पृथ्वी के शीतलन की प्रक्रिया में वृद्धि हुई है।
  • ज़रखोवा ने अनुमान लगाया है कि वर्तमान सोलर मिनिमम के दौरान पृथ्वी के सतह पर तापमान 1°C तक कम हो सकता है। तापमान में संभावित कमी के कारण वैज्ञानिकों का यह अनुमान है कि सोलर मिनिमम के दौरान पृथ्वी सतह का शीतलन हिमयुग का कारण बन सकता है। यह भूमंडलीय तापन (Global Warming) के कारण बढ़ते तापमान के प्रभावों को प्रतिसंतुलित कर सकता है। 

क्या भूमंडलीय तापन के प्रभावों में कमी आएगी?

  • इसी वर्ष 29 मई को नासा के एक अंतरिक्ष यान ने अक्तूबर 2017 के पश्चात् बड़ी संख्या में सौर कलंकों के एक समूह का पता लगाया। बड़ी संख्या में ये सौर कलंक कोरोनल मास इजेक्शन्स (Coronal Mass Ejection-CME) का कारण बन सकते हैं। कोरोनल मास इजेक्शन्स सूर्य के कोरोना से प्लाज़्मा एवं चुंबकीय क्षेत्र का विस्फोट है जिसमें अरबों टन कोरोनल सामग्री उत्सर्जित होती है तथा इससे पिंडों के चुंबकीय क्षेत्र में परिवर्तन हो सकता है।
  • नासा के अनुसार, मॉडर्न ग्रैंड सोलर मिनिमम के दौरान भी कार्बन डाइऑक्साइड के अधिक उत्सर्जन के कारण भूमंडलीय तापन का प्रभाव मॉडर्न ग्रैंड सोलर मिनिमम की वजह से होने वाले शीतलन से छह गुना अधिक होगा। इस अवधि के लंबे समय तक चलने के बावजूद पृथ्वी की सतह के तापमान में वृद्धि ही होगी।

सोलर मिनिमम क्या है? 

  • जब न्यूनतम सौर कलंक सक्रियता की अवधि दीर्घकाल तक रहती है तो इसे ‘माउंडर मिनिमम’ कहते हैं।
  • वर्ष 1645-1715 के बीच की अवधि में सौर कलंक परिघटना में विराम देखा गया जिसे ‘माउंडर मिनिमम’ कहा जाता है। यह अवधि तीव्र शीतकाल से युक्त रही, अत: सौर कलंक अवधारणा को जलवायु परिवर्तन के साथ जोड़ा जाता है।
  • माउंडर मिनिमम के अंतिम समय के दौरान सौर विकिरण में 0.22% की कमी अवलोकित की गई थी।

सौर कलंक

  • सौर-कलंक सूर्य की सतह का ऐसा क्षेत्र होता है जिसकी सतह आसपास के हिस्सों की तुलना अपेक्षाकृत काली (DARK) होती है तथा तापमान कम होता है। इनका व्यास लगभग 50,000 किमी. होता है।
  • ये सूर्य की बाहरी सतह अर्थात फोटोस्फीयर (Photosphere) के ऐसे क्षेत्र होते हैं जहाँ किसी तारे का चुंबकीय क्षेत्र सबसे अधिक होता है। यहाँ का चुंबकीय क्षेत्र पृथ्वी की तुलना में लगभग 2,500 गुना अधिक होता है।
  • सामान्यत: चुंबकीय क्षेत्र तथा तापमान में व्युत्क्रमनुपाती संबंध होता है , अर्थात तापमान बढ़ने पर चुंबकीय क्षेत्र घटता है। 

सौर चक्र

  • अधिकांश सौर-कलंक समूहों में दिखाई देते हैं तथा उनका अपना चुंबकीय क्षेत्र होता है, जिसकी ध्रुवीयता लगभग 11 वर्ष में बदलती है जिसे एक ‘सौर चक्र’ (Solar Cycle) कहा जाता है। 
  • सौर-कलंकों की संख्या में लगभग 11 वर्षों के चक्र के दौरान वृद्धि तथा कमी होती है जिन्हें क्रमशः सौर कलंक के विकास तथा ह्रास का चरण कहा जाता है, वर्तमान में इस चक्र की न्यूनतम संख्या या ह्रास का चरण चल रहा है।
  • वर्तमान सौर चक्र की शुरुआत वर्ष 2008 से मानी जाती है जो अपने ’सौर न्यूनतम’ (Solar Minimum) चरण में है। 
  • ’सौर न्यूनतम’ के दौरान सौर-कलंकों और सौर फ्लेयर्स (Solar Flares) की संख्या में  कमी देखी जाती है।

सौर चक्र के कारण प्रभावित होने वाली गतिविधियाँ

  • ऑरोरा
    • जब एक सौर तूफान पृथ्वी की ओर आता है तो ऊर्जा के कुछ कण पृथ्वी के वायुमंडल में उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों पर चुंबकीय रेखाओं तक पहुँच जाते हैं।
    • ऊर्जा के ये छोटे कण वायुमंडल में गैसों के साथ संपर्क करते हैं जिसके परिणामस्वरुप आकाश में आकर्षक प्रकाश दिखाई देता है। ऑक्सीजन हरे तथा लाल रंग में जबकि नाइट्रोजन नीले और बैगनी रंग में चमकती है। 
    • उत्तरी ध्रुव पर इसे ‘ऑरोरा बोरेलिस’ (Aurora Borealis) तथा दक्षिणी ध्रुव पर इसे ‘ऑरोरा ऑस्ट्रेलिस’ (Aurora Australis) कहते हैं।  
  • रेडियो संचार 
    • एक रेडियो तरंग विद्युत स्पेक्ट्रम का हिस्सा है जो चुंबकीय और विद्युत ऊर्जा दोनों तरंगों की एक शृंखला है। ये तरंगें भिन्न-भिन्न आवृत्तियों वाली होती हैं। 
    • ये आवृत्ति संदेश पृथ्वी के वायुमंडल में आयनमंडल से परावर्तित होते हैं।  
    • अधिकतम सौर्यिक प्रकाश और सौर तूफान के दौरान सूर्य से बड़ी मात्रा में उत्पन्न असामान्य रूप से सक्रिय कणों के प्रभाव में रेडियो तरंगें कम समय में अधिक दूरी तय करने लगती है।  
    • सौर न्यूनतम के दौरान आयनमंडल की सामान्य ऊर्जा में कमी के कारण रेडियो तरंगों  का पर्याप्त रूप में परावर्तन नहीं हो पाता है।  
  • जलवायु परिवर्तन 
    • पिछले तीन सौर चक्रों के दौरान सौर कलंकों की गतिविधि में एक कमज़ोर प्रवृत्ति दिखाई देती है। 
    • वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इसके कारण मिनी हिमयुग और ठंडी जलवायु का आविर्भाव हो सकता है।  
  • विद्युत पारेषण 
    • धात्विक संरचनाओं, जैसे- ट्रांसमिशन लाइंस और सूर्य से आने वाले कई ऊर्जावान आवेशित कणों की गति द्वारा निर्मित विद्युत चुंबकीय क्षेत्रों के मध्य संपर्क के कारण विद्युत प्रणालियों के बाधित होने का खतरा बना रहता है।  
    • यद्यपि इस तरह की घटनाएँ बहुत दुर्लभ हैं, लेकिन फिर भी ये काफी हानिकारक हो सकती हैं।   
  • उपग्रह 
    • सौर गतिविधि उपग्रह प्रक्षेपण को प्रभावित करने के साथ-साथ उनके जीवनकाल को भी सीमित कर सकती है। 
    • अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (Internation Space Station-ISS) के बाहर काम करने वाले अंतरिक्ष यात्रियों के लिये विकिरण का खतरा हो सकता है। 
    • यदि वैज्ञानिक सौर चक्र में सक्रिय समय की सटीक भविष्यवाणी करते हैं तो उपग्रहों को सुरक्षित मोड में रखा जा सकता है और अंतरिक्ष यात्री अपने स्पेसवॉक को रोक सकते हैं।  

आगे की राह

सूर्य की गतिविधि को अभी पूर्ण रूप से समझा नहीं जा सका है। अभी तक किये गए अवलोकनों के अनुसार, सूर्य की गतिविधि को समझने के लिये वैज्ञानिकों को 6 माह से एक वर्ष का और समय लग सकता है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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